Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
सेना की व्यूह रचना के पीछे भाग में उन्का गिरे तो दोनों सेनाओं के राजाओं को वह नाश और हानि द्वारा कष्ट की सूचना करती है ॥54॥ उल्का व्यूहेष्वनीकेष प्रतिलोमाः पतन्ति याः । संग्रामेषु निपतन्ति' जायन्ते किशुका वनाः ॥155॥
सेना की व्यूह रचना में अपसव्य मार्ग से उल्का गिरे तो संग्राम में योद्धा गिर पड़ते हैं— मारे जाते हैं, जिससे रणभूमि रक्तरंजित हो जाती है |55|| उल्का यत्र समायान्ति यथाभावे तथासु च । येषां मध्यान्तिकं यान्ति तेषां स्याद्विजयो ध्रुवम् ॥156 || जहाँ उल्का जिस रूप में और जब गिरती है तथा जिनके बीच से या निकट में निकलती है, उनकी निश्चय ही विजय होती है 11560
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चतुर्दिक्षु यदा पूतना उल्का गच्छन्ति सन्ततम् चतुर्दिशं तदा यान्ति भयातरमसंघशः ॥57।।
यदि उल्का गिरती हई निरन्तर चारों दिशाओं में गगन करे तो लोग या सेना का समूह भयातुर होकर चारों दिशाओं में तितर-बितर हो जाता है 157 अग्रतो या पतेदुल्का सा सेना तु प्रशस्यते । तिर्यगाचरते' मार्ग प्रतिलोमा भयावहा ॥58॥
सेना के आगे भाग में यदि उपागिरे तो अच्छी है । यदि तिरछी होकार प्रतिलोम गति से गिरे तो सेना को भय देनेवाली अवगत करनी चाहिए ||58 ॥ यतः सेनामभिपतेत् तस्य सेनां प्रबाधयेत् ।
"तं विजयं कुर्यात् येषां पतेत्सोका यदा पुरा ॥5॥
जिस राजा की सेना में उदका बीचों-बीच गिरे उम सेना को कष्ट होता है और आगे गिरे तो उसकी विजय होती है | 591
डिम्भरूपा नृपतये बन्धमुल्का प्रताडयेत् । प्रतिलोमा विलोमा च प्रतिराजं भयं सृजेत् ॥10॥
हिया उल्का गिरने में राजा के बन्दी होने की सूचना मिलती है और प्रतिलोम तथा अनुलोम उसका शत्रुराजाओं को भवत्यादिका है |160
1.
आज 14 अनकूला
दंगा,
3. भवन्युसंघशः गु
4. सेना । 5. निर्य संचरते मु 6. विजयं तु समाख्याति व सोल्का एन्स्सराः ।। 7, प्रदात् म. 8. ग्रह पाठ मु० प्रति में नहीं है।