Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे कावासलक्षेषु, संख्येयविस्तारेषु नरकेषु एकसमये कियन्तो नैरयिका उपपद्यन्ते ? 'केवइया काउलेस्सा उववज्जतिर?' कियन्तः कापोतलेश्या:-कापोतलेश्यावन्तो जीवा उप धन्ते ? रत्नप्रभापृथिव्यां कापोतलेश्यावन्त एवोत्पद्यन्ते न तु कृष्णलेश्यादिमन्तः, अतः कापोतलेश्यावत एवाश्रित्य प्रश्नः कृत इत्यवसेयम् , 'केवइया कण्हपक्खिया उववज्जति३ ?' कियन्तः कृष्णपाक्षिकाः जीवा उपपद्यन्ते ? 'केवइया सुक्कपक्खिया उववज्जति४ ?' कियन्तः शुक्लपाक्षिकाः जीवा उपपधन्ते४ ? ता कृष्णपाक्षिक शुक्लपाक्षिक जीवानां लक्षणं तु-'जे सिमवड्ढो पोग्गलपरियट्टो सेसओ उ संसारो। ते सुकपक्खिया खलु अहिगे पुण कण्हपक्खीया॥१॥
येवामपार्द्धः पुद्गलपरिवर्तः शेषकस्तु संसारः।।
ते शुक्लपाक्षिकाः खलु अधि के पुनः कृष्णपाक्षिका इति ॥ रत्नप्रभापृथिवी में जो ३० लाख नारकवास हैं और इनमें जो संख्यातयोजन के विस्तारवाले नारकावास है उनमें एकसमय में कितने नारक उत्पन्न होते हैं ? 'केवइया काउलेस्सा उथवज्जति' कितने कापोतलेश्यावाले जीव उत्पन्न होते हैं ? यह जो प्रश्न किया गया है-उसका कारण ऐसा है कि रत्नप्रभापृथिवी में कापोतलेश्यावाले जीव उत्पन्न होते हैं, कृष्णादिलेश्यावाले नहीं, इसलिये कापोतलेश्यावाले जीव को आश्रित करके ही यह प्रश्न किया गया है ऐसा जानना चाहिये-'केवइया कण्हपक्खिया उववज्जति' कितने कृष्णपाक्षिक जीव उत्पन्न होते हैं 'केवइया सुक्कपक्खिया उववज्जंति' कितने शुक्लपाक्षिक जीव उत्पन्न होते हैं ? कृष्णपाक्षिक और शुक्लपाक्षिक जीवों का लक्षण इस प्रकार कहा गया है
"जेसिम वडो पोग्गलपरियट्टो सेसओ उ संसारो।
ते सुक्कपक्खिया खलु अहिगे पुण कण्हपक्खीया ॥" ज्जति ?” ७ सन् ! २नमा पृथ्वीना श्रीस सामन२४पासमान २ સંખ્યાત યોજનાના વિસ્તારવાળા નરકાવાસો છે, તેમાં એક સમયમાં કેટલા नार। उत्पन्न थाय छे ? " केवइया काउलेस्सा उववन्जंति ?' पात. લેશ્યાવાળા જ ઉત્પન્ન થાય છે? (આ પ્રકારને પ્રશ્ન પૂછવાનું કારણ એ છે કે રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં કાપતલેશ્યાવાળા જ જીવો ઉત્પન્ન થાય છે, કૃષ્ણાદિલેશ્યાવાળા જી ઉત્પન્ન થતા નથી તેથી કાપતલેશ્યાવાળા ઓને અનુલक्षीर ४ । प्रश्न पूछामी भाव्य। छ, सम समापु.) केवइया कण्हपक्खिया उववज्जति १" है। पाक्षि । पन याय छ ? " केवइया सुक्कपक्खिया उववज्जंति ” ३८९l Yala on अत्पन्न थाय छ ?
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