Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्थोऽध्यायः
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कष्ट, किसी महापुरुष की मृत्यु, देश में उपद्रव, अन्न कष्ट एवं महामारी का प्रकोप आर्द्रा नक्षत्र में परिवेष हो तो सुख-शान्ति का कारक पुनर्वसु नक्षत्र में परिवेष हो तो देश का प्रभाव बढ़े, अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति मिले, नेताओं को सभी प्रकार के सुख प्राप्त हों तथा देश की उपज वृद्धिगति हो; पुष्य नक्षत्र में परिवेष हो तो कल-कारखानों की वृद्धि हो; आश्लेषा नक्षत्र में परिवेष हो तो सब प्रकार से भय, आतंक एवं महामारी की सूचना, मघा नक्षत्र में परिवेष हो तो श्रेष्ठ वर्षा की सूचना तथा अनाज सस्ते होने की सूचना तीनों पूर्वाओं में परिवेष हो तो व्यापारियों को भय, साधारण जनता को भी कष्ट और कृपक वर्ग को चिन्ता की सूचना; तीनों उत्तराओं में परिवेष हो तो साधारणतः शान्ति, चेचक का प्रकोप, फसल की श्रेष्ठता और पर-शासन से भय हस्त नक्षत्र में परिवेष हो तो सुभिक्ष, धान्य की अच्छी उपज और देश में समृद्धि; चित्रा नक्षत्र में परिवेष हो तो प्रशासकों में मतभेद, परस्पर कलह, और देश को हानि स्वाती नक्षत्र में परिवेष हो तो समयानुकूल वर्षा, प्रशासकों को विजय और शान्ति विशाखा नक्षत्र में परिवेष हो तो अग्निभय, शरत्र भय और रोगभय अनुराधा नक्षत्र में परिवेष हो तो व्यापारियों को कष्ट, देश की आर्थिक क्षति और नगर में उपद्रव; ज्येष्ठा नक्षत्र में परिवेष हो तो जणान्ति, उपद्रव और अग्नि भय मूल नक्षत्र ग पारष हो यो देश में घरेलू कलह, नेताओं में मतभेद और अन्त की क्षति पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में परिवेष हो तो कृषकों को लाभ, पशुओं की वृद्धि और धन-धान्य की वृद्धि; उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में परिवेष हो तो जनता में प्रेम, नेताओं में सहयोग, देश की उन्नति और व्यापार में लाभ; शतभिषा में परिवेष हो तो शत्रु भय, अग्नि का विशेष प्रकोप और अन्न की कमी पूर्वाभाद्रपद में परिवेष हो तो कलाकारों का सम्मान और प्रायः शान्ति; उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में परिवेष हो तो जनता में सहयोग देश में कल-कारखानों की वृद्धि और शासन में तरक्की एवं रेवती नक्षत्र में परिवेष हो तो सर्वत्र शान्ति की सूचना समझनी चाहिए। परिवेष के रंग, आकृति और मण्डलों की संख्या के अनुसार फलादेश में न्यूनता या अधिकता हो जाती है । किसी भी नक्षत्र में एक मंत्र का परिवेष साधारणतः प्रतिपादित फल की सूचना देता है, दो मंडल का परिवेष निरूपित फल से प्रायः डेढ़ गुने फल की सूचना, तीन मंडल का परिवेप द्विगुणित फल की सूचना, चार मंडल का परिवेष त्रिगुणित फल की सूचना और पाँच मंडल का परिवेष चीने फल की सूचना देता है ! परिवेष में पाँच से अधिक मंडल नहीं होते हैं । साधारणतः एक मंडल का परिवेष शुभ ही माना जाता है। मंडलों में उनकी आकृति की स्पष्टता का भी विचार कर लेना उचित ही होगा
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वर्षा और कृषि परिविष का फलादेश वर्धा का विचार प्रधान रूप