Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 715
________________ ७०० भगवतीसूत्रे टीका-अथ दशमं जीवावगाढद्वारमाह-जत्थ णं भंते ! एगे' इत्यादि। 'जत्थणं भंते! एगे पुढविकाइए ओगाढे तत्थ णं केवया पुढविक्काइया ओगाढा ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! यत्र खलु स्थाने एकः पृथिवीकायिको जीवोऽवगाढो भवति तत्र खलु कियन्तः पृथिवीकापिका जीवा अवगाढा भवन्ति ? भगवानाह 'असंखेन्ना' एकपृथिवीकायिकावगाहस्थाने असंख्येयाः सूक्ष्माः पृथिवीकायिका अवगाढा भान्ति तथा चोक्तम्-"जत्थ एगो तत्थ नियमा असंखेना" ति, यत्र एकस्तर नियमात् असंख्येयाः" इति । गौतमः पृच्छति-केवइया आउकाइया ओगाहा ?' एकपृथिवीकायिकारगाढस्थाने कियन्न अकायिका अवगाढा जीवावगाढवारवक्तव्यता'जत्थ णं भंते ! एगे पुढविकाइए ओगाढे' इत्यादि । टीकार्थ-इस मूत्र द्वारा सूत्रकार ने दशवें जीवावगाढद्वार का कथन किया है-इसमें गौतमस्वामी ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'जत्य णं एगे पुढविकाइए ओगाढे तत्व णं केवइया पुढविक्काइया ओगाढा' हे भदन्त ! जिस स्थान पर पृथिवीमायिक जीव अवगाढ़ होता है, वहां कितने पृथिवीकायिक जीव अवगाढ होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'असं. खेजा' हे गौतम! जहां पर एक पृथिवीकायिक जीव अवगाढ होते हैं। उस अवगाहनास्थान में असंख्यात सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीव अवगाढ होते हैं । सो ही कहा-है-'जत्थ एगो तत्य नियमा असंखेन्जा' जहां एक होता है, वहां नियम से असंख्यात होते हैं। -पागाद्वार १४०यता" जत्थ णं भंते ! एगे पुढवीकाइए ओगाढे" त्याह ટીકાથે–આ સૂત્ર દ્વારા સૂત્રકારે દસમાં જીવાવગાઢ દ્વારનું નિરૂપણ કર્યું છે. આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને એ પ્રશ્ન पूछे छे 3-“जत्थ णं भंते एगे पुढविकाइए ओगाढे, तत्थ णं केवइया पुढविक्काइया ओगाढा " 3 लगवन् ! स्थान ५२ मे पृथ्वीय समाद (સ્થિત) હોય છે, ત્યાં કેટલા પૃથ્વીકાયિક છ અવગાઢ હોય છે? महावीर प्रभुनी उत्त२-" असंखेज्जा" गौतम ! «यां मे पृथ्वीકાયિક જીવ અવગાઢ હોય છે. તે અવગાહના સ્થાનમાં અસંખ્યાત સૂક્ષમ पृथिवीयि वो अ डाय छे. ४ ५ छे -" जत्थ एगो तत्थ नियमा असंखेजा " "ori डायथे, त्या नियमथी असण्यात डाय छे." गौतम स्वामीना प्रश्न-" केवइया आउकाइया ओगाढा ?' भगवन् ! શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦

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