Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
नक्षत्र, मुहूर्त आदि सभी का निर्देश करना चाहिए। मेघ गर्भ धारण के छ. महीने के पश्चात् वर्षा करते हैं |16||
गर्भाधानादयो मासास्ते च मासा अवधारिणः । विपाचनत्रयश्वापि त्रयः कालाभिवर्षणाः ॥17॥
गर्भाधान, वर्षा आदि के महीनों का निश्चय करना चाहिए। तीन महीनों तक गर्भ की पक्व क्रिया होती है और तीन महीने वर्षा के होते हैं !! 7 शीतवातश्च विद्युच्च गर्जितं परिवेषणम् । सर्वगर्भेषु शस्यन्ते निर्ग्रन्थाः साधुदर्शिनः ॥8॥
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सभी गर्भो में शीत वायु का बहना, बिजली का चमकना, गर्जन करना और परिवेष की प्रशंसा सभी निर्ग्रन्थ साधु करते हैं । अर्थात् मेघों के गर्भ धारण के समय शीत वायु का बहना, बिजली का चमकना, गर्जन करना और परिवेष धारण करना अच्छा माना गया है। उक्त चिह्न फसल के लिए भी श्रेष्ठ होते # 1801
गर्भस्तु विविधा ज्ञेयाः शुभाशुभा यदा तदा । पापलिंगा निरुदका भयं दद्यनं संशय: 2 ॥9॥ उल्कापातोऽथ निर्धाताः दिग्दाहा' पांशुवृष्टयः । गृहयुद्धं निवृत्तिश्च ग्रहणं चन्द्रसूर्ययोः ॥101 ग्रहाणां चरितं चक्रं साधूनां' कोपसम्भवम् । गर्भाणानुपघाताय न ते ग्राह्या 'विचक्षणः ॥11॥
मेघ-गर्भ अनेक प्रकार के होते हैं, पर इनमें दो मुख्य हैं— शुभ और अशुभ | पाप के कारणीभूत अशुभ मेघ गर्भ निस्सन्देह जल की वर्षा नहीं करते हैं तथा भय भी प्रदान करते हैं । अशुभ गर्भ से उल्कापात, दिग्दाह, धूलि की वर्षा, गृहकलह, घर से विरक्ति और चन्द्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण होते हैं। ग्रहों का युद्ध, साधुओं का क्रोधित होना, गर्भों का विनाश होता है, अतः बुद्धिमान व्यक्तियों को अशुभ गर्भमेघों का ग्रहण नहीं करना चाहिए 119-11
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5. flead:
धूमं रजः पिशाचाश्च शस्त्रमुल्कां सनागजः । तैलं घृतं सुरामस्थि क्षारं लाक्षां वसां मधु ॥11 2 ॥ अंगारकान् नखान् केशान् मांसशोणितकर्द्दमान् । विपश्यमाना मुञ्चन्ति गर्भाः पापभयावहाः ॥ 13।।
2 3 दिदा मु० । 4 सधूमं भु० B. I 16. A.