Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० १० सू० १ आत्मस्वरूपनिरूपणम्
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कसायाया तस्स दवियाया ?' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! यस्य खलु जीवस्य द्रव्यात्मा - द्रव्यात्मत्वं भवति तस्य किं कषायात्मा - कषायात्मत्वं भवति ? एवं यस्य जीवस्य कषायात्मत्वं भाति, तस्य किं द्रव्यात्मत्वं भवति ? भगवानाह - 'गोयमा ! जस्स दवियाया तस्स कसायाया सिय अस्थि सिय नत्थि' हे गौतम ! यस्य जीवस्य द्रव्यात्मत्वं भवति तस्य कषायात्मत्वं स्यात् अस्ति - कदाचिदस्ति सकषायावस्थायाम्, स्यानास्ति - कदाचिन्नास्ति क्षीणोपशान्तकषायावस्थायाम्, 'जस्स पुण जस्स कसायाया, तस्स दवियाया' हे भदन्त | जिस जीव के द्रव्यात्मा होता है अर्थात् जिस जीव को आत्मा द्रव्यात्मारूप है-उसका वह आत्मा क्या कषायामारूप होता हैं ? तात्पर्य - पूछने का यह है कि जिस जीव में द्रव्यात्मा रहता है वहां क्या कषायात्मा होता है या नहीं होता है ? अथवा जहां कषायात्मा होता है, वहां द्रव्यात्मा होता है या नहीं होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-' गोयमा । जस्स दवि. याया तस्स कसायाया सिय अस्थि सिय नस्थि' हे गौतम! जहां द्रव्यात्मा रहती है यहां कषायात्मता रहती ही हो ऐसा नियम नहीं है - कषायात्मता रहे भी और न भी रहे- द्रव्यात्मता के साथ इस प्रकार से कषायात्मता की भजना है भजना का कारण यह है कि-जीव जब क्षीण कषायावस्था वाला या उपशान्तकषायावस्था चाला होता है उस समय उसकी द्रव्यात्मता के साथ कषाथात्मतो का अवस्थान नहीं होता है, और जब यह कषायावस्थापन होता है तब द्रव्यात्मता के साथ कषायात्मता
આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમસ્વામી મહાવીર પ્રભુને એવા પ્રશ્ન पूछे छे - " जस्स णं भंते ! दवियाया तस्स कसायाया, जस्स कसायाया, तस्स दवियाया ?” हे लगवन् ! के भवनो यात्मा द्रव्यात्मा ३५ होय छे' ते જીવને તે આત્મા કષાયાત્મા રૂપ હોય છે ખરા ? આ પ્રશ્નનુ' તાત્પર્ય એ છે કે જે જીવમાં દ્રવ્યાત્મા હૈાય છે, ત્યાં શું કષાયાત્મા પશુ હોય છે ? અને જે જીવમાં કષાયાત્મા હૈાય છે, તે જીવમાં શુ' દ્રવ્યાત્મા પણ હાય છે ખરા ? भडावीर अलुना उत्तर- " गोयमा ! जस्स दवियाया तस्स कसायाया सिय अस्थि, सिय नत्थि " हे गौतम! ज्यां द्रव्यात्मता रहेता होय, त्यां षायाમતા પણ રહેતા જ હાય છે, એવા નિયમ નથી કષાયાત્મતા રહે પશુ ખરી અને ન પણ રહે આ પ્રકારે દ્રવ્યાત્મતાની સાથે કષાયાત્મતાની લજના (સદ્ભાવ અથવા અભાવ રૂપ વિકલ્પ) સમજવી જ્યારે જીવ ક્ષીણ કષાયા. વસ્થાવાળા અથવા ઉપશાન્ત કષાયાવસ્થાવાળા હાય છે, ત્યારે તેના ન્યા
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