Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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द्वादशोऽध्यायः
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लिए उक्त प्रकार का गभं अच्छा होता है। देश में कला-कोपाल की भी वृद्धि होती है। यदि उक्त नक्षत्र में सन्ध्या सगय गर्भ धारण की क्रिया हो तो व्यापारियों के लिए अशुभ होता है। वर्षा प्रचुर परिमाण में होती है। विद्य त्पात अधिक होता है, तथा देश के किसी बड़े नेता की मृत्यु की भी सूचक होती है । उत्तराषाढ़ा के प्रथम चरण में गर्भ धारण की क्रिया हो तो साधारण वर्षा आश्विन मास में होती है, द्वितीय चरण में गर्भधारण की क्रिया हो तो भाद्रपद मास में अल्प वर्षा होती है और यदि तृतीय चरण में गर्भधारण की क्रिया हो तो पशुओं को कष्ट होता है । अतिवृष्टि के कारण बाढ़ अधिक आती है तथा समस्त बड़ी नदियाँ जल से आप्लावित हो जाती हैं । दिग्दाह और भूकम्प होने का योग भी आश्विन और माघ मास में रहता है। कृषि के लिए उक्त प्रकार की जलवृष्टि हानिकारक ही होती है। उत्तराषाढ़ा के चतुर्थ चरण में गर्भधारण होने पर उसम वर्षा होती है और फसल के लिए यह वर्षा अमृत के समान गुणकारी सिद्ध होती है ।
पूर्वा भाद्रपद में गर्भ धारण हो तो चातुर्मास को अलावा गौष में भी वर्षा होती है और फसल में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं, जिरासे फसल की क्षति होती है। यदि इस नक्षत्र के प्रथम चरण में गर्भ धारण की क्रिया मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष में हो तो गर्भ धारण के 193 दिन बाद उत्तम वर्षा होती है और आषाढ़ के महीने में आठ दिन वर्षा होती है । प्रथम चरण की आरम्भ वाली तीन घटियों में गर्भ धारण हो तो पाँच आढक जल आषाढ में, सात आढक श्रावण में, छ: आढक भाद्रपद और चार अगढक आश्विन में बरसता है। गर्भ धारण के दिन से ठीक 193 वें दिन में निश्चयतः जल बरस जाता है। यदि द्वितीय चरण में गर्भ धारण की क्रिया मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष में हो तो 192 दिन के पश्चात् या 192वें दिन ही जल वृष्टि हो जाती है । आषाढ़ कृष्ण पक्ष में उत्तम जल बरसता है, शुक्ल पक्ष में केवल दो दिन अच्छी वर्षा और तीन दिन साधारण वर्षा होती है। द्वितीय चरण का गर्भ चार सौ कोश की दूरी में जल बरसाता है । यदि इसी नक्षत्र के इसी चरण में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष में गर्भ धारण की क्रिया हो तो आषाढ़ में प्रायः वर्षा का अभाव रहता है। थावण मास में पानी बरसना आरम्भ होता है, भाद्रपद में गी अल्प ही वर्षा होती है । यद्यपि उक्त नक्षत्र के उक्त चरण में गर्भ धारण करने का फल वर्ष में एक मारी जल बरसता है; किन्तु यह जल इस प्रकार बरसता है, जिससे इसका सदुपयोग पूर्ण रूप से नहीं हो पाता। यदि पूर्वाभाद्रपद के तृतीय चरण में मेघ मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष में गर्भधारण करें तो 190वें दिन वर्षा होती है । वर्षा का आरम्भ आषाढ़ कृष्ण सप्तमी से हो जाता है तथा आषाढ़ में ग्यारह दिनों तक बर्षा होती रहती है। श्रावण में कुल आठ दिन, भाजपद में चौदह दिन और आश्विन में नौ दिन वर्षा होती है। कात्तिक मास में कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को शुक्लपक्ष की पंचमी