Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 662
________________ 1 , प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ०४ सू० ९ द्वि० पु० स्पर्शनाद्वारनिरूपणम् ६४७ आगमिष्यन्ति । तेच यंत्रपृष्ठे षष्ठाङ्कस्य कोष्टकेन ज्ञातव्याः । तदेव विस्तरेण प्ररूपयितुमाह - ' चत्तारि पोग्गलत्थिकायपरसा के इएहिं धम्मस्थिकायप एसेहिं पुट्टा ? गौतमः पृच्छति - हे भदन्त । चत्वारः पुद्गलास्तिकाय प्रदेशाः कियदुभिः धर्मास्तिकाय प्रदेशैः स्पृष्टा भवन्ति ? भगवानाह - ' जहन्नपदे दसहि, उको पदे बावीसाए' हे गौतम! जघन्यपदे- जघन्येन दशभिः धर्मास्तिकाय मदेशैः जघन्यपदे दशप्रदेशात्मककोष्ठकं यत्रपृष्ठे सप्तमाङ्के विलोकनीयम् । चतुष्पदेशस्य नयविशेषापेक्षय ( स्कन्धरूपेण विवक्षितत्वात् उत्कृष्टपदे- उत्कृष्टेन, द्वात्रिंस्पर्शना प्रदेशों में पांच पाँच के मिलाने से तीन से लेकर दश परमाणुओं के उत्कृष्ट से स्पर्शना प्रदेश आजावे गे । इस सब कथन का सारांश ऐसा है - समस्त जघन्यपद में विवक्षित परमाणु को दुगुना करना चाहिये और उसमें दो जोड देना चाहिये । उत्कृष्ट पद में विवक्षित परमाणुओं को पांचगुणा करना चाहिये और आये हुए उस संख्या में दो जोड देना चाहिये । इस प्रकार करने से विवक्षित परमाणुओं की जघन्य स्पर्शना और उत्कृष्ट स्पर्शना आजाती है यह बात जघन्यपद में दश प्रदेशात्मक कोष्ठक यंत्रपृष्ठ के सातवें अंक में देख लेवें कोष्ठक द्वारा जाननी चाहिये, सूत्रकार इसी का वर्णन अब विस्तार से करते हैं- 'बत्तारिपोग्गल स्थिकायपएसा केवइएहिं धम्मत्थिका परसेहिं पुट्ठा' गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - हे भदन्त ! चार पुद्गलास्तिका प्रदेश कितने धर्मास्तिकायप्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'जहनपर दसहि उकोसपर बावीसाए' हे गौतम ! जघन्य से दश धर्मास्तिकाय प्रदेशों द्वारा चार पुला स्ति ૧૨ આવે છે એજ પ્રમાણે પાંચ પાંચની ઉત્તરાત્તર વૃદ્ધિ કરતા જવાથી ત્રણથી લઈને દસ સુધીના પરમાણુઓના ઉત્કૃષ્ટ સ્પર્ધાના પ્રદેશ અનુક્રમે १७, २२, २७, ३२, ३७, ४२, ४७ अने पर भावशे या उथनने। सारांश એ છે કે જઘન્ય પત્રમાં જેટલા પરમાણુ સ્પર્શકાની સખ્યા જાણવી હાય તેટલા પરમાણુના ખમણાં કરી એ ઉમેરવાથી એછામાં ઓછા કેટલા સ્પેશ કા હશે, તે જાણી શકાશે પરમાણુઓના પાંચ ગણુાં કરી એ ઉમેરવાથી તે પરમાસુઓના ઉત્કૃષ્ટ સ્પર્શકાની સંખ્યા જાણી શકાશે આ વાત જઘન્યપદમાં દશ પ્રદેશાત્મક કાઢક યપૃષ્ઠમાં નં. ૭ માં કાઠાની મદ્દદથી પણ સમજી શકાય તેમ છે. હવે સૂત્રકાર આ વાત વિસ્તારપૂર્વક સમજાવે છે गौतम स्वाभीना प्रश्न - " चत्तारि पोग्गलत्थि कायपएसा केवइएहि धम्मत्थिकायपरसेहि पुट्ठा ?” हे भगवन् ! युद्धसास्तिभयना यार अदेशी डेटला ધર્માસ્તિકાયપ્રદેશેા વડે પૃષ્ટ થાય છે? महावीर प्रलुना उत्तर- " जहनपए दसहि उक्कोसपए बावीसाए " डे ગૌતમ ! આછામાં આછા દસ અને વધારેમાં વધારે ખાવીશ ધર્માસ્તિકાય. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦

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