Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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प्रथमोऽध्यायः
विषयों का संक्षिप्त परिभाषात्मक परिचय दे देना भी अनासागेक न होगा।
उहा---"ओषति, उप षकारस्य लत्वं क ततः टाप्'- अर्थात् उष् धातु के षकार का 'ल' हो जाने से क प्रत्यय कर देने पर स्त्रीलिंग में उल्का शब्द बनता है। इसका शाब्दिक अर्थ है तेज:पुज, ज्वाला या लपट । तात्पर्यार्थ लिया जाता है, आकाश से पतित अग्नि । कुछ मनीषी आकाश से पतिर होने वाले उल्काकाण्डों को टूटा तारा के नाम से कहते हैं। ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि उल्का एक उपग्रह है। इसके आनयन का प्रकार यह है कि सूर्याक्रान्त नक्षत्र से पंचम विद्युन्मुख, अष्टम शून्य, चतुर्दश सन्निपात, अष्टादश केतु, एकविंश उल्ला, द्वाविंशति कल्प, अयोविंशति बन और चतुर्विशति निघात संजक होता है । विद्युन्मुख, शून्य, सन्निपात, केतु, उल्का, कल्प, वञ्च, और निघात ये आठ उपग्रह माने जाते हैं । इनका आनयन पूर्ववत् सूर्य नक्षत्र मा किया जाता है ।
मान लें कि गुयं कृत्तिका नक्षत्र पर है। यहाँ कृतिका से गणना की तो पंचम पुनर्वसु नक्षत्र विञ्च न्मुख-संज्ञक, अष्टम मा शून्यसाक, चतुर्दश विशाखा नक्षत्र सन्निपात-संजा, अष्टादश पूर्वाषाढ़ केतु-संजक. एकविंशति धनिष्ठा उल्का संज्ञक, द्वाविंशति शतभिषा कल्प-संज्ञक, यांनियति पूर्वाभाद्रपद वन-संज्ञक और चतुर्विशति उत्तराभाद्रपद निघातसंचक माना जायगा। इन उपग्रहों का फलादेश नामानुसार है तथा विशेष आगे बतलाया जायगा ।
निमित्तज्ञान में आग्रह सम्बन्धी उल्का का विचार नहीं होता है । इसमें आकाश से पतित होनेवाले तारों का विचार किया जाता है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने उल्का के रहस्य को पूर्णतया अवगत करने की चपटा की है । कुछ लोग इसे Shooting stars टूटयाला नक्षत्र, कुछ fire-bells अग्नि-गोलक और कुछ इरो Astcrvids उपना मानते हैं। प्राचीन ज्योतिषियों का मत है कि वायुमण्डल के ऊध्र्व भाग में ना जैसे कितने ही दीप्तिमान पदार्थ समयसमय पर दीख पड़ते हैं और गगनमार्ग में दायेग म बलत है तथा अन्धकार में लुप्त हो जाते हैं । कभी-नाभी कतिपय वृहदाकार दीप्तिमान पदार्थ दृष्टिगोचर होते हैं; पर वायु की गति से विपर्यय हो जाने के कारण उनके कई खण्ड हो जाते हैं और गम्भीर गर्जन के साथ भूमितल पर पतित हो जाते हैं। उल्काएँ पृथ्वी पर नाना प्रकार आभार में गिरती हई दिखलाई पड़ती है। कभी-कभी निरन आकाश में गम्भीर गर्जन के साथ उल्माया होता है। कभी निमल आकाश में झटिति मेघों के एकत्रित होते ही अन्धकार में भीषण शाहदक साथ उल्कापात होते देखा जाता है। योरोपीय विद्वानों की उल्कापातक सम्बन्ध में निम्न भम्गति है।
(1) तरल पदार्थ र अमे धूम उठता है, वैसे ही उना सम्बन्धी व्य भी अतिशय सूक्ष्म आकार में पृथ्वी न वायुमण्डल के उपस्थ मेध र जा जुटता है