Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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सप्तमोऽध्यायः
सन्ध्याओं के लक्षण का निरूपण किया जाता है । ये सध्याएं दो प्रकार की होती हैं -प्रशस्त और अप्रशस्त । निया शारत को ः अनुसार उनका फल अवगत करना चाहिए ।। 1 ।।
उद्गच्छमाने चादित्ये। यदा सन्ध्या विराजते ।
नागराणां जयं विन्धादस्तं गच्छति यायिनाम् ॥2॥ सूर्योदय के समय की सन्ध्या नागरों को और सूर्यास्त के समय की सन्ध्या यायी के लिए जय देने वाली होती है ।।2।।
उद्गच्छनाने चादित्ये शुक्ला साध्या यदा भवेत् ।
उत्तरेण गता' सौम्या ब्राह्मणानां जयं विदुः ॥३॥ सूर्योदय के गमय की सन्ध्या यक्षित वर्ण की हो और वह उत्तर दिशा में हो तथा मोम्य हो तो ब्राह्मणों के लिए नयदायक होती है ।।3।।
उद्गच्छमाने चादित्ये रक्ता सन्ध्या यदा भवत् ।
गर्वण च गता सोम्या क्षत्रियाणां जयावहा ।।4।। सूर्योदय के समय लाल वर्ण ! मन्या हो और बह पूर्व दिशा में स्थित है। तथा सौम्य हो तो क्षत्रियो को जय देने वाली होती है ।।4।।
उदगच्छमाने चादित्ये पीता सध्या यदा भवत् ।
दक्षिणेन गता सौम्या वैश्यानां सा जयावहा" ।।5।। गुर्योदय के समय की पण मलगा दिही और बद दक्षिण दिशा का आश्रय करे तथा सौम्य हो तो वैश्या नि जसबागी होती ।।5।।
उद्गन्धमाने चादिन्ये कसया एदा भवेत!
अपरेणा गता सोम्या शूद्राणां च जयावहा ॥ सूर्योदय के माय गवण की सगा शादी और वह पश्चिम दिशामा आशय करे तथा मौम्य होना शुद्रा लिया जयकारा होती है ।।61
सन्ध्योत्तरा जब राजः सतः कुर्यात् पराजयम् । पूर्वा क्षेमं सुमितं च पश्चिमा च भयंकरा॥7॥
बाद-।। 2 (TRIC.3. 4 :14. ग! म .. | 5, it. He C16 यावी . . . : म. ८.। 7. पाप I li. जयकार। म C.I 8. कुर्यात् ण पाया ॥ 19. तुम.