Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 658
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ०४ सू०९ द्वि० पु० स्पर्शनाद्वारनिरूपणम् ६४३ एवं-पूर्वोक्तरीत्यैव, अधर्मास्तिकायप्रदेशैरपि जघन्येन अष्टभिः, उत्कृष्टेन सप्तदशभिः त्रयः पुद्गलास्तिकायप्रदेशाः स्पृष्टा भवन्ति२, गौतमः पृच्छति-'केवइएहिं आगासस्थिकायपएसेहिं पुट्ठा ?' हे भदन्त ! कियद्भिः आकाशास्ति. कायप्रदेशैः त्रयः पुद्गलास्तिकायप्रदेशाः स्पृष्टा भवन्ति ? भगवानाह'सत्तरसहि ' हे गौतम ! सप्तदशभिः आकाशास्तिकायमदेशैः, त्रयः पुद्गलास्तिकायप्रदेशाः स्पृष्टा भवन्ति ३, अापि जघन्यपदाभावो बोध्यो लोकान्ते आकाशपदेशानां सद्भावात् 'शेषं जहा धम्मत्थिकायस्स' शेषं जीवपुद्गलाद्धा. विषयकं प्रकरणं यथा धर्मास्तिकायस्य प्रतिपादितं तथैवात्रापि प्रतिपत्तव्यम् , तथा चाभिलापक्रमस्त्वेवं बोध्या-त्रयः भदन्त ! पुद्गलास्तिकायप्रदेशाः कियद्भिः इसी प्रकार से अधर्मास्तिकाय के ८ प्रदेशों द्वारा जघन्य स्पर्शना और उसके १७ प्रदेशों द्वारा उस्कृष्ट स्पर्श ना होती है ऐसा जानना चाहिये । ___ अब गौतमप्रभु से ऐसा पूछते हैं 'केवइएहिं आगासस्थिकायपएसेहि. पुट्ठा' हे भदन्त ! कितने आकाशास्तिकाय प्रदेशों द्वारा पुगलास्ति काय के तीन प्रदेशों की स्पर्शना होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'सत्तरमाहि' हे गौतम ! १७ आकाशास्तिकाय प्रदेशों द्वारा पुन लास्तिकाय के तीन प्रदेशों की स्पर्शना होती है । यहां पर भी जघन्य. पद का अभाव जानना चाहिये। क्योंकि लोकान्त में आकाशप्रदेशों का सद्भाव रहता है । 'सेसं जहा धम्मस्थिकायस्स' इसके आगे का जीव, पुद्गल और अद्धाविषयक प्रकरण है जैसा धर्मास्तिकाय का कहा जा चुका है, वैसा ही जानना चाहिये । तथा च अभिलाप क्रम इस એજ પ્રમાણે અધર્માસ્તિકાયના ઓછામાં ઓછા આઠ અને વધારેમાં વધારે ૧૭ પ્રદેશે વડે પુલાસ્તિકાયના ત્રણ પ્રદેશની સ્પર્શન થાય છે, એમ સમજવું. गौतम स्वामीना प्रश्न-" केवइएहि आगासस्थिकायपएसे हि पुट्ठा १" के ભગવદ્ ! કેટલા આકાશાસ્તિકાયના પ્રદેશ વડે પુકલાસ્તિકાયના ત્રણે પ્રદેશની સ્પર્શના થાય છે? महावीर प्रभुन। उत्त२-" सत्तरसहि" : गौतम ! शास्तियना સત્તર પ્રદેશ વડે પુલાસ્તિકાયના ત્રણ પ્રદેશની સ્પર્શના થાય છે. અહીં પણ જઘન્યપદનો અભાવ જ સમજ, કારણ કે કાન્તમાં આકાશપ્રદેશને समा २७ छ. “सेस जहा धम्मत्थिकायस्स" त्या२ ५छीनु थन-७५, શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૦

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