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ॐ अहम्
स्ततत्व-सपातक
विश्वतत्त्व-प्रकाश
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* वार्षिक मूल्य ५)* Perezzakervernoram
★ एक किरणका मूल्य ||)*
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नीतिविशेषष्यसीलोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः॥
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वर्ष १० । किरण २ ।
वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम ), ७/३३ दरियागंज, देहली
भाद्रपद, वीरनिवारण-संवत् २४७५, विक्रम संवत् २००६
अगस्त १६४६
अपराध क्षमा-रस्तोत्र
[यह स्तोत्र ता. ३ अगस्त सन् १९४६ को देहली धर्मपुरा नयामन्दिरके शास्त्रभण्डारसे उपलब्ध हुआ है और रत्नाकर नामके किसी विद्वान्को कृति है । इसमें जिनेन्ददेवके सन्मुख जिनस्तुतिके साथ खुले दिलसे अपने अपराधोंकी विज्ञापना अथवा अपने दोषोंकी आलोचना की गई है और इस बातके लिये उत्सुकता व्या की गई है कि किसी तरह मेरे इन अपराधों अथवा दोषोंका क्षमापण हो-मैं जिनेन्द्रदेवक सम्पर्क और संसर्गसे उन्हें दूर करने में समर्थ होकर अपने खोये हुए सद्बाधि-रत्नको पुनः प्राप्त करनेमें सक्षम होसकू। स्तोत्र बदा सुन्दर तथा भावपूर्ण है और सच्चे हृदयसे जिनेन्द्र-प्रतिमादिकके सन्मुख इसका पाठ श्रात्माको ऊँचा उठानेवाला है, अतः इसे हिन्दी अनुवादके साथ यहाँ दिया जाता है । आशा है पाठक इससे यथेष्ट लाभ उठानेका बराबर प्रयत्न करेंगे। -सम्पादक] (इन्द्रवज्रादिछन्दों में)
जगत्त्रयाधार कृपाऽवतार श्रेयः श्रियां मङ्गल-केलि-सद्म
दुर्वार-संसार-विकार-वैद्य । नरेन्द्र देवेन्द्र-नतांहि-पद्म ।
श्रीवीतराग त्वयि मुग्धभावाद्सर्वज्ञ सर्वाऽतिशय-प्रधान
विज्ञप्रभो विज्ञपयामि किञ्चित् । चिरंजय ज्ञान-कला-निधान ।।१।।
'हे श्रीवीतराग (जिनेन्द्रदेव ) ' आप श्रेष्ठ-लक्ष्मि