Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
अशुभ प्रह, नक्षत्र, प्रयुद्ध, तिथि-मुहूर्त-शकुन और निमित्त के अशुभ होने पर बादलों का भ्रमण हो तो बहुत भारी भय की सूचना समझनी चाहिए ।124-2511
अभ्रशक्तियतो गच्छेत् तां दिशा' चाभियोजयेत् ।
विधुला क्षिप्रगा स्निग्धा जयमाख्याति निर्भयम् ॥26॥ भारी शीघ्रगामी और स्निग्ध बादल जिस दिशा में गमन करें उस दिशा में वे यागी राजा की विजय की सुचना करते हैं 1126।।
यदा तु धान्यसंघाना सदशानि भवन्ति हि।
अभ्राणि तोयवर्णानि सस्य तेषु समृद्ध्यते ॥27॥ यदि वादन धान्य के समुह के सदश अथवा जल के वर्ण वाले दिखाई दे तो धान्य को बहुत पैदावार होती है ॥2711
विरागान्यनुलोमानि शुक्लरक्तानि यानि च।
स्थावराणोति जानीयात् स्थावराणां च संश्रये ॥28॥ बिगगी, अनुलोम गति वाले तथा श्वेत और रक्त वर्ण के बादल स्थिर हों तो स्थायी -उस स्थान के निवासी राजा की विजय होती है ।।2811
क्षिप्रगाति विलोमानि नीलपीतानि यानि च ।
चलानीति' विजानीयाच्चलानां च समागमे ॥29॥ त्रिगामी, प्रतिलोम गति से चलने वाले, पीत और नील वर्ण के बादल चल होने हैं और ये पायी या लिए समागमकारक है ।।29।।
स्थावराणां जयं विन्द्यात् स्थावराणां द्युतियंदा।
यायिनां च जयं बिन्याच्चलाभ्राणां धुतावपि ॥30॥ जो बादल स्थावरों - निवासियों के अनुकूल छ ति आदि वह वाले हों तो उस परसे स्थायियों की जय जानना और यायी के अनुकुल ति आदि चिह्नवाले हो तो गायी की विजय जानना चाहिए ।। 301
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