Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुरोहिता
नाना प्रकार के पशुओं की विहारभूमि है, तालाबों से युक्त है और साधुओं से उपसेवित है ।। 4॥
तत्रासीनं महात्मानं ज्ञानविज्ञानसागरम् । तपोयुक्तं च श्रेयांसं भद्रबाहुं निराश्रयम् ।। 5 ।। द्वादमांजर वेतारं निर्गदर्थ महाद्युतिम् । वृत्तं शिष्यः प्रशिष्यश्च निपुणं तत्त्ववेदिनाम् ॥6॥ प्रणम्य शिरसाऽऽचार्यसूचुः शिष्यास्तदा गिरम् ।
सर्वेषु प्रीतमनसो दिव्यं ज्ञानं बुभुत्सवः ॥ 7 ॥ उस पाण्डुगिरि (पर्वत) पर स्थित महात्मा, ज्ञान-विज्ञान के समुद्र, तपस्वी, कल्याणमूर्ति, अपराधीन, द्वादशाशगि श्रुत के वेत्ता, निग्रंथा, महाकान्ति रो विभूषित, शिप्य-प्रशिग्यों रो युक्त और तत्त्ववेदियों में निपुण आचार्य भद्रबाहु को सिर से . नमस्कार कर राब जीवों पर प्रीति करने वाले और दिव्य ज्ञान के इच्छुक शिष्यों । ने उनसे प्रार्थना की ।। 5-7 ॥
पार्थिवानां हितार्थाय शिष्याणां हितकाम्यया।
आक्काणां हितार्थाय दिव्यं ज्ञानं ब्रवीहि नः ।।8।। राजाओं, भिक्षुओं और भावकों के हित के लिए आप हमें दिव्यज्ञाननिमित्ति ज्ञान का उपदेश दीजिए ।। ४ ।।
शुभाशुभं समुदभतं श्रुत्वा राजा निमित्तत: ।
विजिगीषुः स्थिरमतिः सुखं पाति महीं सदा ॥१॥ यतः शत्रुओं को जीतने का इच्छुक राजा निमित्त के बल से अपने शुभाशुभ को गुनकर स्थिरमति हो मुखपूर्वका सदा पृथ्वी का पालन करता है ।। 94
राजाभिः पूजिता: सर्वे भिक्षवो धर्मचारिणः ।
विहरन्ति निरुद्विग्नास्तेन राजभियोजिताः ॥10॥ धर्मपाल क मगी भिक्ष राजाओं द्वारा पूजित होते हुए और उनकी मेवादि को ! प्राप्त करते हुए निस फुलतापूर्वक लोक ग विचरण करते हैं । ॥ 10 || ___ पापमुत्पातिकं दृष्ट्वा ययुर्देशांश्च भिक्षवः ।
स्फीतान् जनपदांश्चव संश्रयेयुः प्रचोदिताः ॥1॥
1. महाशानं श्री । 2. निरामयम् प० । 3. या दिनम TA. I 4. आचार्यम् म ।। 5. वानररातिम् भ 6. शिक्षणाम् ग । 7. 92fF1: वा । 8.अन्न दिदा मु०।