Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
विवक्षिक्षेत्र प्रथमसमयावगाढाः प्रज्ञप्ताः ? 'केवइया परंपरोवगाढा पण्णता ४१' कियन्तः परम्परावगाढाः विवक्षितक्षेत्रे परम्पराद्वितीयादिकः समयोऽधनाढे येषां ते परम्परावगाढाः प्रज्ञप्ताः ? 'केनइया अणंतराहारा पण्णत्ता ५?' कियन्तः अनन्तराहारा:-प्रथमसमयाहाराः, प्रज्ञप्ताः ? केवइया परंपराहारा पण्णत्ता ६?' कियन्तः परम्पराहारा:-द्वयादिसमयाहाराः प्रज्ञप्ताः? 'केवइया अगंतरपज्जत्ता पण्णता?' कियन्तः अनन्तरवर्याप्तकाः-प्रथमसमय. पर्याप्तकाः प्रज्ञप्ताः ? 'केवइया परंपरपज्जता८?' कियन्तः परम्परापर्याप्तकाःद्वयादिसमयपर्याप्तकाः प्रज्ञप्ताः ? केवइया चरिमा पणत्ता ?' किसन्तश्चरमाः चरमो नैरयिकभवेषु स एव भवो येषां ते चरमाः, नैरयिकमवस्य वा चरमसमये वर्तमानावरमाः प्रज्ञप्ताः ? 'केवइया अचरिमा पण्णत्ता१०?' कियन्तः 'केवड्या अणंतरोवगाढा पगत्ता' कितने अनन्तरावगाह-विवक्षितक्षेत्र में प्रथम समय में अवगाढ-मौजूद-कहे गये हैं ? 'केवड्या परंपरोवगाढा' कितने परंपरावगाढ-विवक्षित क्षेत्र में परम्परारूप से जिनके अवगाढ में द्वितीयादिक समय है-ऐसे कहे गये हैं ? ' केवड्या अणंतराहारा पण्णत्ता' कितने अनन्तराहार-प्रथम समय में है आहार जिन्हों का ऐसे कहे गए हैं ? 'केवड्या परंपराहारा पण्णत्ता' कितने परम्पराहार-दो आदि समयों में आहार वाले कहे गए हैं ? केवइया अणंतरपज्जत्ता पणत्ता' कितने अनन्तर पर्याप्तक-प्रथम समय में पर्याप्तक हुए-कहे गए हैं ? 'केवइया परंपरपजता' किसने परंपरापर्यासक-द्वयादि समयों में पर्याप्तक हुये कहे गये हैं ? 'केवइया चरिमा पत्ता ' कितने चरमनरविकभवों में वही भव जिनका अन्तिम हैं ऐसे अथवा नैरयिक भव (વિવક્ષિત ક્ષેત્રમાં પ્રથમ સમયમાં અવગાઢ-મેજૂદ) નારકે કહ્યું છે? "केवइया परंपरोवगाढा " eat ५२-५२।१८ (विपक्षित क्षेत्रमा ५२-५२१ ३३ रेमना मढमतीय माहिर समय ) ना२। छ ? "केवइया अणंतराहारा पण्णत्ता" । मनता२ (प्रथम समयमा माहार लेना) ना२३॥ ४॥ छ १ "केवइया परंपराहारा पण्णत्ता १' मा ५२-५२।७२ (मे माहिसमयामा भाडा ना२) ना२। ४६ छ ? ' केवड्या अणंतरपज्जत्ता पण्णता ?" tan प्रथम समयमा पर्यात (मनन्त२ पर्यास) ना२३॥ ह्या से "केवडया परंपरपज्जत्ता " ८॥ ५२२५२॥ ५H ( मा समयमा पर्याभाई थयेal) नार। ४ा छ १ " केवइया चरिमा पण्णता ?" ८३॥ यम (ना२४ लामो मे सनी मन्तिम छ मi) ना२। छ१ "केवइया अचरिमा पत्ता" । भयरिम (पूर्वात रमाया मित) ना ?
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