Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 692
________________ प्रमेयवन्द्रिका टीका श० १३ उ० ४ सू० १० अवगाहनाद्वारनिरूपण ६७७ अनन्ता जोवास्तिकायपदेशा अगाढा भवन्ति, गौतमः पृच्छति-'केवइया पोग्गलथिकायपएसा' हे भदन्त ! एकधर्मास्तिकायपदेशस्थाने कियन्तः पुद्गलास्ति कायमदेशा अवगाढा भवन्ति भगवानाह--'अगंता' हे गौतम तत्र अनन्ताः पुद्गलास्तिकायमदेशा अवगाहा भवन्ति, जीवास्तिकायपुद्गलास्तिकाययोरनन्तानां प्रदेशानाम् एकैकस्य धर्मास्तिकायप्रदेशस्य स्थाने सद्भावेन, तस्य तैः प्रत्येकमनन्तैरेव व्याप्तत्वादिति भावः, गौतमः पृच्छति- केवइया अद्धासमया ? ' हे भदन्त ! कियन्तः अद्वासमयाः एकधर्मास्तिकायपदेशस्थाने अवगाहा भवन्ति ? भगवानाह-'सिय ओगाढा, सिय नो ओगाढा, जह ओगाढा, अगंता' हे गौतम ! अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-केवइया पोग्गलस्थिकायपरसा' हे भदन्त ! एक धर्मास्तिकायप्रदेश के अवगाह स्थान में पुद् लास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ-स्थित होते हैं-उत्तर में प्रभु कहते हैं-'अणंता' हे गौतम! वहां पर पुद्गलास्तिकाय के अनन्तप्रदेश अबगाढ होते हैं। जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय के अनन्तप्रदेशों का एक एक धर्मास्तिकायप्रदेश के स्थान में सद्भाव होता है इससे वे प्रत्येक अनन्त प्रदेश उस धर्मास्तिकाय के प्रदेश को व्याप्त करते हैं। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'केवइया अद्धासमया' हे भदन्त ! एक धर्मास्तिकायप्रदेशस्थान में कितने अद्धासमय अवगाढ. स्थित होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'सिय ओगाढा, सिय नो ओगाढा, अणंता' हे गौतम ! वहां पर अद्धासमय कदाचित् अवगाढ उत्तर-" अणंता" गोम! त्या स्तियना मनात प्रश। साहित य छे. गौतम भीना प्रश्न-" केवइया पागलस्थिकायपएसा ?” 8 सावन् ! એક ધર્માસ્તિકાયપ્રદેશના અવગાહના સ્થાનમાં પુદ્ગલાસ્તિકાયના કેટલા પ્રદેશે અવગાહિત હોય છે ? उत्तर- अर्णता" 3 गोतम ! त्यो पुसास्तियना मानत अहेश। અવગાઢ હોય છે. જીવાસ્તિકાય અને પુદ્ગલાસ્તિકાયના અનંત પ્રદેશોને એક એક ધર્માસ્તિકાય પ્રદેશના સ્થાનમાં સદૂભાવ હોય છે તેથી તે પ્રત્યેકના અનંત પ્રદેશો તે ધર્મારતકાયના પ્રદેશને વ્યાપ્ત કરે છે. गौतम स्वाभाना प्रश्न-" केवइया अद्धासमया ?" है सावरे સ્થાનમાં ધર્માસ્તિકાયને એકપ્રદેશ અવગાહિત હોય છે, તે સ્થાનમાં કેટલા અદ્ધાસમય અવગાહિત (સ્થિત) હોય છે ? महावीर प्रभुने। उत्त२-" सिय ओगाढा, सिय नो ओगाढा, जइ ओगाला શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦

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