Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
बहुलता है। इन्हीं प्रक्षिप्त अंशों ने इस ग्रन्थ की मौलिकता को तिरोहित कर दिया है । अतः यह भद्रबाहु के वचनों के अनुसार उनके किसी शिष्य या प्रशिष्य अथवा परम्परा के किसी अन्य दिगम्बर विद्वान द्वारा लिखा गया ग्रन्थ है । इसके भारम्भ के 25 अध्याय और विशेषतः 15 अध्याय पर्याप्त प्राचीन हैं। यह भी सम्भव है कि इनकी रचना वराहमिहिर के पहले भी हुई हो ।
भापा की दृष्टि से यह ग्रन्ध अत्यन्त सरल है । व्याकरण सम्मत भाषा के प्रयोगों की अवहेलना की गई है। छन्दोभंग तो लगभग 300 श्लोकों में है। प्रत्येक अध्याय में कुछ पध ऐसे अवश्य हैं जिनमें छन्दोभंग दोष है । व्याकरण दोष लगभग 125 पद्यों में विद्यमान है। इन दोषों का प्रधान कारण यह है कि ज्योतिष और धैद्यक विषय के ग्रन्थों में प्रायः भाषा सम्बन्धी शिथिलता रह जाती है। वाराही संहिता जैसे श्रेष्ठ ग्रन्थ में व्याकरण और छन्द दोप हैं, पर भद्रबाहु संहिता की अपेक्षा कम
सम्पादन और अनुवाद
३ग ग्रन्थ का सम्पादक मिन्धी जैन ग्रन्थ गाला' में मुदित प्रति तथा जैन सिद्धान्त भपन आदी दो हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर हुआ है । एक प्रति पूज्य आचार्य महावीर कीति जी में भी प्राप्त हुई थी। मुद्रित प्रति में और जैन सिद्धान्त भवन की प्रतियों में बहुत अन्तर था । कई श्लोक भवन की प्रतियों में मुद्रित प्रति की अपेक्षा अधिक निकाले । भवन की दोनों प्रतियाँ भी आपस में भिन्न थीं तथा आचार्य महावीर कीनि जी की हस्तलिखित प्रति भवन की प्रतियों की अपेक्षा
छ भिन्न तथा मुद्रित प्रति में उल्लिखित बम्बई की प्रति से बहुत कुछ अंशों में समान श्री । प्रस्तुत गंस्करण में भवन की खु/174 प्रति का पाठ ही रखा गया है। अवशेष प्रतियां क. पाठान्तरों को पाद टिपणी में रखा गया है । प्रस्तुत प्रति में मुदित प्रति भी अपना अनेक विशेषताएं हैं। कुछ पाठान्तर तो इतने अच्छे हैं, जिसमें प्रकरणमत अर्थ स्पष्ट होता है और विषय का विवेचन भी स्पष्ट हो जाता है । हमने मुक द्वारा गद्रित प्रति के पाठ को सूचित किया है । मु० A से हमारा गंकत यह है कि आचार्य महावीरकीत्ति जी की प्रति में वह पाठ मिलता है। आचार्य महावीर कीत्ति की प्रति उनके हाथ से स्वयं कहीं से प्रतिलिपि की गयी श्री और उसमें अनेक स्थलों पर बगान में पाठान्तर भी दिये गये थे । यह प्रति हमें 15 अध्याय तक मिली तथा इसके आगे एक दुसरे रजिस्टर में 30वाँ अध्याय और एक पृथवा रजिस्टर में कुछ फुट कर शकुन और निमित्त सम्बन्धी श्लोक लिखे थे। फुटकर श्लोकों में अध्याय का संकेत नहीं किया गया था, अतः हमने उन श्लोकों को उस ग्रन्थ में स्थान नहीं दिया । 3वें अध्याय यो परिशिष्ट के रूप में दिया गया है। उपयोगी विषय होने के कारण इस अध्याय को भी अनुवाद सहित दिया