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ॐअहेमू
श्री अनंतनाथ स्वामिने नमः परमोपास्य आ.श्री विजय नेनि-विज्ञान- कस्तूरसूरिभ्यो नमः। पूज्यपाद श्रीमन्महोपाध्याय-श्री सकलचन्द्रजीगणिकृत पतष्ठाकल्प (अजनशलाकाविधि)
संशोधित पाठ तेमज परिशिष्टविधिओ सहित | शुभाशीर्दीता : प.पू. आ.श्री विजय चंद्रोदयसूरिजी महाराज. प्रेरणादाता: प.पू. आ. श्री विजय अशोकचंद्रसूरिजी महाराज. संपादक: मुनि श्री सोमचंद्रविजयगणि प्रकाशक: शेठ नेमचंद मेलापचंद झवेरी जनवाडी उपाश्रय ट्रस्ट-गोपीपुरा,सुरत.
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श्री अनंतनाथजी भगवाननुं देरासर प्रतिष्ठा सं. १९४७-जेठ सुद ६
शेठ नेमचन्द मेलापचन्द झवेरी जैन वाडी उपाश्रय ट्रस्ट - गोपीपुरा - सुरत
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अञ्जन प्र. कल्प
ॐ अहम्
श्री अनंतनाथ स्वामिने नमः । परमोपास्य आ. श्री विजय नेमि-विज्ञान-कस्तूरमरिभ्यो नम्। पूज्यपाद श्रीमन्महोपाध्याय श्री सकलचन्द्रजीगणी क्र
प्रतिष्ठाकल्प (अञ्जनशलाका विधि)
संशोधितपाठ तेमज परिशिष्ट विधि सहित ..
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥ २ ॥
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शुभाशीदत :- प. पू. आ. श्री विजय चंद्रोदयसूरिजी महाराज
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प्रेरणादाता :- प. पू. आ. श्री विजय अशोकचंद्रसूरिजी महाराज
संपादक
肉肉肉肉
प्रकाशक
5
:- मुनि श्री सोमचंद्र विजय गणि
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:- श्री नेमचंद मेलापचंद झवेरी जैन वाडी उपाश्रय ट्रस्ट - गोपीपुरा, सुरत
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॥ २ ॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥३॥
श्री नेमचंद मेलापचंद झवेरी जैन वाडी उपाश्रय ट्रस्ट गोपीपुरा, सुरत
श्री वीर सं. २५१२ प्रत : १५००
नेमि सं. ३७
1-1-1-1-1-1-1-1-1-4-4-+-+7-1-44
श्री नेमि - विज्ञान - कस्तूरसूरि ज्ञानमंदिर गोपीपुरा मेन रोड,
सुरत
10000061+01-1-1-1-4-4-1-5+7+1144444444-1-144-1-4-4-4-4-438
विक्रम सं. २०४२
छल-9646 -
॥ ३ ॥
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भजन
प्र. कल्प
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श्री नेमचंद मेलापचंद झवेरी जैन वाडी उपाश्रय ट्रस्ट
द्वारा प्रकाशित
प्रतिष्ठाकल्प ( अञ्जनशलाका विधि )
संशोधितus der परिशिष्ट विधि सहित
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मुद्रक : जीतु बी. शाह * जीगी प्रिन्टर्स, ३०५, महावीर दर्शन, कस्तुरबा क्रोस रोड नं. ५, बोरीवली ( इस्ट), मुंबई - ४०० ०६६
फोन नं. C/०. ३१७८१०
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श्रेष्ठी देवचन्द लालभाई जह्वेरी.
जन्म १९०९ वैक्रमाब्दे
कार्तिक शुक्लैकादश्याम् (देवदीपावली-सोमवासरे)
सूर्यपूरे.
AAAAAen
निर्याणम् १९६२ वैक्रमाब्दे
पौषकृष्णतृतीयायाम् (मकरसङ्क्रान्तिमन्दवासरे)
मुम्बय्याम्.
NO
The Late Sheth Devchand Lalbhai Javeri. Born 22nd Nov. 1852 A.D. Surat, Died 13th January 1906 A.D. Bombay.
1-37:-Copies 3000.
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सैद्धान्तिकतार्किकवैयाकरणचक्रवर्तिनः
पुण्यस्मरणाः
समस्त मुनिमण्डलागमवाचनादातार
आगमोद्धारका
आचार्यवर्ण्य १००८
श्रीमदानन्दसागरसूरीश्वरपादाः
N.S.P.
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आशीर्वचन
'श्री प्रतिष्ठाकस' ग्रन्थना संपादन प्रसंगे शुं लखg ? स्थापनानिक्षेपे, अरिहंत परमात्मानी त्रिकरण विशुद्धिथी करवामां आवतां विधि विधानो सर्वना श्रेय माटे बने छे.
तेवी श्रेयस्कर मार्गे गति करनारने मार्गदर्शकनी गरज सारनार आ ग्रन्थना संपादन निमित्ते गणि श्री सोमचंद्र विजयजीए जे प्रथम प्रयान कों ते प्रशस्य तो छे, परंतु ग्रन्थ संपादन माटे ग्रन्थनी शुद्धि-अशुद्धि के पाठ-पाठांतर मेळयधामा दत्तचित्त बनवू पडे छे. अने ते परिश्रमसाध्य होय छे.
हुं तो एक इच्छुछु के गणिवरश्री पोताना जीवनमां विधि ग्रन्थोना जाण बनवा साथे परमात्म भावमा तद्रूप बनवा पुरुषार्थ करे अने ते अनुभूतिथी अन्यने जाण करी परमात्म स्वरूप पामवानो एक अनुभवसिद्ध मार्ग चींचे. एज.
_ वि. चंद्रोदयमूरि ता. २१-३-८६ -पालीताणा.
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अंतरोद्गार
मारो वर्षांथी भावना हती के नाना बाळकने दीक्षा आपवी अने तेमने बधी रीते तैयार करवा जेथी शासनना अनेक कार्य करी शके. पू. गुरुभगवंतनी पूर्ण कृपादृष्टि आज जोवा मळी. परंतु आ तो तमारा माटे पहेलं पगथियु छे. इजी तमारी उंमर नानी छे, ज्ञान नो खजानो अबूट छे तो तमो विनम्रतापूर्वक ज्ञानध्यानमा आगळ वधो अने जुना तात्त्विक ग्रंथोना पुनरुद्धार साथे नवीन ग्रंप नीरचना करी पू. शासनसम्राटश्रोना समुदायतुं गौरव वधारवा पूर्वक तमारा आत्मा श्रेय करो ते शुभ भावना.
अशोकवि. ता. २२-३-८६ -कोसंवा
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वात्सल्यवारिधि प. पू. आ. श्री विजय
विज्ञान मूरिश्वरजी महाराज
शासन सम्राट प. पू. आ. श्री विजय
नेमिमूरिश्वरजी महाराज
धर्मराजा प. पू. आ. श्री विजय
कस्तूरसूरिश्वरजी महाराज
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पंचप्रस्थान समाराधक प. पू. आ. श्री विजय व्याख्यान वाचस्पति प. पू. आ. श्री विजय अशोकचन्द्रमूरिश्वरजी महाराज
चन्द्रोदयमरिश्वरजी महाराज
भद्रपरिणामी प. पू मुनि श्री प्रसन्नचन्द्रविजयजी महाराज
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अञ्जन
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national
पूज्य गुरुदेवश्रीना करकमळमां विनीतभावे समर्पण
जेमनी मीठी मधुरी शीतल छाया मारा संयमी जीवननी पायारूप बनी, जेमनी आंतर प्रेरणा- मारी ज्ञानपिपासाने जीवंत बनावी रही छे, जेमनी असीम कृपा जीवनमंत्र बनी रहेल छे. अजातशत्रु, प्राकृतविद्विशारद, धर्मराजा, दादागुरुदेव परमपूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय कस्तूरसूरीश्वरजी महाराजना पावन करकमळमां विनीत भावे समर्पण
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आ. श्री विजय अशोकचंद्रसूरि चरणरेणु सोमचंद्र वि.
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अञ्जन प्र.कल्प
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प्रकाशकीय अमारं परम सौभाग्य छे के जे विधि-विधान द्वारा जिनबिंबमां परमात्मभावनी स्थापना थाय छे ते विधिनुं निरूपण करतो महोपाध्यायजी श्री सकलचंद्रजी गणिकृत प्रतिष्ठाकल्प (अंजनशलाका विधि) ग्रंथ प्रकाशित करवानो लाभ अमोने प्राप्त थयो छे.
सुरत-शेठ श्री नेमचंद मेलापचंद झवेरी वाडी जैन उपाश्रये वि. सं. २०४१ नां चातुर्मास माटे अमोए शासनसमाहू, तपागच्छाधिपति प. पू. आ. श्री विजय नेमिसूरीश्वरजी म. सा. ना पट्ट. वात्सल्यवारिधि प. पू. आ. श्री विजय विज्ञानसूरीश्वरजी | म. सा. ना पट्ट. धर्मराजा प. पू. आ. श्री विजयकस्तूर पूरीश्वरजी म. सा. ना पट्टालंकार अने सुरतना पनोता पुत्ररत्न शासनप्रभावक प. पू. आ. श्री विजय चंद्रोदयसूरीश्वरजी महार जने पालीताणा मुकामे श्री१०८ जैनतीर्थदर्शनभवन-समवसरणमहामंदिरनी प्रतिष्ठा प्रसंगे विनंती करता तेओश्रीए पोताना गुरुबंधु शासनना अनेकविध मंगळप्रसंगोना मुहूर्तदाता, सरळ स्वभावी प. पू. आ. श्री
विजय अशोकचंद्रसूरीश्वरजी महाराजने, गणि श्री पुष्पचंद्र विजयजी म.; गणि श्री सोमचंद्र विजयजी म.; मुनि श्री शांतिचंद्र वि. म.; 6 मुनि श्री कैलासचंद्र वि. म.; मुनि श्री पुण्यचंद वि. म.; मुनि श्री श्रमणचंद्र वि. म.; मुनि श्री श्रीचंद्र वि. म.; मुनि श्री विश्वचंद्र वि. म.; मुनि श्री प्रशमचंद्र वि. म.; मुनि श्री शशोचंद्र वि. म. आदि परिवार सहित चातुर्मास मोकलो अमोने उपकृत कर्या.
पू. शासनसम्राट् श्रीना तथा स्वयं आगमोद्धारक पृ. आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी म. (पू. सागरजी म.) सहित तेमना तेमज विविधसमुदायना पुण्यवंतमहापुरुषोना पावनपगलाथी उपकृत थयेल सूर्यपुरनो धरती पू. आचार्यश्रोना आगमनथी तपोभूमि बनी गइ. आवाळ-गोपाळ सौना हैये कइक विशिष्ट तप करी लेवाना कोड प्रकट थवा लाग्या. तेना
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परिणामे सुरतनी तपोधर्म- अनुमोदनानी गौरवप्रद प्रणालिकानुसार अषाढ वद ५ थी तपस्वीओना ज्ञानपूजनना वरघोडानी शरूआत थइ ते पर्युषणा बाद पण चालु रही. तेमां य नाना वाळक-बालिकाओनी अट्ठाई आदि तपश्चर्या तो सौने अचरज पाडे तेवी थइ. रविवारीय सामुदायिक आराधनाओथी पण वातावरण तपोमय बनी गये.
सोनामां सुगंधनी जेम सुरतना अने कदाच जिनशासनना इतिहासमा छल्ला केटलाय वर्षांमां न बन्यो होय तेत्रो सामुदायिक सिद्धितपनी आराधनानो प्रसंग ऐतिहासिक बनी गयो कोइक धन्यवडीए सिद्धितपनी जाहेरात थतां कोइनी कल्पनामां पण न होय तेम पू. आ. श्री विजय अशोकचंद्रसूरि म.; गणि श्री सोमचंद्र वि. मुनि श्री श्रमणचंद्र वि. मुनि श्री विश्व चंद्र वि. साध्वी श्री यशस्विनीश्रीजी; साध्वी श्री जयप्रज्ञाश्रीजी; साधी श्री कल्पविदाश्रीजी साध्वी श्री प्रीतिवर्षाश्रीजी; साध्वी श्री दिव्यनंदिताश्रीजी साध्वी श्री अभिनंदिताश्रीजी; साध्वी श्री विश्वनंदिताश्रीजी; साध्वी श्री प्रशांतयशाश्रीजी, साध्वी श्री कल्पपूर्णाश्रीजी आदि सहित ९ थी ८० वर्षना ४०० आराधको उल्लासभर सामुदायिक आराधनामां जोडाया अने पू. धर्मराजा गुरुदेवनी पूर्णकृपा तेमज शासनदेवनी अगम्य सहाये सर्वनी आराधना निर्विध्ने पूर्णताने पामी साथ साथ सामुदायिक ४०० उपरांत अट्ठाईओ पण उत्साहवर्धक बनी.
सामुदायिक सिद्धितपना उद्यापन महोत्सवे तो रंग राख्यो. शुं जैन के शुं जैनेतर - जिनशासनना सारभूत तप त्यागनी मुक्तकंठे अनुमोदना करवा लाग्या. श्री जिनेन्द्र भक्ति महोत्सव, 'श्री सूरिसम्राट् धर्मराजा नगर' मां तमाम तपस्वीओनुं सामूहिक ज्ञानपूजन; सतत स्मृतिपथमां रहे तेवो तपस्वीओ सहितनी भव्यातिभव्य रथयात्रा; केटला वर्षो बाद थयेल सुरतमां वसता तमाम जैनोनी
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नवकारशी (संघजमण); तपस्वीओनु सामूहिक बहुमानादिक तपना उजमणानो प्रसंग यादगार बनी गयो.
विशेषमा सामूहिक ज्ञान पूजन प्रसंगे पूज्य आचार्य भगवंते सूचन कयु के आराधनानी कायमी स्मृति माटे परमात्मानी भक्ति साथे ज्ञानभक्ति थाय तेम विचारवु जोइए. श्रीसंघनी अनुकूळता-भावना मुजब--
(१) अंजनशलाका संबंधी महोपाध्यायजी श्री सकलचंद्रजी गणिकृत 'प्रतिष्ठाकल्प' (२) अभ्यासु जीवोने उपयोगी थाय तेवी श्री हेम नूतन लघु प्रक्रिया' अने (३) पू. धर्मराजा गुरुदेवे संगृहीत करेल 'श्री प्राकृत सुभाषित संग्रह।
आ त्रण ग्रन्थो प्रकाशित करवानी प्रेरणा करता अमोए तेओश्रीनी वात वधावी लइ आत्रणे पुस्तको शेठश्री नेमचंद मेलापचंद झवेरी, जैन बाडी उपाश्रय ट्रस्टना ज्ञानखातामांथी प्रकाशित करवानुं नक्की कयु. .
तेन। फळश्रुतिरूपे केटलाय वर्षोथी अप्राप्य बने ली आ प्रा प्राप्य बनी. ते माटेना मुद्रणनी तमाम व्यवस्था जीगी प्रीन्टर्सवाळा | श्री जीतुभाईए करी आपी. तेमनो अमे हार्दिक आभार मानीए छोए.
प्रांते आशा राखीए के अंजनशलाका-विधिनो आ अनुपम ग्रन्थ पूज्य आचार्यभगवंतादि मुनि भगवंतोने तेमज सुज्ञ विधिकारकोने विधिमा सविशेष उपयोगमां आवे जेथो अमारो आ प्रयास सफळताने पामे.
GROCEROSECRUECRECASS
शेठश्री नेमचंद मेलापचंद अवेरी जैन वाडी उपाश्रय ट्रस्टना ट्रस्टीओ
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आवकार.
- विद्वर्य पूज्य पंन्यासजी श्री शीलचंद्रविजयजीगणी महाराज
संविग्नशिरोमणि, वाचकपदप्रतिष्ठित, बहुश्रुत, महोपाध्याय श्री सकलचन्द्रजी गणीश्वरे पोताना पूर्वाचार्योए रचेला विविध प्रतिष्ठाकल्प - ग्रंथोने नजर सामे राखीने, ते आचार्योनी तथा ग्रंथोनी आम्नाय - गुरुगम मर्यादाने संपूर्णपणे वफादार रहीने, आशरे ४५० वर्षो अगाउ, तपागच्छाधिपति परम गुरुदेव श्रीमद् विजय दानसूरीश्वरजी महाराजना तवावधानमां, " श्री प्रतिष्ठाकल्प " नामे ग्रंथनुं संकलनरूप निर्माण कर्यु, ते पछी अद्यावधि श्री जिनेश्वर भगवंतोनां बिंबो तथा चैत्योनी प्राणप्रतिष्ठा-प्रतिष्ठाना लोकोत्तरविधानमां एक प्रकारनी व्यवस्था के एकवाक्यता सधाइ छे अने अखंडपणे चाली आवी छे. आ प्रतिष्ठाकल्पनी संकटना पछी, ज्यारे ज्यारे अंजनशलाका थइ त्यारे त्यारे, एक सरखां विधि-विधान ज थवा मांड्यां. पहेलां एवं हतुं के ज्यारे जेने जे आचार्यकृत "कल्प" प्रमाणे करवानुं मन थाय त्यारे ते तेना आधारे तेम करता हशे. परंतु श्रीसकलचन्द्रजी महाराजे आ "कल्प" रच्यो, त्यार पछी प्रायः, ज्यारे पण, ज्यां पण, जेणे पण, अंजनशलाकानुं विधान कर्यु - कराव्य, तेणे आ "कल्प" नो ज आधार लीधो छे; अने एना सबळ पुरावा लेखे, आ प्रकाशनना पाछळना परिशिष्टमां मूकायेलं, प्रतिष्ठा कल्पस्तवन " लइ शकाय आवी बोजी कृतिओ पण मळे छे, अने ते बधुं जोतां समजाय छे के छेल्लां सो-दोढसो वर्षोना गाळामां थली प्रतिष्ठाभोमां, आधारग्रंथ तरीके प्रस्तुत "कल्प' नो ज उपयोग थतो रह्यो छे.
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श्रीमान् सकलचन्द्रजी महाराज माटे एम कहेवाय छे के तेओं कपडवणजमां बिगजता हता त्यारे, आजे होळीचकलाना 'पंचना उपाश्रय' बाळा विस्तार तरोके जाणोता भागमा तेओ एकवार का उसग्ग धरीने ऊभा ह्या. काउसम्ग अभिग्रहवाको हतो, ने आजे शो अ भेग्रह करवो ?-एवो विचार को त्यां ज, तेमनी नजरे, पाछळना महोल्लामा (कुंभारवास होबाथी ) पसार थता गधेडाओ उपर पड़ी, तेमणे अभिग्रह कयों के गधेडो भूकवानो अवाज न संभळाय त्यां सुधी मारो का उग. तेओ तो काउसग्गमा स्थिर थइ गया; पण योगानुयोग एवो बन्यो के पेला सेंकडो गधेडाओना टोळाने कुंभार लोको काम अंगे बहार लइ जइ रह्या हता, ने तेओ तो तरत ज चाल्या गया ! हवे त्यां एक पण गधेडो रह्यो नहि. अने महाराजनी कसोटी एवी तो आकरी थइ के बराबर त्रण दिवस पछी ए टोळ पार्छ आव्यु ! पण प्रतज्ञा एटले प्रतिज्ञा ! एमां कोइ संकल्प-विकल्प केवो ? उपाध्य यजी महाराजे पूग त्रण रात दिवस काउसग्ग ध्याने ऊभा ऊमा पसार कर्या, अने ए समयगाळामां तेओए विशिष्ट शास्त्रीय संग-रागिणीमय " सत्तरभेदी पूजा" नी अलौकिक रचना करी. पोतानी ए रसमस्त अने भक्तिभरपूर रचनामां आ आखीये घटनानो निर्देश आपती एक पंक्ति तेओए गूंथी दीधी छे - "सकल मुनीसर काउसग्ग ध्याने"
अने आया प्रामाणिक, तपस्वी, भक्तिवंत, पवित्र पुरुषे सांस्तो अने निर्मेलो “प्रतिष्ठाकल्प" शासनमा, संघमां अने गच्छमां निर्विवाद स्थान पामे, तेमां शी नवाइ होय ! ___आ " प्रतिष्ठाकल्प" हजी थोडां वर्षो पहेलां सुधो तो आपणने हस्तलिखित प्रतिओना स्वरूपमा ज उपलब्ध हतो. सामान्य रीते, प्राण प्रतिष्ठान विधान श्रीआचार्यमहाराजोना ज हाथे करवान होवाथी, एमना सिवाय आ " कल्प" नो उपयोग बोजाओने माटे
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बहु आवश्यक नहोतो, वळी, अंजनशलाका पण जवले ज थी, अने ते थाय त्यारे पण त्यां श्रीगच्छपति आचार्य के श्री पूज्यनी उपस्थिति रहेतो, तेथी आ "कल्प" नी हस्तप्रतिभाथो ज काम सरी जतुं, वळो, बचमां तो एवो पण गाळो आवी गयो के अंजनशलाका ज थती न हती. अंजनशलाका करवी-कराबवी, ए लोढ़ाना चणा चाववा समुं दुष्कर काम मनावा मांडेलु, खास करीने पालीताणामां शंठ केशव जो नायकनी, शेठ नरशी वे शबजीनी तथा बाबुना देरासरनी अंजनशलाकाओ वस्वते जे अनुभवो थया, त्यार पछी तो अंजनशलाकानी प्रवृत्ति लगभग बंध थइ गइ. आ संजोगोमां अंजन-प्रतिष्ठाकल्पना प्रतर्नु मुद्रण तो संभवे ज शेर्नु ?
एक तो आ कारण. अने बोर्जु कारण ए के "प्रतिष्ठा कल्प" नी रचना पछीना सो वर्ष पछी, धीमे धीमे संविग्नपक्ष घटतो गयो, शिथिलवृत्ति वधती गइ अने ते कारणे ज्ञानाच्या समां घणी मंदता आवी. आथी मूळे शुद्ध अने साफ एवा “ कल्प" ना पाठमां पण क्या क क्यांक कोइ नानी मोटी अशुद्धि आबी गइ हो य एवी कल्पना थाय छे. एक तो तेनो उपयोग घट्यो, बीजं उपयोग करनारना भणलरनी अल्पता आवी, आथी आवी कोइ अशुद्धि प्रवेशे तो ते अशक्य नथी.
दायकाओ सुधी आ स्थिति प्रवां करी. एमां पूज्य गणिवर्य श्री मूलचंदजी महाराज वगेरे संवेगीशिरताज महापुरुषोनो त उदय थतां सवेगी शाखा अने तेमां ज्ञान भ्यासनी प्रक्रयाना विकास खूब थयो, परंतु विधि-विधानना, खास कीने अंजनशल काना क्षेत्रमा कोइनु लक्ष्य गयु नहि, अने ओछामा ओछां ५० वर्ष तो अंजनशलाका विनानां प्रायः बोत्या, एम कही शकाय.. ___ या बाबत परत्वे सौथी प्रथम लक्ष्य गयु प. पू. शासन सम्राट्, तपागच्छाधिपति, बालब्रह्मचारी, आचार्य महाराज श्रीविजयनेमिसूरीश्वरजी महाराजनुं तथा तेओना पट्टशिष्यो--प्रशिष्यो पूज्यपाद आ. श्रीविजयोदयसूरिजी म. तथा पूज्यपाद आ. श्रीविजयनन्दन
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URSERECCAHARASHTRA
| सूरिजी म. आदिनु. ज्ञान- उत्कृष्ट बळ एमनी पासे हतुं. ब्रह्मचर्यनां अणोशुद्ध पालनथी प्राप्त करेली सात्त्विकतानी अनन्य ताकात हती. जिनशासननी निष्प्राणप्राय बनेली रीतिओने पुनर्जीवन बक्षवाना ध्येयने सर्वथा तेओ समर्पित हता. एमणे कंडक जीर्ण-नष्टप्राय बनेलां तीथीनो पुनरुध्धार कर्यो. सुविहित साधुओ माटेनी लगभग भूलाइ चूकेली के दुष्कर बनेली योगोद्वहननी प्रणालिकानुं पुनः स्थापन कयु. साधुओमां नहिवत् बनेली संस्कृन-प्राकृतना तेमज सैद्धांतिक अध्ययननी परिपाटीनुं पुनरुत्थान कर्यु. साधुनी धर्मदेशना (व्याख्यान) नी | पद्धतिनुं आमूल नव संस्करण करीने आजनी देशनापद्धतिन बीजारोपण कयु. अने आवां अनेक यशस्वी कार्योनी माफक ज, आपणां देरासरोमां थतां के देरासरादिने लागतां धार्मिक विधि-विधानोनो पण पुनरुद्धार एमणे कों. प्राचीन आचार्योना कल्पोनो अनेक हस्तप्रति भो मेळवोने, विधि-विधाननां अनुष्ठानोनी तरेहतरेह नी अधिकृत सामग्रीओ प्राप्त करीने, नुं ऊडे अवगाहन-मनन--परिशीलन करवा द्वारा एक बाजु ते महापुरुषोए श्री सिद्धचक्रमहापूजन, शांतिस्नात्रादि विधि, बिंबप्रवेश-प्रतिष्ठादि विधि, नंद्यावर्त महापूजन, अर्हन्महापूजन इत्यादि शास्त्रीय अने पूर्वाचार्यों द्वारा मान्यता प्राप्त अनुष्टानोने सुसंकलित करीने प्रकाशमां मूक्या, अने सैकाओथी वीसरायेला ते परम पवित्र अनुष्ठानोनो पुनः प्रारंभ कराव्यो; तो बीजो बाजु, तदन वीसरायेली अंजनशलाका-प्राणप्रतिष्ठानी क्रियाने, तेना आधाररूप प्रस्तुत "प्रतिष्टाकल्प” ने तेमज " अंजनशलाका ए परम दुष्कर वस्तु छ, तेने करवानी-कराववानी ताकात आ काळमां कोइनी नथी" ए प्रकारनी, दायकाओथी लोकमानसमां घर करी गयेली फडकने के मान्यताने दूर करीने अंजनशलाकाना अनुष्ठानने-पुनः सुग्रथित करी दोधां अने तेनो स्वयं स्वहस्ते अमल पण शरु करी दीधो.
सौ प्रथम वि. सं. १९८३ मां प. पू. शासन सम्राटे, चाणस्मा नगरमां नानकडा संक्षिप्त स्वरूपमां, एक अंजनशलाका करी. मारी
READANEERIECCASEAST
॥१२॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥१३॥
ધ
समज प्रमाणे आ एक प्रयोग - अखतरो हतो, जेनाथो "अंजनशलाका करवी एटले मोतने नोतरखुं " एवी बीकमां तथ्य केटलं, तेनो क्यास मळी रहे. आ प्रयोग निर्विघ्न सफल थतां, सं. १९८४ मां खंभातना श्री स्तंभन पार्श्वनाथनी प्रतिष्ठाना अवसरे तेओश्रीए विशेष जाहेर रूपमा अंजनशलाका करी.
स्वयं प्रबळ सत्वशाली अने नैष्ठिक ब्रह्मचारी महापुरुष हता ने साथै पू. उदयसूरीश्वरजी महाराज जेवा समर्थ ज्ञाता अने योगी जेवा अनुभवसंपन्न शिष्य हता ने विधिकारक श्रावको पण ते कालना भद्रिक, पवित्र अने सात्विक श्रावको हता, एटले शा खामी रहे ? ने आवी परिपूर्णता होय त्यां विधि पण केवो दिव्य, विशुद्ध अने मंगलकारी बनी रहे । ने तो त्यां निष्फळता के विघ्नो संभवे पण केम ?
आपछी सं. १९८९ मां श्रीकदम्बगिरितीर्थमां ते ओश्रीए, नीचेना श्रीमहावीर स्वामी जिनालयनी प्रतिष्ठाना तीर्थोद्वारना महान अवसरे, खूब विशाळ फलक पर अंजनशलाका करी - करावी. ए बखते पचीसेक हजारनी मेदनी त्यां एकत्र मळेही वळी, लोकोमां फफडाट पण बहु हतो, अने विरोधोयो तरकथी फेलाववामां पण आवेलो के पालीताणानी अंजनशलाकाभो वखते मरकी फाटी नीकळेला ने घणी जानहानि थइ हती, ते पछी कदी कोइए साहस कर्यु नथी; पण नेमिमूरिजी आ वखते करावे छे, ते मोढुं साहस छे, सावधान रहेजो; न कराववी जोइए व. व. वातो घणी प्रचारवामां आवी हती. छतां शासन सम्राट्ना ब्रह्मतेज परना विश्वासे ते प्रसंगे पचीस हजार लोक भेगु थयुं ज. मोटा महाराज अने तेमना समर्थ शिष्य-प्रशिष्योए तथा समर्थ क्रियाकारकोए निर्भय बनीने, संपूर्ण शुद्धि तथा विधि सावत्रीने अलौकिक उल्लासथी अंजनशलाका करी - करावी अने छेल्ला दिवसे कहे छे के वावाझोडानो तथा
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अञ्जन प्र.कल्प
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लोकोने झाडाऊलटीनो उपद्रव थयो पण खरो, परंतु, आवं कांइ पण बनवानी शक्यताओ मनमा राखीने ज सावधान रहेला शासनसम्राटश्री अने तेमना शिष्य प्रशिष्य पूज्योनी बेलडीना न वर्णवी शकाय तेवा यौगिक सामर्थ्यथी अने मंत्रसाधनाथी ते विघ्नो लेश पण जफा पहोंचाडया विना समाप्त थइ गया; कोइ जानहानि तो झुं, पण सामान्य झाडा ऊलटीथी आगळ कोइनी तबियत पण लथडी, के || वावाझोडाने लीधे कांइ नुकसान पण न थयु. आ संपूर्ण घटना शी रीते बनो ने एमाथी केम बची गया-ते नजरे जोनार-अनुभवनार | व्यक्तिओ आजे य हयात छे.
कहेवार्नु ए छे के आ रीते पूज्य शासनसम्राट गुरुभगवंतनी अदम्य हिम्मतने परिणाम अंजनशलाकानां लोकोत्तर सत्त्वशाली 18 विधानने पुनर्जीवन मळ्यु, अने दायकाओथी तेना विशे व्यापेली बीक एकझाटके टळी गइ. अने आ पछी तो मात्र शासनसम्राट् गुरु महाराजे ज नहि परंतु अन्यान्य आचार्य महाराजोए पण अंजनशलाका करावया मांडी, अने सौनां कायों विना विध्ने पार पडवा लाग्यां.
आम छतां, ए अंजनशलाकाओनुं प्रमाण बहु मर्यादित हतुं, अने लोको पण समाजमां विशेष पूज्यभाव प्राप्त करनार पूज्यो पासे ज ते करावधानो आग्रह सेवता. परंतु समय बीततो गयो, तेम आ विधानतुं प्रमाण पण वधतुं गयुं ने देरासरो तथा जिनबिंबोनी आवश्यकता पण वधती ज गइ. आ परिस्थितिमा प्रतिष्ठाकल्पनी हस्तप्रतिओनी टांच बर्तावा लागी, अने बळी सर्वत्र विधानमा एकवाकयता जाळववानुं पण मुश्केल बने तेवू थयु. माथी , केटलांक वर्षो अगाउ, बे क्रिया कारक श्रावक गृहस्थो-पं. श्री छबीलदास के. संघवी तथा श्री सोमचंद ह. शाह छाणीवाळाए मळीने, पूज्यपाद आ. श्री विजयोदयसरिजी म. आदि विशिष्ट
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अञ्जन प्र.कल्प
पूज्योनी अनुमति तथा मार्गदर्शन मेळवबापूर्वक अने समाज ना धुरीण क्रिया कारक श्रावकोनी साथे विचार विनिमय करवापूर्वक प्रस्तुत
" प्रतिष्ठा कल्प"नो एक अधिकृत बाचना तैयार करी, तेनो दिवसबार कम गोठवीने मुद्रित करी. ए प्रकाशन पछी तो अंजनशलाकार्नु प्रमाण खूब वच्यु. छेल्लां थोडांक वर्षोना गाळामां, एक वर्षमा एक आचार्यदेवना हाथे, सरेराश एक अंजनशलाकाथी लइने पाछळनां पांच-सात के दश वर्षथी तो लाभग एकेकना हस्ते त्रा-चार अंनन धानो थतां संभळ य छे. अः संयोगोमा क्रियाकारोनी खेंच पडी, तो ते पण हवे मोटा प्रमाणमां उपलब्ध छ; अने प्रानी खेंच पडतां उपर्युक्त प्रकाशन- यथावत् पुनर्मुद्रण पण ताजेतरमा थयुं छे, जे पण आजे तो अलन्यप्राय छे.
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जिज्ञासु अने अभ्यासोओना मनमा केटला वख तथा एक विचार प्रवर्ततो रह्यो छे के प्रगट थयेली प्रतमा हजी पण केटलीका क्षतिओ निवारीने वधु सुग्रथित संकलन, प्रतना मुद्रण पछी थयेला व्यवहारु अनुभवोना आधारे, थर्बु जरूरी गणाय. अलबत्त, मूळभूत रीते कोइ ज फेरफार के सुधारा-उमेरा न कराय, ने नथी ज थया; छता, केट लीक व्याकरणनो अने छंदशाबनी अशुद्धिओ सरळनाथी निवारी शमाय तेवी हती; उपरांत, प्रतिष्ठा कल्पनी, महान आचार्य देवोनी नजरतले पसार श्ये ली ने तेमना हाथे शोधायेली हस्तलिखित प्रति मोमां केटलुक वधु शुद्ध अने समुचित हत;-आ बधांनो उपयोग करीने नवेसरथी आ प्रत तैयार करवामां आवे, अने तेमां मूळमां नहि, किंतु टिप्पणीमां के परिशिष्टोमां अंजनविधानमा प्रयोजाती केटलीक बाबतोनो समावेश, सूचनो साथे करवामां आवे तो एक सुसंकलित अने अधिकृत प्रकाशन थाय.
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मारा जेवा केलाको पैकी एक मुनिराज श्री सोमचन्द्रविजयजी पण खरा. तेमना पूज्य वे गुरुदेवोना सीधा मार्गदर्शन ठळ तेमणे वारंवार अंजनविधानोमां सक्रिय भाग तथा रस लीधो, अने ते वखते पूज्यो साथै तथा कुशळ विधिकारक गृहस्थ साना परामर्शने परिणामे, तेमणे वडीलोना आदेश अने मार्गदर्शन अनुसार, उपरना विचारने अमलमां मूकवानो निर्णय करी, ते माटे पुरुषार्थ आदर्यो. तेमना वे अढी वर्षना अविरत - सखत पुरुषार्थनुं परिणाम प्रस्तुत प्रकाशन छे, एम कहे जोइए. आ काम माटे तेमणे संस्कृत पंडितो, कुशळ विधिकारक सद्गृहस्थो, विधिविधान विशेषज्ञ पूज्य आचार्यादि मुनिराजो वगेरे सौनो पत्र द्वारा तथा प्रत्यक्ष संपर्क कर्यो छे, सौना अभिप्रायो अने मार्गदर्शन मेळव्यां छे, अनेक प्राचीननवीन प्रतनुं सूक्ष्म अवगाहन कर्यु छे अने ते बधाथी वधीने पोताना पूज्य गुरुवर्योना शुभाशीर्वादनुं बळ मेळव्युं छे. 'अने आधी ज ओ आ प्रकाशनने - संपादन ने खूब सारुं कही शकाय तेवुं बनावी शक्या छे.
आ प्रकाशनथी अंजनशलाकाना विधानमां खूब ज सरळता अने विशेष शुद्धि आवशे, अशुद्धि अने अविधिथी बच एज आ प्रकाशननुं लक्ष्य होवाथी, आना आधारे विधान करवा द्वारा विधि अने शुद्धि सचवावाथी आराधक आत्माओ माटे विशेष लाभ कारण बनशे.
मुनिश्री सोमचन्द्रविजयजी विशे कहेतुं जोइए के तेमणे नानी उमरे दीक्षा लइने, गुरुजनोनी कृपानी छायामां • ज्ञानाध्ययन करीने तेने पचान्युं छे अने तेना परिपाकरूप विनय, सौम्यता अने सरळता-आ गुणो सारा प्रमाणमां विकसाच्या छे, मने तेमना आ गुणो प्रत्ये विशेष लगाव छे अने आ गुणो हजीय विकसे तेम मारी अपेक्षा छे. तेमने
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अञ्जन प्र. कल्प
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माटे विधि-विधानना आ शिरमोर समान ग्रंथनुं संपादन ए जीवननुं प्रथम छतां उत्तम साहस छे, अने तेमां तेओ सारा सफल बन्या छे, एम मने जगायुं छे, तेमणे आ विषयां ऊं खेडाण कर्यु आदर्यु छे, तो आ तके हुं इच्छुके महापूजन अने नंद्यावर्तमहापूजन जेवां मंगलमय विधानोनुं पण, आजनी परिस्थितिने अनुकूल पडे तेधुं अने सुचारु संस्करण तेओ तैयार करे.
साधु अमारा समुदायनी शोभा छे, आवा साधुओ द्वारा समुदाय, शासननी - संघनी सेवा करवानी सरस तक साधी छे, ए पण मारा- अमारा सौ माटे गौरवनी बात छे. शासनदेव तेमनामां संघनी अने समुदायनी आवी सेवा करशनुं सामर्थ्य पूरो- प्रेरो तेवी प्रार्थना साथे .
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शीलचन्द्र विजय ता. २५-२-८६
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प्र. कल्प
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अंतरनी वात
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संविग्न शिरोमणि महोपाध्याय श्रीमत्सकलचंद्रजी गणिकृत 'प्रतिष्ठाकल्प' सौ प्रथम आठ दायका पूर्वे श्री भीमसी माणेकजीए छपाव्यो. पछी वि. सं. २०१२मां क्रियाविधिज्ञ श्रीयुत सोमचंदभाई हरगोविंददास छाणीवाळा तथा पंडितवर्य श्रीयुत छबीलदास केसरीचंद संघवीए पूर्वना महापुरुषोनी निश्रामां थयेल अंजनशलाका विधिना बहोळा अनुभव ज्ञाननाआधारे संयुक्त प्रयासथी व्यवस्थित गोठवी प्रताकारे प्रकाशित करी. त्यारबाद पंदर वर्ष पछी वि. सं. २०२७मां श्रीयुत सोमचंदभाईए केटला सुधारा साथे फरोथी द्वितीयावृत्ति प्रकाशित करी. जोगानुजोग बराबर बीजा पंदर वर्ष बाद एज प्रतिष्ठा कल्पनी प्रत संशोधित पाठ सहित फरी प्रकाशित थह रही छे.
छतां य विधि विधान संबंधी रसना अभावे के राखी ते ते विधि योग्य जरूरो पाना शोधवा
अंजनशलाकानुं विधान छेल्लां केटलांय वर्षोथी सविशेष थवा लाग्युं छे ऊंडाणपूर्वकना ज्ञानना अभावे विधि-विधान वखते जुदी जुदी प्रतो साथै पडे छे. विविध विधिकारोना विभिन्न अभिप्रायोने कारणे क्यारेक मुंझवणभरी स्थिति ऊभी थाय छे.
तेथी शत्रुंजय डेम, केशरियाजी नगर- पालीताणा, भावनगर, साबरमती वगेरे अंजनशलाका - प्रतिष्ठा प्रसंगे संघकौशल्याधार परम पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजयनंदनसूरीश्वरजी महाराज साहेब, धर्मराजा दादा गुरुदेव परमपूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद्
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MIRROR
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विजय कस्तूरसूरीश्वरजी महाराज साहेब; विद्वदूल्लभ परमपूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय धर्मधुरंधरसूरीश्वरजी महाराज साहेब आदिना सान्निध्यमां अंजनशलाका संबंधी तेओश्रीना बहोळा अनुभव-ज्ञानखजानामांथो तेमज देओश्रीनी प्रतोमांनी टिप्पण के नोधपोथीमांनी विशिष्ट नोंधोना आधारे ज, विविध प्रतोनो आश्रय न लेता प्रतिक्रमण विधिनी जेम सरळताथी एक पछी एक विधान थया ज करे तेवो एकाद प्रत तैयार करवा जिनशासनशणगार परमपूज्यपाद् आचार्यदेव श्रीमद् विजय | चंद्रोदयसूरीश्वरजी महाराज साहेब तथा सरलस्वभावी परमपूज्यपाद् गुरुदेवश्री आचार्यदेव श्रीमद् विजय अशोकचंद्रसूरीश्वरजी महाराज साहेब मुलुंड, चोपाटी, जोगेश्वरी, वालकेश्वर, नागेश्वर, बारामती, बाबुलमाथ-मुंबई, सुरत-दिर रोड़, पाल ताणा-साँडेराव, आरीसा भवन, समवसरण के पीपरलानी अंजनशलाका प्रसंगे वारंवार प्रेरणा करता रह्या.
तेओश्रोनी शुभाशीर्वाद समन्वित आज्ञानुसार पालीताणा वि. सं. २०४० ना चातुर्मापमा पूज्य गुरुदेवश्रीनी साथी साथ अमोए तेमन मुनि श्री कैलासचंद्र वि; मुनि श्री निर्मलचंद्र वि; मुनि श्री प्रशमचंद्र वि. तथा मुनि श्री विबुधचंद्र वि. आदिए मा सक्षमणनी तपश्चर्या करी. ते समयनी शांतिनो सदुपयोग करी अंजनशलाका विधि संबंधी संपूर्ण सामग्री संगृहीत करी अने वि. सं. २०४१मा सुरतमा पूज्य गुरुदेवश्री साथे सामुदायिक सिद्धितपना समये संगृहत सामग्रंन संशोधन-संकलन पूज्य वडीलोनी सूचना-सलाहना आधारे करवामां आव्यु.
विधि-विधानना महत्त्वपूर्ण आ ग्रंथनुं संशोधन-संकलन अनुभवीना अनुभव-मार्गदर्शन वगर अशक्य ज गणाय. तेथी जेमनी पावननिश्रामां अनेक अंजनशलाकामहोत्सव थया छे तेवा प. पू. आ. श्री विजय चंद्रोदय सूरीश्वरजी महाराज तथा विद्वद्वर्य
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प. पू. आ. श्री विजय हेमचंद्रसूरीश्वरजी महाराजनुं जरूरी मार्गदर्शन, पू. गुरुदेव आ. श्री विजय अशोकचंद्रसूरीश्वरजी महाराजनी अंतरनी मनोकामना, विविध विषयक तलस्पर्शी ज्ञान–अनुभव संप्राप्त करेल छतां विनयादिगुणगणालंकृत, सौजन्यशील विर्य पू. पंन्यासजी श्री शीलचंद्रविजयजी गणी महाराजे आ प्रत संबंधी संपूर्णमेटनुं सूक्ष्मावलोकन करी नानी मोटी दरे बबतोमा सौहार्दभावे लागण पूर्वक यथार्थ रीते आपे सलाह - सूचन; विद्वन्मतल्लिका माननीय पंडितवर्य श्री चंद्रशेखरजी झानुं पाठांतरोमां स्पष्ट अर्थघटन यह शके तेवुं निरीक्षण विधि संबंधी नानामां नानी हकीक्त पण कदो न वीसरी जता पू. शासना आदि ज्ञानी गुरुभगवंतोनी निश्रामां तैयार थयेल श्री केशुभाई भोजकनुं अनुभव वैशिष्ट्य आ सर्व सहायक चळना आधारे ज प्रतनुं संपादन शाच बन्युं छे.
पाठान्तरोना निरीक्षण माटे श्री जैन नंद पुस्तकालय, श्री मोहनलालजी ज्ञानभंडार, श्री नेमि - विज्ञान - कस्तूरवरि ज्ञान मंदिर, श्री देववर - आसुर गच्छ तथा श्री हुकममुनिजी ज्ञानभंडार आदि सुरतना ग्रंथागारोना व्यवस्थापकोए हस्तलिखित प्रतt aarat सहृदयता बनावी तेओने पण धन्यवाद घटे छे.
प. पू. आचार्यदेव श्री विजय चंद्रोदयसूरीश्वरजी महाराजे 'आशीर्वचन' मोकली तेमज पू. पंन्यासजी श्री शीलचंद्र विजयजी गणी महाराजे पंडे। श्रीरंगविजयजी वेरचित श्रीपार्श्वनाथपंचकल्याणकगर्भित - अंजनशलाकाना दशे दिवसना विधानने वर्णत्र - 'श्री प्रतिष्ठाकल्पस्तवन' तथा 'आवकार' नुं लखाण मोकली उत्साह द्विगुणित करी उपकृत करेल छे.
अमारा पूज्य गुरुदेव आचार्यदेव श्री विजय अशोकचंद्र सूरीश्वरजी महाराजनी एवी प्रचळ भावना सरी के मारा हस्तक
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श्रीजिनेश्वर भगवंत संबंधी ज कोइक ग्रंथ प्रथम तैयार थाय अने ते ग्रंथ पण कोइ एक संघ के ट्रस्ट द्वारा ज संपूर्ण प्रकाशित थाय. तदनुसार आ प्रत तैयार थता तेना प्रकाशन संबंधो सघळी आर्थिक जबाबदारी शेठश्री नेमचंद मेलापचंद झवेरी जैन वाडी उपाश्रय ट्रस्ट-सुरतना ट्रस्टीओए सुरतमा थयेल सामुदायिक ४०० सिद्धितपनी स्मृतिमा स्वीकारी लेता ते ट्रस्टना ज्ञान द्रव्यमाथी आ प्रत प्रकाशित थइ छे.
मुद्रण संबंधी संपूर्ण व्यवस्था जीगी प्रीन्टसवाला श्री जीतुभाई बी. शाहे खूब ज काळजीपूर्वक करी छे. अफ संशोधन-परिशिष्ट तेमज शुद्धिपत्रक तैयार करवामां सहवर्ती मुनिभगवंतनो सहयोग मददरूप बन्यो छे.
प्रांते प्रतिष्ठा कल्पनी प्रतना प्रकाशन द्वारा कंइक श्रुतभक्ति करवानो जीवननो आ प्रथम ज प्रसंग छे. तेथी छद्मस्थसुलभ प्रमाद के अल्पानुभवने कारणे भूल तो रहेवानी ज, छतां य सुज्ञ पुरुषो ते क्षम्य गणी अंजनशलाकाना विधि-विधान प्रसंगे आ प्रत सविशेष उपयोगमा लइ अमारा आ प्रयासने सार्थक करशो तेवी मनोकामना... प्रत संबंधो लखाणमां जिनाज्ञाविरुद्ध कंइ पण उखायुं होय तो 'मिच्छामि दुक्कडम्.'
मा. श्री विजय अशोकचंद्रसूरि पादरेणु
सोमचंद्र वि.
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प्रस्तुत प्रत अंगे कंइक प्र. कल्प
श्री जिनबिंबमां स्थापना निक्षेपे अहंभाव-आर्हन्यनी स्थापना करवानुं परमोच्च कोटिन विधान छ-"अंजनशलाका-प्राणप्रतिष्ठा." ॥२२॥ 18| ए विधान अंतरंगभावविशुद्धिथी वासित हृदय न बने त्यां सुधी शकय नथी. भावविशुद्धि उत्पादक बळ छे परमात्मा प्रत्येनो संपूर्ण
समर्पणभाव. ए कंह क अंशे प्रकटे छे · विशुद्ध विधि-विधान' द्वारा. काळने अनुसार अंजनशलाकाना विधानमा संक्षेप के विस्तार थतो रह्यो छे. छतां य सूक्ष्मदृष्टिथी अवगाहन करता जणाय छे के तेना प्राणभूत हार्दमां क्यारे पण फरक पड्यो नथ'.
पूर्वना काळमां ज्यारे आवा विधान थता त्यारे ते समये विद्यमान, व्यक्ति-विशेषतया विशिष्ट एवा पू. श्री हरिभद्रसूरिकृत, श्री | हेमचंद्रसूरिकृत, बादिवेताल श्री शांतिचंद्रसूरिकृत, श्री तिलकाचार्यकृत, श्री मानतुंगसूरिकन आदि विविध प्रतिष्ठाकल्पमांथी यथारुचि एकाद स्वीकारी ते रीते विधान करावता. पाछळथी सुबोधा (चान्द्रीय) समाचारो प्रमाणे संक्षिप्त अंजनशलाका विधिनो पण उपयोग थतो. तेथी ते सर्वनो समन्वय जरूरी हतो. ते भगीरथ कार्य सच्चारित्रचूडामण, गोतार्थशिरोमणि महोपाध्यायजी श्रीमत्सकलचंद्रजी गणिवरे करी पूर्वाचार्योनी कृतिना आधारे एक सळंग 'प्रतिष्ठाकल्प'नी भेट धरी. आज त्रण त्रण सैका पसार थवा छतां य एज ग्रंथ सर्वमान्य रहेता सर्वत्र विधानैकय जळवाइ रह्यं छे...
ते पूज्य महोपाध्यायश्रीनी उपस्थितिनों समय के सालनो चोकप्त उल्लेख मळतो नथ'. प्रस्तुन ग्रंथ कया समयमा भने स्थळमां बन्यो तेनी पण बोकस हकीकत मळो आवतो नथी. परंतु तेभोश्रीनी केटनी कृतिओ हस्तलिखित प्रतोमांधी मळे छे. तेना आधारे
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अञ्जन प्र.कल्प
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सत्तरमा सेकाना मध्यमां थया होय तेम संभव छे. अवर पादशाह प्रतिबोध क नगद्गुरु पू. आ. श्री हीरसूरिजी महाराजना शिष्य हता. ते पोश्रीनी (१) मृगावती आख्यान, (२) वासुपूज्य जिन-पुण्यप्रकाश रास; (३) सत्तरभेदी पूजा, सत्तरभेद जिनपूजा प्रबंध (४) बारभावना; (५) साधुकल्पलता-स धुवंदना (६) ही विजयसूरिंदेशना-सूरवेली; (७) मुनिशिक्षा स्वाध्याय; (८) सकलचंद्रकृत स्तबनो; (९) वीरजिन हम चडी-वर्धपान जिनवेली, (१०) वीर हुंडी स्तवन (११) गणधर स्तवन आदि कृतिओ मळे छे.
प्रस्तुत ग्रंथ पण अनुपम भावथी प्रथित छे तेथी अनेक विधिज्ञ अनुभवी साथे विचार-विनिमय करी ग्रंथकारना विशुद्ध आशयने नजरमा लइ मूळग्रंथ यथावत् राखी ज्या ज्या जे कंह पण लेबा जेवू ल.ग्युं ते सर्व एकत्रित करी ते ते स्थाने टिप्पण के परिशिष्टमां ते वातनी नोंध लोधी छे.
उर्मिप्रधान आ ग्रंथ होवाने कारणे संस्कृत भाषानो नियम कचारेक चूकातो हशे छतां य भाषानी दृष्टिए फेरफार के शुद्धि करवा जता ग्रंथकारनी मूळभावना ज विकृत बनी जवा संभव जणाता अर्थसंगत पाठान्तरना आश्रय सिवाय श्लोको पण यथावत् राखेल छे. जेम पाना नं. ३० मा क्षेत्रपालपूजननां श्लोकमां-त्रोj चरण-तैलाहिजन्मगुडचन्दनपुष्पधूपैः तेमज गुरुचन्दन० बन्ने पाठ मळे छे. परंतु 'गुरुचन्दन' पाठ योग्य लागता तेज राखे छे.
