Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 674
________________ प्रमेयवन्द्रिका टीका श० १३ उ०४ सू०९ द्वि० पु० स्पर्शनाद्वारनिरूपणम् ६५९ जीवास्तिकायदेशैः पुद्गलास्तिकाय प्रदेशः अनन्तैः, अद्धासमयैस्तु यदा स्पर्शना तदा नियमात् अनन्तैरेव स्पर्शना पतिपादिता तथैव असंख्येयानामपि वृद्ध गति हायप्रदेशानां तैरेव असंख्येयैः अधर्मास्तिकायदेशैः जघन्येन द्विगुणैः द्विरूपाधिकैः, उत्कृष्टेन तैरेव असंख्येयकैः अधर्मास्तिक!यपदेशैः पञ्चगुणैः द्विरूपाधिकैः, आका शास्तिकाय प्रदेशैस्तु तैरेव असंख्येयः पञ्चगुणैः द्विरूपाधिकैर, जीवास्तिकायप्रदेशैः पुद्गलास्तिकायम देशैश्च अनन्तैः, श्रद्धासमयैः पुनर्यदा स्पर्शना तदा नियमाद् अनन्तैरेव स्पर्शना भवतीति भात्रः, गातमः पृच्छति' अनंता भंते । पोग्गलस्थिकापसा व धम्मत्थि काय एसेर्हि पुडा ? ' हे भदन्त ! अनन्ताः पुद्गलास्विकायमदेशाः कियदः धर्मास्तिकायदेशैः स्पृष्टा भवन्ति ? भगवानाह - ' एवं जहा असंखेज्जा तहा अनंता वि निरवसेसं' हे गौतम! एवं पूर्वोक्तरीत्यैव, जीवास्तिकाप्रदेशों द्वारा, अनन्तपुद्लास्तिकायप्रदेशों द्वारा तथा जब अदासमयों द्वारा स्पर्शना होती है तब नियमतः अनन्त अद्धासमयों द्वारा स्पर्शना कही गई है, उसी प्रकार से जघन्यरूप से दो रूप अधिक द्विगुणित असंख्यात अधर्मास्तिकाय प्रदेशों द्वारा, तथा उत्कृष्ट रूप से दो रूप अधिक पंचगुणित असंख्यात अधर्मास्तिकाय प्रदेशों द्वारा असंख्यात पुद्गलास्तिकाय प्रदेशों को स्पर्शना होती है तथा दोरूप अधिक पंवगुणित असंख्यात आकाशास्तिकाय प्रदेशों द्वारा, अनन्त जीवास्तिका प्रदेशो द्वारा, अनन्त पुद्गलास्तिकाय प्रदेशों द्वारा और जब अद्धासमयों द्वारा स्पर्शना होती है तब नियमतः अनन्त अद्धासमयों द्वारा असंख्यात पुद्गलास्तिकायप्रदेशों की स्पर्शना होती है। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'अनंता भंते! पोग्गलस्थिकापसा एहिं धम्मस्थिकायप एसेहिं पुट्ठा' हे भदन्त ! पुद्गलास्तिकाय के अनन्तप्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- ' एवं जहा असंखेज्जा तहा કાયપ્રદેશ દ્વાર, અનત પુદ્ગલા સ્તકાયપ્રદેશેા દ્વારા અને જ્યારે અદ્ધાસમચા દ્વારા સ્પર્શ ના થાય ત્યારે નિયમતઃ અનત અદ્ધાસમયે દ્વારા અસખ્યાત પુદ્ગલાસ્તિકાય પ્રદેશેાની સ્પના થાય છે. गौतम स्वामीनो प्रश्न- " अनंता भंते ! पोगलत्थिकायपएसा केवइएहि धम्मत्थिकायपएसेहि पुट्ठा ?" डे लगवन् ! युगसः स्तिप्रयना अनंत प्रदेशो સ્તિકાયના કેટલા પ્રદેશ વધુ સૃષ્ટ થાય છે ? महावीर प्रभुना उत्तर- " एवं जहा असंखेज्जा तहा अनंता वि निरवसेसं " हे गौतम! पडेलां में प्रकार असण्यात युगलास्तिकाय प्रदेशानु શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦

Loading...

Page Navigation
1 ... 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735