Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भाकाहाहिता
जिस दिशा में सूर्य का परिवेप शीघ्र हटे और जिस दिशा में बढ़ता जाय उस दिशा में राष्ट्र की गायों का लोप होता है -गायों का नाश होता है 1121|| .
अंशुमाली' यदा तु स्यात् परिवेषः समन्ततः ।
तदा सपुरराष्ट्रस्य देशस्य रुजमादिशेत् ॥22॥ सूर्य का परिवैप यदि सूर्य के चारों ओर हो तो नगर, राष्ट्र और देश के मनुष्य महामारी से पीड़ित होते हैं ।1221।
ग्रहनक्षत्रचन्द्राणां परिवेषः प्रगृह्यते।
अभीषणं यत्र वर्तेत' तं देशं परिवर्जयेत् ॥23॥ ग्रह--गूर्यादि मात ग्रह, नक्षत्र - अभियनी, भरणी आदि 28 नक्षत्र और चन्द्रा का गग्विष निरन्तर बना रहे और वह उस रूप में ग्रहण किया जाय तो उस देश का परित्याग कर देना चाहिए, यतः वहाँ शीघ्र ही भय उपस्थित होता है ।।23।।
परिवेषो विरुद्धष नक्षत्रेषु प्रहेषु च ।
कालेषु वृष्टिविज्ञेया भयमन्यत्र लिदिशेत ॥24॥ गाल में ग्रहों और अक्षयों की जित दिशा में परिवेष हों उस दिशा में वृष्टि होती है और अन्य प्रकार का मय होता है ।।24।
अभ्रशवितर्यतो गरोत तां दिश त्वभियोजयेत् ।
रिक्ता' वा विपुला' चाग्रे जयं कुर्वीत शाश्वतम् ।।2511 जल ग रिात अथवा जद में पूर्ण बादलों की पंक्ति जिस दिशा की ओर गमन पारे उस दिशा में गायत जय होती है ।।250
यदाभ्रशक्तिई श्येत परिवषसमानवता'।
नागरान यायिनो हन्युस्तदा यत्नेन संयगे ॥26॥ गादि परिवे सहित अनशक्ति -बादल दिखलाई पड़े तो आक्रमण करने याने जज द्वारा नगरवासियों का युद्ध में विनाश होता है, अतः यलपूर्वक रक्षाः करनी चाहिए 1126।।
!. अर्थगाली ! 2. धर्तेत म । 3. आदिशेत् मु. B. D. 14. रक्तो मु०॥ 5. बिपला म - 1 6. कुर्वीन म० । 7. समलिना मु. C. 1 8. गायिनो, याविनः A. D., याविनं मुCI