विवि समये द्विधा-मूंशवण ऊभी न थाय ते दृष्टिए शिष्टविधिज्ञोनी सलाह अनुसार अनेक पाठ-पाठान्तर जोया बाद जे पाठ समुचित जणायो ते ज राखेल छे. पाठान्तर मूकवामां आव्यो रथी. जेम पाना नं. १०मा 'करोति शान्ति जलदेवताऽसौ' अने 'करोतु' एम बन्ने पाठ मळे छे परंतु अर्थसंगत ' करोतु' पाठ राखेल छे.
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मंत्रोमां पण शुद्धपाठनी साथोसाथ आगळ-पाछळनो संबंध, विभक्ति, लिंग, वचन, क्रियापद के काळनी दृष्टिए समुचित पाठ राखेल छे. जेम-पाना नं. ६ मा वस्त्र मंत्र ॐ ही आं क्रौ नमः' पाठ मुद्रितमा छे पण हस्तलिखितमा 'ॐ आँ हो को नमः' मळे छे तेथी ते राखेल छे.
(२) आगळ-पाछळ संबंधः-पाना नं. २०मां-नंद्यावर्तपूजनना त्रीजा वलयमा सोळ विद्यादेवीना स्थापनमंत्रो मुद्रितमा 'ॐ नमो रोहिण्यै सां मां स्वाहा' एम संस्कृतमा छे परंतु पूजनमंत्रो प्राकृतमा छे तेमज हस्तलिखितमां ते प्राकृतमा ज छे तेथी 'ॐ नमो रोहिण ए सां मां स्वाहा' ए रीते प्राकृतमा राखेल छे.
(३) विभक्ति-पाना नं. ११मा 'ॐ ही नमो ज्ञान-दर्शन चारित्रान् हः सर्वाङ्गं रक्ष रक्ष स्वाहा' पाठ आवे छे परंतु नमः-ना योगमा चतुर्थी आवे ते दृष्टिए ' . चारित्रेभ्यः' पाठ गखेल छे.
(४) लिंगः-पाना नं. १२मां ॐ हाँ ही हूँ है है। हः अ-सि-आ-उ सा-सम्यग्ज्ञानदर्शनचारित्रान् धर्म करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः 'पाठ आवे छे परंतु लिंगनी दृष्टिए ' . चारित्राणि धर्मः' आ पाठ राखेल छे. | (५) वचन-पाना नं. १४मां ॐ ही दिक्पालाय नमः' पाठ आवे छे परंतु वचननी दृष्टिए 'दिक्पालेभ्यः ' पाठ राखेल छे.
(६) काळा-पाना नं. ८२ छ पनदिक्कुमारिका महोत्सवमां-'ॐ ही अष्टावधोलोकवासिन्यो देव्यो योजनमण्डलं सूतिकागृह शोधयन्ति -अशोधयन् स्वाहा' पाठ मळे छे परंतु ' शोधयन्तु ' बाबर लागे छे तेथी ते ज राखेल छे.
आ रीते विशिष्ट स्थानोमां सूचवेल सामान्य फेरफार के पाठान्तर स्वीकार, मात्र अर्थसंगतिनी दृष्टिए ज करेल छे. ते माटे है
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श्री मोहनलालजीनो ज्ञानभंडार, श्री जैनानंद पुस्तकालय, श्री ने. वि. क. सूरि ज्ञानमंदिर तथा तेना हस्तक रहेल श्री देवसूर-आणसूर अने हुकममुनिजी ज्ञानभंडारनी आ ज प्रतिष्ठा कल्पनी विविध प्रतोनो आश्रय लेवा साथै प. पू. आ. श्री विजयउदयसूरीश्वरजी महाराज तथा प. पू. आ. श्री विजयनंदनसूरीश्वरजी महाराजनी नजर हेठळ नवो लखायेल तथा धर्मराजा प. पू. आ. श्री कस्तूरसूरीश्वरजी महाराजे टिप्पणी आदिथी विशेषत करेल प्रतने मुख्य आधारभूत बनावी छे. ते सिवाय मुद्रितमां श्र छबीलदासभ इ संघवी तथा श्री सोमचंदभाइ छाणांवाळा द्वारा प्रकाशित प्रतिष्ठा कल्पनी बन्ने आवृत्ति; आचारदिनकर; निर्माणकलिकाः कल्याणक लिका; शान्तिस्नात्रादि विधि समुच्चय भा. १-२ (मा. श्री विजयअमृतसूरि म. वाळी), अर्हत्सूजन, वीशस्थानक पूजन, कल्पसूत्र सुबोधिका बगैरे प्रतोनो आधार परिशिष्टादिकमां लेवामां आव्यो छे.
वर्तमानमा थता विधानानुसार जे कंइ नोंध, टिप्पण के परिशिष्टमां लीधुं छे. तेनी विगत कंक आवी छे.
पहेला दिवसनी विधिमा - जळयात्रानुं विधान संक्षेपथी बतात्र्युं छे. परंतु शांतिस्नात्रादिविधि समुच्चय भा-१ मांथी विस्तारथी कराय ते अपेक्षित छे. तेमज हाल आ विधान कुंभस्थापनाना आगळा दिवसे कराय छे.
'मंगलोच्चारं पठित्वा मङ्गलकलशं मूलमंत्रेण स्थापनम् । ततो वीड्र्वािप्यते मंडपवंशेषु सरावेषु च अष्टप्रमाणं कार्यम् ' मंगलोच्चार पूर्वकमूलमंत्रथी कलश स्थापको अने जवारा ८ वाववा - आटलं ज लखाण मूळप्रतमां आवे छे परंतु हाल कुंभस्थापना दीपक स्थापना जवारारोपण करावाय छे अने पूर्वमुद्रित प्रतमां पण ते लील छे तेथी शां. वि. स. भा-१ मांथी लहू ते विधि चालु क्रममां राखी,
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अञ्जन प्र. कल्प
॥२६॥
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कुंभ - दीपने वधाववान लोक तथा दीपक उपर वासक्षेप करता बोलवानो मंत्र टिप्पणमा लीथा छे. (जुओ पाना नं. १६ - १७)
मांगलिक दृष्टिए केटली जग्याए टोकाचारथी मंडपमुहूर्त-मांडवामुहूर्त निमित्ते माणेकस्थंभारोपणनी तेमज जिनालयना मुख्य बारणे तोरण बांधवानी विधि थाय छे। तेनी विधि परिकरपूजनमांथी लइ 'परि. १-अ-आ-' ( पाना नं. १७१-१७२)मां आपी छे.
वीजा दिवसनी विधिमा - श्री लघुनन्द्यावर्तपूजनविधि मूळप्रतमां आठ वलयानुसारी बनावी छे. पण जो दस वलयवाळो ६४ इन्द्र-इन्द्राणीना नामोवाळी पट्ट होय तो ते रीतना पूजननी विधि-शां. वि. स. भा-२ मांथी लइ परि. १ - इ - ( पाना नं. १७२ ) मां आपीछे छल्ले देवबंदन चार थोयने स्थाने आठ थोयनुं राख्युं छे. नूतनजनालयमा विधान होय तो आचारदिनकरानुसार श्री बृहन्नयावर्तपूजन कराव उचित है.
श्रीजा दिवसनी विधिमा :- दशदिक्पाल पूजनमा इन्द्रादि दिक्पालानां मंत्रो दरेक हस्तलिखित- मुद्रित कल्पमा जुदा जुदा आवे छे तेथी प्रचलित शां. वि. स. भा-१ प्रमाणे लीघा छे. (पाना नं. ३१) आ विधानमा ग्रह तथा दिक्पालनी माळा गणाय तो सारं तेथी शां. वि. स. भा-१ गांधी ग्रह- दिक्पालना मंत्रो वर्ण सहित कौंसमां जणान्या छे अने ग्रह - दिक्पालनुं पूजन 'चन्दनं समर्पयामि' आदि मंत्री करावाय छे ते (पाना नं. ४१ नी) टिप्पणमां आपेल छे. ग्रह - दिक्पालनुं आह्वान तथा बलिप्रदान शां. वि. स. भा-१ प्रमाणे करावाय छे. क्यारेक संपूर्ण विधान ज ते प्रत प्रमाणे विस्तारथी करावाय छे. सोळ विद्यादेवी पूजन मूळमां संक्षेपथी बतान्युं छे. आचारदिनकर - अर्हत्पूजनादिकमां आवता सोळे विद्यादेवीना लोका बोली विस्तारथी पूजन कर होय तो ते परि. १ - ई (पाना नं. १८१) मां आपेछ छे.
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२७॥
Jain Education Inti
अष्टमंगलपूजन मूळमां बतान्युं नथी परंतु ग्रह - दिक्पाल पूजन साथे ते करावाय छे तेथी शां. वि. स. भा-१ प्रमाणे ( पाना नं. ५० मां ) चालु क्रममां ज लीघेल छे.
चोथा दिवसनी विधियां - श्रीसिद्धचक्रपूजन समये नवे पदोनो जाप थाय ते इष्ट छे तेथी कौंसमां ते सूचवेल छे. अने दर्शनादि चार पदोना स्थापना श्लोक मूळमां नथी. पण अ चारदिनकरमां आवता ते श्लोको बोली शकाय तेथी ते परि. १-उ(पाना नं. १८६) मां आपेल छे.
पांचमा दिवसनी विधिमा -- श्रीवीशस्थानकपूजन समये मूळमां बतावेल मंत्रोनी साथे वीशस्थानक पूजनादिमां बतावेल वीशे पदोने लगता श्लोको बोलवा होय अने ते ते पदोनों जाप कराववो होय तो ते परि. १-ऊ (पाना नं. १८७) मां आपल छे.
छडा दिवसनी विधियां: च्यवनकल्याणकप्रसंगे- ईन्द्रना आभूषणो ते ते लोक कथनपूर्वक मंत्री धारण करावता तेमज इन्द्राणीने आभूषणो पहेरावता शिष्टपुरुषो पाथी प्राप्त थयेल मंत्री बोलवा होय तो परि. १ - ऋ (पाना नं. १९३) मां आपेल छे. अने भगवंतना मात-पितानी विधि लोकव्यवहारथी करावाय छे ते परि. १ - ऋ ( पाना नं. १९४) मां आपो छे. देववंदन विधिमां च्यवन कल्याणक चैत्यवंदन तथा स्ववन केटलीक हस्तलिखित प्रतमां मळे छे. ते परि. १-ल (पाना नं. १९५) मां आपेल छे. arati fart fafaमां :-- जन्मकल्याणक प्रसंगे मेरु पर्वत उपर २५० अभिषेक - श्रीजिनजन्माभिषेक महोत्सव विस्तारथी कराववो होय तो परि. १- ( पाना नं. ९९६) मां आपेल छे. देववंदन विधिमा श्री जिनजन्माभिषेकस्तवन केटलीक प्रतोमा मले छे ते परि. १ - ए (पाना नं. २०५) मां आपेल छे..
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भञ्जन
प्र. कल्प
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Jain Education I
आठमा दिवसनी विधिमांः-अढार अभिषेक समये ८ अभिषेक बाद मुद्रात्रय द्वारा जिनाहान मूळमां संक्षेपथी बतान्युं छे-अदार अभिषेक वृहदविधि प्रमाणे करवुं होय तो परि. १ - ऐ ( पाना नं. २०६ ) मां; १५ अभिषेक बाद चंद्र-सूर्यदर्शन करावाय छे. तेना मंत्रो परि. १ - ओ (पाना नं. २०७) मां अने १८ अभिषेक बाद पंचामृत तथा शुद्धजलनो अभिषेक कराववो होय तो परि. १-औ ( पाना नं. २०८) मां आपेल छे.
नाम स्थापन समये करवानी विशिष्ट विधि केटलीक प्रतिष्ठाकल्पनी प्रतमां मळे छे. ते परि. १-अं. (पाना नं. २१० ) मां आपेल छे.
नवमा दिवसनी विधिमांः-- राज्याभिषेक समये राज्यतिलकनी विधि क्यारे करावाय छे ते मंत्र ( पाना नं. १९८ नी) टिप्पणमां, अने नवलोकांतिक देवोना नाम तथा विनंती परि. १-अ (पाना नं. २११) मां अपेल छे.
दीक्षा कल्याणक प्रसंगे - भाववृद्धिमां कारणभूत- कुलमहत्तराना हितोपदेशगर्भित-आशीर्वचन अलंकार उतारता बोलव नो श्लोक, सर्वविरति सूत्र अने देववंदन करता बोली शकाय ते दीक्षा कल्याणकनुं चैत्यवंदन क्रमसर परि. १ - क. स्व ग घ (पाना नं. २१२ २१३।२१४) मां आपेल हे.
दशमा दिवसनी विधिमांः-- अधिवासना- अंजननुं सर्वोच्च विधान छे. ते रात्रिए करवानुं होय छे. तेथो कंइपण शरतचूक थाय नहि अने एकदम सरळताथी विधि क्रमसर व्यवस्थित थइ शके ते प्रमाणे अनुभवी शिष्टपुरुषोना अनुभवानुसार गोठववा प्रयत्न कर्यो छे. मूळविधिमा जे कंदपण संक्षेपथो सूचन हतुं ते सर्व विस्तारथी कम नंबर आपका पूर्वक स्पष्ट करेल छे.
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२९॥
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त्यार बाद समवसरण स्थापन, निर्वाण कल्याणक, विसर्जनादि विधि यथावत् राखेल छे तेमज प्राचीन प्रतिष्ठाविधि; जिनबिंबपरिकरप्रतिष्ठा विधि; कळशा रोपण तथा ध्वजारोपण विधि मुद्रित प्रत प्रमाणे आपल छे.
परिशिष्ट-- १मां मूधिमा पूरक बनती विधियो आपो छे. परिशिष्ट - २मां-ग्रह- दिक्पाल - अष्टमंगल स्थापना - रचनादिः परि-३मां मंडप - वेदिकानुं प्राचीन स्वरूप परि-४ मां विविध मुद्राओनुं स्वरूप; परि ५ मां जळयात्राना उपकरण परि ६ मां अंजनशलाका विधिमा उपयोगी उपकरण; परि-७ मां अढार अभिषेकमां खास उपयोगी औषधिओ अने परि-८ मां ३६० करियाणानी यादी बतावी छे.
परिशिष्ट - ९ मां पू. पं. श्री शीलचंद्रविजयजी गणि महाराजे हस्तप्रति उपरथी उतारो करी मोकली आपे पं. श्रीरंगविजयजी महाराजे - वि-सं. १८७९ नो सालमां भरुच मुकामे सवाइचंद खुशालचंदे श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवंतना प्रतिमाजी भरावी तेनो अंजनशलाका करावी ते प्रसंगे दसे दिवसनी विधि प्रतिदिन जे रीते थइ तेनुं स्पष्ट विवरण करतु-१९ ढालनुं श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ पंचकल्याणक गर्भित प्रतिष्ठाकल्पनुं स्तवन आपेज छे.
प्रमाद के मुद्रण दोषने कारणे जे कंह अशुद्धि रही जवा पामी छे ते शुद्धिपत्रकमां आपेल छे. तो अवश्य शुद्धिपत्रक वांचीने ज प्रतनो उपयोग करवो.
आ प्रमाणे विधिज्ञ-अनुभववंतना सलाह- सूचनानुसार नत्र परिशिष्ट सहित प्रतिष्टकल्पनी आ प्रत तैयार थइ छे. छतांय कंक क्षति रही गइ होय तो ते अमारा प्रमादने लीधे हशे कंइ पण सलाह- सूचन जरूरी लागे तो सुज़रुरुषोने करवा विनंती छे.
आ प्रत तैयार करवामां सहायक पूज्य वडील गुरुभगवंतो- मुनिभगवंतोने पुनः स्मरण करवा पूर्वक आ प्रत अंजनविधानमां सविशेष उपयोगमां आवे तेवी अभ्यर्थना । - आ. श्री विजय अशोकचंद्रसूरि पादरेणु- सोमचंद्र.
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अञ्जन प्र. कल्प
॥३०॥
PILGREICHEAS KOREA
पाना नं. ३१-३८
नैवेद्य
प्रतिष्ठाकल्प तथा ९ परिशिष्ट सहित अंजनशलाकाना दशे दिवसनी विधिनी
अनुक्रमणिका पाना नं.
पाना नं. प्रकाशकीय
जवारारोपणविधि
१७ प्रत्येकनो माळा आवकार
द्वितीयदिनविधिअंतरनी बात नंद्यावर्तनुं आलेखन
सफेद धजा चढावबी. प्रस्तुत प्रत अंगे कंडक नंद्यावर्तपूजनविधि
भैरव पूजन अष्टस्तुति देववंदन
सोळविद्यादेवी आह्वान प्रतिष्ठा विधिपद्यानुवाद तृतीयदिनविधि
, , पूजन प्रथमदिनविधि
क्षेत्रपालपूजन
३० । ग्रह आह्वान-बलिबाकुळा जळयात्रा विधि
६ दिक्पाल आह्वान, बलिबाकुळा ३१ । प्रत्येक ग्रह- आह्वान कुंभस्थापनविधि
१५ । प्रत्येकनु आह्वान ३१-३८ प्रत्येक ग्रहनु पूजन दीपकस्थापनविधि १६ प्रत्ये कर्नु पूजन
३१-३८ । पये नी माळा
४१-४७ ४१-४७ ४१-१७
॥३०॥
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a
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अञ्जन प्र.कल्प
ग्रहशांतिस्तोत्र नैवेद्य अष्टमंगलकुसुमांजलि प्रत्येकनु पूजन
॥३१॥
नैवेद्य
ACCASSES
अष्टमंगल स्थापनमंत्र शांतिजिनकलश चतुर्थदिनविधिसिद्धचक्रपूजनविधि क्षेत्रपालादिकपूजन शासनदेवीपूजन इन्द्रपूजा भूतबलिमंत्र बलि-बाकुळाप्रदान
४७ | अंगन्यास
करन्यास ५० नवेपदोने कुसुमांजलि
नवेपदोनुं पूजन नवेपदोनी माळा नवेपदनी स्तुति तथा पूजन देववंदन शांतिजिनकलश पंचमदिनविधिवीशस्थानकपूजन विधि
क्षेत्रपालादिक पूजन ५३ शांतिघोषणा ५४ मंगलपाठ ५४ । बीशेपदोना पूजन
५४ देववंदन
५५ आदि जिनकलश ५६-६२ षष्ठदिनविधि५६-६२ च्यवनकल्याणकविधि ५६-६२ क्षेत्रपालादिकपूजन ६२ इन्द्राभूषण मंत्रण
इन्द्र स्थापना ६३ इन्द्राणीस्थापना
भाता-पितानी स्थापना ६४ वेदिका उपर स्वस्तिक
अंगन्यास ६४ करन्यास ६५ गुरुपूजन ६६ धर्माचार्यपूजन
२२८८२-८८२२८८२२०८२-२२१
॥३१॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥३२॥
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सिंहासनादिक पूजन विवोपरि वासक्षेप वासक्षेपयुतदूधथी सर्वागविलेपन
सदुग्ध कलशस्थापन
कलशमां विबस्थापन
बिंच उपर वासक्षेप
मातृकान्यास
बिंब उपर वासक्षेप
कर्गोपदेश मंत्र
वासक्षेप
आशीर्वचन
चौद स्वप्नदर्शन
देववंदन
पार्श्वजिन कलश
onal
७३ | सप्तम दिनविधि७३ जन्मकल्याणकविधि
७३ आत्मरक्षा
७३ शुचिकरण
७३
सकलीकरण
७४ बलिबाकुळा
७४
७६
वित्रोपरि कुसुमांजलि
विघ्नोवासन
७७ जलाच्छोटन
७८ कवचकरण
दिग्बंधन
सप्तधान्यवृष्टि
अंबिकानी पूजा
जिनजन्मविधान
७७
20
-
७८
७८
७९
७९
७९
७९ जवनीमाला
जलदर्शन
८०
८०
८०
८०
८०
दिक्कुमारिका महोत्सव
केलीधररचना
रक्षापोटली बंधन
अरीठानीमालास्थापन
८०
८१
८१
८१
22
इन्द्राणी महोत्सव
प्रभुजीने तिलक
शक्र सिंहासन कंपन
सुघोषा घंटा वादन
मेरु पर्वत उपर गमन
मेरु पर्वत उपर २५० अभिषेक
सौधर्मेन्द्रनो अभिषेक
अष्ट प्रकारी पूजा
८२
८५
८५
८६
८६
८६
८६
८६
८७
८७
८७
९०
९१
९१
॥३२॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥३३॥
११२ ११२
११३
९३
ESPEISESTIERELOROSOSLARARASI
अष्ट मंगल आलेखन अष्ट स्तु ते देवबंदन माता पासे जिनबिंबस्थापन तथा ३२ कोड सुवर्ण वृष्टि अष्टमदिनविधिप्रियंवदा-पुत्र जन्मवधामणा अहार अभिषेक हिरण्योदकस्नात्र पंचरतचूर्णस्नात्र कषायचूर्ण स्नात्र मंगलमृत्तिकास्नात्र सदोषधिस्नात्र प्रथम ष्टकवर्गस्नात्र द्वितीयाष्टकवर्गस्नात्र
९१ सर्वोष धस्नात्र ९२ जिनाह्वानविधि
पंचामृतस्नात्र सुगंधौषधिस्नात्र पुष्पस्नान गंधस्नात्र वासस्नात्र चंदनदुग्धस्नात्र केशर-साकरस्नात्र चंद-सूर्यदर्शन तीर्थोदकस्नात्र कपूरस्नात्र
केशर-चंदन-पुष्पस्नात्र ९८ कुसुमांजलि
९९ । अष्टस्तुतिदेववंदन
नामस्थापनविधि पत्रदान,केशननाठांटणा
वस्त्राभरणपहेरावचा १०१ नैवेद्यपूजन १०२ बलबाकुळा १०३ नवमदिनविधि१०४ लेखशालाकरणविधि १०५ गोळ-धाणा लेखिनी१०५ मषोभाजन प्रदान ०६ विवाहमहोत्सवविधि ०७ साहीप्रदान
| फूल-धूप-वास मूकवा १०८ मुद्रात्रयदर्शन
-AAAAAAAAAAABA
cccc
॥३३॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥ ३४ ॥
Jain Education I
अधिवासना मंत्र
मीठळ बांधवा
पंचांग स्पर्शविधि
जिनाहान विधि
आसनमुद्रा
वास-कपूगदिथी पूजन ( वासक्षेप )
चंदनादिथी पूजन
दर्शवावस्त्र ढांकवा
नद श्रीफळ मूकवा
विविध फळादि मूकवा
फूलेकुं चढाव
पोखणा करवा
भारती- मंगलदीवो
११४
११५ चिबोना हाथ उपर विलेपन
११५ नवग्रहोने बलि-बाट
११५
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11
"
33
27
17
प्रियंगु - कपूर-बरास भने गोरोचनथी
"
खीरा दिनो थाळ मूकवो चोरी बांधवी
चोरी बांधवी
मंडपम प्रभुजीने स्थापना सुवर्णकलश मूवी
घी - गोळ सहित चार मंगळ
दीवा स्थापना
बाट आदिनी थाळ मूकवी
धान्य- जल मूकवा
चार नाना घड़ा मूकवा
वालीनां कांकणा करवा
"
"
""
"
""
""
११६
११६
११६
११६
घडा उपर जवाराना शरावला मूकवा ११६
घडाने ग्रीवासूत्र बांध
११६
११७
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चैत्यवंदन - शक्रस्तव
चंदन - वासादिसहित-
कसुंचीवस्त्र मुख उपर ढांक सूरिमंत्रसहितवासक्षेप
व दूर करj.
सोपारी आदि हाथमां मूकवा.
वार्जित्र - धवलमंगल
षोडशांश होम करवो टीको कराववो.
वाभूषण पहेराववा.
पांच जातना २५ लाडवा मूकवा
मेवो मूकवो.
११७
११७
११७
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॥३४॥
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अखन प्र. कल्प
॥३५॥
राज्याभिषेकविधि राज्यतिलकविधि नालोकांतिकदेबोनी विनंती दीक्षाकल्याणकविधि कुलमहत्तराहितोपदेश दीक्षास्तान सर्वालं कारमोचन पंचमुष्टिलोच. सर्वविरतिस्वीकार देवदूष्यवस्त्रनुं स्थापन अष्टस्तु त-देववंदन जिनस्वागत-धारणा | दशमदिनविधि
अधिवासनाविधि दिप लपूजन
११८
प्रहपूजन शांतिबलिमन्त्र बलि-बाकुळ प्रक्षेप देववंदन कसुंबी बस्त्र ढांक. बज्रपंजर आत्मरक्षा शुचिकरण सकलीकरण मुद्रासहित अधिवासना मंत्रोच्चार.
सुमित्रसहितवासक्षेत्र १२३ १२३ । कसुबीवनापनयन
१२४ | अक्षरन्यास
घीनु' पात्र मूकवु'.
परमेष्ठिमुद्राथी जिनाह्वान १२६ अधिष्ठायकदेव-देवी आह्वान
अधिष्ठायकदेव-देवी स्थापन
,,,,, सन्निहितकरण १ देववंदन क्षमापना अंजनविधि सुख डादि मूकवा
चिंबनु स्थिरीकरण १३१ अंजननी शलाका मन्त्रबानो मन्त्र
अंजन मन्त्रवानो मन्त्र अंजनकरण
AUGSUIRIGIERLIGARRIGARRIAK
१३१
धूप
॥३५॥
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अञ्जन प्र.कल्प
20
स्नपन
१३९
SCRECIPESARDAROGRAMMAbe
आरीसो बताववो
१३५ | पोखणा करवा सूरिमंत्रसहित वासक्षेप
फुलवासनी वृष्टि जमणा काने मंत्र न्यास
धूपोत्क्षेप , ,, सुखडादि लगाडवु. देववंदन चक्रमुद्राथी सर्वांगस्पर्श
निर्वाणकल्याणकविधिदहीनु पात्र बतावq. धूप करवो.
नव अंगे पूजन पांच मुद्रा बतावबी.
१०८ अभिषेक मंत्रन्यास
भूतबलिमंत्र वासधूप
बलिप्रक्षेप केवलज्ञानकल्याणकमहोत्सव विधि फूलसहितबलिप्रक्षेप पद्ममुद्राथी समवसरणमा स्थापन १३७ बिंबोपरि कुसुमांजलि वासक्षेप
जूनी पूजा दूर करवी. ३६० करियाणानो पडो मूकवो. , नवी पूजा करवी
१३७ । नैवेद्य मूकवा
उतारण पूर्वक कपूर-घी देववंदन.
अखंड चोखा मंगलपाठ साथे उछाळवा १४३ १३८ धर्मदेशना
तंबोलदान फलढौकन चैत्यवंदन मीठो लाडवो मूकवो. १० प्रकारना नैवेद्य मूकवा. नंद्यावर्तविसर्जन प्रतिष्ठादेवनुं विसर्जन
सर्वदेवताओगें विसर्जन | शांतिधारा
AAAAAAAEKESAECEAE
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000
॥३६॥
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अञ्जन
प्र.कल्प
॥३७॥
कंकणमोचन बिबप्रतिष्ठाविधि सकलीकरणादिविधि संक्षिप्तप्रतिष्ठाविधि जिनविपरिकरप्रतिष्ठा कलशारोपणविधि ध्वजारोपणविधि ध्वजादंड-शिवा-धजामंत्र ध्वजा तथा दंडनु माप चोत्रीसो यंत्र अष्टमंगलना श्लोको परिशिष्ट-१ परि १-म माणे कस्थंभारोपण वेधि
१४६ परि १-आ १४७ तोरण बांधता बोलवानो मंत्र १४९ । परि १-इ १५० :लघुनन्द्यावर्तपूजन विधि
| (दस वलयोवाळी) १६३ नन्द्यावर्त-वलयोनी स्थापना
,, पूजन विधि १६६ | परि १-ई १६७ | सोळविद्यादेवीपूजनश्लोक १६८ परि १-3
ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप पदपूजन श्लोक
परि १-3 १७१ वीशस्थानकपदपूनन श्लोक
परि ११७२ यज्ञोपवीतादि धारण करवाना मंत्रो १९३
परि १-ऋ १७२ मात-पितानी स्थापनानी विशिष्ट विधि १९४
परि १-लू १७३ च्यवनकल्याणकचैत्यवंदन तथा स्तवन १८१
| परि १-लू बृहत्स्नात्रविधि परि १-ए
जिनजन्माभिषेकस्तवन १८६ परि १-ऐ
जिनाबानबृहविधि
परि १-ओ १८७ | चंद्र-सूर्यदर्शनमंत्र
REGLERUPATOLOGICOS COSTA
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अञ्जन प्र. कल्प
॥३८॥
Jain Education I
परि १-औ
पंचामृत अभिषेक
परि १- अं.
नामस्थापन विधि
परि १- अ लोकांतिकदेवोनी विनंती
परि १-क कुल महत्तराहितोपदेश
परि १ - ख अलंकारावतारणलीक
परि १-ग
सर्वविरतिसूत्र
परि १-६ दीक्षा कल्याणक चैत्यवंदन
२०८
२१०
ग्रहरचना
२११ परि २ क
२१२
२१२
परिशिष्ट-२
परि २-अ
दिक्पालरचना
परि २
२१३
अष्टमंगलरचना
परि २-ड
दिक्पाल उपकरणादि
परे २-३
ग्रहोना आकार - उपकरण परिशिष्ट - ३
२१४ मंडप - वेदिकानुं माप
W
२१५
२१५
२१५
२१६
| परिशिष्ट-४
मुद्रा
परिशिष्ट-५
जलयात्रा उपकरण
परिशिष्ट- ६
अजनशलाका-प्रतिष्ठा उपकरण परिशिष्ट-७
अदार अभिषेक विशेष औषधि
परिशिष्ट-८
३६० करियाणानी यादी परिशिष्ट - ९
२१७ प्रतिष्ठाकल्पस्तवन
२२०
२१८ | शुद्धिपत्रक
२२८
२२९
२३७
२३८
२४५
जिन माता-पिता नामादि कोष्टक २८३
२८७
॥३८॥
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વનકલ્યાણક
अञ्जन प्र.कल्प
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॥३९॥
॥३९॥
ચૌદ સ્વમદર્શન
જન્મ કલ્યાણક
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દીક્ષા કલ્યાણક
अञ्जन प्र.कल्प
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॥४
॥
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॥४०॥
કેવળજ્ઞાન પ્રાપ્તિ
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥ १ ॥
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ॐ || नमो जिणाणं ॥ श्रीवरपार्श्वनाथाय नमोनमः
श्री अनंतनाथ स्वामिने नमोनमः ॥ अनन्तलब्धिनिधान श्री गौतमगणधरेभ्यो नमोनमः ॥ परमोपास्य श्रीविजयनेमि - विज्ञान - कस्तूर-चंद्रोदयसूरिभ्यो नमः || पूज्यपाद श्रीमन्महोपाध्याय - श्री सकलचन्द्रजीगणिकृत
प्रतिष्ठाकल्प - (अज्ञ्जनशलाकाविधि )
संशोधितपाठ तेमज परिशिष्ट विधि सहित
॥ १ ॥
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अञ्जन प्र. करप
॥२॥
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मांगलिक :
प्रणम्य श्रीमहावीरं, लब्धसामग्रीसंयुताम् ।
जिनबिम्बस्य प्रतिष्ठापूजां वक्ष्ये विधानतः ॥ १ ॥ श्री महावीरस्वामी परमात्माने नमस्कार करीने प्राप्त थयेलो सामग्री सहित श्री जिनबिंबनी प्रतिष्ठापूजाने विधिपूर्वक कहीश. प्रतिष्ठा करनार श्रावकनुं लक्षण :
विनीत, बुद्धिमान् , प्रीतिवाळो, न्यायोपार्जित धनवाळो, चारित्रशील, द्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावनो ख्याल राखनारो, माया-ममता रहित, शुद्ध मनवालो, श्रद्धालु श्रावक त्रैलोक्यपूज्य जिनविबनी प्रतिष्ठा करवानी योग्यतावाळो छे. ॥ २ ॥३॥ प्रतिष्ठा करावनार आचार्यन लक्षण :
दर्शन-ज्ञान-चारित्र संपन्न, निष्परिग्रही, प्राज्ञ, प्रश्न-उत्तर-जाणनार, उपशमयुक्त, महा प्रभावक आचार्य प्रतिष्ठा कराववानी योग्यता धरावे छे.॥४॥
जे चारित्रशील माणसे न्यायोपार्जित स्वद्रव्यथी मोक्षना ध्येयथी जिनप्रतिमा करावेल छे ते महानुभाव देव-देवेन्द्रो
॥२॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥३॥
है अने नरेन्द्रोथी पूजित तीर्थंकरपदने भोगवे छे; तेमज तेणे जिनेश्वरनी आज्ञा मानवापूर्वक पोतानो जन्म सार्थक करी का पोताना कुळने उज्ज्वल कयु छे. ॥ ५॥
जे माणस वीतराग परमात्मानी प्रतिमा करावे छे ते परलोकमां सुखकारक धर्मरत्न प्राप्त करे छे. ॥ ६॥ ७ ॥
जे माणस ऋषभदेवादि वर्तमान चोवीशीना कोई पण तीर्थकर परमात्मानी अंगुठा मात्र प्रमाणनी पण प्रतिमा भरावे छे, ते लावाकाळ सुधी ऊंचा प्रकारनां स्वर्गसुख भोगवी मोक्ष सुख मेळवे छे. ॥ ८ ॥ | मल्लिनाथ, नेमिनाथ अने महावीर स्वामी केवळ वैराग्य प्रेरक होबाथी चैत्यमा स्थापवा पण घरमा स्थापन करेला शुभोत्पादक नथी. ॥९॥ ___ साक्षी पाठः मल्लि-नेमि-वीरा, जिणभवणे सावएण पुज्जाई।
___ इगवीसं तित्थयरा, संतिगरा पूइया वंदे (गेहे) ॥१०॥ धर्म-कर्मना मर्मना जाणनाराओए मोक्षसुखमां कारण भूत, दर्शन-ज्ञान-चारित्रना निश्चय रूप अने शुक्लध्यान रूप | अग्निथी कर्मकाष्ठने बाळी नांखनार सर्व जिनेन्द्रोनां प्रतिष्ठा पूर्वक अभिषेक वगेरे तमाम कार्यों महोत्सव सहित करवा ते अभिषेकादि कार्यों बे प्रकारे छे--१-नित्य अने २-नैमित्तिक ॥ ११ ॥१२॥ १३ ॥
जिनेश्वरोतुं नित्यस्नात्र लोकोने परलोकमां हितकर छे अने नैमित्तिकस्नात्र आ लोक अने परलोकमां मुख
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भजन
HP आपनार के. ॥१४॥ प्र. कल्प मंडपर्नु स्वरुप :
निर्मळ, विस्तीर्ण अने श्रेष्ठ वेदिकायुक्त तोरणवाळो, लटकती फूलनी माळाओवाळो, चार द्वारवाळो, विविध वाजिंत्रोना शब्दोथी भरपूर अने मंगळगीतोथी युक्त मंडप कराववो. ॥ १५ ॥ १६ ॥
मंडपर्ने माप निर्वाण कलिकामांथी जोई लेवू. (परिशिष्ट नं. ३ मां आपेल छे.) . चार खुणावाला त्रण हाथना मंडपमा वेदिका करी स्नात्र माटे श्रीजिनेश्वरनी प्रतिमानी स्थापना करवी. ॥ १७॥ दशे दिशाओमां दिकपालो तथा आदित्यादि नव ग्रहो कल्पवा. ॥ १८ ॥ खूणाओमा चार वेदिका छत्र सिंहासन युक्त (कल्पी) करावी इन्द्र संबंधी सर्व कार्य करवु. ॥ १९ ॥ निर्मळ अने शुद्ध प्रतिमा विधिपूर्वक लावीने महोत्सवपूर्वक इन्द्रपणुं कल्पवू. ॥ २० ॥
पछी प्रतिमानी उत्तम जातिनां सुगंधी पत्र-पुष्प-जळथी पूजा करवी; ते प्रतिमा सन्मुख विशुद्धिने माटे मूळमंत्रनो उच्चारण पूर्वक १०८ बार जाप करवो. ॥ २१ ॥ २२ ॥
मंत्र :-"ॐ अहं नमो अरिहंताणं; ॐ अहं नमो सयंसंबुद्धाणं, ॐ अहं नमो पारगयाणं ॥"
परी तेनी बहार पूर्वादि दिशाओमां अनुक्रमे प्रसिद्ध-१ जया, २ अजिता, ३ विजया अने ४ अपराजिता नामनी विद्याओ तेमज शासनदेवी, यक्ष, शक्र अने मंगळनी स्थापना करवी. ॥ २३ ॥
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॥४॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
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२
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त्या वादळ स्वापीने" शांति घोषणा " करतां स्वस्तिक आलेखवो. पछी साक्षात् मंत्रोच्चार पूर्वक पुष्पांजलि करवी. तथा जिनेश्वर प्रभु तेमज सर्वदेवोने तैयार करवा, पछी १०८ मुद्रानी किंमतना कंकोल, पुष्प, कपूर, अगर अ चंदनी श्रीजिनेश्वर प्रभुना विने स्नान कराव. पछी गीत वार्जित्र करवा. पछी जिनेश्वर परमात्माना अतिशयो याद करवा पूर्वक तीर्थळी स्नान कर. पछी प्रदक्षिणा - पूजा अने देववंदन करी बिंबने वासक्षेप करवो अने शलाका (सळी ) थी अंजन कर. पछी भक्तिपूर्वक ध्वज, चामर, छत्र वगेरे धरवां पछी सर्व अंगे स्पर्श करी उत्तम नैवेद्य धरखां. आ रीते श्री अरिहंत भगवंती पूजा करी सिद्ध महर्षिओ अने श्रावकोने शांति-तुष्टि- पुष्टि आशिष आपवी. ॥२४ थी ३० ॥ पछी मंत्रेला सर्व विसर्जन करी वित्र प्रतिष्ठा करी गुरु शांतिपाठ बोले. ॥३१ ॥ इति प्रतिष्ठाविधिपद्यभाषानुवाद | मां पां वैधृत, व्यतिपात वि. छोडी देवा पूर्वक उत्तममुहूर्त जो.
त्यार बाद भूमि शोधन नीचे प्रमाणे करवु :
१०८ हाथ प्रमाणनुं " मंगळवर " कर. पछी वरमां तेमज जिनालयमां सुवर्ण जळ लावी नवकार गणी श्रीशांतिनाथ अने पार्श्वनाथ भगवाननुं नाम लेवा पूर्वक "ॐ ह्रीँ अहं भूर्भुवः स्वधायै (स्वधा,) स्वाहा " ए मंत्राक्षरे सावार मंत्री छांट. घरमां तो ते पुष्प-अक्षत अने चंदन सहित पग छंटाय छे. पछी त्यां स्वस्तिक करीने दीपक तथा धूप करवो.
त्यार बाद नीचे प्रमाणेना मापनी वेदिका करवी :- (विशेष माप निर्माण कलिकामांथी जोई लेवु.)
*
अञ्जनादि सर्व विधान प्रतिष्ठा कल्पमां आवतां ३१ श्लोकानुसार भञ्जनशलाकाप्रतिष्ठाविधिनुं संक्षिप्तविवरण ज छे. विधिनो प्रारंभ तो पहेला दिवसना जलयात्राना विधानथी ज थाय छे.
॥ ५॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥ ६ ॥
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चार खूणावाळी त्रण हाथ लांबी पोळी अने दो हाथ ऊंची काष्ठथी जडेली वेदिकाने वांसना मंडप तथा तोरणोथी सुशोभित करवी तथा तेमां पंचरत्न (सोनुं रुपुं, मोती, परवाळा अने तांबु . ) नी पोटली मूकवी. प्रतिष्ठाना मुहूर्त पहेला दश दिवस सुधी प्रतिष्ठा करनारे एकासशुं आदि तप करवी तथा ब्रह्मचर्य पाळj. दातण करता वोलातो मंत्र :- ॐ ह्रीँ यक्षाधिपतये नमः ॥
मुख साफ करता बोलतो मंत्र :- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कामदेवाधिपतये ममाभीप्सितं प्रय स्वाहा ॥ अग्नि मंत्र :- ॐ ह्रीँ र रारि री रु रू रे रै रो रौ रंरः ज्वालामालिनि अग्निदग्धं अग्निसंस्थं कुरु कुरु स्वाहा || जल मंत्र :- ॐ ह्रीँ अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमृतं स्रावय स्रावय स्वाहा ||
स्नान मंत्र : ॐ ह्रीँ अमले विमले बिमलोद्भवे सर्वतीर्थ जलोपमे पां पां वां वां अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा ॥ वस्त्र मंत्र :- ॐ ह्रीँ नमः ॥ तिलक मंत्र :- ॐ आं ह्रीं क्रीं अर्हते नमः ॥ पहेला दिवसनो पूजा विधि :
* जळयात्रानुं विधान कर. (जळयात्राना उपकरणो माटे परिशिष्ट नं. ५ जोवुं.) प्रथम महोत्सव पूर्वक चतुर्विध संघ सहित पवित्र जळाशये जनुं. त्यां विधिपूर्वक स्नात्र भणावकुं “ शांतिकळश” भणवो. पछी मालोद्घाटन कर.
पछी गंध, पुष्प, धूप तथा नैवेद्य, 'बलिदान वगेरेथी प्रतिमा, दिक्पाल तथा नव ग्रहोनुं पूजन कर. अने दर्शन, १. बलिमंत्र:- "ॐ भवणवइवाण" * आ विधान शान्तिस्नात्रादि विधि समुच्चय भा. १ प्रमाणे थाय छे.
॥ ६ ॥
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अञ्जन प्र. कल्प
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ज्ञान-चारित्रनु पूजन करी आरति-मंगळ दीवो करवो.
त्यार बाद देववंदन करवू. ते आ प्रमाणे :'ॐ नमः पार्श्वनाथाय ' के प्रस्तुत जिन चैत्यवंदन, नमुत्थुणं०; अरि०, एक नव० नो काउ. पारी नमोऽर्हत्
अर्हस्तनोतु स श्रेयः-श्रियं यद् ध्यानतो नरैः।।
अप्यन्द्री सकलाऽत्रैहि, रंहसा सह सौच्यत ॥ १ ॥ ( अनुष्टभ्) लोगस्स० सव्व० अन्नत्थ० १ नव० काउ. पारी
ॐमिति मन्ता यच्छा-सनस्य नन्ता सदा यदंही श्च ।
आश्रीयते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥ २ ॥ (ओर्या) पुक्खर० सुअस्स० अन्नत्थ० १ ना० काउ. पारी
नवतत्त्वयुता त्रिपदी, श्रिता रुवि-ज्ञान-पुण्य-शक्तिपता ।
वरधर्मकीर्तिविद्या-ऽऽनन्दाऽऽस्या जैनगीजर्जीयात् ॥३॥ (आर्या ) सिद्धाणं० श्रीशांतिनाथ आराधनाथ करेमि काउस्सग्गं बंदण० अन्नत्थ० १ लोगस्स० सागर० सुधी पारी नमो०-16॥ ७ ॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥ ८ ॥
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श्री शान्तिः श्रुतशान्तिः, प्रशान्तिकोऽसावशान्तिमुपशान्तिम् ।
नयतु सदा यस्य पदाः, सुशान्तिदाः सन्तुसन्ति जने ॥ ४ ॥ ( आर्या ) श्रीद्वादशांगी आराधना करेमि काउ० बंदण० अन्नत्थ० १ नव० काउ पारी नमो०सकलार्थसिद्धिसाधन-बीजोपाङ्गा सदा स्फुरदुपाङ्गा ।
भवतादनुपहतमहा-तमोऽपहा द्वादशाङ्गी वः ॥ ५ ॥ ( आर्या ) श्री शान्तिदेवयाए करेमि० काउ० अन्नत्थ० १ नव० पारी नमो० :श्री चतुर्विधसङ्घस्य शासनोन्नतिकारिणी । शिवशान्तिकरी भूयात्, श्रीमती शान्तिदेवता || ६ || (अनुष्टुभ् ) श्री शासन देवयाए करेमि काउ० अन्नत्थ० १ नव० पारी नमो० :या पाति शासन जैनं सद्यः प्रत्यूहनाशिनी । साऽभिप्रेतसमृद्धयर्थ, भूयाच्छासनदेवता ॥ ७ ॥ ( अनुष्टुभ् ) खित्तदेवया करेमि काउ० अन्नत्थ० १ नव० पारी० नमो० :
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अञ्जन प्र.कल्प
॥९॥
यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया।
सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥ ८॥ (अनुष्टुभ् ) अच्छुत्ता देवीए करेमि० काउ० अन्नत्थ० १ नव० काउ० पारी नमो० :
चतुर्भुजा तडिद्वर्णा, कमलाक्षी वरानना।
भद्रं करोतु सङ्खस्याऽ-च्छुप्ता तुरगवाहना ॥ ९ ॥ ( अनुष्टुभ् ) समस्तवेयावच्चगराणं संति० सम्म० करेमि काउ० अन्नत्थ० १ नव० काउ० पारी नमो० :सवेऽत्र ये गुरुगुणौधनिधे सुवैया-वृत्त्यादि कृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः। ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः, सद्दृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥१०॥ (वसंततिलका) जलदेवयाए करेमि काउ० अन्नत्थ० १ नव० काउ० पारी नमो०
मकरासनमासीनः, कुलिशाङ्कुशचक्रपाशपाणिशयः।
आशामाशापालो, विकिरतु दुरितानि वरुणो वः ॥ ११ ॥ (:आर्या ) पछी हाथ जोडी नीचे प्रमाणे जळदेवतानी प्रार्थनानो श्लोक बोलवो :
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॥
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॥
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॥१०॥
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करोतु शान्ति जलदेवताऽसौ, मम प्रतिष्ठाविधिमाचरिष्यतः । आदास्यतो वा मम वारि तत्कृते, प्रसन्नचित्ता प्रदर्शित्वनुज्ञाम् ॥ १ ॥ (उपजाति) पछी नवकार गणी नमुत्थुणं० जावंति० जावंत० नमो० कही नीचे प्रमाणे स्तवन कहे :ओमिति नमो भगवओ, अरिहंत - सिद्धाऽऽयरिय-उवज्झाय ।
वर - सव्व - साहु - मुणि-संघ धम्म - तिथ्थ - पवयणस्स || १ || (आर्या ) सप्पणव नमो तह भगवई, सुयदेवयाइ सुहयाए । सिवसंतिदेवयाणं, सिवपवयणदेवयाणं च || २ || ( आर्या ) इन्दाऽगणि-जम-नॅरईय- - वरुण-बाऊ - कुबेर - ईसाणा ।
बम्भो - नागुत्ति दसह - मवि य सुदिसाण पालाणं ॥ ३ ॥ ( आर्या ) सोम यम- वरुण-वेसमण - वासवाणं तहेव पंचहं ।
तह लोगपालयाणं, सूराइगहाण य नवहं ॥ ४ ॥ ( आर्या )
॥१०॥
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॥ ११ ॥
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सातस्स समक्खं, मज्झमिणं चेव धम्मणुद्वाणं ।
सिद्धिमविग्धं गच्छउ, जिणाइ नवकारओ धणियं ॥ ५ ॥ ( आर्या )
जय वीराय कहेवा०
पछी कुंवा कांठे जई करवानो विधि :
मंत्रयुक्त वास कुंकुम अने चंदनना छांटा नांखवा त्यार बाद नीचेना मंत्रथी प्रणवार आचमन कर. :- ॐ गुरु तवाय नमः; अर्ह आत्मतत्वाय स्वाहा; ह्रीँ विद्यातत्वाय स्वाहा; ह्रीँ पार्श्वतत्त्वाय स्वाहा, ॐ मुक्तितत्त्वाय स्वाहा ।
पछी अंगन्यास करवो. मंत्र :
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ॐ ह्रीँ नमो अरिहंताणं ह्राँ शीर्ष रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीँ नमो सिद्धाणं ह्रीँ वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा ॥ ॐ ह्रीँ नमो आयरियाणं हूँ हृदयं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीँ नमो उवज्झायाणं हूँ नाभिं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो लोए सव्वसाहूणं पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीँ नमो ज्ञानदर्शनचारित्रेभ्यः हूः सर्वाङ्गं रक्ष रक्ष स्वाहा ॥
पछी करन्यास करवो. मंत्र : -
ॐ ह्रीँ अर्ह अड्गुष्ठाभ्यां नमः । ॐ ह्रीँ सिद्धाः तर्जनीभ्यां नमः । ॐ ह्रीँ आचार्या मध्यमाभ्यां नमः । ॐ ह्रीँ
॥ ११ ॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥१२॥
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उपाध्याया अनमिकाभ्यां नमः । ॐ ह्रीँ सर्वसाधवः कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ ह्रां ह्रीँ हूँ हूँ ह्रीँ हू: अ-सि-आ-उ-सा. सम्यग्ज्ञानदर्शनचारित्राणि धर्मः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥
पछी नीचेना वे श्लोको बोली अंकुशमुद्राथी जळ खेचं :--
क्षीरोदधे ! स्वयम्भूश्व, सरः पद्ममहाद्रह ! । शीते ! शीतोदके ! कुण्डस्मिन् सन्निधिं कुरु || १ || (अनुष्टुभ् )
गङ्गे ! च यमुने चैव गोदावरि ! सरस्वति ! | कावेरि ! नर्मदे ! सिन्धो !; tosस्मिन् सन्निधिं कुरु || २ || (अनुष्टुभ् ) त्यार बाद नीचेनो मन्त्र ऋणवार बोली कूर्ममुदाए अथवा मत्स्यमुद्राए जळ स्थापवुं :ॐ ह्रीँ अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमृतं स्रावय स्रावय से से क्लीँ क्लीँ ब्लू ब्लू द्रां द्रां द्रीं ह्रीँ द्राय द्रावय जलदेवीदेवा अत्र आगच्छत आगच्छत स्वाहा ||
पछी "ॐ ह्रीँ क्लीँ ब्लू जलचन्दनपुष्पाक्षतफलनैवेद्यदीपधूपं समर्पयामि " एम बोली बलिदानरुपे पुष्प नाळियेर अथवा बीजा फळो वि. पाणीमां पधराववा. ते वखते “ॐ आँ ह्रीँ क्रीँ जलदेवि ! पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा " ए पाठ बोलवो. पछी ४ के ८ कळशो भखा तथा त्यां लाड वि. नैवेद्य सूकवा. पछी नीचेनो पाठ बोलवो :
॥१२॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥१३॥
RASHASANSAREER
ॐ ही ऋपभाऽजित-संभवाऽभिनंदन-सुमति-पद्मप्रभ-सुपार्श्व-चन्दप्रभ-मुविधि-शीतल-श्रेयांस-वासुपूज्य-विमलाऽनन्तधर्म-शान्ति-कुंथ्वर-मल्लि-मुनिसुव्रत-नमि-नेमि-पार्श्व-वर्दमानादि तीर्थकराः परमदेवाः तदधिष्ठायकाः देवाः शातिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं जयं मङ्गलं कुरुत कुरुत पां पां वां वां नमः स्वाहा ॥
एरीते कळशो भरी चंदन-पुष्पथी सुशोभित करी धवल-मंगळ अने वाजिंत्रना नादपूर्वक कुमारिका के सौभाग्यवती स्त्रीओ पासे लेवडावी चैत्य के घरमा प्रदक्षिणा दईने पवित्र स्थाने पधरावी मंगळगीत तथा वाणित्रनो घोष करवो.
