Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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तृतीयोऽध्याय:
____32 यस्यापि जन्मनक्षत्रं उल्का गच्छेच्छरोपमा।
विदारणा तस्य वाच्या व्याधिना वर्णसंकरः ॥6॥ जिसके जन्म-नक्षा में बाणसदृश उरुका गिर तो उस व्यक्ति के लिए विदारण- -- घाव लगने, धीरे जाने का फल मिलता है, और नाना वर्ण हा हो तो ग्याधि प्राप्त होने की सूभना समझनी चाहिए ।। 111
उल्का येषां यथारूपा दृश्यते प्रतिलोमतः ।
तेषां ततो भयं विन्द्यादनुलोमा शुभागमम् ॥62॥ विलोम मार्ग मे जैसे रूम की उल्का जिग दिखाई दे तो उमाको भय होगा, ऐसा जानना चाहिए और अनुलोम गति गे दिवाई दे तो शरू जानना चाहिए ।।62।।
उल्का यत्र प्रसन्ति भ्राजमाना दिशो दश ।
सप्तराबान्तरं वर्ष दशाहादुतरं भयम ।।6।। जिम स्थान पर ET फैलती विवाद को यह भी जाना को दी दिशाओं में भागना पड़ता --उपद्रव कारणादा -"घर जाना रिता है। यदि मात रात्रि के मध्य में वर्षा हो जाय तो 'म दोग या अगग हो जाना है, अन्यथा दम दिन के पश्चात उपपंक्त भयरूप फलादेश घटित होता है ।।63||
पापासूल्कासु यद्यस्तु यदा देय प्रवति ।
प्रशान्तं तद्भयं विन्याद् भद्रबाहुवचो यथा ।।6।। पापरू । उल्कापात र पनान् म व जाये वाघां हो जाय तो भय को शान्त हुआ समझना चाहिए, ग प्रकार भद्रबाह ? वामी का कथन है ।।64।।
यथाभिवष्या: स्निग्धा यदि शान्ता निपतन्ति याः ।
उल्कास्वाशु भवेत् क्षेमं सुभिक्षं मन्दरोगवान् ॥6॥ अभिवृष्य, स्निग्ध और शान्त उबा जिम दिशा में गिरती है, उस दिशा गं यह शीत्र क्षेम-कुशन सुभिक्ष करती है,
ग धोला-गा गेंग अवश्य होता है ।। 5 ।। यथामार्ग यथावृद्धि यथाद्वारं यथाऽगमम् । यथाविकार विज्ञेयं ततो ब्रूयाच्छुभाशुभम् ।।6।।
1. सप्ताह बारे म. C । 2. यथ।।। बट: 1
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