Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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विषयानुक्रम
242 243 243
246
पृथ्वी के धंसने का फलादेश
241 धूलि, राख, अग्नि प्रादि बरसने वा फलादेश
241 विभिन्न ग्रहों के प्रताडित मार्ग में विभिन्न ग्रहों के गमन का फल निर्जीव पदार्थों के विकृत होने का फलादेश पूजा आदि के स्वयमेव बन्द हो जाने आदि का विचार वक्षों की छाया आदि विकृतियों का बिचार
244 चन्द्रग एवं चन्द्रोल्पातों का फलादेश
244 शिवलिंग के विवाद आदि का फलादेश
245 मंगलकलश के अकारण विध्वंश वा फल
246 नवीन वस्त्रों के अकारण जलने का फल । पक्षियों एवं सवारियों की विकृति का फल
246 घोड़ों के उत्पातों का फल
247 नक्षत्रों के उत्वात का फलादेश
250 उत्पात-शान्ति विचार
252 विवेचन
252 पन्द्रहवां अध्याय ग्रहाचार के निरूपण की प्रतिज्ञा
263 शुक्र ग्रह का महत्त्व
264 शक के उदय और अस्त का सामान्य कथन
264 शुक्र की किरणों के घातित होने का फलादेश
264 शुक्र के मण्डलों और नक्षत्रों के नाम और लक्षण एवं उनमें शुत्र का गमन का फल
265 शुक्र की नाग आदि वीथियों के नक्षत्र
270 शुक्र के वीथि-गमन का फल
270 कृत्तिका आदि नक्षत्रों के उत्तर एवं दक्षिण की ओर से शुक्र के गमन का फलादेश
271 वीथि-मार्ग वार और नक्षत्रों के सहयोग गे शुक्र-गमन का फल
274 सुर्य में शुक्र के विचरण का फल
275 तृतीयादि मण्डलों में शुक्र के विचरण कर पल
275 कृत्तिकादि नक्षत्र तथा दक्षिण आदि दिशाओं में शुक्र के गमन का फलादेश 276 मघा आदि नक्षत्रों में मध्यम गति के शुक्ल का फलादेश
276 वर्षासूतक शुक्र का गमन
277 प्रातःकाल पूर्व में शुक्र और अनुगामी बृहस्पति का फल
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