॥ इति जलयात्राविधिः ॥ त्यार बाद १०८ तीर्थजळथी कळश भरी नीचेना पृथ्वीमंत्रथी स्थापना करबो :ॐ हा भूः स्वाहा; ॐ ह्रीँ भूमिःस्वाहा; ॐ हूँ भुवः स्वाहा; ॐ हूँ मेदिनी स्वाहा; ॐ हौं पृथिवी स्वाहा
ॐ ह्रः वसुमती स्वाहा ॥ पछी क्षेत्रपाल स्थापना मंत्र बोलवोः
ॐ क्षा क्षीं झू क्षौ क्षः क्षेत्रपालाय नमः स्वाहा ॥ पछी क्षेत्रपाल पूजननी मंत्र बोलवो :-- ॐ ह्रीँ क्षा क्षेत्रपालं गन्धाक्षतजलपुष्पतैलसिन्दुरैः दीपधूपौधैः पूजयामि ।
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॥१३॥
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अञ्जन | पछी "ॐ ह्रीं दिक्पालेभ्यो नमः", "ॐ ही नवग्रहेभ्यो नमः" ए मंत्र बोली नीचेना लोकथी भूतोने दशे | प्र.कल्प
18 दिशाओमां बलिदान आपq. ॥१४॥ उपसर्पन्ति ये मूता, भूता ये भूमिसंस्थिताः । ये भूता विघ्नकर्तार-स्ते नश्यन्तु जिनाज्ञया ॥
(अनुष्टुभ् ) __पछी 'ॐ ह्रीँ अवतर अवतर सोमे सोमे वग्गु वग्गु निवग्गु निवग्गु मुमणे सोमणसे महु महुरे ॐ कवलि | | कः क्षः स्वाहा' ए मंत्रथी मींढळ, नाडाछडी आदि मंत्रीने जमणे हाथे, कळशे, विंबे, देवालये अने घेर मंगळ | माटे बांधवा.
____पछी "ॐ ह्रीँ अर्हद्भयो नमः, ॐ ही सिद्धेभ्यो नमः, ॐ ह्रीँ आचार्येभ्यो नमः, ॐ हौँ उपाध्यायेभ्यो नमः, Pॐ ह्रीँ सर्वसाधुभ्यो नमः, ॐ ह्रीँ सम्यग्दर्शनेभ्यो नमः, ॐ ह्रीं सम्यग्ज्ञानेभ्यो नमः, ॐ ह्रीँ सम्यक्चारित्रेभ्यो |
नमः, ॐ हीं सम्यक्तपोभ्यो नमः" आ मंगळ पाठ बोली "ॐ अहं नमो अरिहंताणं, ॐ अहं नमो सयंसंबुद्धाणं, ॐ दि| अहं नमो पारगयाणं " आ मूळ मंत्र गणवा पूर्वक मंगळ कलश स्थापबो. पछी वांस ८ अने शरावळा ८ मां जवारा वाववा.
॥ इति प्रथम दिन विधिः ॥
॥१४॥
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॥१५॥
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कुंभस्थापनना दिवसनो विधिः-
कुंभ स्थापन विधि :
'प्रथम न्हावाना पाणीनो मंत्र कही पाणी मंत्र. पछी शरीरे आमळा, पीठी, कंकोडी चोळी न्हावुं. वस्त्र पहेंखा. केसर मंत्री तिलक करं. नाई अने मढळ बांधवा.
पछी भूमि शुद्ध करी वासचोखा - फूल मंत्रित करवा अने कुंभने ग्रेवासूत्र बांधj.
कुंभ उपर- "ॐ ह्रीँ सर्वोपद्रवं नाशय नाशय स्वाहा " ए मंत्र लखवो. कुंभमां चंदननो साथियो कराववो. रु. १) तथा पंचरत्ननी पोटली नं. १, सोपारी नं. ५ ब्रह्मचर्यवाळा पुरुष पासे मूकाववा. जो ब्रह्मचर्यवाळो पुरुष न मळे तो तेने ब्रह्मचर्यनी बाधा कराववी.
पछी कुबानुं थोडं पाणी लड़ तथा बीजुं शुद्ध पाणी लइ अबोट जळे अखंडधाराथी शुभमुहूर्ते नवकार अथवा मोटी शांति भणी थाळी वेळण साथे घडो भराववो. पछी घडा उपर पान, श्रीफळ, वस्त्र, मोंढळ, मरडासींग बांधी फूलनो हार पहेराववो. ज्यां स्थापत्रो होय त्यां चंदरखो प्रथम बंधाववो. पछी घडो भरनार बहेन पासे कंकुनो साथियो कराववो. तेना उपर डांगरनो साथियो करावी सोपारी मूकाववी. पछी त्रण प्रदक्षिणा देवरावी ते घडो “ ॐ ह्रीँ ठः ठः ठः १. माणेकस्थंभारोपण तथा तोरण बांधवानी विधि-परिशिष्ट- नं. १ अ तथा आ मां जोवी.
"
॥१५॥
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भञ्जन प्र.कल्प
॥१६॥
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| स्वाहा” ए मंत्र ७ वार कही स्थापवो. गुरू पासे मंत्र कही वासक्षेप करावयो. प्रभुनी जमणी बाजु कुंभ स्थापबो. दीपक स्थापन विधि :
तांवाना कोडियामां साथियो करावी रु. १) तथा पंचरत्ननी पोटली नं. १ अने सोपारी मूकाववी. तेमज १०८ तारनी दीवेट पण मृकाववी. पछी नीचेनो श्लोक (त्रण वार) कही घीनी वाढीथी अखंडधाराथी घी पूरावबुं.
ॐ घृतमायुर्वृद्धिकरं, भवति परं जैनदृष्टिसंपर्कात् ।
तत्संयुतः प्रदीपः, पातु सदा भावदुःखेभ्यः ॥ स्वाहा ॥ (आर्या ) पछी नीचेनो लोक बोली दीप प्रगटाववो.
ॐ अर्ह-पञ्चज्ञानमहाज्योति-मयोऽयं ध्वान्तघातने ।
द्योतनाय प्रतिमाया, दीपो भूयात् सदाऽर्हतः ॥ ( अनुष्टुभ् ) पछीथी अंदर माटीनुं खामणुं करावी तेना उपर दीपने स्थापन करवो. फाणस ढांकg अने गुरु पासे श्वासक्षेप * दीप उपर वासक्षेप करता नीचेनो मंत्र पण बोलवो :“ॐ अग्नयोऽग्निकाया एकेन्द्रिया जीवा निरवद्याहत्पूजायां निर्व्यथाः सन्तु, निष्पापाः सन्तु, सदगतयः सन्तु, न मे सङ्घट्टनहिंसा मईदर्चने स्युः ॥
॥१६॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥१७॥
५
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कराववो. अने कुंभ - दीपने + वधाववा.
जवारारोपण विधि :
सरावळां नं. ४ जवाराना भराववा. दरेक सरावळां उपर कंकु, सोपारी तथा पैसो चढाववो; कंकुना छांटा नंखाववा. अडायानो भूको, माटी, जार, जब, घउं, सरसव अने डांगर मेळवी जवारा मण्डाववा. ते घडानी चारे खूणे मूकाववा. बेन पासे गहुली करावी. (कुंभ पासे पाटलो मूकी कंकुनो साथियो, चोखा, श्रीफळ तथा सोपारी मूकाववी.)
पछी स्नात्र भणावी अष्ट प्रकारी पूजा करी आरती मंगळदीवो उतारवो. कुंभस्थापनाना मुहूर्तनी जो वार होय तो स्नात्र पहेलुं भणावी काय.
टंक सात स्मरण हंमेश गणना. सवारे तथा बपोरे नवकार० उवसग्ग०, संतिकरं; तिजयपहुत्त ०; अजितशांति; भक्तामर अने मोटी शांति. सांजे पण ते ज प्रमाणे परंतु तिजयपहुत्तने बदले नमिऊण. पंचरत्ननी पोटली मूकवानो मंत्र :
* ॐ ह्रीँ
श्रीँ - नानारत्नौघयुतं सुगन्धपुष्पाभिवासितं नीरम् ।
पतताद विचित्रवर्ण, मन्त्रादयं स्थापना बिम्बे || स्वाहा ॥ ( आर्या )
+ - वधावती वखते बोलवानो श्लोक :- पूर्ण येन सुमेरुशृङ्गसदृशं चैत्यं सुदेदीप्यते; यः कीर्ति यजमानधर्मकथन- प्रस्फूर्जितां भाषते । यः स्पर्धां कुरुते जगत्त्रयमहा - दीपेन दोपारिणाः सोऽयं मङ्गलरूपमुख्यगणनः कुम्भश्चिरं नन्दतात् ॥ १ ॥ ( शार्दूल० ) * हाल आ वे मंत्रनो उपयोग कुंभस्थापना विधिमां थतो नथी.
॥१७॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥१८॥
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सोना वाणीनो मंत्र - बार - ७- नवकार साथै :
"ॐ ह्रीँश्रीँ जीवलीपार्श्वनाथ ! रक्षां कुरु कुरु स्वाहा " ।
॥ इति कुंभस्थापनादि विधिः ॥
' प्रतिष्ठाने लगतो कार्यक्रम :
सुगंधि जळथी प्रतिष्ठानी भूमिनुं सिंचन करवुः पुप्पनी वृष्टि करवी धूप करवोः प्रतिष्ठा मंडपने यक्षकर्दमथी लपव वेदका स्वस्तिकादिक करवां चित्र-विचित्र वस्त्रोनां चंद्रवा बांधवा. शुभमुहूर्ते प्रतिष्ठाना स्थाने नवीन विबोने लावी सिंहासन उपर पूर्व के उत्तर सन्मुख स्थापना तथा चारे दिशाओमां श्वेत १२ वरघडां मूकवां; चार जवारियां अने आठ arai rai. विनी हथेळीमां प्रियंगुकपूर अने गोरोचंदन मूककुं. पंचरत्ननी पोटली विंनी आंगळीये बांधवी. १ प्रतिष्ठा अंजनशलाकामां जरूरी उपकरणोनी यादी परिशिष्ट-नं. ६ मांथी जोई लेवी.
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॥ १८॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥१९॥
-: अथ द्वितीयदिनविधि :
-: श्री लघु नन्द्यावर्तपूजनविधि :प्रथम नंद्यावर्तनू आलेखन:
नंद्यावर्तनो पट्ट तैयार मळे तो ठीक नहीं तो नीचे प्रमाणे आलेखन करवू. कपूर, केसर, अने सुखड वगेरे सात लेपनथी लिप्त करेला श्रीपर्ण (सेवन) ना पाटला उपर के सुशोभितवस्त्रना पट्ट उपर मध्य भागथी सूत्रभ्रमण करता पूर्व आठ वलय करवा.
पहेला वलयमां:
अष्टगंधथी नवखूणी प्रदक्षिणाए "नंद्यावत" आलेखो, तेना मध्य भागमा जिनप्रतिमाने स्थापवी के चितववी अने तेनी जमणी बाजुए 'शकेन्द्र' अने 'श्रुतदेवता' नेमज डाबी बाजुए 'ईशानेन्द्र' अने 'शांति देवता' नुं आलेखन करवु.
बीजा वलयमां:-आठे दिशाओमां अनुक्रमे नीचे प्रमाणे लखवु:5 १ ॐ नमोऽहं यः; २ ॐ नमः सिद्धेभ्यः; ३ ॐ नम आचार्येभ्यः; ४ ॐ नम उपाध्यायेभ्यः, ॐ नमः सर्वF| साधुभ्यः; ६ ॐ नमो ज्ञानेभ्यः, ७ ॐ नमो दर्शनेभ्यः; ८ ॐ नमश्चारित्रेभ्यः ॥
१६४ इन्द्र-इन्द्राणीना नामो सहित दस वलयवाळो पट्ट होई तो ते रीतनी -'बिंब प्रवेश विधि' आदिमा आवती नंद्यावर्त पूजननी विधि परिशिष्ट नः १४ मां आपेली छे.
॥१९॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२०॥
त्रीजा वलयमां:चोवीशपत्रो आलेखी तेमां चोवीश तीर्थकरोनी माताओना मंत्राक्षरो साथे नामो लखवाः
१ ॐ मरुदेवीए स्वाहा; २ ॐ विजयाए स्वाहा; ३ ॐ सेणाए स्वाहाः ४ ॐ सिद्धत्थाए स्वाहा; ५ ॐ मंगलाए स्वाहा; ६ ॐ मुसीमाए स्वाहा; ७ ॐ पुहवीए स्वाहा; ८ ॐ लक्खणाए स्वाहा; ९ ॐ रामाए स्वाहा; १० ॐ नंदाए स्वाहा: ११ ॐ विण्हए स्वाहा; १२ ॐ जयाए स्वाहा १३ ॐ सामाए स्वाहा; १४ ॐ सुजसाए स्वाहा; १५ ॐ सुब्बयाए स्वाहाः १६ ॐ अचिराए स्वाहा; १७ ॐ सिरीए स्वाहाः १८ ॐ देवीए स्वाहा: १९ ॐ पभावईए स्वाहा; २० ॐ पउमावईए स्वाहा: २१ ॐवप्पाए स्वाहा: २२ ॐ सिवाए स्वाहा: २३ ॐ वामाए स्वाहा: २४ ॐ तिसलाए स्वाहा ।।।
चोथा वलयमां:आठे दिशाओमां बे-बे गृह करवा अने तेमां १६ विद्यादेवीओनां मंत्र लखवाः१ ॐ नमो रोहिणीए सी त्मां स्वाहा; २ ॐ नमो पन्नत्तीए राक्षां स्वाहा; ३ नमो वज्जसिंखलाए लीं स्वाहा: १ मुद्रित प्र. क. मां पूजार्थक 'नमः' पदनो प्रयोग कर्यो छे, परंतु हस्तलिखितमा 'स्वाहा' पद मले छे तेथी अहीं 'स्वाहा' पद राखेल छे.
२ मुद्रित प्र. क. मां विद्यादेवीनां नाम संस्कृतमां छे, परंतु हस्तलिखितमां ते नाम प्राकृतमा छे, तेमज आगल पूजनमा पण प्राकृतमा ज छे तेथी अहीं विद्यादेवीना नाम प्राकृतमा लीधा छे. ३ आ मंत्राक्षरो मुद्रित तेमज हस्तलिखित प्रतोमा भिन्न भिन्न छे, तेथी जेना विशेष पाठ मल्या छे ते अहीं लीधा छे.
॥२०॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२१॥
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४ ॐ नमो वज्जंकुसीए स्मां वां स्वाहा: ५ॐ नमो अपडिचक्काए आँ स्वाहा; ६ ॐ नमो पुरिसदत्ताए मां वां स्वाहा ७ ॐ नमो कालीए सौं हैं स्वाहा; ८ ॐ नमो महाकालीए ॐक्ष्मी स्वाहा; ९ ॐ नमो गोरीए (ईं ज्यूँ स्वाहा; १० ॐ नमो गंधारीए रेक्ष्मीं स्वाहा११ ॐ नमो सव्वत्थमहाजालाए लूं हां स्वाहा; १२ ॐ नमो माणवीए युं क्ष्मा स्वाहा; १३ | ॐ नमो वेरुटाए सूं मां स्वाहा १४ ॐ नमो अच्छुत्तार यूं मां स्वाहा; १५ ॐ नमो माणसीए ग्लु मां स्वाहा; १६ ॐ नमो महामाणसीए ह्यं तूं स्वाहा ॥ पांचमा बलयमांः-२४ भवन बनावी लोकांतिकदेवोना मंत्रो लखवाः
१ ॐ सारस्वतेभ्यः स्वाहा । २ ॐ आदित्येभ्यः स्वाहा । ३ ॐ वह्निभ्यः स्वाहा । ४ ॐ वरुणेभ्यः स्वाहा । ५ ॐ 4 ॐ गर्दतोयेभ्यः स्वाहा। ६ ॐ तुपितेभ्यः स्वाहा । ७ ॐ अव्यावाधेभ्यः स्वाहा। ८ ॐ रिष्टेभ्यः स्वाहा । ९ ॐ अग्न्याभेभ्यः
स्वाहा । १० ॐ सूर्याभेभ्यः स्वाहा । ११ ॐ चन्द्रामेभ्यः स्वाहा । १२ ॐ सत्यामेभ्यः स्वाहा । १३ ॐ श्रेयस्करेभ्यः स्वाहा । १४ ॐ क्षेमकरेभ्यः स्वाहा । १५ ॐ वृषभेभ्यः स्वाहा । १६ ॐ कामचारेभ्यः स्वाहा । १७ ॐ निर्वाणेभ्यः स्वाहा। १८ ॐ दिशान्तरक्षितेभ्यः स्वाहा । १९ ॐ अत्मरक्षितेभ्यः स्वाहा । २० ॐ सरक्षितेभ्यः स्वाहा । २१ ॐ मारुतेभ्यः स्वाहा । २२ ॐ वसुभ्यः स्वाहा । २३ ॐ अश्वेभ्यः स्वाहा । २४ ॐ विश्वेभ्यः स्वाहा ।
छट्ठा वलयमां:-आठे य दिशाओमां नीचेना मंत्रो आलेखवाः१ ॐ सौधर्मादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा; २ ॐ तद्देवीभ्यः स्वाहा ३ ॐ चन्द्रादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा ४ ॐ तद्देवीभ्यः स्वाहा
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अञ्जन प्र. कल्प
२२ ॥
५ ॐ चमरादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा; ६ ॐ तद्देवीभ्यः स्वाहा; ७ ॐ किन्नरादीन्द्रादिभ्यः स्वाहा; ८ ॐ तद्देवीभ्यः स्वाहा ॥ ___सातमा वलयमां:-आठे दिशाओमा आठ दिक्पालोना नीचेना मंत्राक्षरो आलेखवाः
१ ॐ इन्द्राय स्वाहा; २ ॐ अग्नये स्वाहाः ३ ॐ यमाय स्वाहाः ४ ॐ नैर्ऋतये स्वाहा; ५ ॐ वरुणाय स्वाहा ॐ वायवे स्वाहा; ७ ॐ कुबेराय स्वाहा८ ॐ ईशानाय स्वाहा ॥ आठमा वलयमां:-नव ग्रहोना नीचेना आठ मंत्रो आलेखवाः
१ ॐ आदित्येभ्यः स्वाहा; २ ॐ सोमेभ्यः स्वाहा; ३ ॐ मङ्गलेभ्यः स्वाहाः ४ ॐ बुधेभ्यः स्वाहा; ५ ॐ ४ बृहस्पतिभ्यः स्वाहा; ६ ॐ शुक्रेभ्यः स्वाहा; ७ ॐ शनैश्चरेभ्यः स्वाहा; ८ ॐ राहुकेतुभ्यः स्वाहा ॥
उपर प्रमाणेना आठे वलयोनी बहार चार द्वारवाळा तथा श्री शांति, भूति, बल अने आरोग्य नामना चार तोरणो | | सहित तेमज वर्धमान, गज, सिंह अने ध्वजो सहित त्रण प्राकार (किल्लाओ) आलेखवां. तेमानां--
पहेला प्राकारनां पूर्वादिक द्वारोमां:-अनुक्रमे १ चमः २ दंड; ३ पाश अने ४ गदायुक्त हाथवाला अनुक्रमे १ सोम; २ यमः ३ वरुण अने ४ कुबेर नामना द्वारपालोने आलेखवा.
बीजा प्राकारना पूर्वादिक द्वारोमांः-१ जया; २ विजया ३ अजिता अने ४ अपराजिता नामनी द्वारपालिकाओने आलेखवी.
॥२२॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥ २३॥
REARRARRAREERA
त्रीजा प्राकारना पूर्वादिक द्वारोमाः-हाथमां लाकडी वाळा चार तुंवरुने आलेखवा. ___ पछी पहेला गोळ प्राकारमा:-आग्नेयादि विदिशाओमांत्रण त्रण एम बार सभाओमां अनुक्रमे १ साधुः २ साध्वी ३ वैमानिक देवी ॥ ४ भवनपति देवी; ५ व्यंतर देवी, ६ ज्योतिष्क देवी ॥ ७ भवनपति देवः ८ व्यंतर देवः ९ ज्योतिष्क | देव. । १० वैमानिक देव; ११ मनुष्य अने १२ मनुष्य स्त्री-आम बार पर्षदा आलेखबी.
बीजा प्राकारमा तिर्यचो आलेखवा. त्रीजा प्राकारमां-देव अने मनुष्योनां वाहन विगेरे आलेखवा, प्राकारोना चारे दरवाजे बने बाजु पर कमळवनोथी शोभित वायो आलेखवी. पछी वज्रना चिह्नवाळ इन्द्र पुर आलेखीने दिशाओमां& "परविद्याः क्षः फुट्" अने विदिशाओमां "परमन्त्राः क्षः फुट्" एम आलेख. चारे खूणामां चार पूर्ण कळशो आलेखी तेनी बहार वायुभवन आलेख.
॥ इति नन्द्यावर्तनी आलेखन विधि ॥
॥२३॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२४॥
--: अथ नन्द्यावर्त पूजन विधिःसौ प्रथम नन्द्यावर्तना पट्ट उपर नीचेनो श्लोक बोली कुसुमांजलि करवी:कल्याणवल्लीकन्दाय, कृतानन्दाय साधुषु । सदा शुभविवर्ताय, नन्द्यावर्ताय ते नमः ॥१॥
(अनुष्टुभ्) पहेला वलयमां:
“ॐ नमोऽहत्परमेश्वराय, चतुर्मुखाय, परमेष्ठिने, त्रैलोक्यगताय, अष्टदिक्कुमारीपरिपूजिताय, देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय, त्रैलोक्यमहिताय आगच्छ आगच्छ स्वाहा” आ मंत्रयी परमेष्ठिमुद्राए जिननु आह्वान करवू. अने पछी "ॐजिनाय नमः" कही वास अने कपूर वगेरेथी जिननी पूजा करवी. ___ त्यार बाद शक्रेन्द्र अने श्रुतदेवता तेमन ईशानेन्द्र अने शांति देवतानी पूजा 'ॐ क्रेन्द्राय नमः'; 'ॐ श्रुतदेवतायै | नमः', 'ॐ ईशानेन्द्राय नमः; 'ॐ शान्तिदेवतायै नमः' ए मंत्रो बोली करवी.
१ मुद्रित प्र. क. मां जिनाह्वान करी कुसुमांजलि करवा जणावेल छे, परंतु हस्तलिखितमा प्रथम कुसुमांजलि पछी जिनाहान विधि छे उचित पण छे तेथी ते प्रमाणे अहीं लोधेल छे. तेमज जिनाहवान मंत्र प्रतिष्ठाकल्पमा नथी छतां य योग्य होवाथी जणावेल छ । २ 'नम:' पद अहीं सर्व जग्याए पूजाना अर्थमां छे, मात्र प्रणामना अर्थमा नथी । ३ शक्रादि चारनां पूजनमंत्र प्रतिष्ठाकल्पमा नथी पण पूजननुं सूचन छे तेथी लीधेल छ ।
CREATRESUSICCORAGE
॥२४॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२५॥
बीजा वलयमां:-अहंदादि आठवें पूजन नीचेना मंत्रोथी करवूः
१ ॐ नमोऽर्हद्भ्यः; २ ॐ नमः सिद्धेभ्यः; ३ ॐ नम आचार्येभ्यः; ४ ॐ नम उपाध्यायेभ्यः; ५ ॐ नमः BI सर्वसाधुभ्यः; ६ ॐ नमो दर्शनेभ्यः; ७ ॐ नमो ज्ञानेभ्यः; ८ ॐ नमश्चारित्रेभ्यः॥
जीजा वलयमांः-२४ तीर्थकरोनी माताओगें पूजन नीचेना मंत्राक्षरोथी करवु:--
१ ॐ मरुदेवाए नमः, २ ॐ विजयाए नमः; ३ ॐ सेणाए नमः; ४ ॐ सिद्धत्थाए नमः, ५ ॐ मंगलाए नमः ६ ॐ सुसीमाए नमः ७ ॐ पुहवीए नमः ८ ॐ लक्खणाए नमः ९ ॐ रामाए नमः १० ॐ नंदाए नमः ११ ॐ विण्हए
नमः, १२ ॐ जयाए नमः, १३ ॐ सामाए नमः, १४ ॐ सुजसार नमः, १५ ॐ सुब्बयाए नमः, १६ ॐ अचिराए ४ नमः, १७ ॐ सिरीए नमः, १८ ॐ देवीए नमः, १९ ॐ पभावईए नमः, २० ॐ परमावईए नमः २१ ॐ वप्पाए | नमः, २२ ॐ सिवाए नमः, २३ ॐ वामाए नमः, २४ ॐ तिसलाए नमः॥
चोथा वलयमां:--सोळ विद्यादेवीओ- पूजन नीचेना मंत्राक्षरोथी करवू.
१ ॐ रोहिणीए नमः; २ ॐ पन्नत्तीए नमः ३ ॐ वज्जसिंखलाए नमः ४ ॐ वज्जंकुसीए नमः ५ ॐ अपडिचक्काए नमः ६ ॐ पुरिसदत्ताए नमः ७ ॐ कालीए नमः, ८ ॐ महाकालीए नमः; ९ ॐ गोरीए नमः, १० ॐ गंधारीए नमः, ११ ॐ सब्बत्थमहाजालाए नमः १२ ॐ माणवीए नमः, १३ ॐ वेरूटाए नमः, १४ ॐ अच्छुत्ताए
REACCAREERCRACAAAEES
॥२५॥
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नमः; १५ ॐ माणसीए नमः, १६ ॐ महामाणसीए नमः ॥ कल्प
पांचमा वलयमांः-लोकांतिकदेवोर्नु पूजन नीचेना मंत्राक्षरोथी करवु:-- ॥२६॥
१ ॐ सारस्वतेभ्यो नमः २ ॐ आदित्येभ्यो नमः ३ ॐ वह्निभ्यो नमः ४ ॐ वरुणेभ्यो नमः ५ ॐ गर्दतोयेभ्यो नमः ६ॐ तुषितेभ्यो नमः ७ ॐ अव्याबाधेभ्यो नमः ८ ॐ अरिष्टेभ्यो नमः; ९ ॐ अग्न्याभेभ्यो नमः १० ॐ सूर्याभेभ्यो नमः ११ ॐ चन्द्राभेभ्यो नमः, १२ ॐ सत्याभेभ्यो नमः, १३ ॐ श्रेयस्करेभ्यो नमः, १४ ॐ क्षेमङ्करेभ्यो नमः, १५ ॐ वृषभेभ्यो नमः; १६ ॐ कामचारेभ्यो नमः; १७ ॐ निर्वाणेभ्यो नमः; १८ ॐ दिशान्तरक्षितेभ्यो नमः, १९ ॐ आत्मरक्षितेभ्यो नमः २. ॐ सर्वरक्षितेभ्यो नमः २१ ॐ मारुतेभ्यो नमः, २२ ॐ वसुभ्यो नमः २३ ॐ अश्वेभ्यो नमः २४ ॐ विश्वेभ्यो नमः॥ ___छट्ठा वलयमांः-सौधर्मेन्द्रादि देव-देवीओनुं पूजन नीचेना मंत्राक्षरोथी करवु:
१ ॐ सौधर्मादीन्द्रादिभ्यो नमः; २ ॐ तद्देवीभ्यो नमः,.३ ॐ चन्द्रादीन्द्रादिभ्यो नमः, ४ ॐ तद्देवीभ्यो नमः, ५ ॐ चमरादीन्द्रादिभ्यो नमः ६ ॐ तद्देवीभ्यो नमः ७ ॐ किन्नरादीन्द्रादिभ्यो नमः ८ ॐ तद्देवीभ्यो नमः ॥
सातमा वलयमां:-आठ दिकपालोनुं पूजन नीचेना मंत्राक्षरोथी करवु:--
१ ॐ इन्द्राय नमः, २ ॐ अग्नये नमः, ३ ॐ यमाय नमः, ४ ॐ नैर्ऋतये नमः ५ ॐ वरुणाय नमः ६ ॐ वायवे | BI नमः, ७ ॐ कुबेराय नमः, ८ ॐ ईशानाय नमः ॥
OCOMHIDESOUSAURANGAROO
॥२६॥
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अञ्जन
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आठमा वलयमः - नव ग्रहोनुं पूजन नीचेना मंत्राक्षरोधी करवुः --
१ ॐ आदित्येभ्यो नमः २ ॐ सोमेभ्यो नमः ः ३ ॐ मङ्गलेभ्यो नमः ४ ॐ बुधेभ्यो नमः ५ ॐ बृहस्पतिभ्यो नमः; ६ ॐ शुक्रेभ्यो नमः ७ शनैश्वरेभ्यो नमः ८ ॐ राहुकेतुभ्यो नमः । पछी बहार रहेला त्रण प्राकारोमांना पहेला प्राकारमाः
अग्निखूणामां १ साधु, २ साध्वी, ३ वैमानिकदेवीनुं “ॐ गणघरपरिषत्त्रिकाय नमः" आ मंत्रथी, नैऋत्य खूणामां ४ भवनपति देवी, ५ व्यंतर देवी, ६ ज्योतिष्कदेवीनुं “ॐ भवनपत्यादिदेवोत्रिकाय नमः" वायव्य खूणामां ७ भवनपति; ८ व्यंतर अने ९ ज्योतिष्कदेवनुं 'ॐ भवनपत्यादिदेवपरिषत्त्रिकाय नमः' मंत्रथी पूजन कर.
ईशान खूणाम १० वैमानिकदेवः ११ मनुष्य, १२ मनुष्यनी स्त्रीनुं - ॐ वैमानिकदेवादिपरिषत्त्रिकाय नमः' मंत्री पूजन कर.
बीजा प्राकारमां तिर्यचोनुं अने त्रीजा प्राकारमां वाहनोनुं वासक्षेपथी पूजन कर.
पहेला प्रमा:- १ सोम, २ यम, ३ वरुण अने ४ कुबेर नामना द्वारपालोनुं पूजन - १ ॐ सोमाय नमः; २ ॐ यमाय नमः; ३ ॐ वरुणाय नमः, ४ ॐ कुबेराय नमः' आ मंत्रोथी कर.
बीजा मां :- १ जया, २ विजया, ३ अजिता अने ४ अपराजिता नामनी द्वारपालिकाओनुं पूजन १ 'ॐ जयायै नमः २ ॐ विजयायै नमः ३ ॐ अजितायै नमः ४ ॐ अपराजितायै नमः' आ मंत्रोधी कर.
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२८॥
त्रीजा वप्रमा:-चारे तुंवरुनी 'ॐ तुम्बरवे नमः' मंत्रथी अने चार तोरणोनी 'ॐशान्तितोरणेभ्यो नमः, ॐ भूतितोरणेभ्यो नमः, ॐ बलतोरणेभ्यो नमः, ॐ आरोग्यतोरणेभ्य नमः' मंत्रथी पूजा करवी. | पछी १ धर्म, २ मान, ३ गज अने ४ सिंह आ चार वजोनी 'ॐ धर्मध्वजाय नमः, ॐ मानध्वजाय नमः 'ॐ गजध्वजायनमः, ॐ सिंहध्वजाय नम:' आ मंत्रोथी, तेमज दिशाओमां 'परविद्याः क्षः फुट' अने विदिशा
ओमां 'परमन्त्राःक्षः फुट' नी तेज मंत्रथी अने इन्द्रादि सर्वनी पूजा करवी. ___ इन्द्रपुरनी 'ॐ पृथ्वीमण्डलाय नमः' मंत्रथी; चार पूर्णकलशोनी ॐ पूर्णकलशाय नमः' मंत्रथी अने | वायुभवननी 'ॐ वायुमण्डलाय नमः' मंत्रथी पूजा करवी..
पछी त्यां पांच प्रकारना पक्वान्न मूकवा. दिशाओ अने विदिशाओमां बलिबाकुळा उछाळवा. __पछी देववंदन करवुः-प्रथम प्रस्तुत जिन के 'ॐ नमः पार्श्वनाथय'र्नु चैत्यवंदन कही 'अहंस्तनोतु.'; 'ॐ18 मिति मन्ता.' 'नवतत्त्वयुता.' अने 'श्री शान्तिः श्रुनशान्तिः ' आ चार स्तुति कही "श्री श्रुतदेवता आराधनाथ" | करेमि काउ० वंदण० अन्नत्थ० १ नव० नो काउ० पारी नमो०
वद वदति न वाग्वादिनि !, भगवति कः ? श्रुतसरस्वति ! गमेच्छः ।
रगत्तरङ्गमतिवर-तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥ ५ ॥ (आर्या)
EGAES ARKAECCES
॥२८॥ Cowainelibrary.org
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॥२९॥
4950CROCOCCALCULARGESCLOSE
पछी "श्री शांतिनाथ आराधनार्थ" करेमि काउ० वंदण०, अन्नत्थ० १ नव० नो काउ० पारी नमो०
शान्तिः शान्तिकरः श्रीमान् ; शान्ति दिशतु मे गुरुः।
__शान्ति रेव सदा तेषां, येषां शान्तिगृहे गृहे ॥ ६ ॥ (अनु.) पछी "श्री क्षेत्रदेवता आराधनार्थ" करेमि काउ० अन्नत्थ. १ नव० नो काल पारी नमो:यस्याः क्षेत्र समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया ।
सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥ ७ ॥ (अनु.) "श्री शासन देवता आराधनार्थ" करें० काउ० अन्नत्थ० १ नव० नो काउ० पारी नमो०उपसगेवलपविलयन-निरता जिनशासनावनैकरताः।
द्रुतमिह समीहितकृते स्युः, शासनदेवता भवताम् ॥ ८ ॥ (आर्या) प्रगट नवकार बोली नमु०, जावंति० जावंत०; लमो०, स्तवन अने जय वीयराय कहेवा.
॥ इति नन्द्यावर्तपूजनविधिः ॥ ॥ इति द्वितीयदिनविधिः ॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥३०॥
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-: अथ तृतीयदिन विधि :
क्षेत्रपाल पूजनविधिः
सौ प्रथम क्षेत्रपाल आह्वान नीचेना मंत्रथी करवु:--
ॐ क्लाँ क्लीँ ब्लोँ स्वाँ लाँ ह्रीँ भुवनपालाय, माणिभद्राय, क्षेत्रदेवाय, यक्षाधिपतये, गजवाहनाय, खड्गहस्ताय, पाशाद्यायुधाय, सपरिच्छदाय अत्र श्री जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे अमुकनगरे अमुकगृहे जिनबिम्बाञ्जनशलाका-प्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ आगच्छ, पूजां गृहाण गृहाण, पूजायामवतिष्ठ अवतिष्ठ स्वाहा ॥ पछी क्षेत्रपालनुं पूजन नीचेनुं काव्य तथा मंत्र बोली करवु :
क्षेत्रपाल ! जिन प्रतिमाङ्गभाल !; दुष्टान्तकाल ! जिनशासनरक्षपाल ! । तैलाहिजन्मगुरुचन्दनपुष्पधूपै - भोगं प्रतीच्छ जगदीश्वरस्नात्रकाले ||१|| (वसंततिलका) ॐ क्ष क्ष क्ष क्ष क्ष क्ष क्षेत्रपाल पूजयामि ॥ त्यार बाद नीचे प्रमाणे आसननुं काव्य तथा मंत्र वोलवो:तीक्ष्णदष्ट्र ! महाकाय !; कल्पान्तदहनोपम ! |
भैरवाय नमस्तुभ्य-मनुज्ञां दातुमर्हसि || २ || (अनुष्टम् ) ॥ इति क्षेत्रपाल पूजन विधिः ॥
ॐ ह्रीँ आधारशक्तये कमलासनाय नमः ॥
॥३०॥
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॥३१॥
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-: दशदिक्पालपूजनविधि :
पछी श्रावको सेवनना पाटला उपर देश दिक्पालोने स्थापवा अने तेमना नामोच्चारणपूर्वक ते ते दिशामां चंदन तिलक आदि करी तेमने बोलावी मंत्रपूर्वक नवग्रह दशदिक्पालने बलिवाकुळा आश्वा अने पत्र, पुष्प, फळ, अक्षत वगेरेथी पूजन कर.
१ - इन्द्र दिक्पालपूजनविधिः
प्रथम इन्द्रनं आह्वान नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली करवुं : ----
ऐरावतसमारूढः शक्रः पूर्वदिशि स्थितः ।
सङ्घस्य शान्तये सोsस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥ १ ॥ (अनु.)
tional
ॐ ह्रीँ आँहाँ हूँ हाँ ँ हूँ क्षः वज्राधिपतये इन्द्र संवौषट् ॥
१. दिक्पालनी रचना तथा उपकरण माटे परिशिष्ट नं. २-अ तेम २ ड मां जुओ.
२. हस्तलिखित प्र.क., मुद्रित प्र.क. तथा शान्तिस्नात्र विधि समुच्चययमां दिक्पाल आह्यानना मंत्राक्षरोमां फेरफार आवे छे तेथी अही प्रचलित शान्तिस्नात्र० प्रतः प्रमाणे मंत्रो लौधा छे.
* दिक्पाल ग्रह आह्नान शांतिस्नात्र प्रतानुसार कर.
॥३१॥
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प्र. कल्प
॥३२॥
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ॐ नमो भगवते इन्द्राय पूर्वदिग्वलासिने, ऐरावणवाहनाय सहस्रनेत्राय वज्रायुधाय, सपरिच्छदाय इह अमुकनगरे अमुकगृहे निविम्बाञ्जनशलाका - प्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छ २; पूजां गृहाण २, पूजायामवतिष्ठ २ स्वाहा ॥
पूजानो मंत्र :- ॐ सोमाय नमः ।
( 'केरवानी नवकारवाळीथी 'ॐ ह्रीँ आँ- ए मंत्र १०८ बार गणवो.) ॥ १ ॥ २- अग्नि दिक्पालपूजनविधि :
avari are area oोक तथा मंत्र बोली कर
---
सदा दिशो नेता, पावको मेपवाहनः ।
सङ्घस्य शान्तये सोsस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु || २ || (अनु.)
ॐ ह्रीँ रे रॉ रुँ मेँ रौं र अग्नि संवौषट् ।
ॐ नमो भगवते आग्नेयदिक्पालाधीशाय, महाज्वालाकराधीशाय ॐ अग्निमूर्तये, शक्तिहस्ताय, मेपवाहनाय, सायुधाय, सपरिच्छदाय इह अमुक अमुक० जिनबिम्बाञ्जन० आगच्छ २; पूजां गृहाण २; पूजायामवतिष्ठ २ स्वाहा ॥
पूजानो मंत्र :- ॐ ह्रीँ अग्नये नमः ।
१. नवकारवालोनुं विधान मूलमां नथी परंतु हाल अंजनशलाका महोत्सवमां दिक्पालनी माला गणाय छे तेथी अहीं जणावेल छे.
॥३२॥
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॥३३॥
(परवाळानी नवकारवाळीथी-'ॐ ह्रीँ रे - ' मंत्र १०८ वार गणवो.)॥२॥ ३-यम दिक्पालपूजन विधि :यमनुं आहान नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली करवु :दक्षिणस्यां दिशि स्वामी, यमों महिषवाहनः ।
सङ्घस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥ ३ ॥ (अनु.) ___ ॐy हूँ हाँ क्षः यम संवौषट् ।।
ॐ नमो भगवते यमाय महिषवाहनाय, दक्षिणदिग्दलासनाय, महाकालदण्डरूपधारिणे, कृष्णमूर्तये, सायुधाय, P सपरिच्छदाय, इह अमुक० अमुक० जिनबिम्बाञ्जन० आगच्छ २; पूजां गृहाण २, पूजायामवतिष्ठ २ स्वाहा ।
पूजन मंत्र :-ॐ हाँ यमाय नमः ।
(अकलबेरनी माळाथी 'ॐ हूँ -' मंत्र १०८ वार गणवो.) ॥ ३ ॥ | ४ नळत दिक्पालपूजनविधि :
नैर्ऋतन आह्वान नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली करवु :
AGRISANII HULIG
॥३३॥
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प्र. कल्प
॥३४॥
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यमापरान्तरालोऽसौ, नैर्ऋतः शववाहनः ।
सङ्घस्य शान्तये सोsस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥ ४ ॥ (अनु.)
ॐ ग् । नैर्ऋत संवौषट् ।
ॐ नमो भगवते नैर्ऋता शववाहनाय तिशितिनिसृतिकराय, महाराक्षसमूर्तये, खड्गहस्ताय, सायुधाय सपरिच्छदाय
इह अमुक अमुक० जिनबिम्बाञ्जन० आगच्छ २, पूजां गृहाण २, पूजायामवतिष्ठ २ स्वाहा । पूजन मंत्र :- ॐ ह्रीँ नैर्ऋतये नमः |
(अकलबेरनी माळाथी - 'ॐ ग्लौं - मंत्र १०८ बार गणवो.) ॥ ४ ॥
५- वरुण दिक्पालपूजनविधि :--
aon आह्वान नीचे श्लोक तथा मंत्र बोली करवुं :
यः प्रतीचिदिशो नाथो, वरुणो मकरस्थितः ।
सङ्घस्य शान्तये सोsस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥ ५ ॥ (अनु.)
ॐ श्रीँ हाँ वरुण संवौषट् ।
ॐ नमो भगवते वरुणाय पश्चिमदिग्दलाधीश्वराय, पात्रहस्ताय, मकरवादनाय, परशुहस्ताय सायुधाय सपरिच्छदाय
॥३४॥
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॥३५॥
REGREATEGC ACIGARENCE
इह अमुक अमुक० जिनबिम्बाञ्जन आगच्छ २; पूजां गृहाण २, पूजायामवतिष्ठ २ स्वाहा ।
पूजन मंत्र:-ॐ हीं वरुणाय नमः।
(केरवानी माळाथी ॐ श्री हाँ-मंत्र १०८ बार गणवो.)॥ ५। ६-वायु दिक्पालपूजनविधि :-- वायुठे आह्वान नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली करवु :-- हरिणो वाहनं यस्य, वायव्याधिपतिर्मरुत् ।
सङ्घस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥ ६ ॥ (अनु.) ॐ क्ली हाँ वायु संवौषट् ।
ॐ नमो भगवते वायव्याधिपतये, त्रिभुवनव्यापकमूर्तये, जगजीवनाय, ध्वजहस्ताय, मृगवाहनाय, सायुधाय, सपरिच्छदाय इह अमुक अमुक० जिनबिम्बाचन० आगच्छ २, पूजां गृहाण २; पूजायामवतिष्ठ २ स्वाहा।
पूजन मंत्र :-ॐ ही वायवे नमः।
(केरबानी माळाथी ॐ क्ली हाँ--' मंत्र १०८ वार गणवो.)॥६॥ ७-कुबेर दिक्पालपूजन विधि :--
कुबेरन आह्वान नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली करवं :--
AAAAAAAAAAGR
॥३५॥
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॥३६॥
निधाननवकारूढ, उत्तरस्यां दिशि प्रभुः।।
सङ्घस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥ ७ ॥ (अनु.) ॐ ब्लाँ हाँ कुबेर संवौषट् ।
ॐ नमो भगवते धनदाय, नरबाहनाय, नवनिधिकराय, उत्तदिग्दलासनाय, गदायुधाय, निधानमूर्तये, सायुधाय | सपरिच्छदाय इह अमुक अमुक० जिनबिम्बाञ्जन आगच्छ २, पूजां गृहाण २, पूजायामवतिष्ठ २ स्वाहा।
पूजन मंत्र :-ॐ ह्रीँ कुबेराय नमः। (स्फटिकनी माळाथी ॐ ब्लाँ हाँ--' मंत्र १०८ बार गणवो.) ॥७॥ ८ ईशान दिक्पालपूजनविधि :-- ईशाननु आहान नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली करवु :-- सिते वृषेऽधिरूढश्व, ऐशान्याश्च दिशो विभुः ।
सङ्घस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥ ८ ॥ (अनु.) ॐ हाँ हूँ हाँ हः ईशान संवौषट् । ॐ नमो भगवते ईशानाधिपतये, वृषाधिरूढाय, त्रिशूलहस्ताय, सवाहनाय, सपरिच्छदाय इह अमुक अमुक०
॥३६॥
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॥३७॥
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जिनबिम्बाञ्जन० आगच्छ २, पूजां गृहाण २, पूजायामवतिष्ठ २ स्वाहा || पूजन मंत्र :- ॐ ह्रीँ ईशानाय नमः ।
( स्फटिकनी माळाथी - 'ॐ हाँ हूँ--' मंत्र १०८ वार गणवो . ) ९- नागलोक दिक्पालपूजनविधि :--
नागलोक आह्वान नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली करवुं :-- पातालाधिपतिर्योऽस्ति, सर्वदा पद्मवाहनः ।
सङ्घस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥ ९ ॥ (अनु.) पद्मावतीसहिताय धरणेन्द्र संवौषट् ।
ॐ
ह्रीँको
ॐ नमो भगवते पद्मावतीसहितधरणेन्द्राय पातालाधिपतये, समस्तफणावलिभास्कर - रत्नावलिभूषिताय, नवकुलनागलोकवृन्दपरिवृताय, सायुधाय, सपरिच्छदाय इह अमुक अमुक० जिनविम्बाञ्जन० आगच्छ २; पूजां गृहाण २, पूजायामवतिष्ठ २ स्वाहा ॥
पूजन मंत्र :- ॐ ह्रीँ नागकुमाराय नमः ।
(स्फटिकनी माळाथी - 'ॐ आँ ह्रीँ--मंत्र १०८ बार गणवो.) ॥ ९ ॥
॥३७॥
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॥३८॥
१०-ब्रह्मलोक दिक्पालपूजन विधि :-- ब्रह्मलोकविभुर्यस्तु, राजहंससमाश्रितः ।
सङ्घस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥ १० ॥ (अनु.) ॐ ह्रीँ झू ब्लू चॅ द्र ब्रह्मन् संवौषट् । ___ ॐ नमो भगवते ब्रह्मदेवलोके अप्रतिहतगतये, कृतस्थितये, परमानन्दिने, देवमूर्तये, ऊर्ध्वलोकाधिष्ठायकाय, राजहंस- | | वाहनाय, सायुधाय, सपरिच्छदाय, इह अमुक० अमुक० जिनविम्बाञ्जन० आगच्छ २; पूजां गृहाण २, पूजा
यामवतिष्ठ २ स्वाहा। ___पूजन मंत्र :--ॐ ह्रीँ ब्रह्मणे नमः ।
(स्फटिकनी माळाथी--ॐ हीं हूं-मंत्र १०८ वार गणवो.)॥१०॥ पछी दशे दिक्पालोने नैवेद्यादि चढाववा.
तेनो मंत्र:-'ॐ इन्द्राऽग्नि-यम-नत-वरुण-वायु-कुबेरेशान-ब्रह्म-नागेति दशदिक्पाला जिनपति| पुरतोऽवतिष्ठन्तु स्वाहा ।।
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॥३८॥
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॥३९॥
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सफेद धजा चढायचो.
तेनो मंत्र :- ॐ ह्रीँ इन्द्रादयो दिक्पालाः स्वस्वदिशि स्थिता विघ्नशान्तिकरा भगवदाज्ञायां सावधाना भवन्तु स्वाहा ॥
|| इनि दशदिक्पाल पूजनविधिः ॥
tional
अथ भैरवपूजनम्-
raat मंत्र (त्रण वार) बोली भैरवनुं पूजन करवु 'ॐ ह्रीँ क्षां क्षः भैरवाय नमः ॥
:--
॥ इति भैरवपूजन विधिः ॥
अथ षोडशविद्यादेवी पूजन विधि :-- सौ प्रथम नीचेना ऋण लोको तेमज मंत्र बोली १६ विद्यादेवीओनुं आह्वान करवुं :-- रोहिणी प्रथमा तासु, प्रज्ञप्तिर्वज्रशृङ्खला ।
वज्राङ्कुशाप्रतिचक्रा, समं पुरुषदत्तया ॥ १ ॥ (अनु.)
कालो तथा महाकाली, गौरी गान्धार्यथाऽपरा ।
ज्वालामालिनी मानवी, वैरोट्या चाच्युता मता || २ || (अनु.)
॥३९॥
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॥४०॥
मानसी च महामान-स्येतास्ता देवता मताः ।
____ अभिषेकोत्सवे जैने, यथास्थानमनिन्दिताः ॥ ३ ॥ (अनु.)
ॐ ऐं क्ली हो आँ ही क्रो षोडशमहादेव्यो, हंस-गज-कमल-नरसिंह-वाहना, छत्रचामरधराः, सायुधाः, सवाहनाः, सपरिच्छदा इह अमुक अमुक० जिनबिम्बाञ्जनशलाका-प्रतिष्ठामहोत्सवे आगच्छत आगच्छतः पूजां गृहीत गृह्णीत; पूजायामवतिष्ठत अवतिष्ठत स्वाहा ।।
पछी सोळे विद्यादेवीनु पूजन कर. तेनो मंत्र :-"ॐ ह्रीँ षोडशमहादेवीभ्यो नमः" ॥
॥ इति षोडशविद्यादेवीपूजन विधिः॥ अथ नवग्रहपूजन विधि :--
सौ प्रथम श्रावके वीजा सेवनना पाटला उपर ग्रहमंडळ करवं. अने तेमां ग्रहोनी स्थापना करवी. १. अहीं सोळे विद्यादेवीओनां नाम बोलीने अथवा आचारदिनकरादिकमा आवता सोळविद्यादेवीओना श्लोको बोलीने पण
पूजन थइ शके छे. ते प्रलोको परिशिष्ट नं. १ई मां आपेल छे. । २. ग्रहोनी रचना, आकार तथा ग्रहपूजनना उपकरण माटे परिशिष्ट नं. २ तथा २ इमां जुओ.
॥४०॥
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॥४१॥
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१- सूर्य पूजन :--
सूर्यनुं आह्नान नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली करवुं :--
सूर्यो द्वादशरूपेण, माठरादिभिरावृतः ।
अशुभोऽपि शुभस्तेषां सर्वदा भास्करो ग्रहः || १ || (अनु.)
ॐ ह्रीँ आदित्य ! श्री पद्मप्रभजिनशासनवासिन् ! श्री सूर्याय सहस्रकिरणाय, गज- वृषभ - सिंह- तुरगवाहनाय, रक्तवर्णाय दिव्यरूपाय, द्युतिरूपाय, सायुधाय, सवाहनाय, सपरिच्छदाय, इह अमुक अमुक० जिनबिम्बाञ्जनशलाकाप्रतिष्ठा महोत्सवे आगच्छ आगच्छः पूजां गृहाण गृहाणः पूजायामवतिष्ठ अवतिष्ठ स्वाहा ।
पूजन मंत्र :- ॐ सूर्याय नमः ॥
(वाळानी माळाथी “ ॐ ह्रीँ रत्नाङ्कसूर्याय सहस्रकिरणाय नमः स्वाहा " मंत्र १०८ बार गणवो . )
१. अहीं नवग्रहपूजन तथा दिक्पालपूजनमां- “ॐ नम आदित्याय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय चन्दनं समर्पयामि स्वाहा: पुष्पं समर्पयामि स्वाहा, व समर्पयामि स्वाहा, फलं समर्पयामि स्वाहा, धूपमात्रापयामि स्वाहा, दीपं दर्शयामि स्वाहा, नैवेद्य समर्पयामि स्वाहा अक्षतं तांबूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा " आ मंत्रो कही ते ते द्रव्यनुं समर्पण करवामां आवे छे. २. ग्रहनी माला गणबानुं सूचन प्रतिष्ठाकल्पमां छे. परंतु मंत्र जणावेल नथी तेथी अहीं शान्तिस्नात्रनी प्रतानुसार ग्रहनां मंत्रो लीधा छे.
