Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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दशमोऽध्यायः
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सस्ययातं विजानीयाद व्याधिभिश्चोदकेन तु।
साधवो दुःखिता ज्ञेया प्रोष्ठपदमपग्रहः ।।35॥ पदि आश्लेषा नक्षत्र में प्रथम जल-वृष्टि हो तो 64 आढक प्रमाण जल की वर्षा होती है । फसल में अनेक प्रकार के रोग लगते हैं, नाना प्रकार के रोगों से जनता में आतंक व्याप्त रहता है, साधुओं को अनेक प्रकार के कष्ट होते हैं तथा भाद्रपद मास में अपग्रह – अनिष्ट होता है ।। 34-35।।
मघासु खारी विज्ञेया सस्यानाञ्च समुद्भवः ।
कुक्षिव्याधिश्च बलवाननीतिश्च तु जायते ।।36॥ यदि मघा नक्षत्र में प्रथम जल की वर्षा हो तो वारी प्रमाण ... [ 6 द्रोण जलवृष्टि उस वर्ष होती है और अनाज की उत्पत्ति खुब होती है। पेट व नाना प्रकार के रोग उत्पन्न होती है और अन्याय नोति न प्रचार होता है ।। 36।।
फाल्गुनीषु च पूर्वासु यदा देव: प्रवर्षति । खारी तदाऽदिशेत पूर्णा तदा स्रीणां सुखानि च ॥3711 सस्यानि फलवन्ति स्युवाणिज्यानि दिन्ति च ।
अपग्रहश्चतुस्त्रिशच्छावणे सप्तराविकः ॥38॥ यदि पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में प्रथम वर्षा हो तो जग वर्ग वारी प्रमाण ..16 द्रोण जल की वर्षा होती है। स्त्रियों को अनेक प्रकार का सुख प्राप्त होता है। कृषि और वाणिज्य दोनों ही सफल होते हैं 1 24 दिनों के पश्चात् अर्थात् श्रावण मास में 7 दिन व्यतीत होने पर अपग्रह... अनिष्ट होता है ।। 37-38।।
उत्तरायां तु फालान्यां षष्टि सप्त च निदिर्शत। आढकानि सुभिक्ष च क्षेममारोग्यमेव च ।।3।। बहुजा दीना शीलाश्च धर्मशीलाश्च साधवः ।
अपग्रहं विजानीयात् कातिके द्वादशाहिकम् ।।40॥ उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में प्रथम वर्षा हो तो उस वर्ष 67 आढक प्रमाण जल की वर्षा होती है तथा भिक्ष, क्षेम और आरोग्य की प्राप्ति होती है। सभी मनुष्यों में दानशीलता और माधुओं के धर्मशीलता की वृद्धि होती हैं। कानिया गाम में 12 दिन व्यतीत होने पर अपग्रह–अनिष्ट होता है ।।39-41।।
पश्चाशीति विजानीयात् हस्ते प्रवर्षणं यदा। तदा निम्नानि चाप्यानि पंचवर्णं च जायते ।।4।।
1 मिन्द्यान मु। 2. च नमुन्द्रम् म् । 3. दानशीनाश्च गमला म.. |