Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
के लिए दिये गये और वे किसी कारण से वापस न मिल सके तब वामदेवजी को दुबारा उनके लिए परिश्रम करना पड़ा । जिसके लिए प्रशस्ति का यह वाक्य 'यदि वामदेवजो फेर शुद्ध करि लिखो तैयार करी' खासतौर से ध्यान देने योग्य है और इस बात को सूचित करता है कि उक्त अध्यायों को पहले भी वामदेव जी ने ही तैयार किया था। मालूम होता है कि लेखक ज्ञान भूषणजी धर्मभूषण भट्टारक के परिचित व्यक्तियों में से थे और आश्चर्य नहीं कि वे उनके शिष्यों में भी थे। उनके द्वारा खास तौर से यह प्रति लिखवायी गयी है।"
श्रद्धेय मुख्तार साहब के उपर्युक्त न यह ति की दृष्टि में यह ग्रन्थ ! 7वीं शताब्दी का है तथा इसके लेखक ग्वालियर के भट्टारक धर्मभूषण या उनके कोई शिष्य हैं । मुख्तार साहब ने अपने कथन की पुष्टि के लिए इस ग्रन्थ के जितने भी उद्धरण लिये है, वे सभी उद्धरण इस ग्रन्थ के प्रस्तुत 27 अध्यायों के बाहर के हैं। 30वां अध्याय जो परिशिष्ट में दिया गया है. इससे उस अध्याय की रचना-तिथि पर प्रकाश पड़ता है। इस अध्याय के आरम्भ में 10वें श्लोक में बताया गया है ।
पूर्वाचार्य या प्रोक्तं दुर्गाय नादिभिर्यथा ।
गृहीत्वा तदभिप्रायं तथारिष्टं बदाम्हम् ।। इश लोक में दुर्गाचार्य और एलाचार्य के कथा के अनुसार अरिष्टों के वर्णन की बात कही गयी है । दुर्गाचार्य का 'रिष्ट सगुच्चय' नामक एक ग्रन्थ उपलब्ध __ है। इस ग्रन्थ की रचना लक्ष्मीनिवास राजा के राज्य में पानगर नामक पहाड़ी नार के शान्तिनाथ चैत्यालय में की गई है। इसका रचनाकाल 21 जुलाई शुक्रवार ईस्वी सन् 1032 में माना गया है। इस ग्रन्थ में 261 गाथाएँ है, जिनका भाव इस तीवें अध्याय में ज्यों-का-त्यों दिया गया है। अन्तर इतना ही है कि रिष्टममुचम ? कथन व्यवस्थित, कमबद्ध और प्रभावक है, किन्तु इस अध्याय की निरूण शैली शिथिल, अमिा और अव्यवस्थित है ! विषय दोनों का समान है । इस अध्याय ये; अन्त में कतिपय श्लोक वाराही संहिता के वस्त्रच्छेद नाक 7 वें अध्याय में ज्यों-के-त्यों उद्धृत हैं। केवल एनोकों के क्रम में व्यतिकम कर दिया गया है। अत: यह सत्य है कि भद्रबाहुसंहिता के सभी प्रकरण एका साथ नहीं लिखे गये।
समग्र म बाहुसंहिता में तीन खा । प्रथम ना में दश अध्याय हैं, जिनक नाम हैं चतुर्थर्ण गित्य किया, क्षत्रिय नित्याम, अत्रियधर्म, कृतिसंग्रह, सीमानिर्णय, दण्डपारसय, स्तत्यकर्म,स्त्रीरामण, दायभाग और प्रश्चित्त । इन दगी अध्याय के विषय मनुस्मृति आदि ग्रन्या के प्राचार लिच गये हैं। पतिपय पद्य तो ज्या-क-यां मिल जाता है और कतिय कुछ परिवर्तन र ले लिय गय