Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता ज्योतिष केवलं कालं वास्तुदिव्येन्द्र'सम्पदा। लक्षणं व्यञ्जनं चिह्न तथा दिव्यौषधानि च ॥1॥ बलाबलं च सर्वेषां विरोध च पराजयम्। तत्सर्वमानुपूर्वेण प्रणवीहि महामते ! ॥20॥ सर्वानेतान् यथोद्दिष्टान भगवन् वक्तुमर्हसि । प्रश्नान् शुश्रूषवः सर्वे वयमन्ये च साधवः ।।2।।
हे महामते ! संक्षेप और विस्तार से उल्का, परिवेप, विद्य त , अभ्र, सन्ध्या, मेघ, बात, प्रवर्षण, गन्धर्वनगर, गर्भ, यात्रा, उत्पात, पृथवा-पृथक् ग्रह चार, गृहयुद्ध, वातिक-तेजी-मन्दी, स्वप्न, मुहत्तं, तिथि, करण, निमित्त, शकुन, पाक, ज्योतिष, वास्तु, दिव्येन्द्रसंपदा, लक्षण, व्यञ्जन, चिह्न, दिव्योषध, बलाबल, बिरोध और जय-पराजय इन समस्त विषयों का श्रमशः वर्णन कीजिए। हे भगवन् ! जिस क्रम से इनका निर्देश किया है. इसी क्रम से इनका उत्तर दीजिए। हम सभी तथा अन्य साधुजन इ प्रश्नों का उत्तर गुनने के लिए उत्कण्ठित हैं ॥ 16-21 1
इति श्रीमहामुनिनग्रंथ भद्रबाइसंहितायां ग्रन्थांगसंचयो नाम प्रथमोऽध्यायः ।
विवेचन--इस ग्रन्थ में श्रावक और मुनि दोनों के लिए उपयोगी निमित्त का विवेचन आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने किया है। इसके प्रथम अध्याय में ग्रन्थ में विवेच्य विषय वा निर्देश किया गया है। इस ग्रन्य में उन निमित्तों का निरूपण विया है, जिनमें अबलोकन मात्र से कोई भी व्यथित अपने शुभाशुभ को अवगत कर सकता है। अष्टांग निमित्त ज्ञान को आचायों ने विज्ञान के अन्तर्गत रखा है; यतः "मोक्षे धोनिमन्यत्र विज्ञान शिल्ल शास्त्रयो.'' अर्थात्-निर्वाणप्राप्ति सम्बन्धी ज्ञान को ज्ञान और शिल्प तथा अन्य शास्त्र संबंधी जानकारी को विज्ञान कहते हैं । यह उभय लोक की सिद्धि में प्रयोजक है, इसलिए गृहस्थों के समान मुनियों के लिए भी उपयोगी माना गया है। किसी एक निमित्त से यथार्थ का निर्णय नहीं हो सकता । निर्णय करना निमित्तों के स्वभाव, परिमाण, गुण एवं प्रकारों पर भी बहुत अंशों में निर्भर है। यहाँ प्रथम अध्याय में निरूपित वर्ण्य - ....- . .-.. .-------
1. न दियन्द्रगणय ग. A., बासुदेवेन्द्र जी । 2. लग्नं गु। 3. विद्यापधानि च. 14. निवोधय प्राः। 5. भद्रया के निमित 6, गन्धरामया आ.1