॥४१॥
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॥४२॥
२ चंद्र पूजन:-- चंद्रनुं आहान नीचेना श्लोक तथा मंत्र बोली करवु:अत्रिनेत्रसमुद्भूत-क्षीरसागरसम्भवः । जातो यवनदेशे तु, चित्रायां समदृष्टिकः ॥२॥ (अनु.)
ॐ ह्रीँ चन्द्र ! श्री चन्द्रप्रभनिनशासनवासिन् , प्रतीचीदिग्दलोद्भूत ! अक्षमालाकमलाम्बुपाणये, अमृतात्मने, श्री | सोमाय, धवलद्युतिकराय, मृगवाहनाय, सायु०, सबाह०, सपरि० इह अमुक अमुक. जिनविम्बाञ्जन० आगच्छ २, | पूजां गृहाण २; पूजायामवतिष्ठ २; स्वाहा ॥
पूजनमंत्र:-ॐ सोमाय नमः । (स्फटिकनी माळाथी 'ॐ रोहिणीपतये चन्द्राय ॐ ही द्रा द्री चन्द्राय नमः स्वाहा' मंत्र १०८ वार गणवो.) ॥२॥ ३ मंगळ पूजन:मंगळ- आहान नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली कर:सर्वदा वासुपूज्यस्य, नाम्ना शान्तिकरो भवेत् ।
रक्षां कुरु धरापुत्र !, अशुभोऽपि शुभोऽपि वा ॥ ३ ॥ (अनु ) ॐ ह्रीं भौम ! श्री वासुपूज्यजिनशासनवासिन् ! वारुणदिग्दलासिने, रक्तप्रभाक्षसूत्रवलयकुण्डिकालङ्कृते, । ॥४२॥
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॥४३॥
श्रीभौमाय गजवाहनाय सायु०, सवाह०, सपरि० इह अमुक अमुक. जिनबिम्बाञ्जन आगच्छ २, पूजां गृहाण २, पूजायामवतिष्ठ २ स्वाहा ॥
पूजनमंत्रः-ॐ भौमाय नमः।
(परवाळानी माळाथी-'ॐ नमो भूमिपुत्राय भूभृकुटिल नेत्राय वक्रवदनाय द्रः सः मङ्गलाय स्वाहा' मंत्र १०८ पार गणवो.) ॥३॥
४ बुध पूजन:बुधन आह्वान नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली करवु:कर्केटिरूपरूपाद्यैः, धूपपुष्पानुलेपनैः।
दुग्धान्नैवग्नारिङ्गै-स्तर्पितः सोमनन्दनः ॥ ४ ॥ (अनु.) ॐ हौँ बुध ! श्री शान्तिजिनशासनवापिन् ! ह्रीँ पूर्वोत्तरदिग्दलासिने, हेमप्रभाक्षकमण्डलुव्यग्रपाणये, ॐ बुधाय, केसरिवाहनाय, गदाधराय सायु०, स्वाह०, सपरि० इह अमुक अमुक० जिनविम्बाञ्जन आगच्छ २, पूजां गृहाण२, पूनाय मातिप्ठ २ स्वाहा ।।
॥४३॥
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॥४४॥
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पूजन मंत्र:-ॐ बुधाय नमः । (केरवा (नीलमणि नी माळाथी-ॐ नमो बुधाय श्राँ श्रीँ श्रः द्रः स्वाहा' मंत्र १०८ वार गणवो.) ॥४॥ ५ गुरु पूजन:गुरुर्नु आहान नीचेनो भोक तथा मंत्र बोली करवु:-- उत्तराफल्गुनीजातः, सिन्धुदेशसमुद्भवः ।
दश्यन्नमातुलिङ्गेश्व, तुष्टः पुष्पैविलेपनैः ॥ ५ ॥ (अनु.) ॐ ह्रीँ बृहस्पते ! श्री आदिनाथजिनशासनवासिन् ! उत्तरदिग्दलासिने, पीतद्युत्यक्षसूत्रकुण्डिकायुतपाणये, ॐ त्रिदशा| चार्यबृहस्पतये, पुस्तकहस्ताय, हंसगरुडबाहनाय, सायु०, सबाह०, सपरि०, इह अमुक अमु० जिनविम्बाञ्जन० आगच्छ२; पूजां गृहाण२; पूजायामवतिष्ठ२ स्वाहा ॥
पूजन मंत्र:-ॐ बृहस्पतये नमः । (केरवानी नवकारवाळीथी-'ॐ ग्राँ ग्रौँ यूं बृहस्पतये मुरपूज्याय नमः स्वाहा' मंत्र १०८ बार गणवो.) ॥५॥ ६ शुक्र पूजन:शुक्रतुं आहान नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली कर:--
॥४४॥
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शुक्रश्वेतमहापद्म-पोडशार्चिः
वः कटाक्षदृक् ।
सुगन्धचन्दनालेपैः, श्वेतपुष्पैश्च धूपनैः ॥ ६ ॥ (अनु.)
ॐ ह्रीँ शुक्र ! श्रीसुविधिजिनशासनवासिन् ! पूर्वदिग्दलासिने, धवलवर्णाक्षसूत्रकमण्डलुपाणये, असुरमन्त्रिणे ॐ शुक्राय, शुकवाहनाय, सायु०, सवाह०, सपरि०, इह अमुक अमुक जिनबिम्बाञ्जनः आगच्छ २; पूजां गृहाण२; पूजायामवतिष्ठ२ स्वाहा ॥
पूजन मंत्र :- ॐ शुक्राय नमः ।
(स्फटिक के रुपानी माळाथी- 'ॐ यः अमृताय अमृतवर्षणाय दैत्यगुरवे नमः स्वाहा' मंत्र १०८ वार गणवो.) ॥६॥ ७ शनि पूजन:--
afai आह्वान नीचेrt श्लोक तथा मंत्र बोली करवु:--
नोलपत्रिका प्रीत-स्तैलेन कृतलेपनः ।
उत्पत्तिः काकासारे, पङ्गुलो मेषवाहनः ॥ ७ ॥ (अनु.)
ॐ ह्रीँ क्रशने ! श्री मुनिसुव्रतजिनशासनवासिन् ! अपरदिग्दलासिने, श्याममूर्तये, श्रीशनैश्वराय, मेषवाहनाय, सायु०, सबाह०, सपरि० इह अमुक अमुक० जिनबिम्बाञ्जन० आगच्छ२, पूजां गृहाण२; पूजायामवतिष्ठ २ स्वाहा ॥
॥४५॥
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पूजन मंत्र:-- ॐ शनैश्चराय नमः (अकलबेरनी माळाथी-'ॐ शनैश्चराय ॐ क्रॉ हौँ जाँडाय नमः स्वाहा' मंत्र १०८ बार गणवो.) ॥७॥ ८ राहु पूजन:-- राहुनु आह्वान नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली करवु :-- सञ्जातो बब्बरे कूले, सुधूपैः कृष्णलेपनैः ।
तिलपुष्पैर्नालिकेरै-स्तिलमाषैस्तु तर्पितः ॥ ८ ॥ (अनु.) ॐ ह्रीं राहो ! श्रीनेमिजिनशासनवासिन् ! दक्षिणापरदिग्दलासिने, अतिकृष्णवर्ण-पाण्यवहित्थमुद्र-महातमस्वभावात्मने, श्री राहवे सायु०, सवाहा, सपरि०, इह अमुक अमुक० जिनबिम्बाञ्जन० आगच्छ२, पूजां गृहाण२; पूजायामवतिष्ठ २ स्वाहा ॥
पूजन मंत्र:-ॐ राहवे नमः । (अकलबेरनी माळाथी-'ॐ ही ठाँ श्री वः वः वः पिङ्गलनेत्राय कृष्णरूपाय राहवे नमः स्वाहा' मंत्र १०८ वार गणवो.) ॥८॥
॥४६॥
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॥४७॥
SAHASHA
९ केतु पूजन:-- केतुर्नु आह्वान नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली करवु:-- राहोः सप्तमराशिस्थः, कारणे दृश्यतेऽम्बरे ।
दाडिमस्य विचित्रान्नै-स्तृप्यते चित्रपूजया ॥ ९ ॥ (अनु.) ॐ हीं केतो ! श्री पार्श्वजिनशासनवासिन् ! अपरोत्तरदिग्दलासिने, धूमवर्णाक्षसूत्रकुण्डिकालङ्कृतपाणिद्वयानेकस्वभावात्मने, श्री केतवे सायु०, सवाह, सपरि० इह अमुक अमुक० जिनबिम्बाञ्जनः आगच्छ,२ पूजां गृहाण,२ | पूजायामवतिष्ठ,२ स्वाहा ॥
पूजन मंत्र:-ॐ केतवे नमः ।
(अकलबेरनी के गोमेद कनी माळाथी-'ॐ कां की कटटटः छत्ररूपाय राहतनवे केतवे नमः स्वाहा' मंत्र | १०८ वार गणवो.) ॥९॥ ___त्यार बाद नीचे प्रमाणे 'ग्रहशान्तिस्तोत्र' बोलवुः-- जगद्गुरुं नमस्कृत्य, श्रुत्वा सद्गुरुभाषितम् ।
ग्रहशान्ति प्रवक्ष्यामि, भव्यानां सुखहेतवे ॥ १ ॥ (अनु.)
RRRRRRRRR
R A
॥४७॥
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॥४८॥
RECORRECIRCCAREERALERGROGREGORIES
जिनेन्द्रैः खेचरा ज्ञेयाः, पूजनीया विधिक्रमात् ।
पुष्पैविलेपनैपै-नैवेद्यैस्तुष्टिहेतवे ॥ २ ॥ (अनु.) पद्मप्रभस्य मार्तण्ड-श्चन्द्रश्चन्द्रप्रभस्य च ।
____ वासुपूज्यस्य भूपुत्रो, बुधस्याष्टौ जिनेश्वराः॥ ३ ॥ (अनु.) विमलाऽनन्तधर्माणः, शान्तिः कुन्थुर्नमिस्तथा ।
वर्धमानस्तथैतेषां, पादपद्मे बुधं न्यसेत् ॥ ४ ॥ (अनु.) ऋषभाजितसुपार्था-श्राभिनन्दनशीतलौ।
सुमतिः सम्भवस्वामी, श्रेयांसश्चेषु गीष्पतिः ॥ ५ ॥ (अनु.) सुविधेः कथितः शुक्रः, सुव्रतस्य शनैश्वरः।।
नेमिनाथे भवेदाहुः, केतुः श्रीमल्लिपार्श्वयोः ॥ ६ ॥ (अनु.)
CROCARRISIS LOGIA
॥४८॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥४९॥
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जनॉलग्ने च राशौ च पीडयन्ति यदाः ग्रहाः ।
तदा संपूजयेद् धीमान्, खेचरैः सहितान् जिनान् ॥ ७ ॥ (अनु.) ॐ आदित्य-सोम-मङ्गल-बुधगुरुशुक्राः शनैश्वरो राहुः ।
| (अनु.)
केतुप्रमुखाः खेटाः, जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठन्तु || ८ || (आर्या) पुष्पगन्धादिभिर्धूपैर्नैवेद्यैः फलसंयुतैः । वर्णसदृशदानैव वस्त्रे दक्षिणान्वितैः ॥ ९ ॥ (अनु.) जिनानामग्रतः स्थित्वा, ग्रहाणां शान्तिहेतवे । नमस्कारस्तवं भक्त्या, जपेदशेत्तरं शतम् । १० । भद्रबाहुरुवाचैवं पञ्चमः श्रुतवली | विद्याप्रवादतः पूर्वाद, ग्रहशान्तिरुदीरिता ॥ ११ ॥ (अनु.) पछी नैवेद्यादिन था हाथमा लई नीचेनुं काव्य तथा मंत्र बोली नवग्रहना पाटला उपर चढाव:-- जिनेन्द्रभक्त्या जिनभक्तिभाजां जुषन्तु पूजावलिपुष्पधूपान् । ग्रहागता ये प्रतिकूलभावं, ते सानुकूला वरदा भवन्तु ॥ १ ॥ ( उपजाति)
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॥४९॥
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अञ्जन
प्रकल्प
॥५०॥
"ॐ नमो ही भो भो सूर्यादयो नवग्रहा विघ्नप्रशान्तिकरा भगवदाज्ञया सावधाना भवन्तु स्वाहा ॥
॥ इति नवग्रहपूजनविधिः॥ अथ अष्टमङ्गलपूजन विधि : सौ प्रथम नीचेनो श्लोक बोली अष्टमंगलना पाटला उपर कुसुमांजलि करवी : मङ्गलं श्रीमदर्हन्तो, मङ्गलं जिनशासनम् ।
मङ्गलं सकलसङ्घो, मङ्गलं पूजका अमी ॥१॥ ( अनुष्टुभ् ) त्यारबाद नीचेना श्लोक बोलतां क्रमसर स्वस्तिकादिक आठे मंगलोने वधावी पान-चोखा-सोपारी आदि मूकवा :स्वस्तिक :--स्वस्ति भूगगननागविष्टपे-धूदितं जिनवरोदयेक्षणात् ।
स्वस्तिकं तदनुमानतो जिन-स्याग्रतो बुधजनैर्विलिख्यते ॥ १ ॥ (स्वागता) २. श्रीवत्स : -अन्तःपरमज्ञानं, यद् भाति जिनाधिनाथहृदयस्य ।
तच्छीवत्सव्याजात , प्रकटीभूतं बहिवन्दे ॥ २ ॥ ( आर्या ) १. अष्टमंगलपूजन विधि प्रतिष्ठाकल्पमा आवती नथी परंतु हाल दिक्पाल ग्रहपूजन साथे करावाय छे तेथी अहीं आपेल छे. २. अष्टमंगलनी रचना माटे परिशिष्ट नं. २ क जुओ.
॥५॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥५१॥
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३. पूर्ण कळश :- विश्वत्रये च स्वकुले जिनेशो व्याख्यायते श्री कलशायमानः । अतोऽत्र पूर्ण कलशं लिखित्वा जिनार्चनाकर्म कृतार्थयामः ||३||
४. `भद्रासन :– जिनेन्द्रपादैः परिपूज्यपुष्टै - रतिप्रभावैरतिसन्निकृष्टम् । भद्रासनं भद्रकरं जिनेन्द्र - पुरो लिखेन्मङ्गलसत्प्रयोगम् । ॥४॥ ५. नन्द्यावर्त :- त्वत्सेवकानां जिननाथ ! दिक्षु सर्वासु सर्वे निधयः स्फुरन्ति । अतश्चतुर्धा नवकोणनन्द्यावर्तः सतां वर्तयतां सुखानि ॥ ५ ॥
( उपजातिः )
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( उपजातिः )
( उपजाति: ) ६. वर्धमान संपुट:- पुण्यं यशः समुदयः प्रभुता महत्वं, सौभाग्य--धी- विनय शर्म - मनोरथाश्च । वर्धन्त एव जननायक ! ते प्रसादा- तद्वर्धमान युगसंपुटमादधामः ||६|| (वसन्ततिलका) ७. मत्स्ययुग्म :-- ववध्यपञ्चशरकेतनभावक्लृप्तं कर्तुं मुधा भुवननाथ ! निजापराधम् । सेवां तनोति पुरतस्तव मीनयुग्मं श्राद्धैः पुरो विलिखितं निरुजाऽऽङ्गयुक्त्या ॥७॥ (बसन्त)
॥५१॥
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अञ्जन
15. दर्पण :-आत्माऽऽलोकविधौ जिनोऽपि सकल-स्तीवं तपो दुश्चरं; प्र.कल्प
दानं ब्रह्म परोपकारकरणं, कुर्वन् परिस्फूर्जति । ॥५२॥
सोऽयं यत्र सुखेन राजति स वै, तीर्थाधिपस्याग्रतो,
निर्मेयः परमार्थवृत्तिविरैः, संज्ञानिभिर्दर्पणः ॥ ८ ॥ ( शार्दूलविक्रीडित ) त्यार बाद उभा थई हाथमा श्रीफळादिनो थाळ लई अष्टमंगळना पाटला उपर नीचेनो श्लोक बोली पधराव :
नामजिणा जिणनामा, ठवणजिणा पुण जिणिदपडिमाओ।
दवजिणा जिणजीवा, भावजिणा समवसरणत्था ॥ १ ॥ ( आर्या) पछी ते अष्टमंगळनो पाटलो स्थान उपर मकता नीचेनो मंत्र बोलवो:
ॐ अहं स्वस्तिक-श्रीवत्स-कुम्भ-भद्रासन-नन्द्यावर्त-वर्द्धमान-मत्स्ययुग्म-दर्पणान्यत्र-जिनविम्बा- | अन सुस्थापितानि, सुप्रतिष्ठानि, अधिवासितानि लं लं लं हौँ नमः स्वाहा ॥
॥ इति अष्टमङ्गल पूजन विधिः ॥ त्यार बाद श्रीशान्तिजिनकलश कहेबो.
॥ इति तृतीयदिनविधिः ॥
AURAHASRACK
॥५२॥
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अञ्जन
अथ चतुर्थदिन विधिः प्र. कल्प ॥५३॥ श्री सिद्धचक्रपूजन विधि :
सौ प्रथम नीचेना मंत्रोथी अनुक्रमे क्षेत्रपाल, दिक्पाल, ग्रह तेमज शासनदेवीन पूजन करवू. क्षेत्रपाल पूजन :- ॐ क्षाँ क्षी झूझे क्षौ क्षः अहं जिनशासनवासिन् ? क्षेत्रपालाय नमः । दिकपाल पूजन:-ॐ ह्रीँ दिक्पालेभ्यो नमः॥ ग्रहपूजन मंत्र:-ॐ हीं ग्रहेभ्यो नमः ॥
जनशासनदेवी पूजन मंत्र:-ॐ ऐं क्ली मौ" भगवत्यः श्रोजिनशासनेश्वरी-चतुर्विशतिशासनदेव्यः चक्रे. श्वरी-अम्बिका-पद्मावती-सिद्धायिकाद्या देव्यः सिंहपद्मवाहनाः खड्गहस्ताः, सायुधाः; सवाहनाः; सपरिच्छदाः । इह अमुक अमुक० जिनविम्बाचन आगच्छत २, पूजां गृह्णीत २, पूजायामवतिष्ठत २ स्वाहा ॥ ___ पछी इन्द्रपूजा करवी. तेनो मंत्र :- ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ ह्रौ हूः अहं हूँ इन्द्राः श्रीसौधर्मादिचतुःपष्टिः
सायुधाः सवाहनाः सपरिच्छदाः इह अमुक अमुक जिन बिम्बाञ्जन आगच्छत २, पूजां गृहीत २, पूजायामवतिष्ठत २ || स्वाहा ।। जळ, चंदन, पुष्प, धूपादिथी इन्द्रपूजन कर.
पछी आ मंत्र कहेवो :- "भो भो इन्द्रा ! विघ्नप्रशान्तिकरा भगवदाज्ञया सावधाना भवन्तु स्वाहा ॥
ला॥५३॥
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AE-
अञ्जन प्र. कल्प
॥५४॥
त्यार बाद भूतोने आपवानो वलि नीचेना भूतबलिमंत्रथी त्रणवार मंत्री दशे दिशाओमां धूप-दीप-चंदनपुष्प-जळ-वास-लापसी बाकुळा-घडळा-बड़ां बगेरे सहित बलियाकुळा जिनगृहनी बहार उडाबवा :--
मंत्र :-- ॐ नमो अरिहंताणं, ॐ नमो सिद्धाणं, ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्झायाणं, ॐ नमो लोए सब्बसाहणं, ॐ नमो आगासगामीणं, ॐ नमो चारणाइलद्धीणं । जे इमे किन्नर-किंपुरिस-महोरग-गरुल-सिद्ध-गंधव्व जक्ख-रक्खस-पिसाय-भूय-साइणि-डाइणिपभिइओ जिणघरनिवासिणो नियनियनिलयठिया परिचारिणो सन्निहिया असन्निहिया य ते सव्वे इमं विलेषण-धूव-पुष्फ-फल-पईव-सणाई बलि पडिच्छता संतिकरा भवन्तु, तुटिकरा भवन्तु, पुटिकरा भवन्तु, सबत्य रक्खं कुणंतु, सवत्य दुरियाणि नासंतु, सव्वासिवमुवसमंतु, संति-तुढि-पुटि-सुत्थयणकारिणो भवन्तु स्वाहा ॥
अंगन्यास :-पछी नीचेना मंत्री बोलतां (त्रणवार) अंगन्यास करवो:बोलवानो मंत्र
न्यास करवानुं अंग १-ॐ नमः सिद्धम् ।
मस्तक उपर | २-ॐ आँ ह्रीँ क्रो यद वद वाग्वादिनि अर्हन्मुखकमलनिवासिनि नमः॥
मुख उपर ३-ॐ हाँ ही हः अहं नमः ।
हृदय उपर ४-ॐ ह्रीं सर्वसाधुभ्यो नमः।
नष्टबल
नाभि उपर
॥५४॥
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अञ्जन प्र.कल्प
ACCORRECOREA
५-ॐ हाँ अ-सि-आ-उ-साय नमः। ६-ॐ ह्रीं धर्माय नमः। ७-ॐ नमो अरिहंताणं । ८-ॐ नमो सिद्धाणं। ९-ॐ नमो आयरियाणं । १०-ॐ नमो उवज्झायाणं । ११-ॐ नमो लोए सव्वसाहणं । १२-ॐ नमो धम्माणं ।
करन्यास:-पछी नीचेना मंत्री बोलतां (त्रणवार) करन्यास करवो:बोलवाना मंत्रो १-ॐ नमो अरिहंताणं अगुष्ठाभ्यां नमः। २-ॐ नमो सिद्धाणं तर्जनीभ्यां नमः । ३-ॐ नमो आयरियाणं मध्यमाभ्यां नमः ।
पग उपर शरीर उपर हृदय उपर मस्तक उपर शिखा उपर नाभि उपर
पग उपर शरीर उपर
नयनरमाल
न्यास स्थान बन्ने अंगुठा उपर
तर्जनी आंगळी उपर ,, मध्यमा , "
॥५५॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥५६॥
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४ - ॐ नमो उवज्झायाणं अनामिकाभ्यां नमः |
५-ॐ नमो लोए सव्व साहूणं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
""
""
६- ॐ नमो आगासगामीणं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
हथेळी अने हाथना पाछळा भाग उपर
"
त्यार बाद आठ पांखडी वाळा कमळनो आकार (सिद्धचक्रमंडप ) करवो. तेमां नीचे आपेल अनुक्रमे अरिहंतादिनी स्थापना अने कुसुमांजलि पहेलो श्लोक बोली करवी तेमज बीजो श्लोक अने अने धूपथी पूजन कर. ते श्लोको अने मंत्र आ प्रमाणे छे.
मंत्र बोली पुष्प-अक्षत-फळ-दीप
१- अरिहंत पद :- (कमळना मध्यभागमां स्थापना करवी.) स्थापना श्लोक : :— अथाऽष्टदलमध्याब्ज-कर्णिकायां जिनेश्वरान् । आविर्भूतोलसद्बोधानावृतः स्थापयाम्यहम् || १ || ( अनुष्टभ् )
पूजन श्लोक तथा मंत्र :
"
अनामिका
कनिष्ठिका
23
निःशेषदोषेन्धन धूमकेतू - नपारसंसारसमुद्रसेतून् ।
समातिशयैकहेतून, श्रीमज्जिनानम्बुज कर्णिकायाम् ॥ २ ॥ “ॐ ह्रीं अर्हदृभ्यो नमः स्वाहा " मंत्रथी अरिहंत पदनुं पूजनादि करं.
"
""
3%
॥५६॥
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अञ्जन
ECORNER
प्र. कल्प
PECARROREGA
॥५७॥
ARRRRRRRRRRRES
(स्फटिकनी माळाथी "नमो अरिहंताणं" पदनो यथाशक्य जाप करवो.)॥१॥ २-सिद्धपद :-(पूर्व पत्रमा स्थापना करवी.) स्थापनाश्लोक :तस्य पूर्वदले सिद्धान्, सम्यक्त्वादिगुणात्मकान् ।
निश्रेयसं पदं प्राप्तान , निदधे भक्तिनिर्भरः ॥ १ ॥ | पूजनश्लोक तथा मंत्र :
तत्पूर्वपत्रे परितः प्रणष्ट-दुष्टाष्टकर्मामधिगम्यशुद्धिम् ।
प्राप्तान नरान् सिद्धिमनन्तबोधान, सिद्धान् यजे शान्तिकरान्नराणाम् ॥२॥ (इन्द्रवज्रा) "ॐ ही सिद्धेभ्यो नमः स्वाहा'' मंत्री सिद्ध पदनुं पूजन करवू. (लाल परवाळानी माळाथी "नमो सिद्धाणं" पदनो यथाशक्य जाप करवो.) ॥२॥ ३-आचार्यपद :-(दक्षिण तरफना पत्रमा स्थापना करवी.) स्थापनाश्लोक :
१ प्रतिष्ठा कल्पमा सिद्धचक्रना नव पदोनी नवकारवाली गणवानो उल्लेख नथी पण गणी शकाय तो उत्तम तेथी अहीं आपेल छे.
॥५७॥
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प्र. कल्प
॥५८॥
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स्थापयामि ततः सूरीन, दक्षिणेऽस्मिन् दलेऽमले ।
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चरतः पञ्चधाssचारं, पत्रिंशत्सद्गुणैर्युतान् ॥ १ ॥ ( अनुष्टुभ् )
पूजनश्लोक तथा मंत्र :
सूरीन् सदाचारविचारसारा-नाचारयन्तः स्वपरान् यथेष्टम् । उग्रोपसर्गेकनिवारणार्थ-मभ्यर्चयाम्यक्षतगन्धधूपैः || २ || ( इन्द्रवज्रा )
“ॐ ह्रीँ सूरिभ्यो नमः स्वाहा " मंत्रथी आचार्यपदनुं पूजन करं. ( केरवानी माळाथी 'नमो आयरियाणं' पदनो यथाशक्य जाप करवो.) ॥ ३॥ ४- उपाध्यायपद : - - (पश्चिम पत्रमा स्थापना करवी.) स्थापना श्लोक :--
दादशाङ्गश्रुताधारान् शास्त्राध्ययनतत्परान् ।
,
निवेशयाम्युपाध्यायान् पवित्रे पश्चिमे दले || १ || अनुण्डस् )
॥५८॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥५९॥
CCCCCCCCCEE
# पूजनश्लोक तथा मंत्र :--
श्रीधर्मशास्त्राण्यनिशं प्रशान्त्य, पठन्ति येऽन्यानपि पाठयन्ति ।
अध्यापकांस्तानपराजपत्रे, स्थितान् पवित्रान् परिपूजयामि ॥ २ ॥ ( वसन्ततिलका) "ॐ ही उपाध्यायेभ्यो नमः स्वाहा” मंत्रथी उपाध्यायपदनुं पूजन कर. (लीला रंगनी माळाथी 'नमो उवज्झायाणं' पदनो यथाशक्य जाप करवो.)॥४॥ ५-साधुपद :-(उत्तरपत्रमा स्थापना करवी.) स्थापनाश्लोक :--
व्याख्यादिकर्म कुर्वाणान् , शुभध्यानैकमानसान् ।
___उदपत्रगतान् नित्यं, साधूनर्चामि सुव्रतान् ॥ १॥ ( अनुष्टुभ् ) । पूजनश्लोक तथा मंत्र :--
वैराग्यमन्तर्वचसि प्रसिद्धं; सत्यं तपो द्वादशधा शरीरे ।
येषामुदपत्रगतान् पवित्रान् , साधून् सदा तान् परिपूजयामि ॥ २ ॥ (इन्द्रवज्रा) ___“ॐ ह्रौँ सर्वसाधुभ्यो नमः स्वाहा" मंत्रथी साधुपदनुं पूजन करबु.
TEAAAAAAAABA
॥५९॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥६०॥
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(अकलबेरनी माळाथी 'नमो लोए सव्वसाहूणं' पदनो यथाशक्य जाप करवो.) ॥५॥ ६ - दर्शनपद :-- (ईशानखूणामां स्थापना करवी.) स्थापना श्लोक :-- जिनेन्द्रोक्तम श्रद्धा - लक्षणं दर्शनं यजे । मिथ्यात्वमथनं शुद्धं न्यस्तमीशानसद्दले || १ || (अनुष्टुभ् )
'पूजन मंत्र :
'ॐ ह्रीँ सम्यग्दर्शनाय नमः स्वाहा ' मंत्रथी दर्शनपदनुं पूजन कर. (स्फटिकनी माळाथी 'नमो दंसणस्स' पदनो यथाशक्य जाप करवो.) ७ - ज्ञानपद : - ( अग्निखूणामां स्थापना करवी) स्थापना श्लोक :
अशेषद्रव्यपर्याय - रूपमेवावभासकम् ।
ज्ञानमाग्नेयपत्रस्थं पूजयामि हितावहम् || १ || (अनु.)
१ दर्शनादि चारे पदामां पूजननो श्लोक मूळ प्रतमां आवतो नथी केवल मंत्र ज आवे छे आचारदिनकरादिमां ते चारे पदोने लगतां श्लोको आवे छे ते बोलवा होई तो परिशिष्ट नं. १- मां आपेल छे.
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अञ्जन प्र. कल्प
॥६९॥
૧૬
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पूजन मंत्र :
ॐ ह्रीँ सम्यगज्ञानाय नमः स्वाहा " मंत्रथी ज्ञानपदनुं पूजन कर. ( स्फटिकनी माळाथी "नमो नाणस्स" पदनो यथाशक्य जाप करवो.) ८ - चारित्रपद :- (नैर्ऋत्य खूणामां स्थापना करवी.) स्थापना श्लोक :सामायिकादिभिर्भेदे - श्रास्त्रिं चारु पञ्चधा ।
संस्थापयापि पूजार्थ, पत्रे हि नैर्ऋते क्रमात् || १ || (अनु.)
पूजन मंत्र
:―
"ॐ ह्रीँ सम्यक् चारित्राय नमः” मंत्रथी चारित्रपदनुं पूजन कर.
( स्फटिकनी माळाथी 'नमो चरितस्स' पदनो यथाशक्य जाप करवो.) ॥८॥
९ - तपपद :- ( वायव्य खूणामां स्थापना करवी.) स्थापना श्लोक :
१. दर्शनादि चारे पदोमां पूजननो श्लोक मूळ प्रतमां आवतो नथी. केवल मंत्र ज आवे छे आचारदिनकरादिमां ते चारे पदोने लगतां श्लोको आवे छे. ते बोलवा होई तो परिशिष्ट नं. १- मां आपेल छे.
॥ ६१॥
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अंञ्जन प्र.कल्प
॥६२॥
द्विधा द्वादशंधा भिन्न; पूते पत्रे तपः स्वयंम् ।
निधापयापि भक्त्याऽत्र, वायव्यां दिशि शर्मदम् ॥ १ ॥ ( अनु.) पूजनमंत्र :
"ॐ ह्रीँ सम्यक्तपसे नमः स्वाहा' मंत्रथी तपपदनुं पूजन कर. (स्फटिकनी माळाथी 'नमो तवस्स' पदनो यथाशक्य जाप करवो. ॥९॥ पछी बे हाथ जोडी नवे पदनी स्तुतिरूप नीचेनुं काव्य बोलवु :निःस्वेदत्वादिदिव्या-तिशयमयतनून श्रीजिनेन्द्रान सुसिद्धान
सम्यक्त्वादिप्रकृष्टा-ष्टगुणभृत इहा-चारसारांश्च सूरीन् । शास्त्राणि प्राणिरक्षा-प्रवचनरचना-सुन्दराण्यादिशन्त-,
स्तत्सिद्भयै पाठकान् श्री-पतिपतिसहिता-नर्चयाम्यर्घ्यदानैः ॥ १ ॥ ( स्रग्धरा ) पछी सिद्धचक्रनुं चंदन, पुष्प, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य आदिथी पूजन नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली करवू :
॥६२॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥६॥
वनॐॐॐॐॐRS
इत्थमष्टदलं पद्मं, पूरयेदर्हदादिभिः ।
स्वाहान्तैः प्रणवाद्येश्व, पदैविध्ननिवृत्तये ॥ १ ॥ (अनु.) "ॐ हौँ पञ्चपरमेष्ठिभ्यः सम्यग्दर्शनादिचतुरन्वितेभ्यो नमः स्वाहा" ॥ रत्नो मूकबा.
त्यार बाद पहेलां प्रतिष्ठित करेल प्रतिमाजीनी आगळ स्नात्रकारक श्रावकोए कुसुमांजलि, जन्माभिषेक तथा । श्रीशांतिजिनकलश कहेवा पूर्वक स्नात्र करवू. पछी नमस्कार अने चैत्यवंदनसहित आठ थोयनुं देववंदन कर. | (हालमा स्नात्र पहेला कराय छे माटे आरती उतारी देववंदन करवू.)
॥ इति श्री सिद्धचक्रपूजन विधिः॥॥ इति चतर्थदिनविधिः॥
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॥६३॥
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RHRIRHIरIRIR IRRETRIERRORE EkakakakakakakiEHREFEREHETRIES
प्र.कल्प
अथ पञ्चमदिन विधिः ।
॥६४॥
श्री वीशस्थानकपूजन विधिःपूजननी शरुआत करता पहेला क्षेत्रपालादिकनुं पूजन नीचेना मंत्रोथी करवू.ॐक्षा क्षेत्रपालाय नमः । ॐ हीं दिक्पालेभ्यो नमः । ॐ हौँ ग्रहेभ्यो नमः। ॐ ह्रीँ षोडशमहादेवीभ्यो नमः । ॐ ह्रौँ जिनशासनदेवोदेवेभ्यो नमः ॥ त्यार बाद "शांतिघोषणा" ना नीचेना दस श्लोक बोलवा :रोगशोकादिभिर्दोषै-रजिताय जितारये ।
नमः श्रीशान्तये तस्मै, विहिताऽनन्तशान्तये ॥ १ ॥ ( अनु.) श्रीशान्तिजिनभक्ताय, भव्याय सुखसम्पदम् ।
श्रीशान्तिदेवता देया-दशान्तिमपनीय ते ॥ २ ॥ (अनु.)
GURUCAREERUECRECECCCCC
॥६४॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥६५॥
१७
अम्बा निहित डिम्भा मे. सिद्धबुद्धसमन्विता ।
सिते सिंहे स्थिता गौरी वितनोतु समीहितम् ॥ ३ ॥ (अनु. ) धराधिपतिपत्नी या देवी पद्मावती सदा ।
क्षुद्रोपद्रवतः सा मां पातु फुल्लत्फणावली ॥ ४ ॥ (अनु.) चञ्चचक्रधरा चारु- प्रवालदलदीधितिः ।
चिरं चक्रेश्वरी देवी, नन्दतादवताच्च माम् ॥ ५ ॥ (अनु.) खद्गखेटककोदण्ड- वाणपाणिस्तडिद्युतिः । तुरङ्गगमनाच्छुप्ता, कल्याणानि करोतु मे ॥ ६ ॥ (अनु.) मथुरायां सुपार्श्वश्रीः, सुपार्श्व स्तूपरक्षिका ।
श्रीकुबेरा नराख्दा, सुताङ्काऽवतु वो भयात् ॥ ७ ॥ ( अनु ) ब्रह्मशान्तिः स मां पाया - दुपायाद् वीरसेवकः । श्रीमत्सत्यपुरे सत्या, येन कीर्तिः कृता निजा ॥ ८ ॥ (अनु.
॥६५॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥६६॥
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श्रीशकप्रमुखा यक्षा, जिनशासनसंस्थिताः ।
देवा देव्यस्तदन्येऽपि सङ्घ रक्षन्त्वपायतः ॥ ९ ॥ (अनु.) श्रीमद्विमानमारूढा, मातङ्गन्यक्षसङ्गता ।
सा मां सिद्धायिका पातु, चक्रचापेषु धारिणी ॥ १० ॥ (अनु.) पछी नवकार बोलवा पूर्वक "चन्तारि मंगलं "; "चत्तारि लोगुत्तमा"; "चत्तारि सरणं पवज्जामि" आदि कही "वज्रपञ्जर" स्तोत्रथी आत्मरक्षा करवी.
पछी श्रावके वीजा पट्ट उपर कुंकुम अने चंदनथी वीशस्थानक (खाना) करवा अने अनुक्रमे नीचे आपेला २० मंत्रोथी वीशे स्थानको नुं चंदन-पत्र - पुष्प - फळ-सोपारीना टुकडा तथा अक्षतथी पूजन करवुं.
वीशस्थानक पूजनना मंत्रो :
'१ ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं । २ ॐ ह्रीँ नमो सिद्धाणं । ३ ॐ ह्रीँ नमो पवयणस्स ४ ॐ ह्रीँ नमो आयरियाणं । ५ ॐ ह्रीँ नमो थेराणं । ६ ॐ ह्रीँ नमो उवज्झायाणं । ७ ॐ ह्रीँ नमो लोए सव्व साहूणं । १. अहीं मंत्रोनी साथे वीशस्थानकने लगतां श्लोको बोलीने पण पूजन थई शके छे तेमज ते ते मंत्रनो यथाशक्य जाप पण करावी शकाय छे. ते लोको परिशिष्ट नं. १-ऊ मां आपेल छे.
॥६६॥
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प्र. कल्प
॥६७॥
८ ॐ ह्रीँ नमो नाणस्स । ९ ॐ ह्रीँ नमो दंसणस्स । १० ॐ ह्रीँ नमो विषयस्स । ११ ॐ ह्रीँ नमो चरित्तस्स । १२ ॐ ह्रीँ नमो बंभवयधारीणं । १३ ॐ ह्रीँ नमो किरियाणं । १४ ॐ ह्रीं नमो तस्स । १५ ॐ ह्रीँ नमो गोयमस्स । १६ ॐ ह्रीँ नमो जिणाणं । १७ ॐ ह्रीँ नमो चरित्तरस्स । १८ ॐ ह्रीँ नमो नाधरस्स । १९ ॐ ह्रीँ नमो सुयधरस्त । २० ॐ ह्रीँ नमो तित्थस्स ||
पछी उत्तम पुष्प, गंध, अक्षतः प्रदीपः फळ धूप; जल अने पत्रथी श्रीजिनेश्वर प्रभुनी अष्टप्रकारी पूजा करवी. श्री आदिजिनकor बोलवा पूर्वक स्नान कर. पण हाल स्नात्र पहेला कराय छे एटले आरती करी चैत्यवंदन करी आठ थोयनुं देववंदन कर.
'वीशे स्थानकोना नामोच्चारणपूर्वक वीश नवकार गणना अने नैवेद्य मूकj.
॥ इति श्री वीरास्थानक पूजनविधिः ॥
॥ इति पञ्चमदिनविधिः ॥
纾
१ दरेक प्रतमां देववंदन बाद नैवेद्य मूकवानुं विधान छे. परंतु ते करता पहेला नवकारपूर्वक नैवेद्य मूकी पछो देववन्दनरूप भावपूजा करवामां विशेष संगति लागे छे.
॥६७॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥६८॥
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KAKAKAKAKAK·kaka
अथ षष्टदिन विधिः
A
RERRORE
श्री च्यवनकल्याणकविधिः
-
सौ प्रथम नीचेना मंत्रोधी क्षेत्रपालादिकनुं पूजन करवुं :
ॐ rat sat tai oां क्षां क्षेत्रपालाय नमः । ॐ दिक्पालेभ्यो नमः । ॐ ग्रहेभ्यो नमः ।
ॐ ह्रीँ षोडशमहादेवीभ्यो नमः । ॐ ह्रीँ जिनशासन देवीदेवेभ्यो नमः | त्यार बाद नीचेना श्लोकोथी इन्द्रना आभूषणो मंत्री धारण करवा.
प्रथम 'सोनानी सांकळी' (यज्ञोपवीत) नीचेना श्लोकधी मंत्रित करी पहेरवी:
सद्दृष्टेः प्रविकल्पिताऽतिविशद - प्राग्भारभाभासुरज्ञानस्यापि विकल्पजालजयिन - श्रास्त्रितत्त्वस्य च ।
१. अहीं यज्ञोपवीतादिक धारण करता विशिष्ट मंत्रो बोली शकाय छे. ते मंत्रो परिशिष्ट नं. १- मां आपेल छे.
||६८||
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥६९॥
૧૮
यत्पूर्वैः परिकल्पितं जिनमहे, रत्नत्रयाराधकं
चिह्नं तन्निधे महेशकलितं यज्ञोपवीतं परम् ॥ १ ॥ ( शार्दूल०) पछी 'मुकुट' अने 'तिलक' नीचेना श्लोकथी मंत्रित करी धारण करवाः
रत्नप्ररोहै- रुचिरैर्यदुत्थै-राकाशमङ्गीकृतम। विभाति ।
तच्छेखरं शेषविधेयविज्ञो, मौलौ मयूखाढ्यमहं दधामि || २ || (इन्द्रवचा) पछी 'कंकण' नीचेना श्लोकथी मंत्रित करो पहें:
दिव्यं दिव्यै रत्नजालैरनेकैर्नद्धं धुन्वद् - ध्वान्तमन्तःस्फुरद्भिः ।
है ना निर्मितं विश्वपाणौ, पुण्यं पुण्यैः कङ्कणं स्वीकरोमि || ३ || (शालिना) पछी 'मुद्रिका' (वटी) नीचेना श्लोकधी मंत्रित करी देवी :
प्रद्योतयन्ती निखिलं स्वकान्त्या प्रकोष्ठमङ्गद्युतिराजिरम्या ।
मुद्रेव जैनी वरमुद्रिकेय-मलङ्करोत्वङ्गुलीपर्वमूलम् ॥ ४ ॥ (उपजाति)
॥६९॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
119011
पछी केयूर, हार, कड, कुंडळादि सोळ प्रकारना आभूषणौ नीचेना काव्यथी मंत्रित करी परखा:केयूर-हाराऽङ्गद-कुण्डलानि, प्रालम्ब सूत्रं कटिकम्बि-मुद्रिके ।
शस्त्री च पट्टे मुकुटं च मेखला, ग्रैवेयकं नूपुरकर्णपूरे || ५ || (इन्द्रवज्जा)
इन्द्रस्थापना :
त्यार बाद “ ॐ ह्रीँ अर्ह क्षू हुँ इन्द्रं परिकल्पयामीति स्वाहा " ए मंत्री ऋण वार मस्तके वासक्षेप करी इन्द्रनी स्थापना करवी.
'इन्द्राणी स्थापना :
पछी “ ॐ ॐ ह्रीँ को ऐं क्लीं सौं इन्द्राणीं परिकल्पयामीति स्वाहा " ए मंत्री त्रण वार मस्तके वासक्षेप करी इन्द्राणीनी स्थापना करवी.
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( भगवंतना मातपितानी स्थापना :
सौ प्रथम मळादिमंत्रित करी पहेरावा त्यार बाद आचार्य भगवंत सूरिमंत्रथी वासक्षेप करवापूर्वक भगवंतना
१ इन्द्राणीने आभूषण पहेरावता विशिष्टमंत्र बोली शकाय छे ते परिशिष्ट १ -ॠ मां आपेल छे.
२. आ विधान मूळ विधिमां आवतुं नथी. परंतु प्रचलितव्यवहारथी जणावेल छे. ते संबंधी मंत्र पण बोली शकाय ते मंत्र परिशिष्ट नं. १- मां आपेल छे.
||७०#
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥७१॥
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मात पितानी कल्पना करे.)
वेदिक उपर स्वस्तिकः-
99
ॐ ह्रीँ नमो भगवती विश्वव्यापिनो हाँ ह्रीँ हूँ हूँ हीँ हू सिंहासने स्वस्तिकं पूरयामीति स्वाहा ए मंत्र ण वार कही इन्द्राणीना हाथे धवलगीतसहित वेदिका उपर पांच स्वस्तिक कराववा. अंगन्यासः -- पछी नीचे आपला मंत्रोथी ते ते अंगो पर न्यास करवोः -- (त्रण वार)
मंत्रो
न्यास करवाना अंगो
मस्तक पर मुख पर
हृदय पर नाभि पर बने पग पर
सर्व अंग पर
ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं ह्राँ शीर्ष रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो सिद्धाणं ह्रीँ वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं हूँ हृदयं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीँ नमो उवज्झायाणं हूँ नाभि रक्ष रक्ष स्वाहा | ॐ ह्रीँ नमो लोए सव्व साहूणं ह्रीँ पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा | ॐ ह्रीँ नमो ज्ञान - दर्शन - चारित्र तपांसि हूः सर्वाङ्ग रक्ष रक्ष स्वाहा । करन्यासः -- पछी नीचेना मंत्रोथी हाथना ते ते अवयवो द्वारा करन्यास करवो: - - (त्रण वार )
॥७१॥
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अञ्जन प्र. कल्प
मंत्रो
॥७२॥
CONSTRUALSACRECRETARA
न्यास योग्य हाथना विभागो ॐ हाँ अर्हन्तो अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
बने अंगुठाओ पर ॐ ही सिद्धाः तर्जनीभ्यां नमः।
बने तर्जनी आंगलीओ पर ॐ हूँ आचार्या मध्यमाभ्यां नमः।
बंने वचली , " ॐ हैं हौं उपाध्याया अनामिकाभ्यां नमः ।
बंने अनामिका " "
बने टचकी ॐ ह्रः सर्वसाधवः कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
, , ॐ हाँ ह्रीं हूँ हैं ही हूः दर्शनज्ञानचारित्रतपांसि धर्माः
बंने हाथना उपर तथा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
नीचेना भाग उपर गुरुपूजन :--
"ॐ हौँ नमो अरिहंताणं, ॐ हौँ नमो अहं नमो हंसः नमो हेसः नमो हंस; गुरुपादुकाभ्यां नमः" ए मंत्र बोली गुरुपूजन कर. || धर्माचार्यपूजन :--
"ॐ हाँ हाँ नमो अहं हंसः धर्माचार्याय नमः" ए मंत्र द्वारा धर्माचार्य, पूजन करवू.
985A5A5उन्मान
॥७२॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥७३॥
सिंहासनपूजन:___“ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ ह्रौ हः अहं परमब्रह्मणे अ-सि-आ-उ-साय नमो हंसः स्वाहा" ए मंत्र बोली | अरिहंत प्रभुना सिंहासनादिक पर बासक्षेप करवो. नूतनबियो उपर वासक्षेप :
"ॐ हाँ हाँ हूँ हैं ही हू: अर्हद्भयो नमः ॐ ह्रीँ नमो अरिहंताणं ॐ ही अर्हते नमः" ए मंत्रथी वासक्षेप मंत्रीने नवा विबो पर करवो. वासक्षेपयुत दूधथी सर्वांगविलेपनः___ त्यार बाद " ॐ परमहंसाय परमेष्ठिने हंसः हंसः हसः हैं हैं हाँ हाँ हूँ है हो है हः अहंते नमः" ।
श्रीजिनबिम्बं संस्थापयामि संवौषट् ' ए मंत्रथी पाणी साथे वासक्षेप मंत्रीने नवीन जिनर्वित्र पर नांखवो तथा तेनु | सर्व अंगे विलेपन करवू. पछी तेनी आगळ दूधथी भरेलो सुवर्ण कलश स्थापवो.
सुवर्णकळशमां विंबस्थापन :--नीचेना के श्लोक तथा मंत्र बोलया पूर्वक पूर्व अप्रतिष्ठित नूतन जिनबिंबने | धथी भरेला सुवर्णकळशमा स्थापवाः--
9SAMACCORRECENCRECHAR
॥७३॥
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अञ्जन प्र.कल्प
COACCALCALC
॥७४॥
सुकृतकरणदक्षः, पञ्चमुख्यः समस्तः, सकलदुरितनाशः, छिन्नदुष्कर्मपाशः । विमलकुलप्रवृद्धयै, देवलोकाच्च्युतः श्री-नियतपदसमृद्धथै मानुषेऽर्हन् सदा त्वम् ॥१॥ (मालिनी) रत्नत्रयालंकरणाय नित्य-मच्छायकायाय निरामयाय ।।
__निःस्वेदतानिर्मलतायुताय, नमो नमः श्रीपरमेश्वराय ॥ २ ॥ (उपजाति) ___ आबे श्लोको बोली " ॐ हाँ हाँ हूँ हैं हौ हः अहं नमो हंसः श्रीमदह देवलोकाच्च्युत्वा मानुषत्वेऽवातरत् हंसा हंसः हंसः श्रीपरमेश्वराय नमः स्वाहा"
॥इति च्यवन मंत्रः॥ बिंब उपर वासक्षेप :--
“ॐ हाँ हाँ को य र ल व श ष स ह क्षौ सं हंसः अमुष्य प्राणान् इह प्राणे, अमुष्य जीव इह स्थितः सर्वेन्द्रियाणां वाङ्मनश्चक्षुःश्रोत्रमुखजिह्वाः स्थापय संवौषट् वषट् स्वाहा स्वधा" ए मंत्र बोलीने वासक्षेप प्रभुजी उपर करवो.
॥ इति प्राण प्रतिष्ठा ॥ मातृकान्यास:--
पछी नीचेना मंत्रोथी जिनबिंबना ते ते अंगो पर मातृन्यास करवो.
AURUSOURCROSSURE
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॥७४||
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M
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अञ्जन
प्र. कल्प
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मंत्रो
• ह्रीँ अर्ह ॐ ह्रीँ " मोक्षद्वारे
"ॐ ह्रीँ अहे श्रीँ अ आ " ललाटे दक्षिणतः दक्षिणेतर नेत्रयोः
ई "
27
" उ ऊ " कर्णयोः
," " ऋ ऋ" नासापुटयोः
46
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""
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," लूलू " गल्लयोः
" ए ऐ " ऊर्ध्वाधोदतपङ्क्त्योष्ठयोः
""
ओ ओ " स्कन्धयोः
"
15
•,,, अं " मस्तके
"
"
" अ: " जिहा
" "
"
" " ग घ " कण्ठे
क ख " मुखमण्डले
"
. "
अंगन्यास
मस्तक पर
ललाट पर जमणी बाजुए
बने आंखो पर
कानो पर नासिका पर
गालो पर
उपर नीचे दांत तथा होठो पर.
