Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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नवमोऽध्यायः
'आदानाच्चैव पाताच्च पचनाच्च विसर्जनात् । मारुतः सर्वगर्भाणां बलवान्नायकश्च सः ॥
आदान, पातन, पचन और विसर्जन का कारण होने से मारुत बलवान् होता है और सब गर्भों का नायक बन जाता है || 331
दक्षिणस्यां दिशि यदा वायुर्दक्षिणकाष्ठिकः । 'समुद्रानुशयो' नाम से गर्भाणां तु सम्भवः ॥4n
दक्षिण दिशा का वायु जब दक्षिण दिशा में बहता है. सब वह 'समुद्रानुशय' नाम का बाबु कहलाता है और गर्भो को उत्पन्न करने वाला भी है || 4 | तेन सञ्जनितं गर्भं वायुर्दक्षिण काष्ठिकः । धारयेत् धारणे* मासे पाचयेत् पाचने तथा ॥5॥
उस समुद्रानुशय वायु से उत्पन्न गर्भ को दक्षिण दिशा का वायु धारण मास में धारण करता है तथा पाचन मास में पकाता है ||5||
धारितं पाचितं गर्भं वायुरुत्तरकाष्ठिकः । प्रमुंचति यतस्तोयं वर्ष तन्मरुदुच्यते ||6||
उस धारण किये तथा पाक को प्राप्त हुए मेघ गर्भ को चूँकि उत्तर दिशा का विवाहै अव करने वाले उस वायुको 'महत्' कहते
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आषाढीपूर्णिमायां तु पूर्ववातो यदा भवेत् । प्रवाति दिवस सर्व सुवृष्टिः सुषमा' तदा ॥7॥
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आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन पूर्व दिशा का बावु यदि सारे दिन चने तो वर्षा काल में अच्छी वर्षा होती है और यह वर्ष अच्छा व्यतीत होता है |17||
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वाप्यानि सर्वबीजाति' जायन्ते निरुपद्रवम् । शूद्राणामुपघाताय सोम्य लोके परत्र च ॥४॥
उक्त प्रकार के वालु में बोये गये सम्पूर्ण बीज उत्तम रीति से उत्पन्न होत हैं | परन्तु शूद्रों के लिए यह वायु इस लोक और परलोक में उपघात का कारण है ||8||
1. अवाज बापन
3.
गुरु 34 मध्यम
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A. D. 2. धारण
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6. सुवृष्टिस्तु वदा मना