Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 622
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ० ४ सू० ७ प्रवर्त्तनद्वारनिरूपणम् पोगलत्थिकाए ' तद्यथा-धर्मास्तिकायः, अधर्मास्तिकायः यावत्- आकाशास्तिकायः, जीवास्तिकायः, पुद्रलास्तिकायः । गौतमः पृच्छति - धम्मत्थिकाए णं भंते! जीवाणं किं पवत्त ? ' हे भदन्त । धर्मास्तिकायः खलु जीवानां कि- कथं प्रवर्तते ? धर्मास्तिकायेन जीवानां कीदृशी प्रवृत्तिर्भवति ? इति प्रश्नः । भगवानाह - ' गोयमा ! धम्मत्थिकाए णं जीवाणं आगमण गमणभासुम्मेसमणजोगा वइजोगा कायजोगा, जे यावन्ने तहपगारा चला भावा सव्वे ते धम्मत्थिकाए पवत्तंति' हे गौतम ! धर्मास्तिकाये सति खलु जीवानाम् आगमनगमनभाषोन्मेषमनोयोगवचोयोगकायजोगाः, तत्र आगमनगमने प्रसिद्धे, भाषा - व्यक्तवचनम्, उन्मेषः नयनस्पन्दनात्मक व्यापारविशेषः, मनोयोगबाग्योगकाययोगाः प्रसिद्धा एव, प्रकार से हैं- 'धम्मत्थिकाए, अहम्मत्थिकाए, जाव पोग्गलस्थिकाए) धर्मांस्तिकाय, अधर्मास्तिकाय यावत्-आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय | अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'धम्मत्थिकाए णं भंते! जीवाणं किं पव्वन्तइ' हे भदन्त ! धर्मास्तिकाय के सहारे के जीवों की प्रवृत्ति कैसी होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! धम्मतिथकाए णं जीवाणं आगमण - गमण भासुम्मे समणजोगा, वह जोगा, कायजोगा जे यावन्ने तहष्पगारा चला भावा सव्वे ते धम्मस्थिकाए पवतंति' हे गौतम! धर्मास्तिकाय के होने पर ही जीवों का आना जानागमनागमन होता है अर्थात्-चलना फिरना होता है । कहीं से आना और कहीं पर जाना ऐसा जो आनेजानेरूप कार्य होता है वह धर्मास्तिकाय के सद्भाव में ही होता है। इसी प्रकार से भाषा - व्यक्तवचन, उन्मेष नेत्र का उघाडना, मनोयोग, वाग्योग, काययोग तथा इसी स्तिङाय, (२) अधर्मास्तिाय, ( 3 ) महाशास्तिमाय, ( ४ ) वास्तिाय भने (4) युद्धसास्तिभय ६०७ गौतभ सभीनो प्रश्न- " धम्मत्थिकाए णं भंते ! जीवाणं किं पव्वत्तइ" डे ભગવન્ ! ધર્માસ્તિકાય જીવેની પ્રવૃત્તિમાં કેવી રીતે મદદ રૂપ બને છે ? महावीर अनुना उत्तर- " गोयमा ! धम्मत्थिकाए णं जीवाणं आगमणगमणभासुम्मेसणजोगा, वइजोगा, कायजोगा, जे यावन्ने तत्पगारा चला भावा सव्वे ते धम्मथिका पवत्तंति " हे गौतम । धर्मास्तिठायना अस्तित्वने सीधे જીવા ગમનાગમન (અવરજવર) કરી શકે છે. કેાઈ જગ્યાએથી આવવાનું અને કઈ જગ્યાએ જવાનું કાર્ય ધર્માસ્તિકાયના સદ્ભાવ હાય તે જ થઈ શકે छे. ये प्रमाणे भाषा ( वथन मोसवानी डिया), उन्मेष (नेत्र उघाडवानी ક્રિયા), મનાયાગ, વાગ્યેાગ, કાયયેાગ તથા એજ પ્રકારની ખીજી પણ જે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦

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