खभा पर
माथा पर
जीभना अग्र भाग पर
मुख पर
कंठ पर दादी पर
॥७५॥
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BORDE
अञ्जन प्र. कल्प
॥७६॥
" "" च छ ज झ" दक्षिणभुजे
, त्र" वामभुजे ,, ,, ट ठ ड ढ ण" दक्षिणकुक्षौ ,,, त थ द धन" वामकुक्षौ ", प" दक्षिणोरौ
,, फ" वामोरी ,, ,, ब" गुह्ये ,, ,, भ" नाभिमंडले ,,,, म" स्फिजोः इन्द्रियोभयपार्श्वयोः । ,,,, य" शरीरस्थाने उदरे ,, ,, र" उर्ध्वरोमाञ्चे
ल" पृष्ठे ",,,,, व" ग्रीवाकक्षादिसन्धिषु ,,,,,श" जानुयुग्मयोः
जमणा हाथ पर डाबा हाथ पर जमणी कुख पर डाबी कुख पर जमणा साथळमां डाबा साथळमां गुह्य स्थानमा नाभि पर बे कुला उपर तथा इन्द्रियना बने पडखे. शरीर स्थान ने उदर पर ऊर्ध्वस्थानना रोमांच एटले मस्तकादिनी वालो पर पीठ पर कंठ तथा कक्षा (काख) वगेरे सांधाओमां बंने जानु (घुटण) उपर
R ERALCREGARLS
॥७६॥
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N
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________________
"""""प" गुल्फमूलयोः
घुटणना मूळ (ढांकणी) पर अञ्जन """ ",, स" पादयोः
बंने पग उपर प्र. कल्प " ,, ,, ,,, ह" हृदये सर्वप्राणस्थाने
हृदय पर ॥७७॥
बिंब उपर वासक्षेपः-- ___ पछी “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौ शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा; ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीँ नमो अरहताणं, ॐ ह्रीँ नमो अमहंताणं वा, अहं नमः स्वाहा, ॐ ह्रीँ नमो अरहंताणं, ॐ हाँ हाँ हूँ हूँ ह्रौं हः अहं ||४|| नमः स्वाहा" ए मंत्रथी मंत्रीने प्रभुना मस्तक उपर वासक्षेप नांखवो. | कर्णोपदेशमंत्र:--
"ॐ हाँ हाँ हूँ है हो हः असिआउसा हाँ नम स्वाहा" आ मंत्रथी कानमां उपदेश करवो अने त्यार बाद नीचेना मंत्रथी प्रभुजीना मस्तक उपर वासक्षेप करतो. वासक्षेपमंत्र:--"ॐ ही परमहंसाय परमेष्ठिने परमहंसः । हँ हाँ हूँ हाँ हाँ हूँ हूँ ह्रौं हुः परमेश्वराय परमेष्ठिने नमः स्वाहा"। आशीर्वचन :
पछी नीचेनो आशिप मंत्र बोलवो--"ॐ क्लीं ह्मो वद वद वाग्वादिनी भगवती ही नमः, ॐ नमो ICI अरुहंताणं धातृभ्योऽभीप्सितफलदेभ्यः स्वाहा"।
REACHECEMARA
॥७७||
X
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अञ्जन प्र. कल्प
॥७८॥
चौदस्वप्नदर्शन :-- पछी स्वप्नदर्शनने लगता नीचेना बे श्लोको तथा मंत्र बोलवोः-- गजो वृषो हरिः साभि-षेकश्रीः स्रक् शशी रविः।
महाध्वजः पूर्णकुम्भः, पद्मसरः सरित्पतिः ॥१॥ ( अनु० ) विमानं रत्नपुञ्जश्च, निधूमाग्निरिति क्रमात् ।
ददर्श स्वामिनी स्वप्नान् , मुखे प्रविशतस्तदा ॥२॥ ( अनु० ) "ॐ हौँ स्वामिनीस्वप्नदर्शनमिति स्वाहा"।
पछी स्नात्रकारके चैत्यवंदन करचु. श्रावकोए कुसुमांजलिपूर्वक श्री पार्श्वजिननो कळश कहेवो, अष्टप्रकारी || पूजा करी आरती करी आठ थोयन देवेवंदन कर.
॥ इति च्यवनकल्याणकविधिः॥
॥ इति षष्ठदिनविधिः॥ १ च्यवनकल्याणकर्नु चैत्यचंदन तथा स्तवन हस्तलिखित प्र. क. मां मळे छे. ते देववंदन करता बोली शकाय ते बन्ने
परिशिष्ट-नं.१ ल.मां आपेल छे.
25A5%A5%ान
॥७८॥
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अञ्जन प्र. कल्प
। अथ सप्तमदिन विधिः
॥७९॥
EXIOMOR
पEARSANERSASAKARSA
--: जन्मकल्याणकविधि :-- (सौ प्रथम कुंभ-दीपक उपर वासक्षेप करी क्षेत्रपाल, भैरव, दिक्पाल, ग्रह अने सोळविद्यादेवी आदिनु पूजन कर.)
आत्मरक्षा:--ॐ नमो अरिहंताणं हृदय ॐ नमो सिद्धाणं मस्तके; ॐ नमो आयरियाणं शिखायां; ॐ नमो उवज्झायाणं सन्नाहः, ॐ नमो लोए सव्यसाहणं दिव्यास्त्रम्' आत्मरक्षाने लगता आ पदो बोलवापूर्वक ते ते प्रमाणे | (त्रण धार) हस्तन्यास करवो.
शुचिकरण:--पछी नीचेना मंत्रथी शुचिकरण कर. (सर्व अंगे स्पर्श करी त्रण वार पवित्र करवा.)
"ॐ नमो अरिहंताण, ॐ नमो सिद्धाणं, ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवझायाणं, ॐ नमो लोए सव्यसाहणं, ॐ नमो आगासगामीणं, ॐ नमो हः क्षः अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा" ॥
सकलीकरण:--" क्षि प ॐ स्वा हा, हा स्वा ॐ पक्षि"ए रीते आरोह (चढवू) अवरोह (उतरवु )ना क्रमे & पग, नाभि, हृदय, मुख अने भाल पर पोतानुं त्रण वार सकलीकरण करवू.
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॥७९॥
DA
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बलियाकुलाः - - 'ॐ ह्रीँ क्ष्वीँ सर्वोपद्रवं विम्बस्य रक्ष रक्ष स्वाहा' ए मंत्रथी ऋण वार वलिवाकुळा मंत्री प्रतिष्ठा स्थानेथी पाणी सहित उडाडवा तेज धूप, चंदन, पुष्प, अक्षत वि. उछाळवा.
कुसुमांजलि:-- श्रावकोए दरेक नवीन बिंबो उपर नीचेनो श्लोक बोली कुसुमांजलि प्रक्षेप करवो:-- अभिनवसुगन्धिविकसित- पुष्पौघभृता सुगन्धधूपाढ्या ।
विवोपरि निपतन्ती सुखानि पुष्पाञ्जलिः कुरुताम् || (आर्या)
विघ्नोत्त्रासन तथा जलाच्छोदनः -- त्यार बाद गुरुए बने बचली आंगळीओ ऊंची करीने नवीन विबोने रौद्र दृष्टिथी तर्जनी मुद्रा देखाडवी.
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पछी श्रावको डावा हाथमां जळ लईने “ उम्हां म्लो " ए मंत्र बोली सर्व नूतन जिनविवोने आच्छादन कर. कवचकरण तेमज दिग्बंधन:--
गुरु भगवंते 'ॐ ह्रीँ वीँ सर्वोपद्रवं विम्बस्य रक्ष रक्ष स्वाहा' ए मंत्र भणी त्रिंबोना दृष्टिदोष निवारवा वज्रमुद्रा; गरुडमुद्रा तथा मुद्गरमुद्राथी त्रण वार कवच कर.
तेज तेज मंत्री दिग्बंधन कर.
||८०||
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अञ्जन प्र. कल्प
॥८
॥
सप्तधान्यनी वृष्टि :___ पछी श्रावकोए शण, कळथी, राई, जव, सरसव, कांग तथा अडदनी व्रण मुठीओ बिंब उपर नांखवी. तेमज कुळदेवी अंबिकानी पूजा करवी. जिनजन्मविधान :-- नीचेना चे श्लोको तथा मंत्र बोली सुवर्णकळशमाथी प्रभुजीने वहार कावारूप जन्मविधान करवुः-- संसारद्रुमदावपावकमहा-ज्वालाकलापोपमं;
ध्यानं श्रीमदनन्तबोधकलितं त्रैलोक्यतत्त्वोपमम् । श्रीमच्छी जिनराजजन्मसमय-स्नानं मनः पावनं: ___कुम्भैनः शुभसंभवाय सुरभि-द्रव्याढयवा-पूरितैः ॥ १ ॥ (शार्दूल०) नमस्त्रिलोकीतिलकायलोका-लोकावलोकैकविलोकनाय ।
सर्वेन्द्रवन्याय जितेन्द्रियाय, प्रसूतभद्राय जिनेश्वराय ॥ २ ॥ (उपजाति) ॐ हाँ हाँ हूँ हैं ह्रौं हुः अर्हतीर्थकरपरमदेवाय, ही मातृकुक्षिप्रसवजन्मने जगज्ज्योतिःकराय अर्हते नमः स्वाहा।
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॥८
॥
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।1८२॥
अञ्जन 8 छप्पनदिककुमारिकामहोत्सवः-- प्र.कल्प पछी छप्पनदिककुमारिकाने लगता नीचेना लोको तथा मंत्रो बोलया:---
उद्योतस्त्रिजगत्यासीद, दध्यान दिवि दुन्दुभिः ।
षट्पञ्चाशदिक्कुमार्य, आगत्याऽकृषत क्रियाम् ॥ १ ॥ (अनु.) कुमार्योऽष्टावधोलोक-वासिन्यः कम्पितासनाः ।
अर्हज्जन्मावधेत्विा -ऽभ्येयुस्तत्सूतिवेश्मनि ॥ २ ॥ (अनु.) २१-अधोलोकवासिनी आठ दिक्कुमारिकाः(तेओए आवी प्रभुने तथा माताने नमन करी भूमि तेमन मूतिकागृह शुद्ध करवू.) भोगंकरा भोगवती,सुभोगा भोगमालिनी ।
सुवत्सा वत्ममित्रा, च, पुष्पमाला त्वनिन्दिता ॥ १ ॥ (अनु.)
॥८२॥
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प्र. कल्प
॥८३॥
नवा प्रभुं तदम्बां - शाने सूतिगृहं व्यधुः ।
संवर्तेनाशोधयन् क्ष्मा -मायोजनमितो गृहात् ||२|| (अनु.)
'ॐ ह्रीँ अष्टावधोलोकवासिन्यो देव्यो योजनमण्डलं सूतिकागृहं शोधयन्तु स्वाहा ' | २- लोकवासिनी आठ दिक्कुमारिकाः - ( तेओए सुगंधि जळ तथा पुष्प वरसाववा. )
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मेघंकरा मेघवती, सुमेधा मेघमालिनी । तोयधरा विचित्रा च चारिषेणा बलाहका ॥१॥ (अनु.) अष्टोर्ध्वलोकादेत्यैता, नत्वाऽर्हन्तं समातृकम् । तत्र गन्धाम्बुपुष्पौध- वर्षा हर्षाद्विनिरे ॥२॥ (अनु.) 'ॐ ह्रीँ अष्टावूर्ध्वलोकवासिन्यो देव्यो योजनमण्डलं गन्धाम्बुपुष्पौधं वर्षयन्तु स्वाहा ' ||
३ - पूर्वदिशावासिनी आठ दिक्कुमारिका : - ( तेओए दर्पण करवा. )
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अय नन्दोत्तरा नन्दा, आनन्दानन्दिवर्धने । विजया वैजयन्ती च जयन्ती चापराजिता ॥ (अनु.) ॐ ह्रीँ अष्ट पूर्वरुचकवासिन्यो देव्यो विलोकनार्थं दर्पणानि अग्रे घरन्तु स्वाहा ' ॥
४ - दक्षिणदिशावासिनी आठ दिक्कुमारिकाः - ( ते ओए पूर्ण कळश लई अभिषेक करवा भने गीत गान करवा . )
॥८३॥
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अञ्जन प्रकल्प
॥८४॥
13 समाहरा सुप्रदत्ता. सुप्रबुद्धा यशोधरा । लक्ष्मीवती शेषवती, चित्रगुप्ता वसुन्धरा ॥ (अनु.)
RI 'ॐ ही अष्टौ दक्षिणरुचकवासिन्यो देव्यः स्नानार्थ करे पूर्ण कलशान् धृत्वाऽभिषेकं कुर्वन्तु, गीतगाने विदधतु स्वाहा ॥ दि) ५-पश्चिमदिशावासिनी आठ दिक्कुमारिका:- तेओएपंखा बींझवा.) + इलादेवी सुरादेवी, पृथिवी पद्मवत्यपि । एकनासा नवमिका, भद्रा शीतेति नामतः ॥ (अनु.)
ॐ हाँ अष्टौ पश्चिमरुचकवासिन्यो देव्यो बीजनार्थ व्यजनानि बीजयन्ति स्वाहा' । ६-उत्तरदिशावासिनी आठ दिक्कुमारिकाः-( तेओए चामर वीझवा.) | अलम्बुपा मितकेशी, पुण्डरोका च वारुणी । हासा सर्वप्रभा श्री हो-रष्टोदग्रुचकादितः ॥ (अनु.) ___ " ॐ ह्रीँ अष्टौ उत्तररुचकवासिन्यो देव्यो वालव्यजनानि चामराणि वीजयन्तु स्वाहा"। ___७. विदिशाओमा रहेली रुचकवासिनी चार दिक्कुमारिकाः-(दीपकनो प्रकाश आपे.) चित्रा च चित्रकनका, सुतारा वसुदामिनी। दीपहस्ता विदिश्वेत्या-ऽस्थुर्विदिग्रुचकादितः ॥ (अनु.)
"ॐ ह्रीँ चतस्रो विदिग्रुचकवासिन्यो देव्यः प्रदीपहस्ता उद्योतं कुर्वन्तु स्वाहा"।
CRORECARRRRRRRRRC
GACAAAAAनालल
॥८४॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥८५॥
२२
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८. चार रुचक द्वीपवासिनी दिक्कुमारिका :- (चार आंगळनी नाळ छेदी भूमि खोडीने नांखे.) रूपा रूपासिका चापि, सुरूपा रूपकावती । चतुरङ्गुलतो नालं, छित्त्वा खातोदरेऽक्षिपन् । (अनु.) “ॐ ह्रीँ चतस्रो रुचीपवासिन्यो देव्यः चतुरङ्गुलतो नाल छित्त्वा भूखानोदरे क्षिपन्तु स्वाहा " । केलीघररचनाः-
"ॐ ह्रीँ पूर्वोत्तरदक्षिणेषु रम्भागृहत्रयं व्यधुः स्वाहा " केलीधरनी रचना करवी.
“ॐ राँ रौं रूँ मेँ रौं । उत्तरे अरणिकाष्ठाभ्यां अग्निमुत्पाद्य चन्दनाद्यैर्जुहुयात् वषट् " ए मंत्र बोली अरणिना लाकडांथी अग्नि उत्पन्न करीने तेमां चंदन वगेरेनो होम करी रक्षापोटली बांधवी.
पछी अनुक्रमे नीचे प्रमाणेना मंत्रोथी पवित्र १ जळकळश, २ चंदन, ३ पुष्प अने ४ स्नात्रपुटिका ( धूप) नुं अभिमंत्रण करकुं:--
१. जलमंत्रः--— ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते अपो जलं गृहाण गृहाण स्वाहा " ।
२. चंदनमंत्रः - - ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथु पृथु गन्धान गृहाण गृहाण स्वाहा' |
३. पुष्पमंत्र:--' ॐ नमो यः सर्वतो मेदिनी पुष्पवती पुष्पं गृहाण गृहाण स्वाहा' ।
४. धूपमंत्रः - - ' ॐ नमो यः सर्वतो बलिं दह दह महाभूते तेजोधिपते धूपं गृहाण गृहाण स्वाहा' |
॥ ८५॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥८६॥
रक्षापोटली; अरीठानी माळा तथा जवनी माळा पहेरावधानी विधि:
पछी दृष्टिदोष निवारण माटे नीचेना मंत्रथी मत्रित पंचरत्ननी रक्षापोटली नवीनवियना जमणां हाथनी आंगलीओमां बांधवी. तेमज कंठमा अरीठानी माळा तथा जवनी माला पहेरायवी. मंत्र:-"ॐक्षा क्षी श्री स्वाहा"
पछी जळयात्राथी लावेला जळने पवित्र जळकुंडीमां भरी तेमां वास, चंदन, पुष्प आदि नांखी “ॐ हीं नमः" ए मंत्रथी जलदर्शन कर तथा धूप, दीप, गीत, गान, नाटक विगेरे करवू.
॥ इति दिक्कुमारी महोत्सवः ॥
-: अथ इन्द्राणी महोत्सव :प्रभुजीने तिलकः--
नीचेना बे श्लोको तथा मंत्र बोल्या बाद इन्द्राणीए कुंकुमथी नवीन विंचना भाल उपर तिलक करवुः-- श्रीन्द्राण्याद्यग्रमहिष्यः, सामानिकैश्च संयुताः । अंगरक्षकदेवीभिः, समागता जिनगृहे ॥१॥ (अनु.) | तारा तिलोत्तमा, तारू-मनोवेगा च मोहिनी। सुन्दरी त्रिपुरा चैव, माना मानवती मुदा ॥२॥ (अनु.) __“ॐ नमो जिणाणं, मरणाणं, मंगलाणं, लोगुत्तमाणं, हाँ हाँ हूँ हूँ हौ हुः असिआउसा त्रैलोक्यललामभृताय अहंते नमः स्वाहा" ॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
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त्यार बाद इन्द्राणीए गीत, गायन, नाटक आदि कर.
॥ इति इन्द्राणी महोत्सव ॥
--: अथ इन्द्रमहोत्सव :--
सौ प्रथम तेने लगता नीचेना श्लोको बोलवा:-- शक्रसिंहासनकम्पन :
ततः सिंहासनं शाक्रं, चचालाऽचलनिश्चलम् । प्रयुज्याथावधिं ज्ञात्वा, अर्हज्जन्माभिषेचनम् ||१|| (अनु.)
सुघोषादावादन :
वज्र्येकयोजनां घण्टां, सुघोषां नैगमेपिणा । अवादयत्ततो घण्टा, रेणुः सर्वविमानगाः ॥ २ ॥ (अनु.)
मेरु पर्वत उपर गमन :
प्रचेलुः सुरासुरेन्द्रा, विविधैर्वाहनैर्धनैः । समागत्य जिनाम्बां च कृत्वा रूपं च पञ्चधा ॥ ३ ॥ (अनु.) एको गृहीततीर्थेशः, पार्श्वे डावात्तचामरौ । एको गृहीतातपत्र, एको वज्रधरः पुर | 11 (अनु.)
॥८७॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥८८॥
शक्रः सुमेरुशृङ्गस्थं, गत्वाऽथो पाण्डुकं वनम् । मेरुचूलादक्षिणेना-तिपाण्डुकम्बलासने ||५|| (अनु.) अभिषेकोत्सवे जैने, चतुःपष्टिः पुरन्दराः । सुमेर्वधिष्ठिते स्थाने, समेयुस्ते यथाक्रमम् ||६|| (अनु.) चमरेन्द्रो बलीन्द्रश्च, धरणेन्द्रस्तृतीयकः । भूतानेन्द्रश्च वेण्विन्द्रो, वेणुदालिस्तथैव च ॥ ७॥ (अनु.) हरिकान्त हरिसखोऽग्निसिंहोऽथाग्निमानवः । पूर्णेन्द्रोऽथ विशिष्टश्व, जलकान्तो जलप्रभः । ८|(आनु.) "अमृतगतिर्भवनेन्द्रो ऽमृतवाहननामतः । वेलम्बकः प्रभञ्जनः, घोष महाघोषकः ॥ ९ ॥ (अनु.)
१४
૨ ૨
૨૩
६ ४
कालेन्द्रोऽथ महाकालः, सुरूपः प्रतिरूपकः ।
२:
२१
૨૫.
२७
पूर्णभद्रो मणिभद्रो, भीमो महाभीमनामकः ||१०|| (अनु.)
२८
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किन्नरः किंपुरुषेन्द्रः, सत्पुरुषस्तथैव हि ।
33
महापुरुषव्यन्तरेन्द्रोऽतिकायश्च तथा परः || ११ || (अनु.)
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अञ्जन प्र. कल्प
॥८९॥
४७
५८
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महाकायो गीतरति-गीतयशाश्च पोडश ।
सन्निहितः समानीतो, धाता विधाताथाऽपरः ॥ १२ ॥ (अनु.) ऋषीन्द्रश्च ऋषिपालः, तथेश्वरमहेश्वरौ ।
सुवल्लो विशालेन्द्रश्च. हासो हासरतिः पुनः ॥ १३ ॥ (अनु.) श्वेतेन्द्रोऽथ महाश्वेतः, पतङ्गः, पतङ्गरतिः।
चन्द्रादित्यौ ज्योतिपेन्द्रौ, कल्पेन्द्रा दशधा पुनः ॥ १४ ॥ (अनु.) सौधर्मेन्द्रः ईशानेन्द्रः, लत्कुमारपुरन्दरः।
माहेन्द्रो ब्रह्मेन्द्रश्च, लान्तकेन्द्रस्तु पत्रिणः ॥ १५ ॥ (अनु.)
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.
॥८९॥
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अञ्जन प्र. कल्प
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८२
॥९
॥
-
शुक्रेन्द्र महस्रारः, आनतप्राणताभिधः।
आरणाच्युतशकच. इतीन्द्राश्चतुःषष्टिकाः ॥ १६ ॥ (अनु.) आ श्लोको बोलीने “ॐ हाँ हूँ सौधर्मेन्द्रादिचतुःषष्टिरिन्द्रा अस्मिन् प्रतिष्ठामहोत्सवे सर्वविघ्नप्रशान्तिकरा भगवदाज्ञया सावधाना भवन्तु स्वाहा" आ मंत्र भणवो. 'मेरु पर्वत उपर २५० अभिषेकनी विधि:-- सौ प्रथम नीचेना वे श्लोक तेमन मंत्र बोल्या वाद अच्युतेन्द्र अभिषेक करे:--- श्रीमन्मन्दरमस्तके शुचिजलै-धोते सदर्भाक्षते;
पीठे मुक्तिवरं निधाय रुचिरे, तत्पादपुष्पसजा । इन्द्रोऽहं निजभूषणार्थनमलं, यज्ञोपवीतं दधे;
मुद्राकरणशेखगण्यपि तथा, जैनाभिषेकोत्सवे ॥ १ ॥ (शादुल० ) मा १. अहीं आचारदिनकगदिमां आवती "वृहत्पनात्रविधि" प्रमाणे पण २५० अभिषेक थई शके छे. ते विधि पशिशट नं.
१-ल मा आपेल छे.
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||१०||
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॥९१॥
विश्वेश्वर्यकार्या-त्रिदशपतिशिरः-शेखरस्पृष्टपादाः;
प्रक्षीणाशे दोषाः, सकलगुणगण-ग्रामधामान एव । जायन्ते जन्तबो य-चनसरसिज-दन्द्रपूजान्विताः श्री
-हन्तं स्नात्रकाले, कलशजलभृतै-रेभिराप्लावयेत्तम् ॥ २ ॥ (गधरा) ॐ हाँ हाँ है हैं हो : अर्हते तीर्थोदकेन अष्टोत्तरशतोषधिसहितेन षष्टिलककोटिप्रमाण-5 कलशैः स्नापयामीति स्वाहा ॥ पछी-मेरुशृङ्गे च यत्स्नात्र जगभर्तुः सुरैः कृतम् । बभूव तदिहास्त्वेत-दस्मत्करनिपेकतः ।। (अनु.) ___ आ कोक बोला ए रीने वीजा २४८ अभिषेक करता, छेल्ले ईशानेन्द्र प्रभु जी ने खोलामा ले अने सौधर्मेन्द्र
भर्नु रूप करी नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोल्या बाद अभिषेक करे:-- चतुर्वृषभरूपाणि, शकः कृत्वा ततः स्यम् । शुङ्गाष्टकारत्क्षीरे-करोदभिषेचनम् ॥ १ ॥ (अनु.)
ॐ ह्रां ह्रीं अर्हते क्षीरेण स्नापयामीति स्वाहा ।। पछी अष्टप्रकारी पूजादिक करी रूपाना चोखाथी प्रभु पासे अष्टमंगळ पूरी नीचे प्रमाणे स्तुति करवी:--
॥९
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॥९२॥
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सन्मङ्गलप्रदीपं ते, विधायारात्रिकं पुनः । सङ्गीतनृत्यवाद्यादिं व्यधुर्विविधमुत्सवम् ॥ १ ॥ (अनु.) तत्र पूर्वमच्युतेन्द्र, विदधात्यभिषेचनम् । ततोऽनुपरिपाटीतो, यावच्चन्द्रार्थमादयः ||२| (अनु.)
पछी आठ थोयतुं देववंदन करं.
पछी इन्द्र जिनेश्वरने लावी माता पासे मूकी नीचेनो श्लोक बोल्या बाद ३२ क्रोड सुवर्ण अने रूपानी वृष्टि करे:-- शक्रस्तु जिनमानीय, विमुच्याम्वान्तिके ततः । द्वात्रिंशद्रत्नरैरूप्य - कोटिवृष्टि विरच्य सः ।। (अनु.) ॥ इति इन्द्र महोत्सवः ॥ ॥ इति जन्मकल्याणकविधिः ॥ ॥ इति सप्तमदिन पूजाविधिः ॥
१. देववंदन करतां हस्तलिखित प्र. क. मां आवतुं 'श्री जिनजन्माभिषेकस्तवन' कही शकाय छे. ते स्तवन परिशिष्ट नं. १-ए मां आपेल छे
॥९२॥
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॥९३॥
२४
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अथ अष्टमदिन विधिः
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पुत्रजन्मवधामणाः-
जन्मकल्याणकना विधान बाद प्रियंवदादासी राजा पासे जाय. अने
अस्मिन्नवसरे राज्ञे, दासी नाम्ना प्रियंवदा । तं पुत्रजननोदन्तं गत्वा शीघ्रं न्यवेदयत् ॥ (अनु.) आ श्लोकद्वारा त्यां पुत्रजन्मनो वृत्तांत जणावे.
-: अढारअभिषेकविधिः
राजा ( अहीं श्रावको ) पण महोत्सवपूर्वक वार दिवस सुधी पुत्र जन्म संबंधी क्रिया करे, तेमां पहेला अहार प्रकरनां स्नात्रथी शुद्धि करे एटले के एक नवी कुंडीमां पवित्र जल लेबुं तेमां वास, चंदन, पुष्प वगेरे थोडां नांखी जे जे प्रकारनुं स्नात्र करवानुं होय ते ते स्नात्रचूर्ण उमेरी तेना चार कळशो भरवा पछी जिनमुद्राथी देवसन्मुख उभा रहीने दरेक स्नात्र माटे नीचे आपेलां काव्यो तेमज गीत, गान, पंचशब्द वाजिंत्रो
॥९३॥
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अञ्जन 15 साथै मंत्रथी अभिमंत्रित करायेला स्नालथी अंढार स्नात्रो करवा. ते आ प्रमाणे :प्र.कल्प
- पहेलं (हिरण्योदक ) स्नात्र :॥९४॥ सुवर्णना चूर्णथी (सोनाना वरख मिश्रित न्हवणी ) चार कळशो भरी ‘नमोऽर्हत् ' कही नीचेना श्लोक बोलवा :- |
सुपवित्रतीर्थनी रेण, संयुतं गन्धपुष्पसंमिश्रम् ।।
पततु जलं विम्बोपरि, महिरण्य मन्त्रपरिपूतम् ॥ १ ॥ (आर्या) || सुवर्णद्रव्यसम्पूर्ण, चूर्ण कुर्यात्सुनिर्मलम् । ततः प्रक्षालनं वाभिः, पुष्पचन्दनसंयुतैः ॥२॥ (अनु.) 15 ॐ हाँ हाँ परमाईते परमेश्वराय गन्धपुष्पाक्षतधूपसंमिनस्वर्ण चूर्णसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा ॥ ६ ए मंत्रोच्चार पूर्वक स्नात्र करी विवने तिलक, पुष्प, बास, धूप वगेरेथी पूजन करवू. आ रीते दरेक स्नात्र वखते कर.
॥ इति प्रथमस्नात्रम् ॥१॥
- वीजु (पंचरत्नचूर्ण) स्नात्र :मोती, सोने, ॐ, प्रवाल अने तांड ए पंचरत्ननु चूण करी उपरनी जेमज कुंडीमां वासचंदनपुष्पवाळा १ अढार अभिषेकमा उपयोगी खास औषधीओनी यादी माटे परिशिष्ट नं. ७ जुओ. ।
आ अढार अभिषेकमां बियप्रवेशादि विधिमा आवती वृहविधि प्रमाणे पण कगवी शकाय छे. ।
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॥९४॥
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प्र. कल्प
॥९५॥
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पाणीमां नाखी चार कळशो भरी 'नमोsहेत्' कही नीवेना श्लोक अने मंत्र बोली अभिषेक करवो :यन्नामस्मरणादपि श्रुतिवसा दप्यक्षरोचारतोः
यत्पूर्णप्रतिभाप्रणाम करणात् संदर्शनात्स्पर्शनात् । स्वानस्य कि सत्पयः
भव्यानां भवानि
-स्नात्रेणापि तथा स्वभक्तिवशतो, रत्नोत्सवे तत्पुनः || १ || ( शार्दूल ० ) नानारत्नौघयुतं सुगन्धपुष्पाभिवासितं नीरम् ।
पतताद विचित्रचूर्ण, मन्त्रायं स्थापनाविम्वे || २ || (आर्या)
ॐ ह्रीं ह्रीँ परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादि संमिश्रमुक्ता-स्वर्ण रौप्य प्रवाल- ताम्ररूपपञ्चरत्नचूर्णसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा ॥
॥ इति द्वितीय स्नात्रम् ||२||
-: श्रीजुं ( कषाय ) स्नात्रः
कपायचूर्णयुक्त पाणीना कळशो भरी नीचेना श्लोक अने मंत्र बोली अभिषेक करवो :
॥९५॥
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प्र. कल्प
॥९६॥
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लक्षाश्वत्थोदुम्बर- शिरीपवल्कादिकल्कसंमिश्रम् ।
विम्वे कषायन, पतनादधिवासितं जैने ॥ १ ॥ ( आर्या ) पिप्पली पिप्पलश्चैव, शिरीषोदुम्बरस्तथा ।
वटादिछल्लिपुग्वार्भिः स्नपयामि जिनेश्वरम् || २ || (अनु.)
ॐ ह्रीं ह्रीँ परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्र पिपल्यादिमहाछल्लीकषाय चूर्णसंयुतजलेन स्वापयामीति स्वाहा ॥ || इति तृतीयस्नात्रम् ||३||
-: चोथुं ( मंगलमृत्तिका ) स्नान:
आठ जातिनी माटीनुं चूर्ण करी पाणीमां नांखी कळशो भरी नीचेना श्लोक अने मंत्र बोली अभिषेक करवो :परोपकारकारी च प्रवरः परमोज्ज्वलः ।
भावनाभव्यसंयुक्तो, मृच्चूर्णेन च स्नापयेत् ॥ १ ॥ (अनु.)
पर्वत सरोनदी संगमादि- मृदुभिश्र मन्त्रपूताभिः । उद्वर्त्य जैनविम्बं स्नाप्याम्यधिवासनासमये ||
॥ ( आर्या )
॥९६॥
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॥९७॥
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“ ॐ ह्रीँ ह्रीँ परमाईते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्रनदी - नग-तीर्थादिमृच्चूर्णसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा " ॥ इति चतुर्थस्नात्रम् ||४||
-: पांच (सदौषधि) स्नात्र:
सहदेवी वगेरे औषधचूर्ण करी पाणीमां नांखी कळशो भरी नीचेना श्लोक अने मंत्र बोली अभिषेक करवो :सहदेवी शतमूली, शङ्खपुष्पी शतावरी ।
कुमारी लक्ष्मणाऽभिश्र, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥ १ ॥ (अनु.) सहदेव्यादिसदौषधि-वर्गेणवर्तितस्य विम्बस्य |
संमिश्रं विम्वोपरि, पतज्जलं हरतु दुरितानि ॥ २ ॥ ( अनु० ) परमाते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्रसह देव्यादिसदौपधिचूर्णसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा ॥ इति पंचमस्नात्रम् ||५||
-: छ (प्रथमाष्टकवर्ग ) स्नात्र:
उपलोट वि. आठ वस्तुओनुं चूर्ण करी पाणीमां नांखी कळशो भरी नीचेना श्लोक अने मंत्र बोली अभिषेक करवो :
॥९७॥
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॥९८॥
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नानांकुष्ठाद्यौषधि-सम्मृष्टे तद्युतं पतन्नीरम् ।
विम्बे कृतसन्मन्त्रं. कौघं हन्तु भव्यानाम् ॥ १ ॥ (आर्या) उपलोट-बचालोद्र-हीरवणीदेवदारवः ।।
यष्टि-मध्वृद्धि-दुर्वाऽदभिः, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥ २॥ ( आर्या ) हाँ ही परमाईते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्रकुष्ठाद्यष्टकवर्गचूर्णसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा ॥
॥ इति षष्ठस्नात्रम् ॥६॥
-: सातमु (द्वितीयाष्टकवर्ग) स्नात्रःपतंजरीआदि द्वितीयअष्टवर्गचूर्णमिश्रित पाणना कळशो भरी नीचेना लोक अने मंत्र बोली अभिषेक करवो :
मेदाद्यौषधिभेदो-ऽपरोऽष्टवर्गः सुमन्त्रपरिपूतः ।।
जिनविम्वोपरि निपतन , सिद्धिं विदधातु भव्यजने ॥ १ ॥ ( आर्या ) पतञ्जरी विदारी च, कच्चूरः कच्चुरी नखः ।
कङ्कोडी क्षीरकन्दश्च, मुसल्या स्नापयाम्यहम् ॥ २ ॥ (अनु.)
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॥९८॥
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॥ ९९ ॥
ॐ
हीँ परमाते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्रपतञ्जर्यादिद्वितीयाष्टकवर्गचूर्णसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा ॥ ॥ इति सप्तमस्नात्रम् ॥७॥
-: आठमुं ( सर्वोषधि) स्नात्रः
प्रियंगु वगेरे ३३ औषधिओनुं चूर्ण करो पाजीमां नांखी कळशो भरी नीचेना श्लोक ने मंत्र बोली अभिषेक करवो :सुपवित्रमूलिकावर्ग- मर्दिते तदुदकस्य शुभधारा ।
विम्वेऽधिवाससमये, यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती ॥ १ ॥ ( आर्या ) प्रियङ्गु - वत्स - कङ्केली-रसालादितरूद्भवैः ।
पल्लवैः पत्रभल्लाते-रेलचीतजसत्फलैः || २ || (अनु.) विष्णुक्रान्ता हिमवाल - लवङ्गादिभिरष्टभिः । मूलाष्टकैस्तथा द्रव्यैः, सदौषधिविमिश्रितैः || ३ || (अनु.) सुगन्धद्रव्यसन्दोह - मोदमत्तालिसंकुलैः । विदधे महास्नात्रं, शुभसन्ततिसूचकम् || ४ || (अनु.)
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॥९९॥
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॥१०॥
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"ॐ ह्रां ह्रीं परमाईते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसामाप्रयंग्वादिसर्वोपधिचूणसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा ॥
॥ इति अष्टमस्नात्रम् ॥८॥ ___ त्यार पछी गुरु उभा थई-परमेष्ठिमुद्रा, गुरुडमुद्रा अने मुक्ताशुक्तिमुद्रा ए त्रण मुद्राथी नीचेना मंत्रद्वारा | है जिनेश्वरनुं आह्वान करे.
आहानमंत्र:-"ॐ नमोऽहत्परमेश्वराय, त्रैलोक्यगताय, अष्टदिक्कुमारीपरिपूजिताय, देवेन्द्रमहिताय, देवाधिदेवाय, दिव्यशरीराय, त्रैलोक्यपरिपूजिताय आगच्छ आगच्छ स्वाहा" ॥
-नवमुं (पंचगव्य अथवा पंचामृत ) स्नात्र:| पंचामृतना कळश भरी नीचेना श्लोक तथा मंत्र बोली अभिषेक करयो :
जिनबिम्बोपरि निपतन, घृत-दधि-दुग्धादिद्रव्यपरिपूतम् ।
दर्भोदकसंमिश्र, पञ्चगवं हरतु दुरितानि ॥ १ ॥ ( आर्या ) वरपुष्पचन्दनैश्च, मधुरैः कृतनिःस्वनैः । दधि-दुग्ध-घृतमित्रैः, स्नपयामि जिनेश्वरम् ॥२॥ (अनु.) १ अहीं जिनाहयान अढार अभिषेक बृहविधिमां आयती विधि द्वारा पण थई शके छे. ते परिशिष्ट नं. १-ऐ मां आपेल छे.
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॥१००॥
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॥१०॥
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| "ॐ हाँ हाँ परमाईते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्रपञ्चामृतेन स्नापयामीति स्वाहा"
॥ इति नवमं स्नात्रम् ॥९॥
___ - दशमुं (.सुगंधौषधि) स्नात्रःअंबर वि. सुगंधी वस्तुओर्नु चूर्ण करी पाणीमां नांखी कळश भरी नीचेना लोक ने मंत्र बोली अभिषेक करयो :सर्वविघ्नप्रशमनं, जिनस्नात्रसमुद्भवे । वन्धं सम्पूर्णपुण्यानां, सुगन्धैः स्नापयेजिनम् ॥१॥ (अनु.)
सकलौषधिसंयुक्त्या, सुगन्धया घर्षितं सुगतिहेतोः।
स्नपयामि जैनविम्बं, मन्त्रिततन्नीरनिवहेन ॥ २ ॥ ( आर्या ) “ॐ हाँ हाँ परमाईते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्राऽम्बरोसीरादिसुगन्धद्रव्यसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा" ।
॥ इति दशमं स्नात्रम् ॥१०॥
:- अगीयारभु (पुष्प) स्नात्र:१ सेवंत्रा, २ चमेली, ३ मोगर, ४ गुलाब, ५ जूई ए पांच जातनां फूलो पाणीमा नांखी कळशो भरी नीचेना श्लोक तथा मंत्र बोली अभिषेक करवो :
॥१०॥
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॥१०२॥
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अधिवासितं सुमन्त्रैः, सुमनःकिञ्जल्कवासितं तोयम् ।
तीर्थजलादिमुक्तं, कलशोन्मुक्तं पततु बिम्बे || १ || ( आर्या )
सुगन्धिपरिपुष्पौधे-स्तीर्थोदकेन संयुतैः । भावनाभव्यसन्दोहैः, स्नापयामि जिनेश्वरम् || २ || (अनु.) "ॐ ह्रां ह्रीँ परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्र पुष्पौघसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा " ।। ॥ इति एकादशं स्नानम् ॥
-: बारमुं ( गन्ध ) स्नात्र:
१ केसर, २ कपूर ३ कस्तूरी, ४ अगर, ५ चंदन ए घसी पाणीमां नांखी कळशो भरी नीचेना श्लोक अने मंत्र बोली अभिषेक करवो.
गन्धाङ्गस्नानिकया, सम्मृष्टं तदुदकस्य धाराभिः ।
)
स्नपयामि जैनविम्वं, कम घोच्छित्तये शिवदम् ॥ १ ॥ ( आर्या कुङ्कुमाद्यैश्च कर्पूरै - र्मृगमदेन संयुतः ।
अगरु चन्दन मिश्रः, स्नपयामि जिनेश्वरम् || २ || (अनु.)
॥१०२॥
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॥१०३॥
ॐ ह्रां ह्रीँ परमाहिते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्रयक्षकर्दमादिगन्धचूर्णसंयुतजलेन स्नपयामीति स्वाहा || ॥ इति द्वादशं स्नात्रम् ॥
-: तेरमुं (वास) स्नात्र :
१ चंदन, २ केशर, अने ३ कपूरनुं चूर्ण करी पाणीमां नांखी कळश भरी नीचेना श्लोक ने मंत्र बोली अभिषेक करवो :
ह्रादकरैः स्पृहणीयैर्मन्त्रसंस्कृतैर्जेनम् ।
स्नपयामि सुगतिहेतो -सैरधिवासितं विम्वम् || १ || ( आर्या )
शिशिरकरकराभैश्चन्दनैश्चन्द्रमिश्रे - बहुलपरिमलौघैः प्रीणितं प्राणगन्धैः । विनमदमरमौलि - प्रोत्थरत्नांशुजालै - जिनपतिवरशृङ्गे, स्नापयेद् भावभक्तया ||२|| (मालिनी) "ॐ ह्रां ह्रीँ परमार्हते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्रसुगन्धवासचूर्णसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा " || ॥ इति त्रयोदशस्नानम् ॥
॥१०३॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥१०४॥
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-: चौदमुं (चंदनदुग्ध ) स्नात्र :
दूध अने चंदनमिश्रित जळना कळशो भरी नीचेना श्लोक ने मंत्र बोली अभिषेक करवो :
शीतलसरससुगन्धि-र्मनोमतश्चन्दनद्रुमसमुत्थः ।
चन्दनकल्कः सजलो, मन्त्रयुतः पततु जिनबिम्बे || १ || ( आर्या ) assage मथस्य च महत् - श्रीसिद्धिकान्तापतेः,
सर्वे तस्य शरच्छशाङ्गविशद - ज्योत्स्नारसस्पर्द्धिना ।
कुर्मः सर्वसमृद्धये त्रिजगदा - नन्दप्रदं भूयसाः
::
स्नानं सविकसत्कुशेशयपद - न्यासस्य शस्याकृतेः || २ || ( शार्दु ल ०) 'ॐ ह्रां ह्रीँ परमाईते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्रक्षीर चन्दनसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा' |
॥ इति चतुर्दशस्नात्रम् ॥
॥१०४॥
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अञ्जन प्र.कल्प
।।१०५॥
CURRECRORESCARRIERRBHA
-: पंदरमु( केशर-साकर ) स्नात्र:केसर अने साकर पाणीमां नांखी नीचेना श्लोक तथा मंत्र बोली अभिषेक करवो. कश्मीरजसुविलिप्तं, विम्बं तन्नीरधारयाऽभिनवम् ।
सन्मन्त्रयुक्तया शुचि, जैनं स्नपयामि सिद्धयर्थम् ॥ १ ॥ ( आर्या ) वाचःस्फारविचारसारमरैः, स्याद्वादशुद्धामृत
स्यन्दिन्यः परमार्हतः कथमपि, प्राप्यं न सिद्धात्मनः । मुक्तिश्रीरसिकस्य यस्य सुरस-स्नात्रेण किं तस्य च,
__ श्रीपादद्रयभक्तिभावितधिया, कुर्मः प्रभोस्तत्पुनः ॥ २ ॥ ( शार्दूल . ) 'ॐ हाँ हाँ परमाईते परमेश्वराय गन्धपुप्पादिसंमिश्रकश्मीरजशर्करासंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा' ॥
॥ इति पञ्चदशस्नात्रम् ।। | [ उपर प्रमाणेनी बाबत पहेला दिवसनी कुळ मर्यादा रूप छे, पछी त्रीजे दिवसे चंद्र-सूर्यनुं दर्शन करावाय |
4-55-44-44+4+4+4+4+435
॥१०५॥
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- R
अञ्जन प्र.कल्प
॥१०६॥
R
अटले विबोने (चंद्र-सूर्य, स्वप्न के ) आरीसो देखाडयो, पछी छठे दिवसे धर्मजागरण अटले धर्म स्तुति करवी पछी दसुठण करवु.]
:- सोळमुं (तीर्थोदक ) स्नात्र :अहिं एकसोआठ तीर्थोनां पाणी कळशोमां भरी नीचेना श्लोक तण मंत्र बोली अभिषेक करयो :जलधिनदीद्रहकुण्डेषु, यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि ।
तैर्मन्त्रसंस्कृतैरिह, बिम्बं स्नपयामि सिद्धयर्थम् ॥ १ ॥ (आर्या) नाकिनदीनदविहितैः, पयोभिरम्भोजरेणुभिः सुभगैः ।
श्रीमज्जिनेन्द्रपादौ, समर्चयेत् सर्वशान्त्यर्थम् ॥ २ ॥ (आर्या) ॐ हाँ हाँ हूँ हैं हौ हः परमाईते परमेश्वराय गन्धपुप्पादिसंमिश्रतीर्थोदकेन स्नापयामीति स्वाहा ॥
॥ इति षोडशस्नात्रम् ॥
RRRRRC-%A-CA
न
१. चंद्र-सूर्यदर्शनना मंत्रो प्रतिष्टाकल्पमा आवतां नथी एण अष्टादशअभिषेक बृहदविधिमां आवे छे अने हाल अढार अभिषेक
समये बोलाय छे ते परिशिष्ट न. १-ओ मां आपेल छे.
॥१०६॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥१०७।।
KAROOPERACTERING
- सत्तर# ( कर्पूर ) स्नात्रःकपूर पाणीमा नांखी कळशो भरी नीचेना श्लोक अने मंत्र बोली अभिषेक करयो :
शशिकरतुषारधवला, उज्ज्वलगन्धा सुतीर्थजलमिश्रा।
____ कर्पूरोदकधारा, सुमन्त्रपूता पततु बिम्बे ॥ १ ॥ (आर्या) कनककरकनाली मुक्तधाराभिरभि-र्मिलितनिखिलगन्धैः, केलिकपूरभाभिः । अखिलभुवनशान्त्यै, शान्तिधारा जिनेन्द्र-ऋमसरसिजपीठे, स्नापयेद वीतगगान् ॥२॥ (मालिनी) ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हूँ हाँ हूः परमाईते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्रकर्पूरसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा ।।
॥ इति सप्तदशस्नानम् ॥
___-: अढारमु ( केशर-चंदन-पुष्प ) स्मात्रःकेशर-कस्तूरी-चंदनमिश्रितपाणीना कळशा भरी नीचेना श्लोक तथा मंत्र बोली अभिषेक करवो :सौरभ्यं घनसारपङ्कजरजो-भिः प्रीणितैः पुष्करैः;
शीतैः शीतकरावदातरुचिभिः, काश्मीरसम्मिश्रितैः ।
॥१०७॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥१०८॥
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श्रीखण्डप्रसवाचलेच मधुरै - नित्यं लघिष्टवरैः;
सौरभ्योदकसख्य सार्व्वचरण - इन्द्रं यजे भावतः || १ || ( शार्दूल० )
'ॐ ह्रीँ ह्रीँ हूँ हैँ ह्रीँ हूः परमार्हते परमेश्वराय गन्ध - पुष्पादिसंमिश्र कश्मीरज चन्दनादिसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा' ॥
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॥ इति अष्टादशस्नात्रम् ॥ १८ ॥
'त्यार बाद नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली कुसुमांजलि करवी :नानासुगन्धिपुष्पोघ - रञ्जिता चञ्चरीककृतनादा |
धूपाऽमोदविमिश्रा, पततात्पुष्पाञ्जलिर्बम्बे || १ || (आर्या) 'ॐ ह्रां ह्रीँ हूँ हूँ ह्रीँ हू: परमाईते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ पछी श्री संघसहित अधिकृत जिननी स्तुति आदिकथी देववंदन कर | देववंदनविधि:- खमा०, इरियावहिया • करी सकलकुशल, अधिकृतजिनतुं के 'ॐ नमः पार्श्वनाथाय
१. अहीं पुष्पांजलि कर्याबाद - घी-दूध आदि पंचामृत, तथा शुद्धजलनो अभिषेक अष्टादश अभिषेक वृहद् विधि प्रमाणे करी शकाय छे. तेनी विधि परिशिष्ट नं.-१ ऐ मां आपेल छे.
॥१०८॥
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।
अञ्जन प्र.कल्प
॥१०९॥
ॐEE
5 चैत्यवंदन कही जंकिंचि०, नमुत्थुणं०, अरिहंतचेइयाणं०, अन्नत्थ०, एक नवकारनो काउ० करी 'नमोऽर्हत् ' कही | नीचेनी स्तुति कहेवी :
अर्हस्तनोतु स श्रेयः-श्रियं यद्ध्यानतो नरैः ।
___अप्यैन्द्री सकलाऽत्रैहि, रंहसा सह सौच्यत ॥ १ ॥ (अनु.) पछी लोगस्स०, सव्वलोए अरि०, अन्नत्थ०, १ नव० नो काउ० करी स्तुति कहेवी :
अमितिमन्ता यच्छा-सनस्य नन्ता सदा यदहोश्च ।
आश्रीयते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥ २ ॥ (आर्या) पछी पुक्खर०, सुअस्स भगवओ०, बंदण०, अन्नत्थ०, १ नव० नो काउ० करी स्तुति कहेवी :
नवतत्त्वयुता त्रिपदी, श्रिता रुचि-ज्ञान-पुण्य-शक्तिमता ।
वरधर्मकीर्ति-विद्या-ऽऽनन्दाऽऽस्या जैनगीर्जीयात् ॥ ३ ॥ (आर्या) ___ पछी 'श्रीशान्तिनाथआराधनाथ' करेमि०, का. वंदण०, अन्नत्थ०, १ लोगस्स सागरवरगंभीरा० काउ० करी 'नमो०' स्तुतिः
॥१०९॥
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अञ्जन प्र.कल्प
SARA
॥११०॥
श्रीशान्तिः श्रुतशान्तिः, प्रशान्तिकोऽसावशान्तिमुपशान्तिम् ।
नयतु सदा यस्य पदाः, सुशान्तिदाः सन्तुसन्ति जने ॥ ४ ॥ (आर्या) पछी 'सुयदेवयाए' करेमि, काउ०, अन्नत्थ०, १ नव० काउ० करी 'नमो०' कही स्तुति :वद वदति न वाग्वादिनि !, भगवति ! कः श्रुतसरस्वति ! गमेच्छुः ।
रगत्तरङ्गमतिवर-तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥ ५ ॥ (आर्या) पछी 'शासनदेवयाए' करेमि, काउ०, अन्नत्थ०, १ नव० काउ० करी 'नमो०' कही स्तुति :उपसर्गवलयविलयन-निरता जिनशासनावनैकरताः।
द्रतमिह समीहितकते स्यः, शासनदेवता भवताम् ॥ ६॥ (आर्या) पछी 'श्री अम्बिकायै' करेमि, काउ०, अन्नत्थ०, १ नव० काउ० करी 'नमो०' कही स्तुति :
अम्बा बालाऽड्तिाऽकाऽसौ, सौख्यख्याति ददातु नः ।
माणिक्यरत्नाऽलङ्कार-चित्रसिंहासनस्थिता ॥ ७॥ (अनु.) पछी 'अच्छुताए' करेमि, काउ०, अन्नत्थ०, १ नव० काउ० करो. 'नमो०' कही स्तुति :
HOGARRARAHIARARAHIA
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॥११॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥ १११ ॥
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चतुर्भुजा तद्विर्णा, कमलाक्षी वरानना ।
भद्रं करोतु सङ्घस्या- च्छ्रुप्ता तुरगवाहना ॥ ८ ॥ (अनु.) पछी 'खित्तदेवयाए' करोमि, काउ, अन्नत्थ०, १ नव० काउ० करी 'नमो' कही स्तुति :यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया ।
सा क्षेत्र देवता नित्यं भूयान्नः सुखदायिनी ॥ ९ ॥ (अनु.) पछी 'समस्त वेया०' करोमि, काउ०, अन्नत्थ०, १ नव० काउ० करी 'नमो० ' कही स्तुति सङ्घे ये गुरुगुणनिधे सुवैया - वृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः ।
शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः सदृदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ||१०|| ( वसन्ततिलका) पछी नवकार, नमु०, जावंति०, जावंत, नमोऽर्हत् कही नीचे आपेल स्तवन कहें :ओमिति नमो भगवओ, अरिहंत-सिद्धाऽऽयरिय-उवज्झाय ।
वरसव्वसाहु मुणिसंघ- घम्मति थपवयणस्स ॥ १ ॥ ( आर्या )
पण नमो तह भगवई, सुयदेवयाइ सुहयाए । सिवसंतिदेवयाणं, सिवपवयणदेवयाणं च ॥२॥,,
॥ १११ ॥
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भजन प्र. कल्प
॥ ११२ ॥
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इन्दागणिजमनेर - वरुण-वाऊ-कुबेर-ईसाणा । बम्भोनागुत्ति दसह - नविय सुदिसाण पालाणं ॥३॥
(आर्या) सोम-यम-वरुण वेसमण- वासवाणं तहेव पंचण्हं । तह लोगपालयाणं, सूराइगहाण य नवहं ॥४॥,, साहंतस्स समक्खं, मज्झमिणं चेव धम्मणुद्वाणं । सिद्धिमविग्धं गच्छउ, जिणाइनवकारओ धणियं ॥५॥,, ॥ इति देववंदनविधिः ॥
पछी जयवीयराय० कहेवा |
॥ इति अदारअभिषेकविधिः ॥
नामस्थापनविधिः
* नामस्थापन कर. पत्रदान अने केशरना छांटणा करवा :
पछी नीचेat श्लोक तथा मंत्र बोल्या बाद ( फईबाए ) प्रभुजीने वस्त्राभरण पहेराववा :
चञ्चच्चारुशुचिप्ररोहविसरत्-प्रद्योतिताशामुखे;
दिव्यश्री दिवाकरद्युतिभरा - दालुप्तदृग्गोचरे ।
* नामस्थापन समये करवानी विशिष्ट विधि परिशिष्ट-नं.१ अं' मां आपेल छे.
