Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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तृतीयोऽध्यायः
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नारेषपसष्टेषु नागराणां महद्भयम् ।
यायिषु 'चोपसृष्टेषु यायिनां तदभयं भवेत् ।।37॥ स्थायी के नगर की व्यूह रचना पर पूर्वचित प्रकार की का गिरे तो उरा स्थायी के नगरवासियों को महान् 'भय होता है। यदि पानी के सैन्य-शिविर पर गिरे तो यायी पक्ष वालों को महान भय होता है ॥36।।
सन्ध्यानां रोहिणी पौरुण्यं चित्रां त्रीण्यत्तराणि च ।
मैत्रं चोल्का यदा हन्यात् तदा स्यात् पार्थिव भयम ॥38॥ यदि सन्ध्या कालीन उल्ला रोहिणी. रेवती, त्रिआ, उन गफागुनी, उन्न गबाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा और अनुराधा नक्षत्रों को हने प्रताडित गे तो राजा को भय होता है अर्थात् सन्ध्याकालीन उन इन नक्षत्रा गटनगर गिरे ता देश और नृपति गर विपत्ति आती है ।।381)
वायव्यं वैष्णवं पुष्यं यद्युल्काभि: प्रताडयेत्।
ब्रह्मक्षत्रभयं विन्द्याद् राजश्च भयमादित् ।।39॥ स्वाती, श्रवण और पुष्य नक्षत्रों को यदि उल्का प्रताड़ित मरे तो प्राण, क्षत्रिय और राजा को भय की गूचना देती है।। 39।।
यथा गृहं तथा ऋक्षं चातुर्वण्य विभावयेत् ।
अतः परं प्रवक्ष्यामि सेनासल्का यविधि ॥१॥ जैसे ग्रह अथवा नक्षत्र हा, उन्हीं अनुसार चारों वर्गों के लिए शुभाशुभ अवगत करना चाहिए। अब इगग आगे गेना . गम्बन्ध में उल्का का शुभाशुभ फल निरूपित करते हैं ।।4011
सेनायास्तु समुद्योगे राज्ञो विविध' - मानवाः ।
उल्का यदा पतन्तीति तदा वक्ष्यामि लक्षणम् ॥4।।। युद्ध के उद्योग के समय गवा क समक्ष जो उल्का गिरती है, उसका लक्षण, फलादि राजाओं और विविध मनुष्यों के लिए बगित किया जाता है ।14 1।।
"उदगच्छन सोममक वा ययुल्का सविदारयेत् । स्थावराणां विपर्यासं तस्मिन्नुत्पातदर्शने' ।।2।।
1. याम्पध्वन पगाटप मा । 2. बोरकी मु.. । 3. Miमाद . ॥ 4. बाम । 5. दिवदमानया म । 6. उद्ग । म • | 7. अस्मि-पदे दर्शने ।