Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
चतुर्थोध्यायः
यत: खण्डस्तु दृश्येत् ततः प्रविशते परः ।
ततः प्रयत्नं कुर्वीत रक्षण पुरराष्ट्रयोः ।।।6। उपर्युक्त समस्त दिनव्यापी सर्य परिवेष का जिस ओर का भाग खगिडत दिखाई दे, उस दिशा से परचक्र का प्रवेश होता है. अत: नगर और देश की रक्षा के लिए उस दिशा में प्रबन्ध करना चाहिए ।।16।।
रक्तो वा यथाभ्युदितं कृष्णपर्यन्त एव च।
परिवेषो रवि रुन्ध्याद ? राजव्यसनमादिशेत् ।।17। रक्त अथवा कृष्णवर्ण पर्यन्त चार वर्ण वाला सूर्य का परिवप हो और वह __ उदित सूर्य को आच्छादित करे तो कष्ट सूचित होता है ।।17।।
यदा त्रिवर्णपर्यन्तं परिवेषो दिवाकरम ।
तद्राष्ट्रमचिरात् कालाद् दस्युभिः परिलुप्यते ॥18॥ यदि तीन वर्ण वाला परिवेष सूर्य मण्डल को दवा ले तो बराओं द्वारा देश में उपद्रव होता है तथा दस्यु वर्ग की उन्नति होती है || J KI!
हरितो नीलपर्यन्तः परिवेषो यदा भवेत् ।
आदित्ये यदि वा सोमे राजधसनमादिशेत ॥19। यदि हरे रंग से लेकर नीले रंग पर्यन्न परिवेष मूर्य अथवा चन्द्रमा का हो तो प्रशासक वर्ग को कष्ट होता है ।। 1 911
दिवाकर बहविधः परिवषो रुद्धि हि।
भिद्यते बहुधा वापि गवां मरणमादिशत ।।2011 यदि अनेक वर्ण वाला परिवेष सूर्य भगडला को अवरुद्ध करने अथवा खा. खण्ड अनेक प्रकार का हो तथा सूर्य को क ले तो गायों का मरण सूचित होना है।।2011
10यदाऽतिमुच्यते शीघ्र" दिशि चलाभिवर्धते। गवां विलोपमपि च तस्य राष्ट्रस्य निदिशेत् ।।2।।
1. प्रत्यत्नं गन्न मु. 1 2 'पतं { A. I 3. अब मा ( । ...) । 5. रवि मु. D. I 6. विद्यात् आ० । 7. राजा मु.A., राजा म. (
C8 .1, और परिसाप्यते, ये दोनों ही पाठ मिलते हैं। आ• 19 साक्षोभो भवेस् ... | 30. वषाभिमुच्यते मु० । 11. दिवसश्चवाभिवति म ।