Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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प्रस्तावना
हैं.। यह समस्त खण्ड नकल किया गया-सा मालूम होता है।
दूसरे खण्ड को ज्योतिष और तीसरे को निमित्त कहा गया है। परन्तु इन दोनों अध्यायों के विषय मास में इतने अधिक सम्बद्ध हैं कि उनका यह भेद उचित प्रतीत नहीं होता है। दूसरे खण्ड के 25 अध्याय, जिनमें उल्का, विद्युत्, गन्धर्वनगर आदि निमित्तों का वर्णन किया गया है, निएनयत: प्राचीन हैं। छब्बीसवें अध्याय में स्वप्नों का निरूपण किया गया है। इस अध्याय के आरम्भ में मंगलाचरण भी किया गया है।
नमस्कृत्य महावीर सुरासुरजनेनंतम्।
स्वप्नाध्यायं प्रवक्ष्यापि शुभाशुभसमोरितम् ।। देव और दानवों के द्वारा नमस्कार किये गये भगवान महावीर को नमस्कार कर शुभाशुभ से युक्त स्वप्नाध्याय का वर्णन करता हूँ।
इससे ज्ञात होता है कि यह अध्याय पूर्व के 24 अध्यायों की रचना के बा:: लिखा गया है और इसका रचनाकाल पूर्व अध्याय के रचनाकाल के बाद का होगा।
मुख्तार साहब ने तृतीय खण्ड के श्लोकों की समता मुहत चिन्तामणि, पाराशरी, नीलकण्ठी आदि ग्रन्थों से दिखलायी है और सिद्ध किया है कि इस खण्ड का विषय नया नहीं है, संग्रहार्ता ने उक्त ग्रन्थों में श्लोक लेवार तथा उन श्लोकों में जहां-तहाँ शुद्ध या अशुद्ध रूप में परिवर्तन कारक अव्यवस्थित रूप में संकलन किया है । अतः मुख्तार साहब न इस ग्रन्थ का रचना कारन 17वीं सताब्दी माना है।
इस ग्रन्थ के रचनाकाल के सम्बन्ध में मुनि जिन विजयजी ने मिन्धी जैन ग्रन्थ माला से प्रकाशित भद्रबाहुसंहिता के विञ्चित प्रस्तावित में लिखा है . "ते विखे म्हारो अभिप्राय जरा जुदो छे हुँ एने पंदरमी दीनी पछीनी रचना नयी समजतो ओछामाँ ओछी 12मी सदी जेटली जूनी तो ए कृति छेज, एवो म्हारो साधार अभिमत थाय छे, म्हारा अनुमाननो आधार ए प्रमाणे छ -- पाटणना वाडी पार्श्वनाथ भण्डार माथी जे प्रति म्हने मली छे ते जिनभद्र मूरिना समयमाँ - एटले के वि० सं० 1475-85 ना अरसामा लग्याएली छ, एम हुँ मान छ कारण के ए प्रतिमा आकार-प्रकार, लखाण, पत्रांक आदि बधा संकेतो जिनभद्रसूरिए लखावेला सेकडो ग्रन्य तो तद्दन मलता अनेतेज स्वरूपता छ, जेम म्हें 'विज्ञप्ति त्रिवेणि, नी म्हारी प्रस्तावनामाँ जपाव्यु छ तेम जिनभद्र सुरिए खमात, पाटण, जैसलमेर आदि स्थानोमा म्होटा ग्रन्य-भण्डारो स्थापन कर्या हतां अने तेना, तेमण नष्ट थतां जुना एवां सेंकडो ताडपत्रीय पुस्तकोनी प्रतिलिपिओ कागल उपर उतरावी-उतरावी ने नूतन पुस्तकोनो संग्रह कर्यो हतो, ए भंडारमाथी मलेली