Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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अष्टमोऽध्यायः
बादल, उल्का और सन्ध्या का जैसा निरूपण किया गया है, उसी प्रकार का संक्षेप और विस्तार से मेघों का भी समझना चाहिए ॥26॥
उल्कावत् साधनं जयं मेघेष्वपि स्तदादिशेत् ।
अत: परं प्रवक्ष्यामि दातानामपि लक्षणम् ।।27। इस मेघवर्णन अध्याय का भी उल्का की तरह ही फलादेश अवगत कर लेना चाहिए। इसके पश्चात् अब आगे वायु-अध्याय का निरूपण किया जायगा ।।2711
इति नंग्रंन्थे भद्रबाहु के निमित्त मेधकाण्डो नामाष्टमोऽध्यायः । विवेचन - मेघों की आकृति, उनका काला, वर्ण, दिशा प्रमति के द्वारा शुभाशुभ फल का निरूपण मेध-ध्याय में किया गया है। यहाँ एक विशेष बात यह है कि मेघ जिम स्थान में दिखलाई पड़ते हैं उसी स्थान पर यह फल विशेष रूप से घटित होता है । 30 अध्याय का प्रयोजन भी वर्षा, गगाल, फराल की उत्पत्ति इत्यादि के सम्बन्ध में ही
दिन में पारा वाला है। पहले कनयायों द्वारा भी वर्षा और सुभिक्ष सम्बन्धी प.लादेश निरूपित किया गया है, पर इस : अध्याय में भी यही पन्न प्रतिपादित है। मेघों की आकृतियाँ चारों वर्ण के
व्यक्तियों के लिए भी शुभाशुभ बतलाती हैं। अतः सामाजिक और वैयक्तिक इन दोनों ही दृष्टिकोणों से मेधों के फलादेश का विवेचन किया जाएगा। ___मेघों का विचार ऋतु में क्रमानुसार करना चाहिए । वर्षा ऋतु के मेघ केवल वर्षा की सुचना देते हैं। गारद ऋतु के मंघ भाभ अनेक प्रकार का फल सचित करते हैं। ग्रीम बन के मघा सेवा की सूचना तो मिलती ही है, पर ये विजय, यात्रा, लाभ अलाभ, इट, अनिष्ट, जीवन, मरण आदि को भी सूचित करते हैं। मेघों की भी भागा होती है। जो व्यक्ति मेघों की नापा--गजना को समझ लेते हैं, वे कई प्रकार का महत्वपूर्ण फलादेगों की जानकारी प्राप्त पर सवाते हैं । पशु, पक्षी और मनालों के समान मंघों की भी भाषा होती है और गर्जन-तजन द्वारा अनेक प्रकार का शुभाशुभ प्रकट हो जाता है । यहां गर्वप्रथम नीम ऋतु के मेघों का निरूपण किया जाएगा । ग्रीम ऋतु का समय फाल्गुन से ज्येष्ठ तक माना जाता है । यदि फाल्गल के महीने में अंजन के समान काल-काल मेध दिखलाई पड़ें तो इनका फल दर्शकों के लिए शुभ, यशप्रद और आर्थिक लाभ देने वाला होता है । जिस स्थान पर उक्त प्रकार के मेघ दिखलाई पड़ते हैं, उस स्थान पर अन्न का भाव सस्ता होता है, व्यापारिक वस्तुओं में हानि तथा भोगोपभोग की वस्तुएँ प्रचुर
1. सर्थ म C. 1 2. समा म. C. 13. निगुs B. D।