1
॥ ११२ ॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥११३॥
૨૯
Jain Education Inte
निर्मूल्ये विशुचि शुचौ जिनमहे, दिव्यैकदेवाङ्गनाSsaiतैराभरणैरलङ्कृतमहादे हे दधे वाससी || १ || ( शार्दूल०) 'ॐ ह्रां ह्रीँ परमार्हते वस्त्राभरणेन चर्चयामीति स्वाहा' ॥ पछी नीचेनो श्लोक तथा मंत्र कही नैवेद्यपूजन कर :
सज्जैः प्राज्या ज्ययुक्तैः परिमलबहुलै - मोदकैर्मिश्रिखण्डैः; खाद्याद्यलप्पन श्री-घृतवरपृथुला -ऽपूपसारैरुदारैः । स्निग्धोभिर्नितान्तं चरुभिरभिनवैः कर्मवल्ली कुठारान्; चाग्रे निर्माय धुर्यान् सुरनरमहितान् चर्चयेदर्हवर्गान् ॥ १ ॥ (
'ॐ ह्रां ह्रीँ परमार्हते नैवेद्येन चर्चग्रामीति स्वाहा' || ॥ इति अष्टमदिनविधिः ॥
क
पछी बलिबाकुला उडाववा ॥
॥११३॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥११४॥
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주·전
अथ नवमदिनविधि
dhadhakaalkal
+ मुद्राओ माटे जुन परिशिष्ट-नं. ४
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KKKK
sakakakak&231291
-:लेखशालाकरणविधिः
'ॐ मिति नमो भए लिवोए ॐ ह्रां ह्रीँ परमार्हते लेखशालाकरणमिति स्वाहा' ||
ए मंत्र बोली गोल-घाणा, लेखिनी अने मषी भाजननुं प्रदान कर.
विवाह महोत्सवविधि:--
प्रतिष्ठा करनार श्रावको पोताना डावा हाथथी जिनना जमणा हाथमां “साही" प्रदान कर पछी जमणे हाथे सर्वे fisher सर्व अंगे प्रथमथी ज अभिमंत्रित घट्ट सुखंड अने केशरथी अर्चन कर अने दरेक बिंबो पासे फूल, धूप, वास वि. मूकवा.
+ सुरभिमुद्रा,
पछी गुरु भगवंते जिनविबने त्यारबाद अधिवासना मंत्र:
+
पद्ममुद्रा अने + अंजलिमुद्रा देखावी.
।। ११४ ।।
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१-"ॐ नमः शान्तये हुं हुं हूं सः" अथवा अञ्जन प्र.कल्प
२-ॐ नमो खीरासवलद्धोणं, ॐ नमो संभिन्नसोआणं, ॐ नमो पयाणुसारीणं, ॐ नमो कुट्ठवुद्धीणं
जमियं विज्ज पउंजामि सामे विजा पसिजउ, ॐ अवतर २, सोमे २, कुरु २, वग्गु २, निवग्गु २, सुमणे ॥११५॥ |सोमणसे महु महुरे ॐ कविले कः क्षः स्वाहा"।
आ बेमांथी गमे ते एक अधिवासनामंत्रथी त्रणवार मोंडळ मंत्री ऋद्धि वृद्धि सहित सर्व जिनबिंबोने मोंढळy कंकण यांधवू. पंचांगस्पर्शविधिः
तेमन बीजा अधिवास मंत्रथी-'मुक्ताशुक्ति' अने 'चक्रमुद्राए करीने श्रावकोए विबोना मस्तक, बंने स्कंध अने बने धुंटण एम पांच अंगो पर स्पर्श करवो. तथा धूप उखेवघो. जिनाह्वान विधिः
पछी गुरुए 'परमेष्ठिमुद्रा' थी नीचेना मंत्रथी त्रणवार जिनाहान करवू :"ॐ नमोऽहत्परमेश्वराय, चतुर्मुखपरमेष्ठिने, त्रैलोक्यगताय, अष्टदिक्कुमारीपरिपूजिताय, इन्द्रपरि-18॥११॥
GGAGE GRIGORESHALGUSEGALA
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अञ्जन प्र.कल्प
॥११६॥
पूजिताय, देवाधिदेवाय, दिव्यशरीराय, त्रैलोक्यमहिताय आगच्छ आगच्छ स्वाहा"।
त्यार बाद 'आसनमुद्रा' देखाडी बास, कपूर, आदिथी पूजन करवू. श्रावकोए पण चंदन, फळ, फूल, धूप, वास वि. थी पूजन करीने दशीवाळा वस्त्र ढोकवां. ते उपर नव श्रीफळ मूकवां. तेमज श्रावकोए जुदी जुदी जातनां फळ, फूल, बलि, जंबीर, रायण, दाडम, करणां, केला, द्राक्ष, खारेक, सिंघोडा, अखरोट, बदाम, कमळकाकडी, पस्तानां बीज वि. ढोकवां. पछी फूलेकुंचडावबुं.
स्त्रीओए प्रभुजीने पोखवा, ते निमित्ते यथाशक्ति सुवर्णतुं दान देवू. आरती-मंगळदीवो करवो. पछी श्रावकोए नवकार भणीने प्रियंगु, बरास, कपूर तथा गोरोचनथी बने हाथे बिंबने हाथमा लेप करवो.
पछी " ॐ आदित्य " इत्यादिक कहीने नवे ग्रहोने बलिदान देवू. बांट, खीर, करंबो, सेव, कूर, लापसी, पुडला, वडा तथा भजीआना थाळ भरीने आगळ मूकवा. पछी ग्रीवासूत्र तथा केसरथी रंगेला सूत्रथी वेष्टित चोरी बांधवी. तोरण सहित मंडप करवो. तेनी नीचे सिंहासन स्थापन करीने, ते पर प्रतिमा स्थापन करवी. सोनानो कळश प्रतिमा पासे मृकवो. घी गोळ सहित चार मंगळ दीवा स्थापना, पछी बांट, खीर, कंसार, वेबर, करंबो, कूर, घी, मेवा, पुरी, सुखडी एटली वस्तु थाळमां भरीने सधवा स्त्री त्यां लावीने मूके. ओवारणां ले तेमज त्यां धान्य अने जळ मूके, चार नाना घडा त्यां स्थापे. मुंवालीनां कांकणा करवा. ते घडा उपर जवारानां शरावळां मूकवा, तेमज ते घडाओने ग्रीवासूत्र बांधवू.
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॥११६॥
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॥११७॥
पछी गुरुए शक्रस्तव पूर्वक चैत्यवंदन करवू. तथा चंदन, वास, धूप अने फूल सहित कसुंबी वस्त्रथी तेओर्नु मुख ढांक_. पछी गुरुए सूरिमंत्रथी मंत्रित वासक्षेप विंचना मस्तक उपर अधिवासित करवो. अने ते वखते उपर | कहेला १-"ॐ नमः शान्तये-हुं हुं हं सः अथवा २-"ॐ नमो खीरासवलद्धोणं-इत्यादि अधिवासना मंत्रो |
भणवा. वस्त्र दूर करवू. 5 पछी लग्न समये :संसारे भोगयोग्या श्रीः, गृहिधर्मस्य कारणम् ।
भोगफलसाधनार्थ, तस्माच्च करपीडनम् ॥१॥ (अनु.) ए श्लोक भणीने हथेवाळामां ऋद्धि वृद्धि, सोपारी, केशर, सुखड आदिक मूकवा. तेमज ते वखते “ॐ ह्रां ह्रीं | ऐ क्लो मो अव्यक्ताव्यक्तसंपन्नाय, संसारभोगकारणाय, मङ्गलार्थ पाणिपीडनमिति स्वाहा” ए मंत्र पण बोलबो. वाजिंत्र वगडावयां, धवल मंगळ गवडायवां, पोडशांश होम करवो. टीको कराववो. विंचने वस्त्राभूषण पहेराववा. पछी पांच जातना २५ लाडवा मूकवा. मेवो वहेंचवो.
॥ इति विवाहमहोत्सवविधिः।
॥११७॥
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॥११८॥
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राज्याभिषेक विधिः
नीचे लोक तथा मंत्र बोली कुंवारिकाना हाथे राज्याभिषेक अने राज्यतिलक करी पट्ट स्थापन करें: जयति जगति यस्य प्राग्भवं सम्यगात्मो - दयविजितविपक्षं विश्वकल्याणबीजम् । सुरसरिदमलाम्भोधारया धारणीयं, बहुगुणजिननाथं, स्थापयेत्पट्टभोगे ||१|| (मालिनी) “ ॐ ह्रां ह्रीँ सिंहासनच्छत्रचामरालङ्कृतैः राज्याभिषेकोऽयं पट्टस्थापनमिति स्वाहा " । ॥ इति पट्टस्थापनविधिः । राज्याभिषेकविधिः ॥
अथ दीक्षा महोत्सव -दीक्षा कल्याणकविधिः
दोक्षास्नानम् :
नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली प्रभुजीने दीक्षास्नान कराव:
१. राज्यतिलकनुं विधान प्र-क-मां आवतुं नथी परंतु करावाय छे. तो नीचेना मन्त्री कराव:ॐ नमो जिणाणं, सरणाणं, मंगलाणं, लोगुत्तमाणं, हाँ ह्रीं हूँ हूँ हीँ हू: अ सि-आ-उ-सा- त्रैलोक्यललामभूताय
नमः स्वाहा ॥
॥११८॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥११९॥
संवत्सरं दानवरं वराणा-माधारसारकैवचश्चरित्रम् ।
परं पवित्रं पुरुषं पुराणं, पदप्रकृष्टं सुगरिष्ठज्येष्ठम् ॥१॥ (उपजाति) 'ॐ हाँ हाँ परमाईते जिननाथाय स्नापयामीति स्वाहा।'
पंचमुष्टि लोचः-पछी महोत्सवपूर्वक इन्द्र इन्द्राणीथी परिवरित दान देता देता अशोकवृक्षनी नीचे जई 'सर्व अलंकारोथी रहित पंचमुष्टिलोच करवो.
पछी 'ॐ नमो सिद्धाणं' ए पाठ भणवो. ('सर्वविरतिनो स्वीकार.) पछी नीचेना ये श्लोको तथा मंत्र बोलबो. ( शक्रेन्द्र प्रभुजीना स्कंध उपर देवदूष्य वस्त्र स्थापन करे.) चारित्रचक्रदधतं भुवनैकपूज्यं, स्याद्वादतोयनिधि-वर्धनपूर्ण(बाल)चन्द्रम् ।
तत्त्वार्थभावपरिदर्शनवोधदीप-मैश्वर्यवर्यसुमनं विगताभिमानम् ।।१।। (वसन्त०) १ अ-लोकान्तिकदेवोनी विनंतिः--नवलोकान्तिकदेवोना नाम अने प्रभुने भावपूर्वक विनंति करे छे ते-परिशिष्ट नं.१-अ.मां आपेल छे.
१ ब-कुलमहत्तरा ( धावमाता) हितोपदेशरूप आशीर्वचन प्रभुजीने कहे छे ते परिशिष्ट-न १-क. मां आपेल छे । २ अलंकार-उतारता बोलवानो श्लोक-परिशिष्ट नं. १-ख मां आपेल छ.। ३ सर्वविरति स्वीकारतां बोलवान सूत्र- करेमि सामाइयं ' परिशिष्ट-नं. १. ग मां आपेल छ ।
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॥११९॥
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अञ्जन प्र. कल्प
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॥१२॥
SEASONUSRO
निर्ग्रन्थनाथममलं कृतदर्पनाशं, सर्वाङ्गभासुरमनन्तचतुष्टयाढ्यम् ।
मिथ्यात्वपङ्कपरिशोषणयास रेशं. क्रोधादिदोषरहितं वरपुण्यकायम् ॥२॥ (वसन्त.) ___ॐ हाँ ह्रीँ परमाईते पञ्चमहाव्रत-पञ्चसमिति-त्रिगुप्तिधराय, मनःपर्यवज्ञान-विपुलमत्यात्मकाय जिननाथाय नमः स्वाहा" ॥ देववन्दनम्:
प्रथम गुरुभगवंते चैत्येवंदन कही-यथाविधि-"अहंस्तनोतु" ॥१॥; "अमिति मन्ता" ॥२॥ "नवतत्त्वयुता" ॥३॥ एत्रण थोय सुधी कही ' सिद्धाणं' कही. 'अधिवासनादेवीए' करेमि, काउ०, अन्नत्थ०,१ लोगस्सनो काउ. करी नमो.':
पातालमन्तरिक्ष, भुवनं वा या समाश्रिता नित्यं ।
साऽत्राऽवतस्तु जनी प्रतिमापधिवासनादेवी ॥ ४ ॥ (आर्या) थोय कही 'सुय देवयाए ' करेमि, काउ०, अन्नत्थ, १ न३० नो काउ० करी नमो:१ दीक्षाकल्याणकचैत्यवन्दन हस्तलिखित प्रतमा मले छे. ते चैत्यवंदन परिशिष्ट-१ घ मां आपेल छ।
॥१२०॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥१२१॥
वद वदति न वाग्वादिनि !; भगवति ! कः श्रुतसरस्वति ! गमेच्छुः।।
रङ्गत्तरङ्गमतिवर-तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥ ५ ॥ (आर्या) थोय कही ' संतिदेवयाए' करेमि काउ०, अन्नत्थ, १ नव० नो काउ० करी नमो:' श्रीचतुर्विधसङ्घस्य, शासनोन्नतिकारिणी ।
शिवशान्तिकरी भूयाच-छीमती शान्तिदेवता ॥६॥ (अनु०) थोय कही-' अम्बयाए देवयाए ' करेमि काउ०, अन्नत्थ०, १ नव० नो काउ० करी नमो०:-- अम्बा बालाकिताऽकाऽसौ, सौख्यख्याति ददातु नः ।
माणिक्यरत्नाऽलङ्कार-चित्रसिंहासनस्थिता ॥ ७॥ (अनु.) थोय कही 'खित्तदेवयाए ' करेमि काउ०, अन्नत्थ०, १ नव० नो काउ० करी नमो:--. यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया।
सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥ ८ ॥ (अनु.)
॥१२॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥१२२॥
थोय कही " शासनदेवयाए" करेमि काउ०, अन्नत्थ०, १ नव० नो काउ० करो नमो०- . या पाति शासनं जैन, सद्यः प्रत्यूहनाशिनी । साऽभिप्रेतसमृद्ध्यर्थ, भूयाच्छासनदेवता ॥९॥ (अनु.) थोय कही “ समस्तवेयावच्च० संति० सम्म० " करेमि काउ०, अन्नत्थ०, १ नव० नो काउ० करी नमो:सोऽत्र ये गुरुगुणौघनिधे सुवैया-वृत्त्यादिकृत्यकरणकनिबद्धकक्षाः। ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः, सद्दृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥१०॥ (वसन्त.) थोय कही प्रगट नवकार, नमुत्थुणं०; जावंति०, जावंत ०; उबसग्गहरं०; लघुशांति० तथा जयवीयराय० कहेवा.
॥ इति देववंदनम् ॥ ॥ इति दीक्षाकल्याणकविधि ॥ पछी गुरु बेसी नीचे प्रमाणे धारणा करे अने ते अधिवासना रात्रे थायः
“स्वागता जिनाः सिद्धाः प्रसाददाः सन्तु, प्रसाद सुधियां कुर्वन्तु, अनुग्रहपरा भवन्तु, भव्यानां स्वागतमनुस्वागतम्"
॥ इति नवमदिनविधिः॥
॥१२२॥
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अञ्जन प्र. कल्प
अथ दशमदिन विधिः
॥१२३॥
अधिवासनाविधिः (१) इरियावही करवी. (२) सुश्रावक मीढळ बांधे. (बहुफळीना के मरडाशींगना. ) (३) दशदिक्पालपूजनः -नीचेनो श्लोक बोली दशदिक्पालनु पूजन करवू :शक्राऽग्न्यन्तक-नैऋतेश-वरुण-श्रीवायु-वस्वीश्वराः
ईशानोऽब्जभवः प्रभूतफणभृद्-देवा अमी सर्वतः । निघ्नन्तो दुरितानि शीघ्रमभित-स्तिष्ठन्तु पूजाक्षणे;
स्वस्वस्थानमनेकधा द्युतिभृतः प्रोद्यदिकृष्टाऽसयः ॥ १ ॥ (शार्दूल.)
RASHISHASTRASARAऊस
ॐॐॐ
॥१२३॥
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अञ्जन प्र. कल्प]
॥१२४॥
(४) नवग्रहपूजनः-नीचेनो श्लोक बोली नवग्रह पूजन करः__+भानुश्चन्द्रनिशाकरो द्युतिकरो, भौमो बुधो निर्मलः,
शान्ति विघ्नविनाशनं गुरुरथो, शुक्रः करोति स्वयम् । पीडानाशकरः शनिब्रहवर-स्तत्कालमाराध्यताम्,
राहुः केतुसमाश्रितश्च भवता, पुष्पाक्षतैः पूज्यताम् ॥ १ ॥ (शार्दूल.) (५) बलिबाकुला मंत्रबानो मंत्रः--(शांति बलिमंत्र )-त्रण वार बोली वलिबाकुला मंत्रया :
ॐ नमो भगवते अर्हते शान्तिनाथस्वामिने-- सकलातिशेषकमहा-सम्पत्तिसमन्विताय शस्याय ।
त्रैलोक्यपूजिताय च, नमो नमः शान्तिदेवाय (आर्या) + अर्थसंगति माटे मूलश्लोकना भावानुसार फेरफार करी आ श्लोक मूकेल छे. । मूल श्लोक आ प्रमाणे छे.भानुश्चन्द्र-निशाकरधुतिकरौ, भौमं बुधं निर्मलं, शान्ति निर्विघ्नं करोति च गुरुः, शुक्र करोति स्वयम् । पीडादूरीकृतं शनैश्चरमतं तत्कारमाराधकं राहुं केतुसमाश्रितं च भवता पुष्पाक्षतैः पूजयेत् ॥१॥
SADECURRESPIRA
| ॥१२४॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
।। १२५ ।।
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सर्वामरसुसमूह-स्वामिकसंपूजिताय न जिताय । भुवनजनपालनोद्यत - तमाय सततं नमस्तस्मै ॥ (आर्या) ॐ नमो भगवते - सर्वदुरितौघनाशन- कराय सर्वांऽशिवप्रशमनाय । दुष्टग्रहभूतपिशाच-शाकिनीनां प्रमथनाय ॥ ( आर्या )
ॐ नमो भगवति जये विजये अपराजिते जयंतीति जयावहे सर्वसङ्घस्य भद्रकल्याणमङ्गलप्रददे ! साधूनां शान्ति-तुष्टि-पुष्टिप्रदे ! स्वस्तिदे ! भव्यानाम् ऋद्धि-वृद्धि-निर्वृति निर्वाणजननि !, सत्त्वानामभयप्रदाननिरते ! भक्तानां शुभावहे ! सम्यग्दृष्टीनां धृति-रति-मति - बुद्धि-प्रदानोद्यते !
जिनशासननिरतानां, शान्तिनतानां च जगति जन्तूनाम् ।
श्रीसम्पत्कीर्तिशो - वर्धनि ! जयदेवि ! विजयस्व || (आर्या )
रोग-जल-ज्वलन - विषधर- दुष्टज्वर-व्यन्तर- राक्षस- रिपुमारी-चौरेति श्वापदोपसर्गादिभयेभ्यो रक्ष रक्ष शिवं कुरु कुरु; तुष्टिं कुरु कुरु, पुष्टिं कुरु कुरु, ॐ नमो नमो ह्राँ ह्रीँ हूँ हूः यः क्षः ह्रीँ फुट्ट फुट् स्वाहा |
(६) बलिप्रक्षेपः
प्रतिष्ठा स्थानथी दशे दिशाओमां नाम लइ लइने (१) धूप, (२) दीप, (३) वास, (४) बलिबाकुळा (५) फूल (६)
॥१२५॥
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अञ्जन प्र. कल्प ॥१२६॥ |
ARESHRERNERBARSHAN
अक्षत आ छ वस्तुओनो पाणी सहित प्रक्षेप करवो. (७) देववंदनः-पछी नीचे प्रमाणे देववंदन करवू
इरियावही०, सकलकुशल०, अधिकृत जिननुं अथवा 'ॐ नमः पार्श्वनाथाय'नुं चैत्यवंदन कहेयुः-- | ॐ नमः पाश्वनाथाय, विश्वचिंतामणीयते । ही धरणेन्द्रवैरोट्या-पद्मादेवीयुताय ते ॥१॥ (अनु.)
शान्ति-तुष्टि-महापुष्टि-धृति-कीर्तिविधायिने ।
ॐ ही दिव्याल-वेताल-सर्वाऽऽधि-व्याधिनाशिने ॥ २ ॥ (अनु.) जयाजिताऽऽख्या-विजया-ऽऽख्याऽपराजितयाऽन्वितः ।
दिशांपालैहेर्यक्ष-विद्यादेवीभिरन्वितः ॥ ३ ॥ (अनु.) ॐ अ-सि-आ-उ-साय नम-स्तत्र त्रैलोक्यनाथताम् ।
चतुष्पष्टिसुरेन्द्रास्ते, भासन्ते छत्रचामरैः ॥ ४ ॥ (अनु.) + अहीं मुद्रित प्र. क. नी प्रतप्रमाणे पहेला देववंदन अने पछी वस्त्राच्छादन-ए रीते विधि जणावी छे. हस्तलिखित प्रतोमा पहेला बखाच्छादन अने पछी देववंदन आवे छे. ।
ISREGESEXE ESTIS
॥१२६॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥१२७॥
श्री शंखेश्वरमण्डन ! पार्श्वजिन ! प्रणतकल्पतरुकल्प ! ।
चूरय दुष्टवातं, पूरय मे वाञ्छितं नाथ ! ॥ ५ ॥ ( आर्या ) किंचिकः नमुत्थणं०; अरिहंत चेइयाणं; अन्नत्थ०; एक नवकारनो काउसग्ग करी नमोऽहंत कही:-- अर्हस्तनोतु स श्रेयः-श्रियं यद् ध्यानतो नरैः।
अप्यैन्द्री सकलाऽत्रैहि, रंहसा सह सौच्यत ॥१॥ (अनु.) लोगस्स०, सबलोए०, अरिहंत०, अन्नत्थ० १ नव० नो काउ० थोय बीजी:-- अमिति मन्ता यच्छा सनस्य, नन्ता सदा यहीश्च ।
आश्रीयते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥ २ ॥ ( आर्या ) पुक्खर०; सुअस्स भगवओ०; बंदण; अन्नत्थ०, १ नव० नो काउ० थोय त्रीजी:-- नवतत्त्वयुता त्रिपदी, श्रिता रुचि-ज्ञान-पुण्य-शक्तिमता।
वरधर्म-कीर्ति-विद्या-ऽऽनन्दाऽऽस्या जैनगीर्जीयात् ॥ ३ ॥ (आर्या) सिद्धार्ण०, “प्रतिष्ठादेवयाए " करेमि काउ०, अन्नत्थ०, १ लोगस्स० नो काउ० नमोऽईत्-थोय चोथीः--
AAAAAAAAP
॥१२७॥
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अञ्जन प्र.कल्प
CAMERE CREAC
॥१२८॥
यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः, सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति ।।
श्रीजिनविम्बं सा दिशतु; देवता सुप्रतिष्ठितमिदम् ॥ ४ ॥ ( आर्या ) " शासनदेवयाए " करेमि०, काउ०, अन्नत्थ०, १ नव० काउ०, नमोऽर्हत्-थोय पांचमी:-- या पाति शासनं जैनं. सद्यः प्रत्यूहनाशिनी। साऽभिप्रेतसमृद्धयर्थ, भूयाच्छासनदेवता ॥५॥ (अनु. “ खित्तदेवयाए" करेमि काउ०, अन्नत्थ०, १ नव० काउ०, नमोऽर्हत्-थोय छट्टीः-- यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया।
सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनि ॥६॥ (अनु.) " संतिदेवयाए" करेमि, काउ०, अन्नस्थ०, १ नव० काउ०, नमोऽर्हत्-थोय सातमोः- . श्रीचतुर्विधसङ्घस्य, शासनोन्नतिकारिणी। शिवशान्तिकरी भूयाच-छोमती शान्तिदेवता।।७।। (अनु.) 'समस्तवेया० संनि० सम्म समा०' करेमि, काउ०, अन्नत्थ०, १ नव० काउ०, नमोऽर्हत्-थोय आठमीः--
OCHOCHOCHO
|॥१२८)
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अञ्जन प्र.कल्प
॥१२९॥
मधेऽत्र ये गुरुगुणौघनिधे सुवैया-वृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः ।
ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः, सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥८॥ (वसन्त.) प्रगट नव०, नमुत्थुणं०, जावंति०, इच्छामि०, जावंत०, नमोऽर्हत्
ओमिति नमो भगवओ, अरिहंत-सिद्धाऽऽयरिय-उवज्झाय । वरसम्वसाहुमुणिसङ्घ-धम्मतिथ्थपवयणस्स ॥१॥ सप्पणव नमो तह भगवई, सुअदेवयाए सुहयाइ । सिवसतिदेवयाए, सिवपवयणदेवयाणं च ॥२॥ इन्दाऽगणि-जमानेरईय--वरुण-बाऊ-कुबेर-ईसाणा। बंभो-नागुत्ति दसण्ह-मविय सुदिसाण पालाणं ॥३॥ सोम-यम-वरुण-वेसमण-वासवाणं तहेव पंचण्हं । तह लोगपालयाणं, सुराइगहाण य नवण्हं ॥४॥ साहंतस्स समक्खं, मज्झमिणं चेव धम्मणुट्ठाणं । सिद्धिमविग्धं गच्छउ, जिणाइनवकारओ धणियं ॥५॥
बटक
॥१२९॥
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अञ्जन उवस्स० जयवीयरायः ॥ इति देववन्दनम् ॥ प्र. कल्प (८) दरेक नूतन जिनबिंबोने कसुंबीवस्त्र ढांक.
(९) वज्रपंजर:--"ॐ परमेष्ठिनमस्कारम्" इत्यादि. ॥१३॥ IPI (१०) ततः आत्मरक्षा:--नीचेना मंत्रोथी करवी. (त्रणवार):--
ॐनमो अरिहंताणं ॥ हृदये।। ॐनमो सिद्धाणं ॥ मस्तके ॥ ॐ नमो आयरियाणं । शिखायाम् । ॐ नमो उवज्झायाणं । सन्नाहः॥
ॐ नमो लोए सव्वसाहणं ॥ दिव्यास्त्रम् ।। (११) ततः शुचीकरणम् :--नीचेना मंत्रथी करवू. (त्रणवार):--
ॐ नमो अरिहंताणं; ॐ नमो सिद्धाणं; ॐ नमो आयरियाणं; ॐ नमो उवज्झायाणं, ॐनमो लोए सव्यसाहणं, ॐ नमो आगासगामीणं, ॐ नमो चारणलद्धीणं, ॐ नमोहः क्षः ॐ अशुचि: | शुचिर्भवामि स्वाहा ॥
आ मंत्र भणी पोताना हाथे पांच अंगे स्पर्श करवो. (१२) ततः सकलीकरणम् :--नीचेना मंत्रथी कर. (त्रणवार):--
ॐ नमो अरिहंताणं हृदयं रक्ष रक्ष; ॐ नमो सिद्धाणं ललाटं रक्ष रक्ष
CACAAR
॥१३०
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अञ्जन प्र. कल्प
।। १३१ ॥
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ॐ नमो आयरियाणं शिखां रक्ष रक्षः ॐ नमो उवज्झायाणं कवचं रक्ष रक्षः ॐ नमो लोए सव्व साहूणं अस्त्रं रक्ष रक्ष ।
अथवा क्षि-पॐ स्वाहा-ए मंत्र.
(१३) त्यार पछी मुक्ताशुक्ति अथवा चक्रमुद्रा सहित नीचेनो अधिवासना मंत्र खूब उच्चस्वरे त्रण वार बोलवो:-- स्वागता जिनाः सिद्धाः, प्रसाददाः सन्तु प्रसादं सुधियां कुर्वन्तु ।
अनुग्रहपरा भवन्तु भग्यानां स्वागतमनुस्वागतम् ॥
ॐ नमो खीरासवलद्वीणं, ॐ नमो महुआसवलद्वीणं, ॐ नमो भिन्नसोआणं, ॐ नमो पयाणुसारीणं, ॐ नमो कुट्ठबुद्धीणं, जमियं विज्जं पजामि सा मे विज्जा पसिज्ज ॐ अवतर अवतर, सोमे सोमे, कुरु कुरु वग्गु वग्गु निवग्गु निवग्गु, घुमणे सोमणसे महु महुरे कविले ॐ कः क्षः स्वाहा ॥ अथवा ( ॐ नमः शान्तये हुं क्षं हूं. सः ।)
(१४) पछी सूरिमंत्र त्रणवार गणी प्रभुजी उपर वासक्षेप करवो. । (१५) दरेक नूतन बिंबने धूप करवो.
(१६) जिनविवो ढांकेलं कसुंबी लह ले.
॥ १३१ ॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥१३२॥
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(१७) पछी लग्न - समय नजीक आवता ऊंचा स्वरे अने ऊंचा श्वासे नीचेना मंत्रो बोली भगवंतां पांचे अंगे अक्षरन्यास करवो.
v
हूँ ( ललाटे); श्रीँ (नयनयोः); हीँ (हृदये); मेँ रौ ँ (सर्व संधिषु); श्लो ँ (पीठे - प्राकारे). (१८) घीनुं पात्र मूकवुं.
(१९) पछी परमेष्टिमुद्राधी नीचेना वे श्लोक तथा मंत्र बोली त्रणवार जिनाह्वान कर:--
उदयति परमात्म-ज्योतिरुद्योतिताशं विषयविनययुक्त्या ध्वस्तमोहान्धकारम् । शुचितरघनसारो-लासिभिश्चन्दनाघे - जिन पतिमिहगन्धैश्वर्चयेद् भक्तिभावात् ॥ १ ॥ ( मालिनी) घातिक्षयोद्भूतविशुद्धबोधान्, प्रबोधिताऽशेषविशेषलोकान् । सुरेन्द्र नागेन्द्र-नरेन्द्र वन्द्यान् समर्चयेत् श्रीजिननायकाञ् ज्ञः ॥ २॥ (उपजाति)
ॐ ह्रीं ह्रीँ नमोऽर्हस्परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने त्रैलोक्यगताय अष्टदिक्कुमारीमहिताय इन्द्रपरिपूजिताय देवाधिदेवाय त्रैलोक्यमहिताय अष्टमहाप्रातिहार्यधराय आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥ (२०) नीचेना मंत्रथी अधिष्ठायक देव-देवीनुं आह्वान करवुं (त्रणवार ):--
॥१३२॥
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अञ्जन प्र. कल्प
।। १५३॥
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सौषधि स्नानम्
सहदेव्यादिसदौषधि-वर्गेणोद्वर्त्तितस्य विम्वस्य । सम्मिश्रं विम्बोपरि, पतज्जलं हरतु दुरितानि ॥ ६ ॥
(आर्या)
मूलिका स्नानम् -
सुपवित्रमूलिकावर्ग- मर्दिते तदु शुभा । विधिवाससमये, यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती ॥ ७ ॥ (,, ) प्रथमाष्टकवर्गस्नानम्-
नानाकुष्टाद्यौषधि-सन्मृष्टे त पनीरम् | विवेकान्मन्त्रं कर्मैवं हन्तु भव्यानाम् ॥ ८ ॥
(,,)
द्वितीयाष्टकवर्गस्नानम्—
-वर्गः सुमन्त्रपरिपूतः । निपतन् विम्बस्योपरि, सिद्धिं विदधातु भव्यजने ॥ ९ ॥ (,, )
ततः सूरिरुत्थाय गरुडमुद्रया मुक्ताशुक्तिमुद्रया, परमेष्ठिमुद्रया वा प्रतिष्ठाप्य देवताऽऽह्नानं तदग्रतो भूत्वा ऊर्ध्वः सन् करोति - "ॐ नमोऽर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखपरमेष्ठिने त्रैलोक्यगतायाष्टदि विभागकुमारी परिपूजिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय आगच्छ २ स्वाहा " इत्यनेन । दिकपालाचाहूयन्ते - “ ॐ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय इह जिनेन्द्रस्थापने आगच्छ २ स्वाहा १ ॐ अग्नये सायुधाय आगच्छ २ स्वाहा " इत्यादिना शेषाणामप्याहानं कुर्यात्, पुष्पाणामञ्ज लिक्षेपच ।
| ॥१५३॥
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प्र. कल्प
॥१५४॥
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सर्वैषधिस्नानम् —
सकलौषधिसंयुक्त्या, सुगन्धया घर्षितं सुगतिहेतोः । स्नपयामि जैनविम्बं मन्त्रिततन्नीरनिवहेन ॥ १० ॥ ( आर्या ) ततः- “ सिद्धजिनादि " मन्त्रः सूरिणा दृष्टिदोषघाताय दक्षिणहस्तामर्षेण तत्काले बिम्बे न्यसनीयः, स चायम्' इहागच्छन्तु जिनाः सिद्धा भगवन्तः स्वसमये महानुग्रहाय भव्यानां भः स्वाहा' 'हुं क्षाँ ह्रीँ वीँ हूँ भः स्वाहा' इत्ययं वा । ततो लोहेनास्पृष्टश्वेतसिद्धार्थरक्षापोहलिका करे बन्धनीया, तदभिमन्त्रणमन्त्रः'ॐ क्षाँ वीं ह्रीं स्वाहा', चन्दनटिकक च ततो जिनपुरतोऽञ्जलिं बद्ध्वा विज्ञप्तिकावचनं कार्य, तच्चेदं - 'स्वागता जिनसिद्धाः प्रसाददाः सन्तु प्रसादधिया कुर्वन्तु अनुग्रहपरा भवन्तु भव्यानां स्वागतमनुस्वागतम् ' ततोलिमुद्रया सुवर्णभाजनस्थाध्यै मन्त्रपूर्वकं निवेदयेत् स च ॐ भः अर्ध्या प्रतीच्छन्तु पूजां गृह्णन्तु जिनेन्द्राः स्वाहा ' सिद्धार्थदध्यक्षतघृतदर्भरूपश्वार्थ्यमुच्यते । ततः
इन्द्रमनियमं चैव निर्ऋतिं वरुणं तथा । वायुं कुबेरमीशानं, नागं ब्रह्माणमेव च ॥ १ ॥
'ॐ इन्द्राय आगच्छ २ अर्ध्या प्रतीच्छ २ पूजां गृह २ स्वाहा' एवमेव शेषाणामपि नवानामाहान पूर्वकमध्ये निवेदनं च कार्यम् । ततः कुसुमस्नानम् -
अधिवासितं सुमन्त्रैः सुमनः किंजल्कराजितं तोयम् । तीर्थजलादिसुकं, कलशोन्मुक्तं पततु बिम्बे ॥ ११ ॥ ( आर्या )
॥१५४॥
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प्र. कल्प
।।१५५।।
ततो गन्धनानिकास्नानम्
गन्धाङ्गनानिकया, सन्मृष्टं तदुदकस्य धाराभिः । स्नपयामि जैनविम्बं कमवोच्छित्तये शिवदम् ॥ १२॥ ( ( आर्या ) गन्धा एव शुक्लवर्णा वासा उच्यन्ते, त एव मनाक् कृष्णा गन्धा इति । ततो वासस्नानम्
Error करैः स्पृहणीयैर्मन्त्र संस्कृतैर्जेनम् । स्नपयामि सुगतिहेतो - विम्वमधिवासितं वासैः ॥१३॥ (,, )
ततः चन्दनस्नानम्
शीतलसरससुगन्धि-मनोमतश्चन्दनद्रुमसमुत्थः । चन्दनकल्कः सजलो, मन्त्रयुतः पततु जिनबिम्बे ॥ १४ ॥ (,, )
ततः कुङ्कुमस्नानम्
कश्मीरजसुविलिप्तं विम्बं तन्नीरधारयामिनाम् । सन्मन्त्रयुक्तया शुचि, जैनं स्नपयामि सिद्धयर्थम् || १५ | (आर्या) तत आदर्श दर्शनं ततस्तीर्थोदकस्नानम्
जलधिनीकुण्डेषु यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि । तैर्मन्त्रसंस्कृतैरिह, विम्बं स्नपयामि सिद्धयर्थम् ॥ १६ ॥ (,, ) ततः कर्पूरस्नानं
शशिकरतुषारधरला, उज्जलगन्धा सुतीर्थजल मिश्रा । कर्पूरोदकधारा, सुमन्त्रपूता पततु बिम्बे ॥ १७॥ (,, ) ततः कस्तूरिकास्नानम् -
मन्त्रपवित्रितपसा प्रकृष्टकस्तूरिका सुगन्धयुजा । विहितप्रणताभ्युदयं, विम्बं स्नपयामि जैनेन्द्रम् ||
।। १५५ ।।
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अञ्जन प्र. कल्प
अतिमुरभिबहुलपरिमल-वासितपानेन मृगमदस्नानैः । मन्त्रैः कृतैः पयोभिः, स्नपयामि शिवाढयजिनबिम्बम् ॥१८॥ (आर्या) ततः पुष्पाञ्जलिक्षेपःनानासुगन्धपुष्पौध-रञ्जिता चश्चरीककृतनादा । धूपामोदविमिश्रा, पततात्पुष्पाञ्जलिबिम्बे ॥१९। (,,) ततः शुद्धजलकलशैः अष्टोत्तरशत-१०८ स्नानविधिःचक्रे देवेन्द्रराजैः सुरगिरिशिखरे योऽभिषेकः पयोभि-नृत्यन्तीभिः सुराभिललितपदगमं तूर्यनादैः सुदीप्तः । कर्तुं तस्यानुकारं शिवसुखजनक मन्त्रपूतैः सुकुम्भ-विम्ब जैनं प्रतिष्ठाविधिवचनपरः स्नापयाम्यत्र काले ॥१॥ (स्रग्धरा)
ततभिमन्त्रितचन्दनेन सूरिमिकरधृतप्रतिमां दक्षिणकरण सर्वाङ्गमालेपयति, कुसुमारोपणं, धूपोत्पाटनं, वासनिक्षेपः, | सुरभिमुद्रादर्शनं, पद्ममुद्रा ऊर्ध्वा दयते, अञ्जलिमुद्रादर्शनं च ततः प्रियङ्गुकर्पूरगोरोचनाहस्तलेपः अधिवासनामन्त्रेण करे |
ऋद्धिवृद्धिसमेतमदनफलाख्यकङ्कणवन्धनं, स चायम्-"ॐ नमो खीरासबलद्धीणं ॐ नमो महुयासवलद्धीणं ॐ नमो संभिन्नसोईणं ॐ नमो पयाणुसारीणं ॐ नमो कुटुबुद्धीणं जमियं विज्जं पउंजामि सा मे विजा पसिज्झउ ॐ अवतर २ सोमे २ कुरु २ ॐ बग्गु निवग्गु सुमणे सोमणसे महुमहुरए कविले ॐ कः क्षः स्वाहा' अधिवासनामन्त्रः, यद्वा "ॐ3 नमः शान्तये हुं हुं हुं सः" कङ्कणमन्त्रः ५। अधिवासनामन्त्रेणैव मुक्ताशुक्त्या बिम्बे पञ्चाङ्गस्पर्श:-मस्तक १ खांध २४ जानु २ वार ७, चक्रमुद्रया वा। धूपश्च निरन्तरं दातव्यः, परमेष्ठिमुद्रां मूरिः करोति, पुनरपि जिनाहानं, ततो निषद्यायामुप
·
॥१५६॥
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॥१३७||
केवळ ज्ञानकल्याणकमहोत्सव विधिःपछी पद्ममुद्राए नीचेना मंत्रथी विबने समवसरणमां बेसाडवाः-- "ॐ इदं रत्नमयमासनमलङ्कुर्वन्तु, इहोपविष्टान् भव्यानवलोकयन्तु, हृष्टदृष्टया जिनाः स्वाहा" ॥
तेमज “ॐ हो गन्धान प्रतीच्छन्तु स्वाहा" ए मंत्राक्षर सहित त्रण नवकार गणी वासक्षेप करवो. तथा* ३६० करियाणानो पडो हाथ पर मकवो. चार स्त्रीओए पोखणा करवा. तेज स्त्रीओना हाथे यथाशक्ति सुवर्णदान देवडाव. पछी फुलबासनी वृष्टि करवी. धूप करबो. 12 त्यारबाद नीचे प्रमाणे चैत्यवंदन कही देववंदन कर.
आकाशगामित्व-चतुर्मुखत्वं, विद्येश्वरत्वाऽमितवीर्यताद्यम् ।
प्रिया हिता वागपि यत्र नित्यं, नमो नमस्तीर्थकराय तस्मै ॥ १ ॥ ( उपजाति) | देवेन्द्रवन्धमुनिसेवितपादपद्म, सत्तातिहार्यविभवातिमक्षयं च ।।
नाभेयमात्मगुणपूरितसर्वलोकं, चिद्रूपरूपविजितं प्रणमामि भक्त्या ॥२॥ ( उपजाति ) * ३६० करियाणानी यादी परिशिष्ट नं. ८ मां आपेल छे.
|॥१३७॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥१३८॥
सिंहासने रत्नमयूखचित्रे, ह्यशोकवृक्षाश्रितदिव्यकायः।
छत्रत्रयं भाति जिनस्य मूर्ति, सच्चामरैर्नित्यविराजमानम् ॥ ३ ॥ ( उपजाति ) नित्योदयं दलितमोहमहान्धकार, संसारतापहरणं शिवदं प्रकामम् ।
नष्टाष्टकर्मनित्रयं च हिरण्यगर्भ, चिद्रपरूपविजितं प्रणमामि भक्त्या ॥४॥ ( उपजाति ) गजेन्द्र-सिंहादिभयं समुद्र-सङ्ग्राम-सर्पा-ऽग्नि-महोदराद्याः ।
यतः प्रणाशं छुपयान्ति सद्य-स्तस्मात्तमर्चे प्रवरं जिनेन्द्रम् ॥ ५ ॥ ( उपजाति ) जंकिंचि०; नमुत्थुणं०; अरिहंत०; अन्नत्थ० जे तीर्थकरनी प्रतिष्ठा होइ ते स्तुतिथी मांडी चार थोय सुधी कही नमुत्युणं०, जावंति०, जावंत०, ते जिन- स्तवन०, जयवीयराय० कहेवा.
॥ इति देववंदनम् ॥ ॥ इति केवलज्ञानकल्याणकमहोत्सवविधिः ।। अथ निर्वाणकल्याणकविधि :
पछी नीचेनां कान्यो तथा मंत्र भणी स्नात्र कराव:- .
नसमर्श
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अञ्जन प्र. कल्प
॥१३९।।
HEARSHANGARAL
सर्वाऽपायव्यपाया-दधिगतविमल-ज्ञानमानन्दसारं;
योगीन्द्रं ध्येयमत्र्यं, त्रिभुवनमहितं, यत्तथाव्यक्तरूपम् । नीरन्ध्र दर्शनाद्यं, शिवमशिवहरं, छिन्नसंसारपाशं,
चिने संचिन्तयामि, प्रकटमविकटं, मुक्तिकान्तासुकान्तम् ॥ १ ॥ (स्रग्धरा) इत्थं सिद्धं प्रसिद्धं, सुरनम्महितं, द्रव्यभावद्विकर्म
पर्याय बंसलब्धा-ऽक्षयपुरविलसद्-राज्यमानन्दरूपम् । ध्यायेद्रिध्यातकर्मा, सकलमविकलं, सौख्यमाप्यहिकं सद्
ब्रहोपैति प्रमोदा-दसमसुखमयं, शाश्वतं हेलयैव ॥ २ ॥ (स्रग्धरा) "ॐ हाँ हाँ परमार्हते अष्टकर्मरहिताय सिद्धिपदं प्राप्ताय पारंगताय स्नापयामीति स्वाहा"। पछी " ॐ ही अहं सिद्धाय नमः" ए मंत्र भणी नव अंगे पूजन करवू. पछी उदार अने उदात्त स्वरथी नीचेनुं काव्य १०८ बार बोलतां १०८ स्नात्र करवा :
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अञ्जन प्र.कल्प
॥१४॥
चक्रे देवेन्द्रराजैः, सुरगिरिशिखरे, योऽभिषेकः पयोभि
नृत्यन्तीभिः सुरीभि-ललितपदगमं, तूर्यनादैः सुदीप्तैः । कर्तु तस्याऽनुकारं, शिवसुखजनकं, मन्त्रपूतैः सुकुम्भ
__-विम्व जैनं प्रतिष्ठा-विधिवचनपरः, स्नापयाम्यत्र काले ॥ १ ॥ (स्रग्धरा) पछी चैत्यवंदन कर. पछी नीचेना भूतबलिमंत्रथी बलिदान मंत्र :
भूतबलिमंत्र :-ॐ नमो अरिहंताणं ॐ नमो सिद्धाणं; ॐ नमो आयरियाणं; ॐ नमो उवज्झायाणं; ॐ नमो लोए सब्यसाहणं, ॐ नमो आगासगामीणं, ॐ नमो चारणाइलद्धीणं, जे इमे किन्नर-किंपुरुस-महोरग-गरुल-सिद्धगंधव-जक्ख-रक्खस-पिसाय-भूय-पेय-साइणि-डाइणिप्पभिइओ जिणघरनिवासिणो नियनियनिलयठिया पवियारिणो सन्निहिया असन्निहिया य ते सव्वे विलेवण-ध्रुव-पुप्फ-फल-पईव-सणाहं बलिं पडिच्छंता, तुहिकरा भवन्तु, शिवंकरा भवन्तु, संतिकरा भवन्तुः मुत्थं जणं कुव्वंतुः सवजिणाणं सन्निहाणपभावओ पसनभावत्तणेण सव्वत्थ रक्खं कुणंतुः सव्यस्थ दुरियाणि नासंतु; सन्यासिपमुवसमंतु, संति-तुट्टि-पुष्टि-सिव-सुत्थयणकारिणो भवंतु स्वाहा" ॥
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1॥१४॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥ १४१ ॥
૩૬
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पछी ते बलि धूप, वास अने फल सहित बरी दश दिक्पाल अने नवग्रहना नाम लइ लड् नांखवो.
पछी श्रावको ने हाथमां फूल लइ नीचेना मंत्री भगी बलिदान कर :
“ ॐ ह्म्याँ गंधाह्मः प्रतीच्छन्तु स्वाहाः ॐ ह्म्यौं धूपं भजन्तु स्वाहा, ॐ ह्म्ये भूतबलिं जुषन्तु
"
स्वाहा 11
पछी श्रावको कुसुमांजलि लइ नीचेना मंत्रथी त्रणवार बिंब सामे नांखवी :
“ॐ ह्म्यै सकल सवलोकमवलोकय भगवन्नवलोकय अवलोकय स्वाहा
" ॥
पछी श्रावको पहेला करेली सर्व पूजा दूर करवी; तेमज चंदन, केशर, फूल, आंगी, वस्त्र, आभरण आदिकथी सघळी नवी पूजा करवी. तेमज आगळ करेलं सर्व वलिदान पण दूर कर दान देवुं तथा बीजोरां आदि फळ, लाड, सुखडी, मेवो, मुखवास वि. नैवेद्य मूकवं.
पछी उतारण विधिपूर्वक कपूर, घी अने साकरथी आरति अने मंगळ दीवो करवो.
॥ इति निर्वाणकल्याणकविधि ||
देवबंदन :
पछी गुरु भगवंते संघ साथे चैत्यवंदनथी त्रण थोय सुधी का बाद “ प्रतिष्ठादेवताविसर्जनार्थं काउ० करुं '
॥ १४१ ॥
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अञ्जन प्र. कल्प
।। १४२ ।।
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इच्छं; प्रतिष्ठादेवताविसर्जनार्थं करेमि काउ, वंदणे, अन्नत्यः १ लोगस्सनो काउ० ( चंदेसु निम्मलय सुधी ) नमो० कही- थोय घोथी-
यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः सर्वाः सवास्पदेषु नन्दन्ति ।
श्री जिनसा विशतु, देवना सुप्रतिष्ठमिदम् ॥ ४ ॥ ( आर्या ) 'सुयदेवयाए " करेमि० काउ०, अम्नत्थ०, १ नव० नो काउ० नमो० कही- थोय पांचमी
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वद वदति न वाग्वादिनि !, भगवति ! कः श्रुतसरस्वति ! गमेच्छुः । रङ्गतरङ्गमतिवर - तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥ ५ ॥ ( आर्या )
पछी " संतिदेवयाए " करेमि० काउ०, अन्नत्थ०, १ नव० नो काउ० नमो० कही--थोय छठ्ठी-
उन्मृष्टरिष्टदुष्ट ग्रहगतिदुःस्वप्नदुर्निमित्तादि ।
सम्पादितहितसम्प-नामग्रहणं जयति शान्तेः || ६ || (आर्या)
पछी " खित्तदेवयाए " करेमि० काउ०, अन्नत्य०, १ नव० नो काउ० नमो० कही- थोय सातमी --
॥ १४२॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥१४३॥
RECERCORRECG
यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया।
सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥७॥ (अनु.) कही "शासनदेवयाए" करेमि० काउ०, अन्नत्थ०, १ नव० नो काउ० नमो० कही--थोय आठमी-- ..उपसर्गवलयविलयन-निरता जिनशासनाऽवनैकरता।
द्रुतमिह समीहितकृते, स्युः शासनदेवता भवताम् ॥ ८ ॥ (आर्या) पछी “समस्त वेया० संति० सम्म०" करेमि०, काउ०, अन्नत्य०, १ नव० नो काउ० नमो० कही-थोय नवमी
सोऽत्र ये गुरुगुणौघनिधे सुवैया-वृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः। ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः, सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः॥९॥ (वसन्त०) पछी नवकार०, नमुत्थुणं, जावंति०, जावंत०, नमो० स्तवन अजितशांति अथवा मोटीशांति, जय वीयराय.
