Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ०४ सू०२ संहननमेवेन पुगलपरिवर्तननि. १०५ कियन्तो वैक्रियपुद्गलपरिवर्ताः अतीताः ? भगवानाह-'अणंता, एवं जहेव
ओरालियपोग्गलपरियट्टा तहेव वेवियपोग्गळपरियट्टा वि भाणियधा' हे गौतम ! एकैकस्य नरयिकस्य अनन्ताः क्रियपुद्गलपरिवर्ताः अतीताः, एवं
→क्तरीत्या, यथैव औदारिकपुद्गलपरिवर्ता प्रतिपादिता स्तथैव वैक्रिया पुदूगलपरिवर्ता अपि भणितव्याः प्रतिपत्तव्याः, ‘एवं जाव वेमाणियस्स, एवं जाव आणापाणुपोग्गलपरियट्टा, एए एगत्तिया सत्त दंडगा भवंति' एवं-पूर्वोक्तरीत्या यावत् -वैमानिकस्य वैमानिकपर्यन्तस्य एफैकस्य वैक्रियपुद्गलपरिवर्ताः अनन्ताः अतीताः, भाविनस्तु जघन्येन एको वा, द्वौ वा, त्रयो वा, उत्कृष्टेन संख्येयावा, असंख्येया वा, अनन्ता वा भवन्ति, एवं-पूर्वोक्तौ. दारिकवैक्रियपुद्गलपरिवर्तवदेव, यावत्-तैजसपुद्गलपरिवर्ताः, कार्मणपुद्गलपरिनैरयिक को भूत काल में वैक्रियपुद्गलपरिवर्त कितने हो चुके हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'अणंता, एवं जहेव ओरालियपोग्गलपरियट्टा तहेव घेउब्वियपोग्गलपरियहा वि भाणियव्वा' हे गौतम ! एक एक नैरयिक को भूत काल में वैक्रियपुद्गलपरिवर्त अनन्त हो चुके हैं, इस प्रकार पूर्वोक्तरीति के द्वारा जिस प्रकार से औदारिक-पुद्गलपरिवर्त कहे जाचुके हैं, उसी प्रकार से वैक्रियपुगदलपरिवर्त भी कहना चाहिये, 'एवं जाव वेमाणियस्स एवं जाव आणापाणुपोग्गलपरियटा एए एगत्तिया सत्तदंडगा भवंति' इस प्रकार पूर्वोक्तरीति के अनुसार यावत् वैमानिक पर्यन्त एक एक के भूतकालिक वैक्रियपुद्गलपरिवर्त अनन्त हो चुके हैं, तथा भावी वैक्रियपुगदलपरिवर्त जघन्य से एक, दो या तीन होंगे, और उत्कृष्ट से वे संख्याल, असंख्यात या अनंत होंगे इस प्रकार पूर्वोक्त औदारिक वैक्रियपुद्गलपरिवर्त के जैसे ही यावत्-अतीत तैजसपुद्गलपरिवर्त एवं
___ महावीर प्रभुन। उत्त२-“ अणंता, एवं जहेव ओरालियपोग्गलपरियट्टा तहेव वेउव्वियपोग्गलपरियट्टा वि भाणियव्वा" 3 गौतम ! 3 मे ना२४ ભૂતકાળમાં અનંત વૈક્રિયપુદગલપરિવર્ત કરી ચુકી છે. પહેલાં દારિક પુદ્ગલ પરિવર્તન વિષયમાં જેવું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ કથન मही वैठियपुस ५रित विष ५५ अप ४२वार्नु छ. “ एवं जाव वेमाणियस्स एवं जाय आणापाणु पोग्गलपरियट्टा, एए एगत्तिया सत्त दंडगा भवंति" આ પૂર્વોક્ત રીત અનુસાર વૈમાનિક પર્યન્તના એક જીવના ભૂતકાલિક વૈકિયપુદ્ગલ પરિવર્ત અનંત થઈ ચુક્યા છે, તથા ભાવી વૈક્રિયપુદ્ગલ પરિવર્ત જઘન્ય (ઓછામાંઓછા) એક, બે અથવા ત્રણ થશે અને વધારેમાં વધારે સંખ્યાત, અસંખ્યાત અથવા અનંત થશે-પૂર્વોકત દારિક અને વૈક્રિયપુ
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