Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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तृतीयोऽध्यायः
नक्षत्रं यस्य यत्पुंसः पूर्णमुल्का प्रताडयेत् ।
भवं तस्य भवेद घोरं यतस्तत् कम्पते हतम् ॥ ॥ ॥ ॥
जिस पुरुष के जन्म-नक्षत्र को जामन्यव को संत्रता से ताड़ित करे उस पुरुष को घोर भय होता है। यदि जन्म नक्षत्र को कम्पायमान करे तो उसका घात होता है ॥ 1 ॥
अनेकवर्ण नक्षत्रमुल्का हन्युर्यदा समाः । तस्य देशस्य तावन्ति नान्युग्राणि निर्दिशेत् ॥ 21
जिस वर्ष जिस देश के
देश या ग्राम को उम्र भय होता है ॥ 2 ॥
अनेक वर्ण की उसका आघात करे तो उस
।। 5 ।।
येषां वर्णेन संयुक्ता सूर्यादुल्का प्रवर्तते । तेभ्यः संजायते तेषां भयं येषां दिशं पतेत् ॥3॥
सूर्य से मिलती हुई उल्का जिंग वर्ण से युक्त होकर जिस दिशा में गिरे, उस दिशा में उस वर्ण वाले को वह दोर भय करने वाली होती है || 3 ||
नीला पतन्ति या उल्काः सस्यं सर्वं विनाशयेत् । त्रिवर्णा त्रीणि घोराणि भयान्युत्का निवेदयेत् ॥4॥
यदि नीलवर्ण की उल्का गिरे तो वह सर्व प्रकार के धान्यों को नाश करती है अर्थात् उनके नाश की सूचना देती है और यदि तीन वर्ष की उल्का गिरे तो तीन प्रकार के घोर भयों को प्रकट करती है ॥ 4 ॥
विकीर्यमाणा कपिला विशेष वाससंस्थिता ।
खण्डा भ्रमत्यों" विकृताः " सर्वा उल्काः भयावहाः ॥ बिखरी हुई कपिल वर्ण की विशेषकर वामभाग में गगन करने वाली, घूमती हुई, खण्डरूप एवं विकृत सन्काएँ दिखाई दें तो वे सब भय होने की सूचना
कारती
हैं
उल्काशनिश्च धिष्णां च प्रपतन्ति यतो मुखाः । तस्यां दिशि विजानीयात् ततो भयमुपस्थितम् ।।6।।
उल्का, अर्णान और विष्ण्या जिस दिशा में मुख में गिरे तो उस दिशा में भय की उपस्थिति अवगत करनी चाहिए |
॥
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