पछी श्रावकोए अखंड चोखा शेर सवा पांच प्रमाणनो थाळ गुरु पासे मूकवो. श्रावकोए पुष्पांजलि लइ तथा गुरुए अखंड चोखानी वे हाथे अंजलि लइ श्रीसंघ सहित ऊभा रही नीचे प्रमाणेनो मंगळ पाठ बोली श्रावकोए पुष्पांजलि तथा गुरुए चोखा उछाळवा मंगळपाठ :--
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अञ्जन प्र. कल्प
॥१४४॥
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जह सिद्धाण पइट्ठा, समग्गलोगस्स मज्झयारंमि। आचंद सूरियं तह, होउ इमा सुपइट्ठत्ति॥१॥ (आर्या) जह सग्गस्स पइट्ठा, समग्गलोगस्स मज्झयारंमि। ,, ,, ,, ,, ,, ॥२॥ (आर्या) जह मेरुस्स पइट्ठा, दीवसमुदाण मज्झयामि। ,, ,, ,, ,, ,, ॥३॥ (आर्या) जह जम्बूस्म पइट्ठा, समत्थदीवाण मज्झयारंमि। ,, ,, ,, ,, , ॥४॥ (आर्या) जह लवणस्म पइट्ठा, समत्थउदहीण मज्झयामि।
धमाऽधम्माऽऽगासा-थिकायमयस्स मब्बलोगस्म ।
जह सासया पइट्ठा, एसा विय होउ सुपइट्ठा ॥ ६ ॥ (आर्या) पंचण्ह वि सुपइट्ठा, परमिट्ठीणं जहा सुए भणिया।
नियया अणाइ निहणा, तह एसा होउ सुपइट्ठा ॥ ७ ॥ (आर्या) धर्मदेशना:-पछी गुरुए 'प्रवचन मुद्राथी' नीचे प्रमाणे प्रतिष्ठाना गुणोनुं वर्णन करवा पूर्वक धर्मदेशना आपवी.
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॥५| (आर्या)
६ ॥१४४॥
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॥१४५॥
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राया बलेण वदइ, जसेण धवलेइ सयलदिसिभाए ।
पुणं व विलं, सुपट्ठा जस्स देसम्म || १ || ( आर्या) उवहणइ रोगमारि, दुब्भिक्खं हणइ कुणइ सुहभावे ।
भावेण कीरमाणा, सुपट्टा जस्स देसम्म || २ || (आर्या) पिट्ठे जे करिति तह कारविंति भत्तीए ।
अणुमन्नंति पइदिणं, सव्वे सुहभाइणो हुंति || ३ || (आर्या) तमेव मन्ने, जिणविम्ब इट्ठणाइकज्जेसु । जं लग्गइ तं सहलं, दुग्गइजणणं हवइ सेमं ॥ ४॥ ( आर्या)
एवं नारण सया, जिणवरविम्बस्स कुह सुपइटुं । पावेह जेण जरमरण - वज्जियं सासयं ठाणं ॥ ५ ॥
पछी चिंच आगळ पडदो करी श्रीसंघना मुखमां तंबोल आपत्रां.
पछी श्रीसंत्रे बिना मुख उघाडवा निमित्ते फळ वि. ढोकवा. पछी चैत्यवंदन कर.
॥ १४५ ॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥१४६॥
पछी प्रतिष्ठा करावनार श्रावके मोटो मोठो लाडवो. मूकबो. ए रीते दश दिवस सुधी महोत्सवविधि करवो.
१० प्रकारना नैवेद्यः-कूरखांडघी; खीरखांडघी; धेवर; दहींकूरखांड; लापसी, गोळघुघरी, मीठो बाट (मीठी थूली); पक्वान्न, गुना, सिंघोडा अने नारंगी, नाळियेर वि. फळ धरावा.
पछी "ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा” ए मंत्रथी नन्द्यावर्तनुं विसर्जन करवू. पछी नीचेनो श्लोक तथा मंत्र भणी अंजलिमुद्राथी प्रतिष्ठादेवनुं विसर्जन करवु:देवदेवाचनार्थ ये, पुराऽऽहूताश्चतुर्विधाः।।
ते विधायाऽर्हतां पूजां, यान्तु सर्वे यथाऽऽगताः ॥१॥ (अनु.) 'ॐ विसर विसर प्रतिष्ठादेवते स्वस्थानं गच्छ गच्छ यः यः यः स्वाहा' । पछी नीचेनो श्लोक तथा मंत्र भणी सर्व देवताओ विसर्जन कर..
ये देवदेवीगणनागयक्षाः, समागतास्ते कृतशान्तिकृत्याः ।
जिनेश्वरं विम्वविधानपूर्ण-मनोरथाः स्वं सदनं प्रयान्तु ॥ १ ॥ (उपजाति)
॥१४६॥
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ही विसर विसर सर्वे सुराः स्वस्थानं गच्छत गच्छत यः यः यः स्वाहा"॥ अञ्जन
पछी 'मोटी शान्ति' बोलवी. शांति धारा आपवी. चंदन, पुष्प अने धूप वि. विधि करवो. पछी कंकण छोडवू प्र. कल्प
अने नीचेनी गाथा बोलवी :-- ॥१४७॥ थुइदाणमन्तनासो, आहवणं तह जिणाण दिसिबंधो ।
नेत्तुम्मीलणदेसण-गुरुअहिगाग छ इह कप्पे (आर्या)
॥ इति दशमदिनपूजाविधिः ॥ ए रीते प्रतिष्ठित करेला नवीन जिनबियोने देवालयमा स्थापन करवां, पण ते पहेला चाकनी माटी अने दर्भनो स्वस्तिक करवो. बधी जग्याए पलिक्षेप करवो तेमज आठ थोयनुं देववंदन करी क्षेत्रदेवतानी स्तुति कहेवी.
बिबनी स्थापना अने दृष्टि-बार शाखना आठ भाग करी तेमां उपरना आठमो भाग छोडी सातमा भाग उपर मूळनायक बिंबनी स्थापना करवी अने ए सातमा भागना आठ भाग करी आठमो भाग छोडी सातमा भाग पर दृष्टि राखवी.
"ॐ कूर्म ! निजपृष्ठे जिनबिम्बं धारय धारय स्वाहा" ए मंत्रथी सातवार पृथ्वी मंत्री बिंबने स्थापन करवां cl अने “ ॐ स्थावरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा” ए मंत्र सातवार भणवो.
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RECOGESSAGARGRECIRREGAR
॥१४॥
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प्र.कल्प
॥१४८॥
पछी सुगंध धूप वि. थी अष्टप्रकारी पूजन करवू. आरती-मंगळ दीवो तथा ध्वजारोपण करवू. पछी चैत्यवंदन करवू 5 अने स्तवननी जग्याए शांति कहेवी.
पछी पक्यान्न वि. नैवेद्य अने फळादिथी चित्रविचित्र पूजा करवी अने प्रतिमास्थापन पछी " लघुशांति, मोटी| शांति, अजितशांति; भयहर उवसग्गहरं; थुणिमो केवलि० अने तिजयपहुत्तस्तोत्र भणवा अने अठ्ठाइ महोत्सव करवो..
चौदपूर्वी--पंचमश्रुतकेवळी श्रीभद्रबाहुस्वामीए विद्याप्रवादपूर्वभांधी उद्धृत प्रतिष्ठाकल्पमांथी श्रीजगच्चन्द्रसूरीश्वरे जे प्रतिष्ठाकल्प उद्धर्यो हतो तेना आधारे आ प्रतिष्टाकल्प वाचक श्रीसकलचंद्रगणिए रच्यो अने ते पहेलाना-भट्टारक श्रीहरिभद्रसूरिकृतः हेमाचार्यकृत, श्यामाचार्यकृत, भट्टारकगुणरत्नाकरसूरिकृत प्रतिष्ठाकल्पोनी साथे श्रीविजयदानसूरीश्वर समक्ष मेळवी शोधन कयु.
॥ समाप्तः श्रीसकलचन्द्रजीकृतप्रतिष्ठाकल्पः॥
॥१४८॥
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प्र. कल्प
॥ १४९ ॥
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+ सकलीकरणविधिः- “ ॐ नमो अरिहंताणं हृदयं रक्ष रक्ष, ॐ नमो सिद्धाणं ललाटं रक्ष रक्ष, ॐ नमो आयरियाणं शिवां रक्ष रक्ष, ॐ नमो उवज्झायाणं कवचं सर्वशरीरं रक्ष रक्ष, ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं अत्रम् रक्ष रक्ष " आ प्रमाणे सर्व ठेकाणे आचार्य णवार मन्त्रन्यास करवो. इति सकलीकरणविधिः ।
शुचिविद्याः- “ ॐ नमो अरिहंताणं, ॐ नमो सिद्धाणं, ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्झायाणं, ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं । सात वार गणवी.
*ॐ नमो आगासगामीणं, ॐ नमो चारणलद्वीणं, ॐ 'हः क्षः नमः, ॐ अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा " मन्त्री आचार्ये सर्व अङ्ग पवित्र करवां केटलाकना मते स्नात्रीयाओ पण आनाथी ज अङ्गरक्षा करे.
गुरुe afe मन्त्रानो मन्त्रः- ॐ ह्रीँ क्ष्वीँ सर्वोपद्रवं विम्बस्य रक्ष रक्ष स्वाहा " आ मन्त्र २१ वार बोलवो.
• + प्रतिष्ठा-विधिः -
+ सकलीकरणविधि, शुचिविद्या भने बलिमन्त्रण जो के प्रतिष्ठाकल्पमां आवी जाय छे पण, वारंवार भावतां होवाथी ख्याल माटे अलग पाडी आपवामां आवे छे. * ॐ नमो सव्वोसहिपत्ताणं ॐ नमो विजाहराणं इत्यादि कलिकायाम् । १ हः क्षः समाचार्याम् । कं क्षं नमः इति कलिकायाम् ।
+ निर्वाणकलिका, आचारदिनकर विधिमार्गप्रपा, सुबोधा [ चान्द्रीय] सामाचारी, तिलकाचार्यकृतप्रतिष्ठाकल्प, गुणरत्नसूरिकृतप्रतिष्ठाकल्प तथा नामोल्लेख सिवायना अन्य घणा प्रतिष्ठाकल्पोमां वास्तविक अ प्रमाणेनी अञ्जनशलाका-प्रतिष्ठाविधि हती ते आपवामां आवेल छे.
॥१४९॥
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॥१५॥
अथानः संप्रवक्ष्यामि, प्रतिष्ठालक्षणं स्फुटम् । जिनशास्त्रानुसारेण, नवा वीरं जिनोत्तमम् ॥१।। (अनु.)
इह तावदादौ निष्पन्न बिमस्य महोत्सवेन शुभवारतिथिनक्षययोगेषु आयतने प्रतिष्ठास्थाने कृतविचित्रवस्त्रोल्लोचे पूर्वोत्तरदिगभिमुखस्य स्थापना, जघन्यतोऽपि हस्तशतप्रमाणक्षेत्रशुद्धिः, तत्र च गन्धोदकपुष्पप्रकरादिभिः सत्कारः, अमारिघोषणं, राजपुर छन, विज्ञानिकसन्माननं, सङ्घातानं, महोत्सवेन पवित्रस्थानाजलानयनं, वेदिकार चना, दिवालस्थापन, स्नपनकाराश्च समुद्राः, सकगाः , अक्षताङ्गाः, दक्षाः, अझतेन्द्रियाः, कृतबिम्बस्थापनानन्तरं श्रीखण्डरसेन लगटे 'ॐ हाँ,' हृदये 'ॐ हौँ,' जान्योः 'हो,' पादयोः 'ह्म,' इति बीजाक्षरा न्यसनीयाः, “ॐ नमोऽयं प्रतीच्छन्तु पूजां गृह्णन्तु जिनेन्द्राः स्वाहा” इति कवचरक्षा, अखण्डितोज्ज्वल वेषा, उपोषिता, धर्मबहुमानिनः, कुलजाश्चत्वारः करणीयाः, तत्रैव मङ्गलाचारपूर्वकमविधवाभिश्चतुःप्रभृतिभिः प्रधानोउज्वलने पथ्याभरणाभिर्विशुद्धशीलाभिः सकङ्कणहस्ताभिनारीभिः पञ्चरत्नकपायमाङ्गल्यमृत्तिकाम्रलिकाऽष्टवर्ग पौंपध्यादीनां वर्त्तनं कारगीय क्रमेण, ततो भूतबलिपूर्वकं विधिना पूर्वप्रतिष्ठिाप्रतिमास्नान, ततः सूरिः प्रत्यग्रवस्त्रपरिधानः स्नात्रकारयुक्तः शुचिरुपोषितो भूत्वा पूर्व प्रतिमाग्रतश्चतुर्विधश्रमणसङ्घसहितोऽधिकृतस्तुत्या देववन्दनं करोति, ततः शान्तिनाथ-श्रुतदेवी-शासनदेवी-अम्बिका-ऽच्छुप्ता-समस्तवैयावृत्त्यकराणां कायोत्सर्ग, ततः सरिः कङ्कणमुद्रिकाहस्तः सदश वस्त्रपरिधानः आत्मनः सकलीकरणं, शुचिविद्यां चारोपयति, तच्वेदम् - 'ॐ नमो अरिहंताणं हृदये, ॐ नमो सिद्धाणं शिरसि, ॐ नमो आयरियाणं शिखायां, ॐ नमो उवज्झायाणं कवचं, ॐ नमो लोए सव्यसाहणं अव" विस्त्रिमन्त्रन्यासः ।। इति सकलीकरणम् ॥
॥१५०॥
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॥१५॥
तत:-"ॐ नमो अरिहंताणं, ॐ नमो सिद्धाणं, ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्झायाणं, ॐ नमो लोए सब्यसाहूणं, ॐ नमो आगासगामीणं, ॐ हः क्षः नमः" इति शुचिविद्या, अनया त्रिपञ्चसप्तवारानात्मानं परिजपेत् , ततः स्लपकारानभिमन्व्याभिमन्त्रितदिशा बलिप्रक्षेपणं धूपसहितं सोदकं क्रियते, "ॐ हीं वीं सौंपद्रवं बिम्बस्य रक्ष रक्ष स्वाहा” इत्यनेन एकविंशतिवारान् पठित्या बल्यभिमन्त्रणं, कुसुमाञ्जलिक्षेपः---
अभिनत्र सुगन्धिविकसित-पुष्पौषभृता सुधृपगन्धादया। विम्बोपरि निपतन्ती, सुखानि पुष्पाञ्जलिः कुरुताम् ॥१॥ ___ तदनन्तरमाचार्येण मध्याछुलीद्वयोर्कीकरणेन तर्जनीमुद्रा रौद्रदृष्टया देया, तदनन्तरं वामकरे जलं गृहीत्वा प्रतिमा छण्टनीया, ततस्तिलकं पूजनं च प्रतिमायाः अद्गरमुद्रादर्शनम् अक्षतभृतस्थालदानं वज्रगरुडादिमुद्राभिविम्बस्य वज्ररक्षामन्त्रेण (वलिमन्त्रेण ) " ॐ ह्रीँ श्वी" इत्यादिना काचं करणीयं दिग्बन्धाश्चानेनैव त्रिविः पठनेन, श्रावकाः सप्तधान्यं (मुष्टिप्रायेण ) सण १, लाज २, कुलत्थ ३, यत्र ४, कगु ५, उडद ६, सर्पप ७ रूपं प्रतिमोपरि क्षिपन्ति, जिनमुद्रया कलशाभिमन्त्रणं जलाधभिमन्त्रणम् । जलाधभिमन्त्रणमन्त्राश्चैते
"ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते महाभूते आ ३ आप ४ ज ४ जलं गृह स्वाहा" इति जलाभिमन्त्रणमन्त्रः ।
"ॐ नमो यः सर्वशरीरावस्थिते पृथु २ गन्धान गृह ३ वाहा" इति गन्धाधिवासनमन्त्रः । सर्वाधिचन्दनसमालम्भनमन्त्रश्च ।
॥१५॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥१५२॥
"ॐ नमो यः सर्वतो मे मेदिनी पुष्पवती पुष्पं गृह २ स्वाहा" इति पुष्पाधिवासनामन्त्रः । "ॐ नमो यः सर्वतो बलिं दह २ महाभूते तेजोऽधिपते धु धु धूपं गृह्न २ साहा" धूपाभिमन्त्रणमन्त्रः ।
ततः पञ्चरत्नकग्रन्थिरमुल्यां (दक्षिणस्यां) वध्यते ततः पञ्चमङ्गलसूचकं मुद्रामन्त्राधिवासितैर्जलादिद्रव्यैर्गीततूर्यपूर्वकं सुकुशलस्नात्रकारैः स्नात्रकरणं, तद्यथा हिरण्य कलशचतुष्टयस्नानम् - सुपवित्रतीर्थनीरेण, संयुतं गन्धपुष्पसम्मिश्रम् । पततु जलं बिम्बोपरि, सहिरण्यं मन्त्रपरिपू तम् ॥ १॥ (आर्या)
सर्वस्नात्रेप्यन्तरा शिरसि चन्दनटिक्ककं पुष्पारोपणं धूपश्च १। पञ्चरत्नजलस्नानम्नानारत्नौधयुतं, सुगन्धिपुष्पाधिवासितं नीरम् । पतताद्विचित्रवर्ण मन्त्राढयं स्थापनाविम्बे ॥२॥
कषायस्नानम्प्लक्षाश्वत्थोदुम्बर-शिरीषछल्ल्यादिकल्कसन्मृप्टे । बिम्बे कषायनीरं, पततादधिवासितं जैने ॥३॥ __ मृत्तिकास्नानम्पर्वतसरोनदीसङ्गमादि-मृद्भिश्च मन्त्रपूनामिः । उद्वर्त्य जैनबिम्ब, स्नपयाम्यधिवासनासमये ॥४॥
पञ्चगव्यस्नानम्जिनविम्बोपरि निपतद्-घृतदधिदुग्धादिद्रव्यपरिपूतम् । दर्भोदकसंमिश्र, पञ्चगव्यं हरतु दुरितानि ॥५॥ (,,)
RAGARAAGIRITUAL
॥१५२॥
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अञ्जन प्र.कल्प
।।१५३॥
SASARASHRA
सदोषधिस्नानम् - * सहदेव्यादिसदौपधि-वर्गेणोद्वर्तितस्य विम्बस्य । सन्मिश्रं बिम्बोपरि, पतज्जलं हरतु दुरितानि ॥ ६॥ (आर्या)
मलिकास्नानम्सुपवित्रमूलिकावर्ग-मर्दिते तदुदकस्य शुभधारा । विम्बेऽधिवाससमये, यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती ॥ ७ ॥ (,) | प्रथमाष्टकवर्गस्नानम्नानाकुष्ठाद्यौषधि-सन्मुष्टे तयुत पतनीरम् । विम्बे कृतसन्मन्त्रं, कौघं हन्तु भव्यानाम् ॥ ८॥
द्वितीयाष्टकवर्गस्नानम्मेदाधौषधिभेदो-ऽपरोऽष्टवर्गः सुपन्त्रपरिपूतः । निपतन् बिम्बस्योपरि, सिद्धिं विदधातु भव्य नने ॥९॥ (,)
ततः सूरिरुत्थाय गरुडमुद्रया मुक्ताशुक्तिमुद्रया, परमेष्ठिमुद्रया, वा प्रतिष्ठाप्य देवताऽऽद्वानं तदग्रतो भूत्वा ऊर्ध्वः | सन् करोति-"ॐ नमोऽर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखपरमेष्टिने त्रैलोक्यगतायाष्टदि ग्यभागकुमारीपरिपूजिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय आगच्छ २ स्वाहा" इत्यनेन । दिकपालाश्चाहूयन्ते-" ॐ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय इह जिनेन्द्रस्थापने आगच्छ २ स्वाहा १, ॐ अग्नये सायुधाय आगच्छ २ स्वाहा” इत्यादिना शेषाणामप्याहानं कुर्यात् , पुष्पाणामञ्जलिक्षेपश्च ।
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।
॥१५३॥
34
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-
6
अञ्जन प्र. कल्प
॥१५४॥
सर्वोपधिस्नानम् - सकलौषधिसंयुक्त्या, सुगन्धया घर्षितं सुगतिहेतोः । स्नपयामि जैनबिम्ब, मन्त्रिततनीरनिवहेन ॥ १० ॥ (आर्या) |
तत:-" सिद्धजिनादि" मन्त्रः सूरिणा दृष्टिदोषघाताय दक्षिणहस्तामर्षेण तत्काले बिम्बे न्यसनीयः, स चायम्
'इहागच्छन्तु जिनाः सिद्धा भगवन्तः स्वसमये महानुग्रहाय भव्यानां भः स्वाहा' 'हुंक्षा हौँ क्ष्वी हूँ भः स्वाहा' इत्ययं वा। ततो लोहेनास्पृष्टश्वेतसिद्धार्थरक्षापोहलिका करे बन्धनीया, तदभिमन्त्रणमन्त्र:'ॐ क्षा श्वी ही स्वाहा', चन्दनटिकक च, ततो जिनपुरतोऽञ्जलिं बद्ध्वा विज्ञप्तिकावचनं कार्य, तच्चेदं'स्वागता जिनसिद्धाः प्रसाददाः सन्तु प्रसादधिया कुर्वन्तु अनुग्रहपरा भवन्तु भव्यानां स्वागतमनुस्वागतम् ' ततोऽञ्जलिमुद्रया सुवर्णभाजनस्थाध्य मन्त्रपूर्वक निवेदयत् , सच-'ॐ मः अध्ये प्रतीच्छन्तु पूजां गृहन्तु जिनेन्द्राः स्वाहा' | सिद्धार्थदध्यक्षतघृतदर्भरूपश्चा_मुच्यते । ततः
इन्द्रमग्नि यमं चैव, निक्रति वरुणं तथा । वायुं कुबेरमीशानं, नागं ब्रह्माणमेव च ॥१॥
ॐ इन्द्राय आगच्छ २ अध्यं प्रतीच्छ २ पूजां गृह्ण २ स्वाहा' एवमेव शेषाणामपि नवानामाहानपूर्वकम_निवेदनं च कार्यम् । ततः कुसुमस्नानम्
अधिवासितं सुमन्त्रैः, सुमनःकिंजल्कराजितं तोयम् । तीर्थ नलादिसुपृक्तं, कलशोन्मुक्तं पततु बिम्बे ॥११॥ (आर्या) | ॥१५४॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥१५५||
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ततो गन्धस्नानिकास्नानम्गन्धाङ्गस्नानिकया, सन्मृष्टं तदुदकस्य धाराभिः। स्नपयामि जैन बम्ब, कौघोषिउत्तये शिवदम् ॥१२॥ ((आर्या) गन्धा एव शुक्लवर्णा वासा उच्यन्ते, त एव मनाक कृष्णा गन्धा इति । ततो वासस्नानम्हृद्यैराबादकरैः, स्पृहणीयैर्मन्त्रसंस्कृतैजैनम् । स्नपयामि सुगतिहेतो-बिम्बमधिवासितं वासैः ॥१३॥ (,,) ततः चन्दनस्नानम्शीतलसरससुगन्धि-मनोमतश्चन्दनद्रुमसमुत्यः । चन्दनकल्कः सजलो, मन्त्रयुनः पततु जिनबिम्बे ॥१४॥ (,) ततः कुङ्कुमस्नानम्कश्मीरजसुविलिप्त, बिम्ब तन्नीरधारयाऽभिनयम् । सन्मन्त्रयु कया शुचि, जैनं स्नपयामि सिद्धयर्थम् ॥१५॥ (आर्या) | तत आदर्शकदर्शनं ततस्तीर्थोदकस्नानम्जलधिनदीहदकुण्डेषु, यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि । तैर्मन्त्रसंस्कृतैरिह, बिम्ब स्नपयामि सिद्धथर्थम् ॥१६॥ (,,) ततः कर्पूरस्नानंशशिकरतुपारधवला, उज्ज्वलगन्धा सुतीर्थनल मिश्रा । कर्पूरोदकधारा, सुमन्त्रपूता पततु बिम्बे ॥१७॥ (,,) ततः कस्तूरिकास्नानम्मन्त्रपवित्रितपयसा, प्रकृष्टकस्तूरिकासुगन्धयुजा। विहितप्रणताभ्युदयं, बिम्ब स्नपयामि जैनेन्द्रम् ॥
॥१५५॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥१५६॥
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अति सुरभिबहुलपरिमल-वासितपानेन मृगमदस्नानैः । मन्त्रैः कृतैः पयोभिः, स्नपयामि शिवाढयजिनबिम्बम् ॥ १८ ॥ ( आर्या ) ततः पुष्पाञ्जलिक्षेपः
नानासुगन्धपुष्पौध- रञ्जिता चञ्चरीककृतनादा । धूपामोदविमिश्रा,
पततात्पुष्पाञ्जलिम् ॥१९॥ ॥ (,, )
ततः शुद्धजलकलशैः अष्टोत्तरशत- १०८ स्नानविधिः
चक्रे देवेन्द्रराजैः सुरगिरिशिखरे योऽभिषेकः पयोभि-नृत्यन्तीभिः सुरभिललितपद्गमं तूर्यनादैः सुदीप्तैः । कर्तुं तस्यानुकारं शिवसुखजनकं मन्त्रपूतैः सुकुम्भैर्विम्बं जैनं प्रतिष्ठाविधिवचनपरः स्नापयाम्यत्र काले ॥१॥ (स्रग्धरा) ततोभमन्त्रितचन्दनेन सूरिर्वामकरधृतप्रतिमां दक्षिणकरेण सर्वाङ्गमालेपयति, कुसुमारोपणं, धूपोत्पाटनं वासनिक्षेपः, सुरभिमुद्रादर्शनं पद्ममुद्रा ऊर्ध्वा दर्श्यते, अञ्जलिमुद्रादर्शनं च ततः प्रियङ्गुकर्पूरगोरोचनाहस्तलेपः अधिवासनामन्त्रेण करे ऋद्धिवृद्धिसमेत मदनफलाख्यकङ्कणबन्धनं, स चायम् - "ॐ नमो खीरासवलद्धीणं ॐ नमो महुयासवलद्वीणं ॐ नमो भिसोईणं ॐ नमो पयाणुसारीणं ॐ नमो कुट्टबुद्धीणं जमियं विज्जं पउंजामि सा मे विज्जा पसिज्झउ ॐ अवतर २ सोमे २ कुरु २ ॐ वस्तु निवग्गु सुमणे सोमणसे महुमहुरए कविले ॐ कः क्षः स्वाहा " अधिवासनामन्त्रः, यद्वा 66300 नमः शान्तये हुं क्षं हूं सः " कङ्कणमन्त्रः ५ । अधिवासनामन्त्रेणैव मुक्ताशुक्त्या विम्बे पञ्चाङ्गस्पर्श:- मस्तक १ खांध २ जानु २ वार ७, चक्रमुद्रया वा । धूपथ निरन्तरं दातव्यः, परमेष्ठिमुद्रां सूरिः करोति, पुनरपि जिनाद्दानं, ततो निषद्यायामुप
॥१५६॥
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.
अजन प्र.कल्प
॥१५७॥
ISORRRRRUSS SISUSTUS
विश्य नन्द्यावर्त मध्यात्प्रभृति पूजयेत् , सदशाव्यङ्गवस्त्रेण तमाच्छादयेत् , तदुपरि नालिकेरप्रदान कार्य तदुपरि प्रतिष्ठा
प्यबिम्बस्थापनं, चलप्रतिष्ठाख्यापनाय विचित्रबलिविधानं, यथा-जम्बीर-बीजपूरक-नालिकेर-पनसा-ऽऽम्र-दाडिमादि| प्रशस्तफलकन्दमूलढोकनं, ततश्चतुःकोणेषु वेदिकायाः पूर्वन्यस्तायाश्चतुस्तन्तुवेष्टनं चतुर्दिशं श्वेतवारकोपरि गोधूमत्रीहियवानां यववारकाः स्थाप्याः, बाटुखीरिकरम्बककीसरकूरुससिद्धविडिपूयही इति सप्त बलिशगवाणि दीयन्ते, पुनस्तन्तुसहितसहिरण्यचन्दनचर्चितकलशाश्चत्वारः प्रतिमानिकटे स्थाप्यन्ते, घृतगुडसमेतमङ्गलप्रदीपाः ४ स्वस्तिकपट्टस्य चतसृष्वपि दिक्षु सकपर्दकसहिरण्यसजलसधान्य वतुर्वारकस्थापनं, तेषु च सुकुमालिकाकणानि करणीयानि यववाराश्च स्थाप्याः, पूर्णचतु:सूत्रेण वेष्टनं वारकाणाम् , ततः शक्रस्तवेन चैत्यवन्दनं कृत्वाऽधिवासनालग्नसमये पुष्पसमेतऋद्धिवृद्धियुतमदनफलारोपणपूर्वकं चन्दनयुक्तेन पुष्पवासधुपप्रत्यग्राभिवासितेन वस्त्रेण बदनाच्छादनं माइसाडी चारोप्य ते, तदुपरि चन्दनच्छटा मूरिणा सूरिमन्त्रेणाधिवासनं च वारत्रयं कार्य, ततो गन्धपुष्पयुक्तसप्तधान्यस्नपनमञ्जरिभिः, तच्चेदर-सालि-यव-गोधूम-मुद्गवल्ल-चनक-चपलका इति, पुष्पारोपणं धूपोत्पाटनं, ततः स्त्रीभिरविधवाभिश्चतसृभिरधिकाभिर्या प्रोक्षणकं यथाशक्त्या हिरण्यदान च, ताभिरेव पुनः प्रचुरलडडुकादिवलिकरणं, पुटिकाः ३६० दीयन्ते, ततः श्राद्धा आरात्रिकाऽवतारणं मङ्गलदीपं च कुर्वन्ति, चैत्यवन्दनं कायोत्सर्गोऽधिवासनादेव्याः चतुर्विशतिस्तवचिन्तनम् , तस्या एव स्तुतिः
१ बृद्विम्बस्याधो बलकवियुक्तोऽपि न द्यावतः स्थाप्यते इति कस्यचिदाशयः (ता. टी.)
॥१५७॥
४०
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अञ्जन प्रे. कल्प
॥१५८॥
विश्वाशेपमुवस्तुषु मन्त्राऽजस्रमधिवसति बसतौ । सेमामयतरंतु श्री-जिनत नुमधिवासनादेवी ॥१॥ (आर्या) यद्वा-पातालमन्तरिक्षं. भवनं वा या समाश्रिता भवने । साधावतरतु जैनी, प्रतिमामधिवासनादेवी ॥२॥ (..) ततः श्रुतदेवी २ शान्ति ३ अम्बा ४ क्षेत्रदेवी ५ शासनदेवी ६ समस्तवेया० ७ कायोत्सर्गाः।
या पाति शासन जैन, सद्यः प्रत्यूहनाशिनी । साऽभिप्रेतसमृदयर्थ, भूयाच्छासनदेवता ॥१॥ (अनु.) ।
पुनरपि धारणापविश्य कार्या मूरिणा, 'स्वागता निनाः सिद्धाः' इत्यादिनेति ॥ अधिवासनाविधिरयम्-अधिवासना रात्रौ, दिवा प्रतिष्ठा प्रायसः कार्या, इतरथाऽपि कश्चित्कालं स्थित्वा विभिन्ने प्रतिष्ठालग्ने प्रतिष्ठा विधेया, तत्र प्रथमं शान्तिबलिः चैत्यवन्दनं प्रतिष्ठादेवतायाः कायोत्सर्गः चतुर्वि| शतिस्तवचिन्तनं, ततः स्तुतिदानम्___यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः, सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । श्रीजिनविम्ब सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥१॥
शासनदेवी १ क्षेत्रदेवी २ समस्तवेया० ३, धूफ्युरिक्षप्याच्छादनमपनयेत् लग्नसमये, ततो घृतभाजनमग्रे कृत्वा सौवीरकघृतमधुशर्कराभृतरूप्यवर्ति कायां सुवर्णशलाकया प्रतिमानेत्रोन्मीलनं वर्णन्यासपूर्वकं, या -हाँ ललाटे, श्री नयनयोः, हाँ हृदये, रै सर्वसन्धिषु, श्ली सिंहासने विलिख्य प्राकारेण वेष्टयेत्रिगुणं व्योम्नि अन्ते क्रौं समालिखेत् , | प्राकारः कुम्भकेन न्यासः शिरसि अभिमन्त्रितवासदानं दक्षिणकणे श्रीखण्डादिचचित आचार्यमन्त्रन्यासः, प्रतिष्ठामन्त्रेण
।॥१५८॥
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अञ्जम प्र.कल्प
॥१५९॥
त्रिपञ्चसप्तवारान् सर्वाङ्गं प्रतिमां स्पृशेत् चक्रमुद्रया, सामान्ययति प्रति मन्त्रो यथा-"धीरे २ जयवीरे सेगवीरे महावीरे जये विजये जयन्ते अपराजिते साहा" अयं प्रतिष्ठामन्त्रः, ततो दधिभाण्डकादर्शकदर्शनं दृष्टेश्चक्षुरक्षणाय सौभाग्याय स्थैर्याय च समुद्रा मन्त्रा न्यसनीयाः, "ॐ अवतर २ सोमे २ कुरु २ बग्गु २” इत्यादिकं ततः सौभाग्यमद्रादर्शनं १, सुरभिमुद्रा, २, प्रवचनमुद्रा, ३, कृताञ्जलिः, ४, गरुडा पर्यन्ते पुनरप्यवमननं (प्रोक्षणं) स्वीभिः, इह च स्थिरप्रतिमाधः घृतवर्तिकाश्रीखण्डतन्दुलयुतपश्चधातुकं कुम्भकारचक्रमृत्तिकासहितं पूर्वमेव बिम्बनिवे
समये न्यसेत , ततः "ॐ स्थावरे तिष्ठ २ स्वाहा” इति स्थिरीकरणमन्त्रो न्यसनीयः चलप्रतिष्ठायां तु नैषः,
नवरं चलप्रतिमाधः सशिरस्कदर्भो वालुका च प्रथमत एवं वामाङ्गे न्यसनीया, तत्र च-"ॐ जये श्री ही सभडे नम" X| इति मन्त्रश्च न्यस्यः, ततः पद्ममुइया रत्नासनस्थापन कार्यमिति वदता यथा-'इदं रत्नमयमासनमलङ्कर्वन्तु इहोपविष्टा
भव्यानवलोकयन्तु हृष्टदृष्टया जिनाः स्वाहा,' ततः 'ॐ ह्मये गन्धान प्रतीच्छन्तु स्वाहा, ॐ ह्मये पुष्पाणि गृह्णन्तु स्वाहा, ॐ मये धूपं भजन्तु स्वाहा, ॐ ह्मये भूतबलि जुषन्तु स्वाहा', ॐ मये सकलसवालोककर ! अवलोकय भगवन् ! अवलोकय स्वाहा' इति पठित्वा पुष्पाञ्जलित्रयं क्षिपेत् , ततो वस्त्रालङ्कारादिभिः समस्तपूजा माइसाडी कणिकामेषश्च पुष्पारोपणं बल्यादिश्च मौरिंडामुंहालियप्रभृतिको दीयते, ततो लवणावतारणं आरात्रिकस्यावतारणं मङ्गलप्रदीपस्य
कारणं, ततः सङ्केन सहितः चैत्यवन्दनं कायोत्सर्गाः श्रुतदेव्यादीनां 'मुयसंतिखेतपवयणाईणं' तिवचनात शक्रस्तवपाठः शान्तिस्तवभणनं, ततोऽखण्डाक्षताञ्जलिभृतलोकसमेतेन मङ्गलगाथापाठः कार्यः नमोऽर्हत्सिद्धाचार्येत्यादिपूर्वक यथा
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॥१५९॥
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भजन प्र. कल्प
॥ १६०॥
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जह सिद्धाण पट्टा, तिलोयचूडामणिमि सिद्धिपए । आचंद्रसूरियं तह, होउ इमा सुपत्ति ॥ १ ॥ (आर्या )
जद सम्गस्स पट्टा, समत्थलोयस्स मज्झयारंमि ।
॥५॥ (,, )
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जह मेरुरूस पट्टा, दीवसमुद्दाण मज्झयारंमि । जह जंबुस्स पट्टा, जंबुद्दिवाण मज्झयारंमि । जह लवणस्स पट्ठा, समत्थउदहीण मज्झयारंमि । इति पठित्वाऽक्षतान् त्रिः क्षिपेत्, पुष्पाञ्जलींश्च क्षिपेत् ततः प्रवचनमुद्रया सूरिणा धर्मदेशना कार्या, ततः सङ्घदानं मुखोद्घाटनं दिनत्रयं पूजा अष्टाह्निकापूजा वा तत्रापि प्रशस्तदिवसे ३|५| स्नात्रं कृत्वा जिनवलिं विधाय भूतबलिं प्रक्षिप्य चैत्यवन्दनं विधाय कङ्कणमोचनाद्यर्थं प्रतिष्ठा देवता विसर्जन कायोत्सर्गः चतुर्विंशतिस्तव चिन्तनं तस्यैव पठनं श्रुतदेवी १, शान्ति
,
उन्मृष्टरिष्टदुष्ट- ग्रहगतिदुःस्वप्न दुर्निमित्तादि । संपादित हितसम्प - नामग्रहणं जयतु शान्तेः ॥ १॥ ( आर्या )
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॥२॥ (१)
11311 (,,)
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क्षेत्र०, वैया० कायोत्सर्गः, ततः सौभाग्यमन्त्रन्यासपूर्वकं मदनफलोत्तारणं, स च - ॐ अवतर २' इत्यादि ततो नन्द्यावर्त्त पूजनं विसर्जनं च ॐ विसर २ स्वस्थानं गच्छ २ स्वाहा' नन्द्यावर्त्तविसर्जनमन्त्रः । ॐ विसर २ प्रतिष्ठादेवते ! स्वाहा' इति प्रतिष्ठा देवताविसर्जनमन्त्रः । प्रतिष्ठावृत्तौ द्वादशमासिकस्नपनानि कृत्वा पूर्णे वत्सरे अष्टाह्निका विशेषः, पूजां च विधाय आयुर्ग्रन्थि निबन्धयेत् ; उत्तरोत्तरपूजा च यथा स्यात्तथा विधेयम् एवम्-
॥ १६०॥
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लेप्पाइमए वि विही, बिवे एसेव किंतु सविसेसं । कायव्वं ण्हाणाई, दप्पणसंकेतपडिविम्बे ॥१॥ (आर्या) । अञ्जन प्र.कल्प
ॐक्षी नमः' अम्बिकादीनामधिवासनामन्त्रः । ॐ हीनमो वीराय स्वाहा' तेषामेव प्रतिष्ठामन्त्रः, यद्वा Pॐ ह्रीँ क्ष्मी साहेति' देवीप्रतिष्ठामन्त्रः । पश्चान्नन्द्यावर्तलेखनं पूजनं च कार्यम् । ॥१६॥
॥ समाप्तः संक्षिप्तप्रतिष्ठाविधिः ॥
- अथ जिनबिम्ब-परिकर-प्रतिष्ठाविधिः - ___ यदि जिनविम्बेन सह परिकरो भवति तदा जिनविम्वप्रतिष्ठायामेव वासक्षेपमात्रेण परिकरप्रतिष्ठा पूर्यते । प्रथमभूते परिकरे पृथक्प्रतिष्ठा विधीयते ।
परिक।कारो यथा-विम्वाधो गजसिंहकीचरूपाङ्कितं सिंहासनं पार्श्वयोश्चमरधरौ तयोबहिश्चाञ्जलिकरी मस्तकोपरि क्रमोपरिस्थं छत्रत्रयं तत्पाश्चयोरुभयोः काञ्चनकलशाङ्कितशुण्डाग्रं श्वेतगजद्वयं गजोपरि झञ्झखाद्यकराः पुरुषाः तदर्धयोः ।। मालाकारौ शिखरे शाक्यीयाः तदुपरि कलशः, मतान्तरे-सिंहासनमध्यभागे हरिणद्वयतोरणाङ्कितं धर्मचक्रं तत्पार्श्वयोरुभयोः ग्रहमूर्तयः एवं निष्पन्ने परिकरे बिम्बप्रतिष्ठोचिते लग्ने-भूमिशुद्धिकरणं, अमारिघोषणं, सङ्घाहानम् , बृहत्स्नात्रविधिना जिनस्नात्रं, लघुपञ्चवलयनन्द्यावर्तस्थापनम् , तत्पूजनम् , कलशप्रतिष्ठावत् । ततः परिकरे सप्तधान्यपूर्वकं व पनं अङ्गुलीद्वयो:करणेन रौद्रदृष्ट्या वामहस्तचुलुकेन जलाच्छोटनम् , अक्षतघृतपात्रदानम् , ततः 'ॐ ह्रीँ श्री जयन्तु जिनोपासकाः सकला भवन्तु स्वाहा" इति मन्त्रेण परिकरस्य गंधाक्षतपुष्पधूपदीपनैवेद्यैः पूजनं सदशवस्त्रेणाच्छादनं ततश्च
SASRAHASRASHARE
॥१६१॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥१६२॥
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૫
तिसृभिः स्तुतिभिश्चैत्यत्रन्दनं ततः शान्ति श्रुत-क्षेत्र भवन - शासन - वैयावृत्य कर - प्रतिष्ठा देवता कायोत्सर्गस्तुतयः पूर्ववत् ततः सम्प्राप्तायां लग्नवेलायां द्वादशभिर्मुग्राभिः सूरिमन्त्रेण वासमभिमन्त्रय सर्वजनं दूरतः कृला एभिर्मन्त्रैवसिषं विदध्यात् मन्त्रो यथा --
"ॐ ह्रीं श्रीं अप्रतिचक्रं धर्मचक्राय नमः" इति धर्मचक्रे वासक्षेपत्रिः ।
"ॐ घृणि च द्रां ऐं ह्मों ठःठः क्षां क्षीं सर्वग्रहेभ्यो नमः" इति ग्रहेषु वासक्षेपत्रिः ।
"ॐ ह्रीं श्रीं आधारशक्तिकमलासनाय नमः" इति सिंहासने वासक्षेपत्रिः ।
"ॐ ह्रीं श्रीं अद्भक्तेभ्यो नमः" इति चामरकरद्वये वासक्षेपत्रिः ।
“ॐ ह्रीँ विमलवाहनाय नमः" इति गजद्वये वासक्षेपत्रिः ।
“ॐ पुष्करेभ्यो नमः" इति मालाद्वये वासक्षेपत्रिः “ॐ श्रीशाङ्खधराय नमः" इति शाङ्खधरे वासक्षेपत्रिः । “ॐ पूर्णकलशाय नमः" इति कलशे वासक्षेपत्रिः ।
ततोऽनेकफलनैवेद्यढौकनम्, पुनर्जिनस्नात्रं बृहत्स्नात्रविधिना, ततश्चैत्यवन्दनम् । प्रतिष्ठा देवता विसर्जन कायोत्सर्गः । चतुविंशतिस्तचिन्तनं भणनं च नन्द्यावर्त्तविसर्जनं पूर्ववत् । अष्टा ह्निकामहोत्सवः । सङ्घपूजनं । दीनमार्गगपोषणं । जलपट्टप्रतिष्ठायां तु जलपट्टोरि बृहन्नन्द्यावर्त्तस्थापनम् । तत्पूर्ववत् जलपट्टे क्षीरस्नात्रं पञ्चरत्ननिक्षेपः वासमन्त्रेण वासनिक्षेपः । नन्द्यावर्त्त
॥१६२॥
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अञ्जन प्र.कल्प
द विसर्जनम् । इति जलप्रतिष्ठा । तोरणप्रतिष्ठायां तु बृहत्स्नात्र वेधिना जिनस्नात्रं मुकुटमन्त्रेण तोरणे द्वादशमुद्राभिमन्त्रितवास
क्षेपः । मन्त्री यथा-"ॐ अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए इत्यादि हकारपर्यन्त नमो जिनसुरपतिमुकुटकोटि संघट्टितपदाय इति तोरणे सघालोकय समालोकय स्वाहा"
॥१६३॥
। इति तोरणप्रतिष्ठा । इति प्रतिष्ठाधिकारे परिकरप्रतिष्ठाविधिः सम्पूर्णः ।।
॥ अथ कलशारोपणविधिः।। तत्र भूमिशृद्धिः गन्धोदक पुष्पादिसत्कारः, आदित एव कलशाधः पञ्चरत्नक-सुवर्ण-रूप्य-पुक्ता- प्रबाल-लोह-कुम्भकारमृत्तिकासहितं न्यसनीयम् । पवित्रस्थानाजलानयनं प्रतिमास्नात्रं नन्द्यावर्तपूजनं शान्तिवलिः सोदक-सर्वोपधिवर्तनं स्त्रीभिः (४) स्नात्रकाराभिमन्त्रणं सकलीकरणं शुचिविद्यारोपणं चैत्यवदनं शान्तिनाथादिकायोत्सर्गः । श्रुत १ शान्ति २ शासन ३ क्षेत्र
४ समस्तवेया० ५ नमुत्थुणं सवन लघुशान्ति जयवीयरायः कलशे कुसुमाञ्जलिक्षेपः । तदनन्तरमाचार्येण मध्यागुलीद्वयोवी४ करणेन तर्जनीमुद्रा रौद्रदृष्टया देया। तदनु वामकरे जलं गृहीत्वा कलशः आच्छोटनीयः । तिलकं पूजनं च । मुद्गरमुद्रादर्शनम् । 8. ॐ ही वी सर्वोपद्रवं रक्ष रक्ष स्वाहा ।” चक्षुरक्षाकलशस्य सप्तधान्यकप्रक्षेपः हिरण्यकलशचतुष्टयस्नानं, सौंषधिस्नानं,
ESTE ESTATES COSESHADO
॥१६३॥
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अञ्जन
12 मलिकास्नानं, गन्धोदक-वासोदक-चन्दनोदक-कुङ्कुमोदक, कर्पूरकुसुमजलकलशस्नानं पश्चरत्न-सिद्धार्थकसमेतग्रन्थिबन्धः । प्र.कल्प
वामकरधृतकलशस्य दक्षिणकरेण चन्दनेन सर्वाङ्गमालिप्य पुष्पसमेतमदनफलऋद्धियुतारोपणम् । कलशपञ्चाङ्गस्पर्शः, धूपदानं, ॥१६४॥
3/ कणबन्धः, स्त्रीभिः प्रोखणं, सुरभि-परमेष्ठि-गरुड-अञ्जलि-गणधर-मुद्रादर्शनम् , सूरिमन्त्रेण वारत्रयाधिवासनम् । “ॐ
स्थावरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा" वरोणाच्छादनं, जम्बीरादिफलोहलिबलेनिक्षेपः। तदुपरि सप्तधान्यकस्य च आरात्रिकावतारणं चैत्यवन्दनम् । स्तुतित्रिकानन्तरम् सिद्धा. अधिवासनादेव्याः कायोत्सर्गः । चतुर्विशतिस्तवचिन्ता । तस्याः स्तुतिः
पातालमन्तरिक्षं, भुवनं वा या समाश्रिता नित्यम् । साऽत्राऽवतरतु जैने, कलशेऽधिवासनादेवी ॥ (आर्या) । शां० १ अं० २ समस्तवै० ३ । तदनन्तरं नमु० तः जयवीयरायान्तं तदनु शान्तिबलिं क्षिप्वा शक्रस्तवेन चैत्यवन्दनं
शान्तिभणनं प्रतिष्ठादेवताकायोत्सर्गः चतुर्विंश । यदधिष्ठिता० प्रतिष्ठास्तुतिदानम् । अक्षताञ्जलिभृतलोकसमेतेन मङ्गलगाथापाठः कार्यः । नमोऽहन सिद्धा.
जह सिद्धाण पइट्टा० ॥ जह सगस्स पइट्टा ॥ जह मेरुस्स पइटा०॥जह लवणस्प पइट्ठा, समत्यउदहीण मज्झयारंमिः ।। जह जम्बूस्स पइटा, जम्बूदीवस्स मज्झयारंभि ।। आचंद०॥ पुष्पाञ्जलिप्रक्षेपः। धर्मदेशना ।।
॥ इति कलशप्रतिष्ठाविधिः ॥ १ आरतिश्लोकः - दुष्टसुरासुररचितं, नरैःकृतं, दृष्टिदोषजं विघ्नम् । तद् गच्छत्वतिदूरं, भविककृतारात्रिकविधाने ॥ (आर्या)
॥१६४॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
।।१६५।।
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अथ ध्वजारोपणविधिः
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भूमिशुद्धि:, गन्धोदकपुष्पादिसत्कारः । अमारिघोषणम् | संघादानम् । दिक्पालस्थापनम् । वेदिकाविरचनम् । नन्द्यावर्त्तलेखनम् । ततः सूरिः कंकणमुद्रिकाहस्तः सदशवस्त्रपरिधानः सकलीकरणं शुचिविद्यां चारोपयति । स्नपनकारानभिमन्त्रयेत् । अभिमन्त्रितदेशावलिप्रक्षेपणं धूपसहितं सोदकं क्रियते । “ॐ ह्रीँ क्ष्वीँ सर्वोपद्रवं रक्ष रक्ष स्वाहा " इति बल्यभिमन्त्रणम् । दिक्शलाद्दानम् - ॐ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय ध्वजारोपणे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । एवं- ॐ अग्नये -ॐ यमाय ॐ नैर्ऋतये ॐ वरुणाय ॐ वायवे ॐ कुबेराय ॐ ईशानाय ॐ ब्रह्मणे ॐ नागाय-आगच्छ आगच्छ स्वाहा । शान्तिपूर्वकं विधिना मूलप्रतिमास्नानम् । तदनु चैत्यवन्दनं संघसहितेन (नंदीना देववंदन करवा स्तवन लघुशांति) गुरुणा कार्यम् । 'वंशे - अभिनव सुगंधिविकसित' कुसुमाञ्जलिक्षेपः, तिलकं पूजनं च । हिरण्यकलशादिस्नानानि पूर्ववत् । कनक
४
५
१०
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पञ्चरत्न-कपाय-मृत्तिका—मूलिका - अष्टवर्ग-सर्वैषधि-गन्ध-वास-चन्दन- कुङ्कुम-तीर्थोदक - कर्पूर ( तत इक्षुरस - घृतदधिदुग्ध) - स्नानम् । वंशस्य चर्चनम् । पुष्पारोपणम् । लग्नसमये सदशवस्त्रेाच्छादनम् । + मुद्दान्यासः । चतुःस्त्रीप्रोंखणकम् ।
१ चार खूणे चार नव नव इचनी वेदिकाओ करवी.
