Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
एतद् व्यासेन कथितं 'समासान्छु यतां पुन: ।
भद्रबाहुवचः श्रुत्वा मतिमानवधारयेत् ॥53॥ यह विस्तार से वर्णन किया है, संक्षेप में पुन: सुनिये । भद्रबाहु के वचनों को सुनकर बुद्धिमानों को उनका अवधारण करना वाहिए ।।53॥
द्वात्रिंशदाढकानि स्युः नक्रमासेषु निदिशेत् ।
समक्षेत्रे द्विगुणितं तत् त्रिगुणं वाहिकेषु च ।।54॥ नक्रमारा---धावण मास में 32 आढक प्रमाण वर्षा हो तो समक्षेत्र में दुगुनी और निम्न स्थल-आर्द्र स्थलों में तिगुनी फसल होती है ।154||
उल्कावत् साधनं चात्र वर्षणं च विनिर्दिशेत् ।
शुभाशुभं तदा वाच्यं सम्यग् ज्ञात्वा यथाविधि ॥5511 उल्का के समान वर्षण की सिद्धि भी कर लेनी माहिए तथा सम्यक प्रकार जानकर के शुभाशुभ फल का निरूपण करना चाहिए ॥550 इति भद्रबाहुके संहितायां महान मितशास्त्र सकलमारसमुच्चयवर्षको
नाम दशमोऽध्याय: परिसमाप्तः । विवेचन--वर्षा का विचार यद्यपि पूर्वोक्त अध्यायों में भी हो चुका है, फिर भी प्राचार्य विशेष महत्ता दिखलाने के लिए पुन: विचार करते हैं। प्रथम वर्षा जिस नक्षत्र में होती है, उसी के अनुसार वर्षा के प्रमाण का विचार किया गया है। आचार्य ऋषिपुत्र ने निम्न प्रकार वर्षा का विचार किया है।
आदि मार्गशीर्ष महीने में पानी बरसता है तो ज्येष्ठ के महीने में वर्षा का अभाव रहता है । यदि पौण भारा में बिजली चमककर पानी बरसे तो आषाढ़ के महीने में अच्छी वर्षा होती है। माघ और फाल्गुन महीनों के शुक्लपक्ष में तीन दिनों तवा पानी बरसता रहे तो छठे और नोवें महीने में अवश्य पानी बरसता है। यदि प्रत्येक महीने में आवाज में बादल आनादित रहे तो उस प्रदेश में अनेक प्रकार की बीमारियां होती हैं। वर्ष के आरम्भ में यदि कृत्तिका नदात्र में पानी बरसे तो अनाज की हानि होती है और उस वर्ष में अतिवृष्टि या अनावृष्टि का भी योग रहता है । रोहिणी नक्षत्र में प्रथम वर्षा होने पर भी देश की हानि होती है तथा असमय में वर्षा होती है, जिससे फसल अच्छी नहीं उत्पन्न होती । अनेक प्रकार की व्याधियाँ तथा अनाज की महँगाई भी इस नक्षत्र में पानी बरसने से होती है। परस्पर कलह और विसंवाद भी होते हैं । मृगशिर नक्षत्र में प्रथम वर्षा होने से अवश्य सुभिक्ष होता है। फसल भी अच्छी उत्पन्न होती है । यदि सूर्य नक्षत्र
J. समारोन गनः शृणु। 2. त्रिगुणं व्याधितषु च म । 3. ततो म्.. ! 4. क्रमम् मुः ।