Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 693
________________ ६७८ - - भगवतीसूत्रे तत्र अद्धाप्तमयाः स्यात्-कदाचित् अवगाढा भन्ति, स्यात्-कदाचित् नो अव. गाढा भवन्ति, तत्र यदा अगाढा भयन्ति तदा अनन्ता एव अद्धासमया अबगाढा भवन्ति, अद्वासमयानां मनुष्यलोके एवं सदमावेन परतोऽसद्मावात् , धर्मास्तिकायप्रदेशस्थाने तेपामवगाहोऽस्ति, नास्ति च, यत्रास्ति तत्रानन्तानामेवेति भावः, गौतमः पृच्छति - ‘जत्य णं भंते ! एगे अहम्मत्थिकायपरसे ओगाढे तत्थ केवइया धम्मत्थिकायप्पएसा ओगाढा ?' हे भदन्त ! यत्र एकोऽधर्मास्तिकायप्रदेशोऽवगाढो भवति, तत्र कियन्तो धर्मास्तिकायप्रदेशा अवगादा भवन्ति ? भगयानाह-'एको' हे गौतम ! तत्र एको धर्मास्तिकायप्रदेशोऽवगाढो भवति, होते हैं, कदाचित् अवगाढ नहीं होते हैं यदि वे वहां पर अवगाढ होते हैं तो अनन्त ही अद्धासमय वहां अवगाढ हाते हैं। क्योंकि मनुष्यलोक में ही अद्धासमयों का सद्भाव होता है-मनुष्यलोक से बाहर इनका सद्भाय नहीं होता है इमप्रकार धर्मास्तिकापप्रदेश के प्रस्थान में उनका अवगाह है भी और नहीं भी है। जहां है वहां अनन्तरूप में उनका सद्भाव है। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-जत्थ णं भंते ! एगे अहम्मत्यिकायपएसे ओगाढे, तस्थ केवइया धम्मस्थिकायपएसा ओगाढा' हे भदन्त ! जहां पर एक अधर्मास्तिकायप्रदेश अवगाढ है वहां पर कितने धर्मास्तिकायप्रदेश अवगाढ हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एक्को' हे गौतम! वहां पर एक धर्मास्ति कायप्रदेश अवगाढ है-इस विषय में युक्ति कही जा चुकी है। अणंता" गौतम ! ते स्थान ५२ ४या२४ भद्धासमय अडित 3.4 छ અને ક્યારેક અવગાહિત હતા નથી જે તેઓ તે સ્થાન પર અવગાહિત હોય, તે અનંત અદ્ધાસમયે જ ત્યાં અવગાહિત હોય છે. કારણ કે મનુષ્યલોકમાં જ અદ્ધાસમને સદૂભાવ હોય છે, મનુષ્યલકની બહાર તેમને સદ્ભાવ નથી તે કારણે ધર્માસ્તિકાય પ્રદેશના સ્થાનમાં તેમની અવગાહના હોય છે પણ ખરી અને નથી પણ હતી જ્યાં હોય છે ત્યાં અનંત રૂપે જ તેમને સદ્ભાવ રહે છે. गौतम स्वाभाना प्रश्न-"जस्थ णं भंते ! एगे अहम्मस्थि कायपएसे ओगाढे, तत्थ केवइया धम्मत्थिकायपएसा ओगाढा ?" उ लगवन् ! स्थान ५२ से અધમસ્તિકાયપ્રદેશ અવગાઢ (સ્થિત) હોય છે, ત્યાં કેટલા ઘર્માસ્તિકાય પ્રદેશ અવગાઢ હોય છે? महावीर प्रभुना उत्तर--" एको” गौतम ! त्यां से स्तिय પ્રદેશ અવગાઢ હોય છે તેનું સ્પષ્ટીકરણ પહેલાં થઈ ચુકયું છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦

Loading...

Page Navigation
1 ... 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735