Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 647
________________ भगवतीसूत्रे पदेशैः स्पृष्टः, एवमेव अधर्मास्तिकायप्रदेशैरपि स्पृष्टो विज्ञेयः, सप्तभिश्चाकाशास्तिकायमदेशः स्पृष्टः, अनन्तैश्च जीवास्तिकायप्रदेशैः स्पृष्टः, अनन्तैश्च पुद्गलास्तिकायपदेशः स्पृष्टो भवति, इति भावः ॥ मू० ८॥ विप्रदेशिकादि पुद्गलास्तिकायस्पर्शद्वारवक्तव्यता। मूलम्-"दो भंते! पोग्गलस्थिकायपएसा केवइएहिं धम्मस्थिकायप्पएसेहिं पुट्ठा ? जहन्नपदे छहिं, उक्कोसपए बारसहिं, एवं अहमत्थिकायप्पएसेहिं वि, केवइएहि आगासस्थिकायपएसेहिं पुटा ? बारसहिं, सेसं जहा धम्मस्थिकायस्ल। तिन्नि भंते ! पोग्गलत्थिकायपएसा केवइएहिं धम्मत्थिकायपएसेहि पुटा? जहन्नपए अहिं, उक्कोसपए सत्तरसहि, एवं अहम्मत्थिकायपएलेहिं वि, केवइएहिं आमासस्थिकायपएसेहिं पुटा ? सत्तरसहि, सेसं जहा धम्मस्थिकायस्स, एवं एएणं गमेणं भाणियव्वं, जाव दस, नवरं जहन्नपदे दोन्नि पक्खिवियव्वा, उक्कोसपए पंच। चत्तारि पोग्गलस्थिकायपएसा०? जहन्नपए दसहि, उक्कोसपए बावीसाए। पंच पोग्गलस्थिकायपएसा०? जहन्नपदे बारसहिं, उकासपदे बत्तीसाए। छ पोग्गलत्थिकायविवक्षा नहीं की गई है । तथा उत्कृष्टरूप में वह सात धर्मास्तिकाय प्रदेशों से स्पृष्ट होता है इसी प्रकार से वह पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी स्पष्ट होता है । सात आकाशास्तिकाय प्रदेशों से वह स्पष्ट है, अनन्तजीवास्तिकायप्रदेशों से स्पृष्ट होता है और अनन्त ही पुङलास्तिकायप्रदेशों से स्पृष्ट होता है।०८॥ इति एकास्तिकायप्रदेशस्पर्शद्वारवक्तव्यता ॥ પ્રદેશ ધર્માસ્તિકાયના સાત પ્રદેશ વડે પૃષ્ટ થાય છે. એ જ પ્રમાણે તે પદ્રલાસ્તિકાયને એક પ્રદેશ અધર્માસ્તિકાયના પ્રદેશ વડે પણ પૃષ્ટ થાય છે. તે સાત આકાશાસ્તિકાય પ્રદેશ વડે પૃષ્ટ થાય છે, અનંત જીવાસ્તિકાયપ્રદેશે વડે પૃષ્ટ થાય છે અને અનંત પુદ્ગલાસ્તિકાય પ્રદેશ વડે પણ પૃષ્ટ થાય છે. સૂ૦૮ એકાસ્તિકાયપ્રદેશસ્પર્શનાદ્વારવકતવ્યતા સંપૂર્ણ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦

Loading...

Page Navigation
1 ... 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735