Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 698
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ०४ सु० १० अवगाहनाद्वारनिरूपणम् ६८३ अवगाढाः समयक्षेत्रापेक्षषा, स्यात् नो अगाढाः समयक्षेत्रावहिरपेक्षया, यदा अवगाढा स्तदा अनन्ता एवावगाढा भवन्ति । गौतमः पृच्छति-'जत्थ णं भंते ! एगे जोवत्थिकायपएसे ओगाढे तत्थ केवइया धम्मस्थिकायप्पएसा ओगाढा ?' हे भदन्त ! यत्र खलु एको जीवास्तिकायपदेशोऽवगाढो भाति तत्र कियन्तो धर्मास्तिकायप्रदेशा अगाढा भवन्ति ? भगवानाह-एको, एवं अहम्मत्यिकायपएसा, एवं आगासस्थिकायप्पएसा वि' तत्र एको धर्मास्तिकायप्रदेशोऽवगाढो भवति, एवं-तथैव आकाशास्तिकायप्रदेशा अपि एक आकाशास्तिकायपदेशोऽवगाह स्तत्र भवति इति भावः । गौतमः पृच्छति- केवइया जीवस्थिकायपएसा ओगाढा ?' इसी प्रकार से वहां पर अद्धासमय भी कदाचित् अवगाढ होते हैं और कदाचित् अवगाढ नहीं भी होते हैं । यदि वे वहां पर अवगाढ हैं-तो अनन्तमात्रा में ही अवगाढ हैं इसका कारण यह है कि समय लोकक्षेत्र में ही पाया जाता है । लोकक्षेत्र से बाहर क्षेत्र में नहीं पाया जाता है । क्योंकि लोकक्षेत्र से बाहर क्षेत्र में उसका सद्भाव नहीं कहा गया है । अव गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'जत्थ णं भंते ! एगे जीवस्थिकायपएसे ओगाढे, तत्स्थ केवइया धम्मत्थिकायप्पएसा ओगाढा' हे भदन्त ! जहां एक जीवास्तिकायप्रदेश अवगाढ है । वहां पर धर्मास्तिकाय के किनने प्रदेश अवगाढ हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एको' एवं अहमस्थिकायपएमा, एवं आगासधिकायप्पएमा वि' हे गौतम! वहां पर एक धर्मास्तिकायप्रदेश, एक अधर्मास्तिकायप्रदेश और एक आकाशास्तिकायप्रदेश अवगाढ है। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'केवइया जीवस्थिकायपएसा ओगाढा' हे भदन्त ! उस जीवा. ક્યારેક અવગાઢ હોય છે અને કયારેક અવગાઢ હતા નથી જે તેઓ ત્યાં અવગાઢ હોય છે, તે અનંત માત્રામાં જ અવગાઢ હોય છે તેનું કારણ એ છે કે સમયને સદૂભાવ મનુષ્યક્ષેત્રમાં જ હોય છે, મનુષ્યક્ષેત્રની બહારના ક્ષેત્રોમાં તેને સદ્ભાવ કહ્યો નથી. गौतम स्वामीन। प्रश्न-" जत्थ ण भंते ! एगे जीवस्थिकायपएसे ओगाढे' तत्थ केवइया धम्मत्थिकायप्पएसा ओग.ढा ?" भगवन् ! नयां स्तिatયને એક પ્રદેશ અવગાઢ હોય છે, ત્યાં કેટલા ધર્માસ્તિકાયપ્રદેશ અવગાઢ હોય છે? महावीर प्रभुने। उत्त२-" एकको एवं अहम्मस्थिकायपएसा, एवं आगासथिकायपएसा वि" गौतम ! यो मे पास्तिय॥ ॐ अधाસ્તિકાય પ્રદેશ અને એક આકાશસ્તિકાયપ્રદેશ અવગાઢ હોય છે, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦

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