Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 608
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ० ४ सू० ५ लोकमध्यद्वारनिरूपणम् ५९३ 'कहि णं भंते ! उडलोगस्स आयाममझे पण्णत्ते? ' हे भदन्त ! कुत्र खलु स्थाने ऊर्ध्वलोकस्य आयाममध्यम्-दैर्घ्यमध्यभागः प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह-'गोयमा ! उपि सणकुमारमाहिंदाणं कप्पाणं हेट्टि बंभलोए कप्पे रिट्टविमाणे पत्थडे, एत्थ णं उड़्लोगस्स आयाममज्झे पण्णत्ते' हे गौतम ! उपरि सनत्कुमारमाहेन्द्रयोः कल्पयोः ऊर्ध्वमित्यर्थः, अधो ब्रह्मलोके कल्पे,ब्रह्मलोककल्पस्य अधस्तादित्यर्थः रिष्टविमाननाममतरमस्ति, अत्र खलु-रिष्टविमानपतरे, ऊर्ध्वलोकस्य, आयाममध्यं-देयमध्यभागः प्रज्ञप्तम् , तथा च मेरुमध्यस्थरुचकप्रदेशस्योपरि नवयोजनशतानि अतिक्रम्य ऊर्ध्वलोको व्यपदिश्यते, लोकान्तमेव यावत् स च सप्तरज्जवः किश्चिन्यूनास्तन्मध्यभागः सनत्कुमारमाहेन्द्रकल्पयोरूध्वं ब्रह्मलोककल्पस्य अधस्तात् रिष्टविमानप्रतरसमीपे भवतीतिभावः, गौतमः पृच्छति-'कहि णं में जो अवकाशान्तर है उस अवकाशान्तर का कुछ अधिक आधाभाग उल्लंघन करके आता है। ___ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा कहते हैं-'कहि णं भंते ! उडलोगस्स आयाममज्झे पण्णत्ते' हे भदन्त ! ऊर्ध्वलोक की लम्बाई का मध्यभाग कहां कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा ! उप्पि सणंकुणारमाहिंदाणं कप्पाणं हेडिं बंभलोए कप्पे रिद्वविमाणे पत्थडे, एत्थणं उडलोगस्स आयाममज्झे पण्णत्ते' हे गौतम ! सनत्कुमार और माहेन्द्र नामके जो कल्प हैं सो इन कल्पों के ऊपर और ब्रह्मलोककल्प के नीचे रिष्टविमान नामका प्रतर है। इसमें ही अवलोक की लम्बाई का मध्यभाग कहा गया है । तथा चमेरुमध्यस्थ रुचकप्रदेश के ऊपर नौ सौ योजन की ऊचाई के बाद ऊर्ध्वलोक गिना गया है। यह भी कुछ कम सात राजु है। इसका मध्यછે, તે અવકાશાન્તરના અર્ધા કરતા સહેજ વધારે ભાગને ઓળંગવાથી અલોકને મધ્યભાગ આવે છે. गौतम स्वामीना प्रश्न-"काहे णं भंते ! उलोगस्स आयाममज्झे पण्णत्ते" હે ભગવન્! ઉર્વકની લંબાઈને મધ્યભાગ કયાં કહ્યું છે? તેને ઉત્તર मापता महावीर प्रभु छ है-“गोयमा ! उप्पि सणंकुमारमाहिंदाणं कप्पाणं हेदि बंभलोए कप्पे रिट्रविमाणे पत्थडे, एत्थ ण उङ्कलोगस्स आयाममझे पण्णत्ते" હે ગૌતમ! સનસ્કુમાર અને મહેન્દ્ર નામનાં કલાની ઉપર અને બ્રહ્મલેક કલ્પની નીચે રિષ્ટવિમાન નામનું પ્રતર છે. તેમાં જ ઉદર્વકની લંબાઈને મધ્યભાગ છે. આ કથનને ભાવાર્થ આ પ્રમાણે છે–મેરુની મધ્યના ચક પ્રદેશથી ૯૦૦ જન ઊંચે ઉર્વિલક આવેલ છે. તેને વિસ્તાર સાત રાજ भ० ७५ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦

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