Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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तृतीयोऽध्यायः
कुछ ऊंचा रहता है। गुरु पुष्य योग में उल्कापात दिखलाई पड़े तो यह सोने, चाँदी के भावों में विशेष घटा-बड़ी का सूचक है जूट, बादाम, घृत, और तेल के भाव भी इस प्रकार के उत्कमेंट की करते हैं (रवि-पुष्य योग में दक्षिणोत्तर आकाश में जाज्वल्यमान उल्कापात दिखलाई पड़े तो सोने का भाव प्रथम तीन महीने तक नीचे गिरता है फिर ऊँचा चढ़ता है घी और तेल के भाव में भी पहले गिरावट, पश्चात् तेजी आती है। यह व्यापार के लिए भी उत्तम है। नये व्यापारियों को इस प्रकार के उल्कापात के पश्चात् अपने व्यापारिक कार्यों में अधिक प्रगति करनी चाहिए रोहिणी नक्षत्र यदि सोमवार को हो और उस दिन सुन्दर और श्रेष्ठ आकार में उल्का पूर्व दिशा से गमन करती हुई किसी हरे-भरे खेत या वृक्ष के ऊपर गिरे तो समस्त वस्तुओं के रहती है व्यापारियों के लिए यह समय विशेष महत्त्वपूर्ण है, समय का सदुपयोग करते हैं, वे शीघ्र ही धनिक हो जाते हैं ।
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रोग और स्वास्थ्य सम्बन्धी फल देश सछिद्र, कृष्णवर्ण या नीलवर्ण की उल्काएँ ताराओं का स्पर्श करती हुई पश्चिम दिशा में गिरे तो मनुष्य और पशुओं में संक्रामक रोग फैलते हैं तथा इन रोगों के कारण सहस्रों प्राणियों की मृत्यु होती है । आश्लेषा नक्षत्र में मगर या सर्प की आकृति की उल्का नील या रक्तवर्ण की भ्रमण करती हुई गिरे तो जिस स्थान पर उल्कापात होता है, उस स्थान के चारों ओर पचास कोस की दूरी तक महामारी फैलती है। यह फल उल्कापात से तीन महीने के अन्दर ही उपलब्ध हो जाता है। श्वेतवर्ण की दण्डाकार उल्का रोहिणी नक्षत्र में पतित हो तो पतन स्थान के चारों ओर सौ कोश तक सुभिक्ष, सुख, शान्ति और स्वास्थ्य लाभ होता है। जिस स्थान पर यह उल्कापात होता है, उससे दक्षिण दिशा में दो सौ कोश की दूरी पर रोग, कष्ट एवं नाना प्रकार की शारीरिक बीमारियाँ प्राप्त होती हैं । इस प्रकार के प्रदेश का त्याग कर देना ही श्रेयस्कर होता है । गोपुच्छ के आकार की उल्का मंगलवार को आश्लेषा नक्षत्र में पतित होती हुई दिखलाई पड़े तो यह नाना प्रकार के रोगों की सूचना देती है । हैजा, चेचक आदि रोगों का प्रकोप विशेष रहता है। बच्चों और स्त्रियों के स्वास्थ्य के लिए विशेष हानिकारक है। किसी भी दिन प्रातःकाल के समय उल्कापात किसी भी वर्ण और किसी भी आकृति का हो तो भी यह रोगों की सूचना देता है । इस समय का उल्कापात प्रकृति विपरीत है, अतः इसके द्वारा अनेक रोगों की सूचना समझ लेनी चाहिये । इन्द्रधनुष या इन्द्र की ध्वजा के आकार में उल्कापात पूर्व की ओर दिखलाई पड़े तो उस दिशा से रोग की सूचना समझनी चाहिए। किवाड़, बन्दूक और तलवार के आकार की उल्का धूमिल वर्ण की पश्चिम दिशा में दिखलाई पड़े तो अनिष्टकारक समझना चाहिये । इस प्रकार का
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मूल्य मे घटा-बढ़ी
जो व्यापारी इस