Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ० ४ सू० १० अवगाहनाद्वारनिरूपण
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ओगाढा ? ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! यत्र खलु स्थाने एकः धर्मास्तिकायप्रदेशोऽवगाढो भवति तत्र स्थाने कियन्तो धर्मास्तिकायप्रदेशा अगाढाः स्थिता भवन्ति ? भगवानाह-'नथि एको वि' हे गौतम ! यत्र प्रदेशे धर्मास्तिकायस्य एकः प्रदेशोऽजगाढो भवति तत्र अन्यस्तत्प्रदेशो नास्ति एकोऽपि एकधर्मास्तिकायप्रदेशस्थाने अन्यस्य धर्मास्तिकायप्रदेशस्य अविद्यमानत्वात् , गौतमः पृच्छति- केवइया अहमविकायप्पएसा ओगाढा ? ' हे भदन्त ! यत्र एको धर्मास्तिकाय प्रदेशोऽप्रगाढोऽस्ति तत्र कियन्तः अधर्मास्तिकायप्रदेशा अत्रगाढा भवन्ति ? भगवानाह-' एको' हे गौतम ! एकधर्मास्तिकायप्रदेशावगाहना. थिकायपएसे ओगाढे, तत्थ केवइया धम्मस्थिकायपएसा ओगाढा' हे भदन्त ! जिस स्थान पर एक प्रदेश धर्मास्तिकाय का अवगाह होता है अर्थात् आकाश के जिस प्रदेश में धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाहित है-रहा हुआ है-वहां धर्मास्तिकाय के और कितने प्रदेश अवगाढस्थित हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'नथि एक्को वि' हे गौतम! जिस प्रदेश में धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ होता है, उस प्रदेश में धर्मास्तिकाय का दूसरा प्रदेश अवगाढ नहीं होता है क्योंकि वह वहां अविद्यमान रहता है। ___ अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- केवइया अहम्मस्थि. कायपएसा ओगाढा' हे भदन्त ! जिस स्थान पर धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ है-वहाँ पर अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एको' हे गौतम ! जिस स्थान
पएसा ओगाढा ?" उ भगवन् ! २ स्थान ५२ बास्तियन में प्रदेश અવગાહિત હોય છે-એટલે કે આકાશના જે પ્રદેશમાં ધર્માસ્તિકાયનો એક પ્રદેશ રહેલો હોય છે–ત્યાં ધર્માસ્તિકાયના બીજા કેટલા પ્રદેશ અવગાઢ (२९1) डाय छ ?
__ महावीर प्रभुन। उत्त२-" नथि एको वि" गौतम ! २ प्रदेशमा ધર્માસ્તિકાયને એક પ્રદેશ અવગહિત હોય છે, તે પ્રદેશમાં ધર્માસ્તિકાયનો બીજો એક પણ પ્રદેશ અવગાહિત હેત નથી, કારણ કે તે ત્યાં અવિદ્યમાન રહે છે.
गौतम स्वामीना प्रश्न-' केवइया अहम्मत्थिकायपएसा ओगाढा " ભગવન્! જે સ્થાન પર ધર્માસ્તિકાયને એક પ્રદેશ અવગાહિત (સ્થિત) છે, તે સ્થાન પર અધર્માસ્તિકાયના કેટલા પ્રદેશે અવગાહિત હોય છે?
भावीर प्रभुना उत्त२-" एक्को" गौतम! २ स्थान ५२ धर्मा.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