Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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प्रथमोऽध्याय:
तिथि -चन्द्र और सूर्य के अन्तरांशों पर से तिथि का मान निकाला जाता है। प्रतिदिन 12 अंशों का अन्तर सूर्य और चन्द्रमा के भ्रमण में होता है, यही अन्तरांश का मध्यम मान है। अमावास्या के बाद प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियां शुक्लपक्ष की और पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से लेकर अमावास्या तक की तिथियाँ कृष्णपक्ष की होती है। ज्योतिप शास्त्र में तिथियों की गणना शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ होती है।
तिथियों की संज्ञाएँ----||611 1 नन्दा, 217112 भद्रा, 31811 3 जया, 4191 14 रिक्ता और 5110115 पूर्णा संजक है 1
पक्षरन्ध्र-4161819112114 तिथियाँ पक्षरन्त्र हैं। ये विशिष्ट कार्यों में त्याज्य हैं।
मासशन्य तिथियाँ --चैत्र में दोनों पक्षों की अग्टमी और नवमी; वैशाग्य के दोनों पक्षों की द्वादशी, ज्येष्ठ में कृष्णपक्ष की चतुर्दशी और शुक्लपक्ष की त्रयोदशी; आषाढ़ में कृष्णपक्ष की षष्ठी और शाल पक्ष की सप्तमी: थावण में दोनों पक्षों की द्वितीया और तृतीया; भाद्रपद में दोनों पक्षों की प्रतिपदा और द्वितीया; आश्विन में दोनों पक्षो की दशमी और एकादशी; कार्तिक में कृष्ण पक्ष की पञ्चमी और शुक्लपक्ष की चतुर्दशी; मार्गशीर्ष में दोनों पक्षों की सप्तमी और अष्टमी; पौष में दोनों पक्षों की चतुर्थी और पंचमी; मात्र में कृष्णपक्ष की पंचमी और शुक्लपक्ष की षष्ठी एवं फाल्गुन में कृष्णपक्ष की चतुर्थी और शुक्लपक्ष की तृतीया मासशून्य संज्ञक हैं।
सिद्धा तिथियाँ—-मंगलवार को 31811 3, बुधवार को 217112, गुरुवार को 5110115, शुक्रवार को ||611 एवं शनिवार को 418114 तिथियां सिद्धि देन वाली सिद्धा संज्ञका है।
दग्ध, विष और हुताशन संज्ञक तिथियां-विवार को द्वादशी, गोमवार को एकादशी, मंगलवार को पंचमी, बुधबार या तृतीया, गुरुवार को पाठी, शुक्र को अष्टमी, शनिवार को नवमी दग्धा संज्ञयः; रविवार को चतुर्थी, सोमवार को पष्टी, मंगलवार को सप्तमी, बुधवार को द्वितीया, गुरुवार को अष्टमी, शुक्रवार को नवमी और शनिवार को सप्तमी विपरांज्ञक एवं रविवार को द्वादशी, गोमवार को षष्ठी, मंगलवार को सप्तमी; बुधवार को अष्टमी, बृहस्पतिवार को नवमी, शक्रवार को दशमी और शनिवार को एकादशी हुताशनसंशक है। ये तिथियाँ नाम के अनुसार फल देती है।
करण-तिथि के आधे भाग को करण कहत है अर्थात् सिधि में दो करण होते हैं । करण ।। होत : --(1) बब (2) बालव (3) कौलव (4) तैतिल (5) गर (6) वणिज (7) विष्टि (8) शकुनि (9) चतुःपाद (10) नाग और