Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 670
________________ प्रमेयचन्द्रिका टोका श० १३ उ०४ सू०९ वि० पु० स्पर्शनाद्वारनिरूपणम् ६५५ स्तिकायप्रदेशैः संख्येया पुद्गलास्तिकायप्रदेशाः स्पृष्टा भान्ति ? भगवानाह'तेणेव संखेज्जएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं' हे गौतम ! तेनैव-यत्संख्येयकोऽयंस्कन्धस्तत्पदेश संख्येयकेनैव पञ्चगुणेन द्विरूपाधि केन आकाशास्तिकायप्रदेशेन संख्येयाः पुद्गलास्तिकायप्रदेशाः स्पृष्टा भवन्ति ? गौतमः पृच्छति- केवइए हिं जीवत्थिकायपए सेहिं पुट्ठा ?' हे भदन्त ! कियद्भिः जीवास्तिकायपदेशैः संख्येयाः पुद्गलास्तिकायप्रदेशाः स्पृष्टा भान्ति ? भगवानाह-' अणं तेहिं ' हे गौतम ! अनन्तैः जीवास्ति कायप्रदेशैः संख्येयाः पुद्गलास्तिकायमदेशाः स्पृष्टा भवन्ति । ऐसा पूछते हैं-'केवइएहिं आगासस्थिकायपएसेहिं पुट्ठा' हे भदन्त ! संख्यात पुद्गलास्तिकायप्रदेश कितने आकाशस्तिकाय प्रदेशो द्वारा स्पृष्ट होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'तेणेव संखेज एणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं हे गौतम ! संख्यात प्रदेशवाला जो पुद्गलस्कंध है वह दो रूप अधिक पंचगुणित संख्यात प्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होता है-अर्थात् पुद्गलास्तिकाय के संख्यानप्रदेश दो रूप अधिक पांचगुणित आकाशास्तिकाय के संख्यातप्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होते हैं। यह कथन उत्कृष्ट पदकी अपेक्षा कहा गया जानना चाहिये। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'केवाएहि जीवस्थिकायपएसेहिं पुट्ठा' संख्यात पुद्गलास्तिकायप्रदेश कितने जीवास्तिकायप्रदेशों द्वारा स्पृष्ट होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'अणंतेहिं' हे गौतम ! अनन्त जीवास्तिकायप्रदेशों द्वारा संख्यातपुद्गलास्तिकालप्रदेश स्पृष्ट होते हैं। अब शीतम स्वाभाना प्रश्न-" केवइए हि आगासत्थिकायपरसेहि पुट्ठा ?" है ભગવન્! સંખ્યાત પુલાસ્તિકાય પ્રદેશે કેટલા આકાશાસ્તિકાયપ્રદેશે વડે સ્કૃષ્ટ થાય છે? मडावीर प्रभुने। उत्तर-" तेणेव संखेज्जएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं" है ગૌતમ ! સંખ્યાત પ્રદેશેવાળ જે પુદ્ગલકધ છે તે પાંચ ગણાં સંખ્યાત કરતાં બે અધિક આકાશાસ્તિકાય પ્રદેશ વડે પૃષ્ટ થાય છે. આ કથન ઉત્કૃષ્ટ પદની અપેક્ષાએ કરવામાં આવ્યું છે. गौतम स्वामीन। प्रश्न-“केवइएहि जीवत्थिकायपएसेहिपुद्रा ?" उससવન! સંખ્યાત પ્રદેશેવાળે જે પુદ્ગલકંધ છે તે કેટલા જીવાસ્તિકાયપ્રદેશો વડે પૃષ્ટ થાય છે ? महावीर प्रसन। उत्त२- 'अणं हिं" गीतम! ज्यात पारित કાયપ્રદેશે અનંત જીવાસ્તિકાયપ્રદેશ વડે સ્પષ્ટ થાય છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦

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