Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे एवं-क्रोधकषाधिवदेव मानकपायिणो मायाकषायिणश्च अमुरकुमारावासेषु स्यात् सन्ति, स्यात् न सन्ति, यदा मानकषायिणो मायापायिणो भवेयुः तदा जघन्येन एको वा, द्वौ वा, त्रयो वा, उत्कृष्टेन तु संख्येयाः प्रज्ञप्ताः, तथा च क्रोधमान मायाकषायोदपिनो देवेषु कादाचित्का एव भवन्ति, इत्यभिप्रायेणेवोक्तम्-स्यात् सन्ति स्यात् न सतीत्यादि. किन्तु लोभकषायोदयिनो देशेषु सर्वदैव भवन्तीत्याहसंखेज्जा लोभकमायी पण्णत्ता, सेसं तं चेव' देवेषु संख्येया लोभकषायिणः प्रज्ञप्ताः, शेषं तदेव-पूर्वोक्तवदेव बोध्यम्, 'तिसु वि गमएमु संखेज्जेसु चत्तारि लेस्साओ भाणियचाओ' त्रिष्वपि गमकेषु-उत्पादो-द्वर्तना-सत्तालक्षणेषु त्रिष्वपि कसायी' इसी प्रकार से अप्रकुमारावासों में मानकषायी और मायाकषायी कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते हैं। यदि वे हो भी तो जघन्य से एक या दो तीन तक होते हैं और उत्कृष्ट से वे संख्यातलक होते हैं। इस प्रकार के इस कथन से यह प्रतीत होता है कि देवों में क्रोध, मान, माया, कषाय के उदयवाले जीव कादाचित्क ही होते हैं । इसी अभिप्राय को लेकर 'स्यात् सन्ति स्यात् न सन्ति' ऐसा पाठ कहा गया है। किन्तु जो लोभकषायवाले जीव हैं वे देवों में सर्वदा ही पाये जाते हैं। कारण कि देवों में लोभकषायी बहुत पाये जाते हैं। इसी बात को प्रकट करने के लिये 'संखेज्जा लोभकसायी पण्णत्ता' ऐसा पाठ कहा गया है, देवों में लोभकषायी संख्यात होते हैं । बाकी का और सब कथन इस विषय का पहिले जैसा कहा जा चुका है वैसा ही जानना चाहिये। 'तिसु वि गमएसु संखेज्जेसु चत्तारि लेस्साओ कसायी, मायाकसायी” ४ प्रमाणे असु२।२पासमा मानपायी भने માયાકષાયી અસુરકુમારે પણ કયારેક હોય છે અને કયારેક નથી હોતા જે તેમને સદૂભાવ હોય છે, તે ઓછામાં ઓછા એક, બે અથવા ત્રણને અને વધારેમાં વધારે સંખ્યાતને સદ્ભાવ હોય છે. આ કથનથી એ વાતનું પ્રતિપાદન થાય છે કે દેવમાં ક્રોધ, માન અને માયા કષાયના ઉદયવાળા
। ४यारे ४ य छे. तेथी मे वामां मा०यु छ , " स्यातसन्ति, स्यात् न सन्ति" ५२न्तु समायाना हेवामा सही समाव રહે છે, કારણ કે લેભકષાયના ઉદયવાળા ઘણા દેવ હોઈ શકે છે, તેથી જ सेवा सूत्र मायामा मान्य छ , “ संखेज्जा लोभकसायी पण्णत्ता" દેવમાં ભકષાયી સંખ્યાત હોય છે.” બાકીનું આ વિષયને લગતુ समस्त ४थन पूरित ४थन प्रमाणे १ सभा. “तिसु वि गमएसु संखे
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