+ चक्रमुद्राथी दंडने सर्व जग्याप स्पर्श करवो. अने सुरभि - परमेष्ठि- गरुड-अजलि अने गणधर मुद्रा देखाडवी ।
॥ १६५॥
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अञ्जन प्र.कल्प
ध्वजाधिवासनं वासधूपादिप्रदानतः। - ॐ श्री ठ-ध्वजावंशस्याभिमन्त्रणम् इत्यधिवासना । जवारक-फलोह लिबलिढोकनम् । * आरात्रिकावतारणम् । अधिकृतजिनस्तुत्या चैत्यवन्दनम् । स्तुतित्रिकानन्तरं शान्तिनाथकायोत्सर्गः पश्चात् श्रुत दे. १, शान्तिदे० २, शासनदे० ३, अम्बिकादे० ४, क्षेत्रदे. ५, अधिवासनादे० ६, कायोत्सर्गः चतु. विंशतिस्तवचिन्तनं तस्या एव स्तुति:-'पातालमन्तरिक्षं, भवनं वाः' समस्तवैयावृत्यकरकायोत्सर्गः। स्तुतिदानम् । उपविश्य शक्रस्तवपाठः । शान्तिस्तवादिभणनम् । बलिसप्तधान्यफ रोडलिवास पुष्पधृपादिवासनम् । वजस्य चैत्यपार्श्वण प्रदक्षिणाकरणम् । शिखरे पुष्पाञ्जलिः । कलशस्नानम् । धजागृहे मर्कटिकारूपे पञ्चरत्ननिक्षेपः । इष्टांशे ध्वजानिक्षेपः। 'ॐ श्री ठः' अनेन सूरिमन्त्रेण वासक्षेपः । इति * प्रतिष्ठा । फलोहलि-सप्तधान्यबलि-मोरिंडकमोदकादिवस्तूनां प्रक्षेपणम् । महाध्वजस्य ऋजुगत्या प्रतिमाया दक्षिणकरे बन्धनम् । प्रवचनमुद्रया सूरिणा धर्मदेशना कार्या। संघदानम् ।
अष्टाहिकापूजा विषमदिने ३, ५, ७, जिनबलिं प्रक्षिप्य चैत्यवन्दनं विधाय शान्तिनाथादिकायोत्सर्गान् कृत्वा महाध्वजस्य | छोटनम् । संघादिपूजाकरणं यथाशक्त्या ।।
॥ इति ध्वजारोपणविधिः समाप्तः॥
ध्वजादंड शिखर अने अजानो मंत्र । ॐ ह्रीँ श्रीँ म्ल्यू म्ल्यू हम्ल्यू क्ली ३ आँ को अरिहंत-शिखर-दंड-धजेपुवासिदेवदेवीनां संघस्य च x ७-२१ के १०८ वार मन्त्र भणवो श्लोक कलशप्रतिष्ठामा जुओ. प्रतिष्ठामन्त्र: ॐ वीरे वीरे जयवीरे' सात वार ।
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॥१६६॥
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अञ्जन प्र.कल्प
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॥१६७॥
PRIORGANICANORRECRUCORRESCRIGINA
शांति पुष्टिं तुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु स्वाहा ।।
ध्वजा तथा दंडनुं माप विगेरे । (१) रेखाए देरासर जेटलं लांबु होय. तेटलो ध्वजादंड लांबो करवो. घुमटना प्रमाणनो दंड लांबो चाली शके. (२) गभारा करता शिखर बे इंच रेखाए मोटुं होय तेथी ध्वजादंड गभाराना पद करतां वे इंच मोटो करवो. (३) मंदिरनी उचाईना त्रीजा भागे ध्वजादंड लांबी करवो. (४) ध्वजादंड जेटलो लांबो होय तेना पहेला गजे ॥ अंगुल अने बाकीना गजे॥ अंगुल व्यास लेवो. (५) ध्वजादंडनी लंबाईना छट्ठा भागे पाटलीनी लंबाई करवी. (६) लंबाईनी अडधी पहोळाई करवी, अने पहोळाईथी अडधी जाडाई करवी. (७) गाळा एकी करवा अने बंगडी बेको राखबी. आ सर्व मान मध्यम समजवु. जो श्रेष्ठ मान कर होय तो ते
माननो दशमो भाग वधारवाथी थाय अने दशमो भाग घटाडवाथी कनिष्ठ मान थाय. आ सर्व मानथी
साल अलग जाणवू. (८) कपडानी ध्वजा दंड प्रमाणे लांबी करवी अने पहोळाई लंबाईना आठमा भागे करवी. (९) पताका तथा पताकडी विगेरे देशाचार प्रमाणे करवी. शास्त्रीय रीत नथी. (१०) घुमटना आमलशाळानी पहोळाईथी त्रण गणो घुमटनो ध्वजादंड लांबो करवो.
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॥१६७॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥१६८॥
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(११) वरसगांठ वखते नवी ध्वजा उपर अगर शरुआतमां ध्वजा उपर चोत्रीसो यंत्र जमणी बाजु लखवो.
चोत्रीसो यंत्र
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४
१४
१६ ३ १०
९
६
७ १२
१५
१.
११ २ १३
ध्वजा - दंड तथा कलश प्रतिष्ठाना सामाननी यादी |
ओ, पाघडी, सोनानो कळश, कळश नं. ४, तीर्थजल, गुलाबीखेस, दश दिकूपालनो पाटलो, पोंखणां, कंकु, कपूर, मढळ, मरडासींग, फुल, पान, सोपारी, चोखा, वासक्षेप, फल, नैवेद्य, बाकळा शेर ११, जवारा, कसुंबी वस्त्र, आंसळी रूपानी, रु. ३१), पैसा ५१ ) .
रोग दूर करनार अप्रसिद्ध पण जे कोइ औषध पृथ्वीतलमां मले तेने करियाणा तरीके गणी शकाय छे.
८
| ॥१६८॥
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प्र. कल्प
॥१६९॥
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एटला ज माटे करियाणां अनेक प्रकारनां बताववामां आव्यां छे. छतां तेमांथी लाभालाभनी दृष्टिए योग्य लागे ते लेवां, बीजां छोडी पण देवां, नवां बीजां पण रोगहर लेवां, एम दरेक जातनी छुट छे.
अष्टमङ्गलश्लोकाः
मङ्गलं श्रीमदर्हन्तो, मङ्गलं जिनशासनम् । मङ्गलं सकलसङ्को, मङ्गलं पूजका अमी || १ || (अनु.) स्वस्ति भूगगन नागविष्टपे - पूदितं जिनवरोदयेक्षणात् ।
स्वस्तिकं तदनुमानतो जिन स्याग्रतो बुधजनैर्विलिख्यते ॥२॥ ( रथोद्धता)
अन्तःपरमज्ञानं, यद् भाति जिन्ाधिनाथ हृदयस्य । तच्छ्रीवत्सव्याजात्, प्रकटीभूतं बहिर्वन्दे || ३ || (आर्या ) विश्वत्रये च स्वकुले जिनेशो, व्याख्यायते श्रीकलशायमानः ।
अतोऽत्र पूर्ण कलशं लिखित्वा जिनार्चनाकर्म कृतार्थयामः || ४ || ( उपजाति) जिनेन्द्रपादैः परिपूज्यपुष्टै - रतिप्रभावैरतिसन्निकृष्टम् ।
भद्रासनं भद्रकरं जिनेन्द्र-पुरो लिखेन्मङ्गलसत्प्रयोगम् ||५|| (,, ) त्वत्सेवकानां जिननाथ ! दिक्षु सर्वासु सर्वे धियः स्फुरन्ति ।
अतश्चतुर्षा नवको नन्द्यावर्तः सतां वर्तयतां सुखानि ॥ ६ ॥ (,, )
॥१६९ ॥
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॥१७॥
पुण्यं यंश समुदयः प्रभुता, महत्व, सौभाग्य-धी-विनय-शर्म-मनोरथाश्च । वर्धन्त एव जिननायक ! ते प्रसादात्-तद्वर्धमानयुगसंपुटमादधामः ॥७॥ (वसन्त) त्वद्वध्यपश्चशरकेतनभावकलप्तं, कतुं मुधा भुवननाथ ! निजापराधम् ।। सेवां तनोति पुरतस्तव मीनयुग्मं, श्राद्धैः पुरो विलिखितं निरुजाऽऽङ्गयुक्त्या ॥८॥ (,)
आत्माऽऽलोकविधौ जिनोऽपि सकल-स्तीनं तपो दुश्चरं; दानं ब्रह्म परोपकारकरणं, कुर्वन् परिस्फूर्जति । सोऽयं यत्र सुखेन राजति स वै, तीर्थाधिपस्याग्रतो, निर्मयः परमार्थवृत्तिविदुरैः, संज्ञानिभिर्दर्पणः ॥९॥ ( शार्दूल)
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॥१७०॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥ १११ ॥
परिशिष्ट - १
प्रतिष्ठाकeat rani haलाक विधान संक्षेपथी ज बतान्या छे तेमज केटलाक विधान आवता नथी परंतु वर्तमानमा लोकव्यवहारथी कराय छे, आचारदिनकरादि विधिग्रन्योना आधारे ते सर्व विधान अने च्यवनकल्याकादिना चैत्यवंदन - स्वनो केटलीक हस्तलिखित प्रतिष्ठाकल्पमां मले छे. ते पण अहीं परिशिष्ट- नं.-१ मां आपेल छे. ते सिवायना परिशिष्टमां ग्रह-दिक्पाल स्थापनादिः मंडपवेदिका रचना, मुद्रा; विधि-विधाननी सामग्री तेमज 'दशे दिवसा विधानने वर्णवतुं प्राचीन छतां अप्रकाशित १९ ढालं स्तवनादिक आपेल छे.
6 परिशिष्ट नं. १-अ '
मंडपमुहूर्त-माणकस्थंभारोपणविधिः - ( पाना नं. १५नी टिप्पण. )
महोत्सवना प्रथम दिवसे सौप्रथम मंगलनिमित्ते माणेकस्तंभस्थापननी आ विधि करावाय छे. ते विधि समये 1. नीचेना ऋण श्लोको भने मङ्गलगीतो गवडावी शकाय.
१. अर्हन्तो भगवन्त इन्द्रमहिताः ० २. शिवमस्तु सर्वजगतः ० अने ३.
सर्वेऽपि सन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत् ॥ (अनु.) ॥ इति माणेकस्थंभारोपणविधिः ॥ ॥ परि-१-अ ।
॥ १७१ ॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥१७२॥
SPEECAUSA
'परिशिष्ट नं.१-आ' तोरण बांधता बोलवानो मंत्र:-(पाना नं. १५ नी टिप्पण.)
ॐ अ-आ-इ-ई-उ-3-ऋ-ऋ-ल-ल-ए-ऐ-ओ-औ-अं-अः, क-ख-ग-घ-ङ, च-छ-ज-अ-, ट-ठ-ड द-ण, त-थ-द-ध-न, प-फ-ब-भ-म, य-र-ल-ब, श-प-स-४ नमो जिनाय सुरपतिमुकुटकोटिसंघटितपदाय इति तोरणे समालोकय समालोकय स्वाहा ॥ ॥ इति तोरणस्थापनाप्रतिष्ठामंत्रः॥
॥ परि. १-आ॥ 'परिशिष्ट नं.१-३' लघुनन्यावर्तपूजन विधिः-(पाना नं. १९ नी टिप्पण)
दस वलयवालो नन्द्यावर्तनो पट्ट होय तो विवप्रवेशविधि आदि प्रतोमा आवती विधि प्रमाणे पूजन करवू.
(१) श्री जिनबिंबनी प्राणप्रतिष्ठा वगेरे प्रसंगे श्री नन्द्यावर्तपूजन कराय छे. ते विस्तारथी करवानो विधि आचारदिनकरमा छे. संक्षेपथी करवानो विधि आ प्रमाणे छे.
(२) जो चळवित्र होय अर्थात् प्रतिमाजी स्थिर स्थापन करेला न होय-एक स्थळेथी बीजे स्थळे लइ जइ काय एम होय तो नन्द्यावर्तन आलेखन करीने तेना उपर ते विंच स्थापन करवा भने पछी आगळ जणाच्या प्रमाणे वलयक्रमे पूजन करवू.
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|॥१७२॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥१७३॥
RAPERSARASHTRA
(३) जो स्थरविंध होय तो आगळ वेदिका करीने अथवा भूमिपर नन्द्यावर्त स्थापन करी पूजन कर. (४) (अ) पूजनकारक अने विधिकारक भद्रासन उपर बेसीने पूजन करे. ___(ब) कर्पूर मिश्रित चंदनना सातले पथी लींपेला श्रीपर्णीना पाटला उपर कपूर, कस्तूरी अने गोरोचंद
नथी मिश्रित केसररस वडे प्रदक्षिणाना क्रमे नवखूणावाको नन्द्यावर्त आलेखबो. (क) मध्यभागथी आरंभीने बलयो अनुक्रमे बहारना भाग तरफ करवा. तेमां मध्ये नन्द्यावर्तनी जमणी बाजु सौधर्मेन्द्रनी, डाबी बाजु ईशानेन्द्रनी अने नीचे श्रुतदेवतानो स्था| पना करवी.
(५) मध्यभागनी परिधिने गोळ वेष्टन करीने तेने फरता दश वलय करवा.
१ सौधर्मेन्द्रनु स्वरूपः-वर्ण सुवर्णसमानपीत, हाथ चार, हाथीनु वाहन, वस्रो पंचरंगी, बे हाथ अंजलिबद्ध अने वीजा बे
हाथमाथी एक हाथमां अभय अने वीजा हाथमा बज्र. 31 २ ईशानेन्द्रनु स्वरूपः-वर्ण उज्ज्वळ-श्वत; वाहन वृषभनु; वस्त्र नीलु' अने रातुं, हाथ चार तेमां एक हाथमा जय, बीजा
हायमां शूळ अने चाप, वाकी बे हाथ अंजलि बद्ध. ३ श्रुतदेवतानु स्वरूपः-वर्ण श्वेत वस्त्र श्वेत; वाहन हंसनु, श्वेत सिंहासन पर बेठेली, भामंडळथी शोभित, हाथ चार तेमां बे डाबा हाथमां श्वेत कमळ अने वीणा, तथा जमणा ये हाथमा पुस्तक तथा मुक्तामाळा.
॥१७॥
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अञ्जन
प्र. कॅल्प
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प्रथम वलयम:- अष्टदल वलय करी पूर्वादिकमे अर्हदादि आउनी आ प्रमाणे स्थापना करवी :१. ॐ नमोऽर्हद्भयः स्वाहा; २. ॐ नमः सिद्धेभ्यः स्वाहाः ३. ॐ नम आचार्यभ्यः स्वाहा; ४. ॐ नम उपाध्यायेभ्यः स्वाहा ५. ॐ नमः सर्वसाधुभ्यः स्वाहाः ६. ॐ नमो ज्ञानाय स्वाहा, ७. ॐ नमो दर्शनाय स्वाहा ८. ॐ नमश्चारित्राय स्वाहा ॥१॥
बीजा वलयां :- चतुर्विंशतिदल वलय करी तेमां अनुक्रमे २४ जिन माताओनी आ प्रमाणे स्थापना करवी :१ ॐ नमो मरुदेव्यै स्वाहाः २ ॐ नमो विजयायै स्वाहाः ३ ॐ नमः सेनायै स्वाहा ; ४ ॐ नमः सिद्धार्थायै स्वाहा ५ ॐ नमो मङ्गलायै स्वाहाः ६ ॐ नमः खुसीमायै स्वाहाः ७ ॐ नमः पृथ्व्यै स्वाहा ८ ॐ नमो लक्ष्मणायै स्वाहाः ९ ॐ नमो रामायै स्वाहाः १० ॐ नमो नन्दायै स्वाहा ११ ॐ नमो वैष्णव्यै स्वाहाः १२ ॐ नमो जयायै स्वाहा; १३ ॐ नमः श्यामायै स्वाहाः १४ ॐ नमः सुयज्ञायै ( सुयश से ) स्वाहा ः १५ ॐ नमः सुत्रतायै स्वाहा १६ ॐ नमोsचिरायै स्वाहा १७ ॐ नमः श्रिये स्वाहाः १८ ॐ नमो देव्यै स्वाहा; १९ ॐ नमः प्रभावत्यै स्वाहा २० ॐ नमः पद्मावत्यै स्वाहाः २१ ॐ नमो वप्रायै स्वाहाः २२ ॐ नमः शिवायै स्वाहा; २३ ॐ नमो वामायै साहा; २४ ॐ नमस्त्रिशलायै स्वाहा ॥२॥
त्रीजा वलयां :- षोडशदल वलय करी सोळ विद्यादेवीओनी आ प्रमाणे स्थापना करवी :१ ॐ नमो रोहिण्यै स्वाहा; २ ॐ नमः प्रज्ञप्त्यै स्वाहाः ३ ॐ नमो वज्रशृङ्खलायै स्वाहाः ४ ॐ नमो चत्राङ्कुश्यै
॥१७४॥
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अञ्जन ॥ स्वाहा; ५ ॐ नमोऽप्रतिचक्रायै स्वाहा ६ ॐ नमः पुरुषदत्तायै स्वाहा; ७ ॐ नमः काल्यै स्वाहा; ८ ॐ नमो महाकाल्यै प्र. कल्प स्वाहा; ९ ॐ नमो गौर्यै स्वाहा; १० ॐ नमो गान्धायै स्वाहाः ११ ॐ नमः सर्वास्त्रमहाज्वालायै स्वाहा; १२ ॐ नमो
मानव्यै स्वाहाः १३ ॐ नमोऽच्छप्तायै स्वाहा: १४ ॐ नमो वैरोटयायै स्वाहा; १५ ॐ नमो मानस्यै स्वाहा; १६ ॐ ॥१७५||
नमो महामानस्यै स्वाहा ॥३॥ चोथा वलयमां:-चतुर्विशतिदल वलय करी २४ लोकान्तिक देवोनी आ प्रमाणे स्थापना करवी:
१ ॐ नमः सारस्वतेभ्यः स्वाहा २ ॐ नम आदित्येभ्यः स्वाहा ३ ॐ नमो बतिभ्यः स्वाहा; ४ ॐ नमो वरुणेभ्यः स्वाहा; ५ ॐ नमो गर्दतोयेभ्यः स्वाहा; ६ ॐ नमस्तुषितेभ्यः स्वाहा; ७ ॐ नमोऽव्याबाधितेभ्यः स्वाहा ८ ॐ नमोऽरिष्टेभ्यः स्वाहा; ९ ॐ नमोऽग्न्याभेभ्यः स्वाहा: १. ॐ नमः सूर्याभेभ्यः स्वाहा; ११ ॐ नमश्चन्द्राभेभ्यः स्वाहा १२ ॐ नमः सत्याभेभ्यः स्वाहाः १३ ॐ नमः श्रेयस्करेभ्यः स्वाहा; १४ ॐ नमः क्षेमङ्करेभ्यः स्वाहा; १५ ॐ नमो वृषभेभ्यः स्वाहा; १६ ॐ नमः कामचारेभ्यः स्वाहा; १७ ॐ नमो निर्वाणेभ्य स्वाहा; १८ ॐ नमो दिशान्तरक्षितेभ्यः स्वाहा; १९ ॐ नम आत्मरक्षितेभ्यः स्वाहा; २० ॐ नमः सर्वरक्षितेभ्यः स्वाहा; २१ ॐ नमो मारुतेभ्यः स्वाहा | २२ ॐ नमो वसुभ्यः स्वाहा; २३ ॐ नमोऽश्वेभ्यः स्वाहा; २४ ॐ नमो विश्वेभ्यः स्वाहा ॥४॥ पांचमा वलयमां:-चतुःषष्टिदल वलय करी ६४ इन्द्रोनी आ प्रमाणे स्थापना करवी :
१ ॐ नमश्चमराय स्वाहा । २ ॐ नमो बलये साहा। ३ ॐ नमो धरणाय स्वाहा । ४ ॐ नमो भूतानन्दाय स्वाहा ।
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॥१७५॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥१७६॥
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५ ॐ नमो वेणुदेवाय स्वाहा । ६ ॐ नमो वेणुदारिणे स्वाहा। ७ ॐ नमो हरिकान्ताय स्वाहा । ८ ॐ नमो हरिसहाय स्वाहा ।९ ॐ नमोऽग्निशिखाय स्वाहा । १० ॐ नमोऽग्निमानवाय स्वाहा । ११ ॐ नमः पुण्याय स्वाहा । १२ ॐ नमो वशिष्ठाय स्वाहा । १३ ॐ नमो जलकान्ताय स्वाहा । १४ ॐ नमो जलप्रभाय स्वाहा । १५ ॐ नमोऽमितगतये स्वाहा । १६ ॐ नमोऽमितवाहनाय स्वाहा । १७ ॐ नमो वेलम्बाय स्वाहा । १८ ॐनमः प्रभञ्जनाय स्वाहा । १९ ॐ नमो घोषाय स्वाहा । २०ॐ नमो महाघोषाय स्वाहा । २१ ॐ नमः कालाय स्वाहा । २२ ॐ नमो महाकालाय स्वाहा । २३ ॐ नमः सुरूपाय स्वाहा । २४ ॐ नमः प्रतिरूपाय स्वाहा । २५ ॐनमः पूर्णभद्राय स्वाहा । २६ ॐ नमो
मणिभद्राय स्वाहा । २७ ॐ नमो भीमाय स्वाहा । २८ ॐ नमो महाभीमाय स्वाहा । २९ ॐ नमः किन्नराय स्वाहा । | ३० ॐ नमः किंपुरुषाय स्वाहा । ३१ ॐ नमः सत्पुरुषाय स्वाहा । ३२ ॐ नमो महापुरुषाय स्वाहा । ३३ ॐ नमोऽति
कायाय स्वाहा । ३४ ॐ नमो महाकायाय स्वाहा । ३५ ॐ नमो गीतरतये स्वाहा । ३६ ॐ नमो गीतयशसे साहा । | ३७ ॐ नमः सनिहिताय स्वाहा । ३८ ॐ नमः सन्मानाय (महाकायाय) स्वाहा । ३९ ॐ नमो धात्रे स्वाहा । ४० ॐ नमो विधात्रे स्वाहा । ४१ ॐ नम ऋषये स्वाहा । ४२ ॐनम ऋषिपालाय स्वाहा । ४३ ॐनम ईश्वराय स्वाहा । ४४ ॐ नमो महेश्वराय स्वाहा । ४५ ॐ नमः सुवक्षसे स्वाहा । ४६ ॐ नमो विशालाय स्वाहा। ४७ ॐ नमो हासाय स्वाहा। ४८ ॐ नमो हासरतये स्वाहा। ४९ ॐ नमः श्वेताय स्वाहा । ५० ॐ नमो महाश्वेताय स्वाहा । ५१ ॐ नमः पतगाय स्वाहा। ५२ ॐ नमः पतगरतये स्वाहा । ५३ ॐ नमः सूर्याय स्वाहा । ५४ ॐ नमश्चन्द्राय स्वाहा । ५५ ॐ
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| ॥१७६॥
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TAGE
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अञ्जन प्र.कल्प
॥१७॥
ORRECORRECREDARA
नमः सौधर्मेन्द्राय स्वाहा। ५६ ॐ नम ईशानेन्द्राय स्वाहा । ५७ ॐ नमः सनत्कुमारेन्द्राय स्वाहा। ५८ ॐ नमो माहेन्द्राय स्वाहा। ५९ ॐ नमो ब्रह्मेन्द्राय स्वाहा । ६० ॐ नमो लान्तकेन्द्राय स्वाहा । ६१ ॐ नमः शुक्रेन्द्राय स्वाहा । ६२ ॐ नमः सहस्रारेन्द्राय स्वाहा । ६३ ॐ नम आनतप्राण तेन्द्राय स्वाहा । ६४ ॐ नम आरणाच्युतेन्द्राय स्वाहा ॥५॥ छट्ठा वलयमां:-चतुःषष्टिदल वलय करी ६४ इन्द्राणीओनी आ प्रमाणे स्थापना करवी:
१ ॐ नमश्चमरदेवीभ्यः स्वाहा । २ ॐ नमो बलिदेवीभ्यः स्वाहा । ३ ॐ नमो धरणदेवीभ्यः स्वाहा । ४ ॐ नमो ४. भूतानन्द देवीभ्यः स्वाहा । ५ ॐ नमो वेणुदेवीभ्यः स्वाहा । ६ ॐ नमो वेणुदारिदेवीभ्यः स्वाहा । ७ ॐ नमो हरिकान्तदा देवीभ्यः स्वाहा । ८ ॐ नमो हरिसहदेवीभ्यः स्वाहा । ९ ॐ नमोऽग्निशिरवदेवीभ्यः स्वाहा। १० ॐ नमोऽग्निमान
वदेवीभ्यः स्वाहा । ११ ॐ नमः पूर्णदेवीभ्यः स्वाहा । १२ ॐ नमो वशिष्ठदेवीभ्यः स्वाहा। १३ ॐ नमो जलकान्त5 देवीभ्यः स्वाहा । १४ ॐ नमो जलप्रभदेवीभ्यः स्वाहा । १५ ॐ नमोऽमितगतिदेवीभ्यः स्वाहा । १६ ॐ नमोऽमित
वाहनदेवीभ्यः स्वाहा । १७ ॐ नमो वेलम्बदेवीभ्यः स्वाहा। १८ ॐ नमः प्रभञ्जनदेवीभ्यः स्वाहा । १९ ॐ नमो | घोषदेवीभ्यः स्वाहा । २० ॐ नमो महाघोषदेवीभ्यः स्वाहा । २१ ॐ नमः कालदेवीभ्यः स्वाहा । २२ ॐ नमो महाकालदेवीभ्यः स्वाहा । २३ ॐ नमः सुरूपदेवीभ्यः स्वाहा । २४ ॐ नमः प्रतिरूपदेवीभ्यः स्वाहा । २५ ॐ नमः पूर्णभद्रदेवीभ्यः स्वाहा । २६ ॐ नमो मणिभद्रदेवीभ्यः स्वाहा । २७ ॐ नमो भीमदेवीभ्यः स्वाहा । २८ ॐ नमो महाभीमदेवीभ्यः स्वाहा । २९ ॐ नमः किन्नरदेवीभ्यः स्वाहा । ३० ॐ नमः किंपुरुषदेवीभ्यः स्वाहा । ३१ ॐ नमः
॥१७७॥
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अञ्जनसत्पुरुषदेवीभ्यः स्वाहा । ३२ ॐ नमो महापुरुषदेवीभ्यः स्वाहा । ३३ ॐ नमोऽहिकायदेवीभ्यः स्वाहा । ३४ ॐ नमो प्र. कल्प
महाकाय देवीभ्यः स्वाहा । ३५ ॐ नमो गीतरतिदेवीभ्यः स्वाहा । ३६ ॐ नमो गीतयशोदेवीभ्यः स्वाहा । ३७ ॐ नमः ।।१७८॥
सन्निहितदेवीभ्यः स्वाहा । ३८. ॐ नमः सन्मानदेवीभ्यः स्वाहा । ३९ ॐ नमो धातृदेवीभ्यः स्वाहा। ४. ॐनमो विधात देवीभ्यः स्वाहा । ४१ ॐ नम ऋषिदेवीभ्यः स्वाहा । ४२ ॐ नम ऋषिपालदेवीभ्यः स्वाहा । ४३ ॐ नम ईश्वरदेवीभ्यः स्वाहा । ४४ ॐ नमो महेश्वरदेवीभ्यः स्वाहा । ४५ ॐ नमः सुवक्षोदेवीभ्यः स्वाहा । ४६ ॐ नमो विशालदेवीभ्यः स्वाहा। ४७ ॐ नमो हासदेवीभ्यः स्वाहा । ४८ॐ नमो हासरति देवीभ्यः स्वाहा । ४९ ॐ नमः श्वेतदेवीभ्यः स्वाहा । ५०ॐ नमो महाश्वेतदेवीभ्यः स्वाहा । ५१ ॐनमः पतगदेवीभ्यः स्वाहा । ५२ ॐ नमः पतगरति देवीभ्यः स्वाहा । ५३ ॐ नमः सूर्यदेवीभ्यः स्वाहा । ५४ ॐ नमश्चन्द्रदेवीभ्यः स्वाहा । ५५ ॐ नमः सौधर्मेन्द्रदेवीभ्यः स्वाहा । ५६ ॐ नम ईशानेन्द्रदेवीभ्यः स्वाहा । ५७ ॐ नमः सनत्कुपारेन्द्रपरिजनाय स्वाहा । ५८ ॐ नमो माहेन्द्रपरिजनाय स्वाहा । ५९ ॐ नमो ब्रह्मेन्द्रपरिजनाय स्वाहा । ६० ॐ नमो लान्तकेन्द्रपरिजनाय स्वाहा। ६१ ॐ नमः | शुक्रेन्द्रपरिजनाय स्वाहा । ६२ ॐ नमः सहस्रारेन्द्रपरिजनाय स्वाहा। ६३ ॐ नम आनतप्राणतेन्द्रपरिजनाय स्वाहा । | ६४ ॐ नम आरणाच्युतेन्द्रपरिजनाय स्वाहा ।।६।। सातमा वलयमां:-चतुर्विशतिदल वलय करी २४ यक्षोनी आ प्रमाणे स्थापना करवी:
१ॐ नमो गोमुखाय स्वाहा । २ ॐ नमो महायक्षाय स्वाहा। ३ ॐ नमस्त्रिमुखाय स्वाहा। ४ ॐ नमो
१७८॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥१७९॥
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यक्षनायकाय स्वाहा । ५ ॐ नमस्तुम्बरवे स्वाहा। ६ ॐ नमः कुसुमाय स्वाहा । ७ ॐ नमो मातङ्गाय स्वाहा। ८ ॐ नमो विजयाय स्वाहा । ९ ॐ नमोऽजिताय स्वाहा । १० ॐ नमो ब्रह्मणे स्वाहा । ११ ॐ नमो यक्षाय स्वाहा। १२ ॐ नमः कुमारयक्षाय स्वाहा । १३ ॐ नमः षण्मुखाय स्वाहा। १४ ॐनमः पातालाय स्वाहा। १५ ॐ नमः किन्नराय स्वाहा। १६ ॐ नमो गरुडाय स्वाहा। १७ ॐ नमो गन्धर्वाय स्वाहा। १८ ॐ नमो यक्षेशाय स्वाहा । १९ ॐ नमः कुबेराय स्वाहा । २० ॐ नमो वरुणाय स्वाहा । २१ ॐ नमो भृकुटये स्वाहा । २२ ॐ नमो गोमेधाय स्वाहा । २३ ॐ नमः पार्थाय स्वाहा । २४ ॐ नमो मातङ्गाय स्वाहा ॥७॥ आठमा वलयमां:-चतुर्विशतिदल वलय करी २४ यक्षिणीओनी आ प्रमाणे स्थापना करवी:
१ ॐ नमश्चक्रेश्वर्यै स्वाहा । २ ॐ नमोऽजितबलायै स्वाहा। ३ ॐ नमो दुरितायै स्वाहा । ४ ॐ नमः कालिकायै । स्वाहा । ५ ॐ नमो महाकालिकायै स्वाहा । ६ ॐ नमः श्यामायै स्वाहा । ७ ॐ नमः शान्तायै स्वाहा । ८ नमो भृकुटथै स्वाहा । ९ ॐ नमः मुतारिकायै स्वाहा । १. ॐ नमोऽशोकायै स्वाहा। ११ ॐ नमो मानव्यै स्वाहा । १२ ॐ नमः श्शुण्डायै स्वाहा । १३ ॐ नमो विदिताय स्वाहा । १४ ॐ नमोऽङ्कुशायै स्वाहा । १५ ॐ नमः कन्दर्पायै स्वाहा। १६ नमो निर्वाण्यै स्वाहा । १७ ॐ नमो बलायै स्वाहा । १८ ॐ नमो धारिण्यै स्वाहा । १९ ॐ नमो धरणप्रियायै स्वाहा । २० ॐ नमो नरदत्तायै स्वाहा । २१ ॐ नमो गान्धायै स्वाहा । २२ ॐ नमोऽम्बिकायै स्वाहा । २३ । ॐ नमः पद्मावत्यै स्वाहा । २४ ॐ नमः सिद्धायिकायै स्वाहा ॥८॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
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नवमा वलयां :- दशदल वलय करी दशदिक्पालोनी आ प्रमाणे स्थापना करवी :
१ ॐ नम इन्द्राय स्वाहा । २ ॐ नमोऽग्नये स्वाहा । ३ नमो यमाय स्वाहा । ४ ॐ नमो निरृतये स्वाहा । ५ ॐ नमो वरुणाय स्वाह । । ६ नमो वायवे स्वाहा । ७ ॐ नमः कुबेराय स्वाहा । ८ ॐ नम ईशानाय स्वाहा । ९ ॐ नमो ब्रह्मणे स्वाहा । १० ॐ नमो नागेभ्यः स्वाहा ॥९॥ दशमा बलयमां :- दशदल वलय करी सक्षेत्रपाल नवग्रहोनी आ प्रमाणे स्थापना करवी :
१ ॐ नमः सूर्याय स्वाहा । २ ॐ नमश्चन्द्राय स्वाहा । ३ ॐ नमो भौमाय स्वाहा । ४ ॐ नमो बुधाय स्वाहा । ५ ॐ नमो गुरवे स्वाहा । ६ ॐ नमः शुक्राय स्वाहा । ७ ॐ नमः शनैश्वराय स्वाहा ८ ॐ नमो राहवे स्वाहा । ९ ॐ नमः केतवे स्वाहा । १० ॐ नमः क्षेत्रपालाय स्वाहा ||१०||
(६) आ सर्वने परिधि करी तेनी बहार चार चार वज्रना चिह्नवाळु चार खूणावाळं भूमिपुर कर. तेना दरेक खूणामां "ल" अने मध्यभागमां "क्ष" नुं चिह्न कर.
मां आ प्रमाणे देव स्थापत्रा :- १ ( ईशान खूणामां) ॐ नमो वैमानिकेभ्यः स्वाहा । २ ( अग्नि खूणामां) ॐ नमो भवनपतिभ्यः स्वाहा । ३ (नैर्ऋत खूणामां) ॐ नमो व्यन्तरेभ्यः स्वाहा | ४ ( वायव्य खूणामां) ॐ नमो ज्योतिष्केभ्यः स्वाहा ॥ ॥ इति नन्द्यावर्त स्थापना ||
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प्र. कल्प
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(७) अथ नन्द्यावर्तपूजनविधिःसौ प्रथम नीचेनो श्लोक बोली नन्द्यावर्तना पट्ट उपर पुष्पांजलि करवी :कल्याणवल्लिकन्दाय, कृतानन्दाय साधुषु । सदा शुभविर्वताय, नन्द्यावर्ताय ते नमः ॥ १ ॥ (अनु. ) ( पछी दशे वलयोमां यथाक्रम स्थापनामंत्रानुसार ते ते पदो उपर कुसुमांजलि करवी. )
त्यारबाद नीचे प्रमाणे बोलीने पूजा करवी :
ॐ नमः सर्वतीर्थकरेभ्यः सर्वगतेभ्यः सर्वविद्भ्यः सर्वदर्शिभ्यः सर्वहितेभ्यः सर्वदेभ्य इह नन्द्यावर्तस्थापनायां स्थिताः, सातिशयाः, सप्रातिहार्याः, सवचनगुणाः, सज्ञानाः, ससङ्घाः, सदेवासुरनराः प्रसीदन्तु इदमर्घ्यं गृह्णन्तु २, गन्धं गृहन्तुरः पुष्पं गृह्णन्तुर; धूपं गृहन्तुरः दीपं गहन्तुर; अक्षतान् गृहन्तुर; नैवेद्यं गृहन्तुरः फलं गृहन्तुर स्वाहा ॥ एप्रमाणे अनुक्रमे अर्घ्य, पाद्य, गंध, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य अने फल पट्ट उपर मूका. ॥ इति नन्द्यावर्तपूजनविधिः । परि. १. इ । ' परिशिष्ट नं. १ई '
श्री षोडशविद्या देवीपूजन श्लोका :- ( पाना नं. ४० नी टिप्पण)
षोडश विद्या देवीपूजनविधि प्रतिष्ठाकल्पमां संक्षेपथी ज आवे छे. परन्तु ते विधान आचारदिनकरादिकमां विस्तारथी आवे छे. ते रीते नीचे प्रमाणे करी शकाय.
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अञ्जन
प्र. कल्प
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प्रथम प्रतिष्ठreat faधि प्रमाणे "रोहिणी प्रथम तासु ( पाना नं. ३९ ) आदि त्रण श्लोक तथा ॐ ऐं क्लीं' ए मंत्र द्वारा सोलविद्यादेवीनुं आह्वान - स्थापन कर.
त्यार बाद षोडशविद्यादेवीना पट्ट उपर कुसुमांजलि नीचेनो श्लोक बोली करवी : -
यासां मन्त्रपदैर्विशिष्टमहिम-प्रोद्भूतभुत्युत्करैः षट् कर्माणि कुलाध्वसंश्रितधियः क्षेमात् क्षणात् कुर्वते । विद्यावृन्दवन्दिा विद्यावलीसाधने: विद्यादेव्य उरुप्रभावविभवं यच्छन्तु भक्तिस्पृशाम् || ( शार्दूल०) त्यार बाद नीचेना श्लोक तथा मंत्र बोलता 'रोहिणी' आदि विद्यादेवीओ उपर क्रमशः कुसुमांजलि करवा:१ - रोहिणी:- शङ्खाक्षमालाशरचापशालि - चतुष्करा कुन्दतुषारगौरा |
गोगामिनी गीतवरप्रभावा; श्री रोहिणी सिद्धिमिमां ददातु || १ || ( उपजाति)
ॐ ह्रीँ श्रीरोहिण्यै विद्यादेव्यै स्वाहा ॥
२- प्रज्ञप्ति:- शक्तिसरोरुहहस्ता, मयूरकृतयानलीलया कलिता । प्रज्ञप्तिर्विज्ञप्तिं, गृणोतु नः कमलपत्राभा ||२|| (आर्या) ॐ हं सं क्लीं श्रीप्रज्ञप्त्यै विद्यादेव्यै स्वाहा ॥
३- वज्रशृङ्खलाः- सशृङ्खला गदाहस्ताः कनकप्रभविग्रहा । पद्मासनस्था श्रीवज्रशृङ्खला हन्तु नः खिलान् ||३|| (अनु.) ॐ श्रीवज्रशृङ्खलायै विद्यादेव्यै स्वाहा ||
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॥१८२॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥१८॥
४-वज्राइकुशा:-निस्त्रिंशवत्रफलकोत्तमकुन्तयुक्त-हस्ता सुतप्तविलसत्कलधौतकान्तिः ।
उन्मत्तदन्तिगमना भुवनस्य विघ्नं वज्राङ्कुशा हरतु वज्रसमानशक्तिः॥४॥ (वसन्त.) ॐ लं लं लं श्रीवज्राङ्कुशायै विद्यादेव्यै स्वाहा । ५-अप्रतिचक्रा:-गरुत्मत्पृष्ठ आसीना, कार्तस्वरसमच्छविः । भूयादप्रतिचक्रा नः, सिद्धये चक्रधारिणी ॥५॥ (अनु.)
ॐ श्रीअप्रतिचक्रायै विद्यादेव्यै स्वाहा । ६-पुरुषदत्ताः-खङ्गस्फराऽङ्कितकरद्वयभासमानाः मेघाभसैरिभपटुस्थितिभासमाना ।
जात्यार्जुनप्रभतनुः पुरुषाग्रदत्ताः भद्रं प्रयच्छतु सतां पुरुषाग्रदत्ता ॥६॥ (वसन्त.) ॐ हं सं श्रीपुरुषदत्तायै विद्यादेव्यै स्वाहा ॥ ७-काली:-शरदम्बुधरप्रमुक्तचश्चद्-गगनतलाभतनुश्रुतिर्दयाढया ।
विकचकमलवाहना गदाभृत् , कुशलमलङ्कुरुतात् सदैव काली ॥७॥ (औपच्छन्दसिक) ॐ ह्रीँ श्रीकालिकायै विद्यादेव्यै स्वाहा । ८-महाकाली:-नरवाहना शशधरोपलोज्ज्वला; रुचिराक्षसूत्रफलविस्फुरत्करा ।
शुभघण्टिका पविवरेण्यधारिणी; भुवि कालिका शुभकरा महापरा ॥८॥ (मजुभाषिणी) ॐ है घे श्रीमहाकाल्यै विद्यादेव्यै स्वाहा ॥
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॥१८३॥
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अखन प्र. कल्प
॥ १८४॥
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९ - गौरी: - गोधासनसमासीना, कुन्दकर्पूर निर्मला । सहस्रपत्रसंयुक्त-पाणिगौरी श्रियेऽस्तु नः ॥ ९ ॥ (अनु.) ॐ ए श्रीगौर्यै विद्यादेव्यै स्वाहा ॥
१०- गांधारीः - शतपत्रस्थितचरणा, मुसलं वज्रं च हस्तयोर्दधती ।
कमनीयाज्ञ्जनकान्ति-र्गान्धारी गां शुभां दद्यात् ॥ १० ॥ (आर्या.) ॐ गं गां श्रीगान्धार्यै विद्यादेव्यै स्वाहा ॥
११- महाज्वाला:मार्जारवाहना नित्यं, ज्वालोद्भासिकरद्वया ।
शशाङ्कवला ज्वाला - देवी भद्रं ददातु नः ॥ ११ ॥ (अनु.) ॐ क्लीं श्रीमहाज्वालायै विद्यादेव्यै स्वाहा |
१२- मानवी:- नीलाङ्गी नीलसरोज - चाहना वृक्षभासमानकरा ।
मानवगणस्य सर्वस्य, मङ्गलं मानवी दद्यात् ॥ १२ ॥ (आर्या.) ॐ व च श्रीमानव्यै विद्यादेव्यै स्वाहा । १३-वैरोट्याः-खड्गस्फुरत्स्फुरितवीर्यवदूर्ध्व हस्ता, सद्दन्दशूकवर दापरहस्तयुग्मा ।
सिंहासनाऽब्ज मुदतार तुषारगौराः वैरोट्यया-प्यभिधयाऽस्तु शिवाय देवी || १३ || (बसन्त . )
ॐ जं जं श्रीवैरोद्यायै विद्यादेव्यै स्वाहा ॥
॥ १८४ ॥
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अञ्जन प्र.कल्प
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१४-अच्छुप्ताः-सव्यपाणिधृ-तकार्मुकस्फरा-न्यस्फुरद् विशि-खखड्गधारिणी ।
विद्युदामत-नुरश्ववाहना-छुप्तिका भगवती ददातु शम् ॥ १४ ॥ (रथोद्धता.) ॐ अं ऐं श्रीअच्छुताय विद्यादेव्यै स्वाहा ॥ १५-मानसी:-हंसासनसमासीना, वरदेन्द्रायुधाऽन्विता ।
____ मानसी मानसीं पीडां, हन्तु जाम्बूनदच्छविः ॥ १५॥ (अनु.) ____ॐ ह्रीँ अहं श्रीमानस्यै विद्यादेव्यै स्वाहा ।। १६-महामानसी:-करखड्गरत्नवरदाढय-प्राणिभृच्छशिनिभा मकरगमना ।
सङ्घस्प रक्षणकरी, जयति महामानसी देवी ॥ १६ ॥ (आर्या) ॐ हं हं हं सं श्रीमहामानस्यै विद्यादेव्यै स्वाहा ॥ त्यार बाद नीचेनो मंत्र बोली सोले विद्यादेवी, परिपिंडत पूजन कर:ॐ ह्रीँ षोडशमहादेवीभ्यो नमः ।।
॥ इति पोडशविद्यादेवीपूजन श्लोकाः ॥ परि. १ ई ॥
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अञ्चन प्र.कल्प
॥१८६॥
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'परिशिष्ट-नं. १. उ. सिद्धचक्रपूजने-दर्शन-ज्ञान-चारित्र-तपःपद पूजनश्लोकाः-(पाना. नं. ६०नी टिप्पण.)
प्रतिष्ठा-कल्पमां सिद्धचक्रपूजनमा दर्शनादिचारे पदोना पूजनना मात्र मंत्रो ज आप्या छे श्लोको आप्या नथी परंतु आचारदिनकरादिमां ते ते पदोने लगता श्लोको आवे छे ते दर्शनादि पदोना पूजन समये बोली शकाय छे.
॥६॥ दर्शनपदपूजनश्लोकःअविरति विरतिभ्यां जातवेदस्य जन्तो-र्भवति यदि विनष्टं मोक्षमार्गप्रदायि । भवतु विमलरूपं दर्शनं तन्निरस्ता-खिलकुमतविषादं देहिनां बोधिभाजाम् ॥६॥ (मालिनी)
७॥ ज्ञानपदपूजनश्लोकःकृत्याकृत्ये भवशिवपदे पापपुण्ये यदीय-प्राप्त्या जीवाः सुषमविषमा विन्दते सर्वथैव । तत्पश्चाङ्गं प्रकृतिनिचयैरप्यसङ्ख्यविभिन्न ज्ञानं भूयात् परमतिमिर-बातविध्वंसनाय ॥ ७॥ (मन्दाक्रान्ता)
॥८॥ चारित्रपदपूजन श्लोकःगुणपरिचयं कीर्ति शुभ्रां प्रापमखण्डितं; दिशति यदिहा-ऽमुत्र सवर्ग शिवं च सुदुर्लभम् । तदमलम लङ्कर्याच्चित्तं सतां चरणं सदा; जिनपरिवृढे-रप्याचीर्ण जगत्स्थितिहेतवे ।। ८॥ ( हरिणी)
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अञ्जन
प्र. कल्प
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॥ ९ ॥ तपः पदपूजन श्लोकःविघाति सुनिचित कर्मपाति; जातिस्मृति प्रभृतिदं हृतमन्मथार्ति । चेतो विशुद्धिकरमस्त समस्तरोपं पोषं ददातु चरणस्य तपोऽस्तदोषम् ||९|| ( वसन्त.) ।। इति दर्शनादिपदपूजन श्लोकाः ॥ (परि. १ - उ ) 'परिशिष्ट. नं. १. ऊ '
श्रीविंशतिस्थानक पदपूजन श्लोकाः - ( पाना. नं. ६६नी टिप्पण. )
प्रतिष्ठाकल्पमां वीशस्थानक पूजनना केवल मंत्रो आपेला ले. परंतु तेनी साथ साथ अन्यत्र आवतां वीशे पदो संबंधी श्लोको बोलीने पण पूजन थइ शके छे.
पूजन प्रारंभ करता पहेला क्षेत्रपाल दिवपाल-ग्रह- पोडशविद्यादेवी० शासनदेवी - आदिकनुं पूजन पूर्वोक्त ( पाना नं. ६४) मंत्रोथी कर. त्यार बाद 'रोगशोकादिभिर्दोषैः- आदि शांतिघोषणा (पाना. नं. ६४ ) ना १० श्लोको तेमज नवकार पूर्वक 'चत्तारि मंगलं ' 'चत्तारि लोगुत्तमा', 'चत्तारि सरणं' आदि कही वज्रपंजरस्तोत्र कहेबुं.
स्यार बाद नीचेनो श्लोक बोली वीशंस्थानक यंत्र उपर कुसुमांजलि करवीः -
१ श्री सिद्धचक्रपूजन तथा श्रीवीशस्थानकपूजन समये नवा जेटला श्रीसिद्धचक तेमज श्रीवीशस्थानकना यंत्रो होय ते सर्व पण पूजनमां मूकवा. अने पूजन याद वालक्षेपथी अधिवासित करवा. त्यारथी ते सर्व पूजनीय बनी जाय छे.
॥ १८७॥
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अञ्जन प्र.कल्प
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आराधयन्ति स्वभवानृतीये, भवे जिना यत्पदमेव वय॑म् । निःशेषकर्मापगमाय काम, तद् विंशतिस्थानकमानमामि ॥ ( उपजाति.)
स्यार बाद नीचेना लोक तथा मंत्रोधी क्रमसर अरिहंतादि वीशेपदोनुं चंदन, पत्र, पुष्प, फल, सोपारीना टुकडा तथा अक्षतादिकथी पूजन करवू :1] १. अरिहंतपदः-णमोणंतविनाणसदसणाणं, सयाणंदियासेसनंतूगणाणं ।
भवांभोजविच्छेयणे वारणाणं णमो बोहियाण वराणं जिणाणं ॥१॥ (भुजङ्गप्रयात) ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं' ए मंत्रथी अरिहंतपदन पूजन करवं. अने समयानुसार यथाशक्य एज मंत्रनो जाप करवो. बाकीना पदोमां पण एज रीते पूजनमंत्रनो जाप करवो. वर्ण-उज्ज्वल. गुण. १२. ॥१॥ २. सिद्धपद:-लोगगाभागोवरि संठियाणं, बुद्धाण सिद्धाणमणिंदियाणं ।
हिस्सेसकम्मक्खयकारगाणं, णमो सया मंगलधारगाणं ॥२॥ (उपजाति) हीँ नमो सिद्वाणं' ए मंत्रथी सिद्धपदनु पूजन करवू. वर्ण-लाल-गुण-८॥२॥ ३. प्रवचनपद:-अगंतसंसुद्धगुणायरस्स, दुक्खंधयारुग्गदिवायरस्स।
अणंतजीवाण दयागिहस्स, णमो णमो संघचउन्विहस्स ॥३॥ (उपजाति.) 'ॐ ही नमो पचयणस्स' ए मंत्रथी प्रवचनपदनुं पूजन कर. वर्ण-उज्ज्वल. गुण. २७.
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अञ्जन प्र. कल्प
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४. आचार्यपद :- कुवादिकेलीतरुसिंधुराणं, सूरीसराणं मुणिबंधुराणं ।
धीरत्तसंतज्जियमंदराणं, णमो सया मंगलमंदिराणं ॥ ४ ॥ ( उपजाति. ) 'ॐ ह्रीँ नमो आयरियाणं' ए मंत्री आचार्यपदनुं पूजन कर. वर्ण - पीलो. गुण. ३६. ५. स्थविरपद :- सम्मत्त संयम पतित भविजन अतिह थिर करता मला;
अवगुण अदूषित गुणविभूषित चन्द्रकिरण समोज्ज्वला । अधिक दक्ष सह सीलांग रथ रुचिर धारा धरा; सिंधु तारण
कारण नमो थिविरमुणीसरा ॥ ५ ॥ ( हरिगीत. ) 'ॐ ह्रीँ नमो थेराणं' ए मंत्री स्थविरपदनुं पूजन कर. वर्ण - श्याम. गुण. १०. ६ - उपाध्यायपदः सव्वोहिबीजं कुरकारगागं, णमो णमो वायगवारणाणं ।
कुव्वो हिदंतीहरिणेसराणं विग्वोघसंतापयोहराणं ॥ ६ ॥ ( उपजाति.) 'ॐ ह्रीँ नमो उवज्झायाणं एत्रो उपाध्यायपदनुं पूजन कर. वर्ण-लीलो. गुण. २५ ७ - साधुपदः - संतज्जियासेसपरीसहाणं णिस्सेसजीवाण दयागिहाणं ।
सणा-पंजा-तरुणानं णमो णमो होउ तवोधणाणं ॥ ७ ॥ ( उपजाति.) 'ॐ ह्रीं नमो लोए सव्व साहूणं' ए मंत्रथी साधुपदनुं पूजन कर. वर्ण-श्याम-गुण-२७.
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अञ्जन प्र. कल्प
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९-दो
८-ज्ञानपद:-छदव्यपज्जायगुणायरस्स: सया पयासी करणो धुरैस्स ।
मिच्छत्तअण्णाणतमोहरस्स. णमो णमो णाणदिवायरस्स ॥८॥ (उपजाति.) ही नमो नाणस्स' ए मंत्रथी ज्ञानपदनु पूजन करवू. वर्ण-उज्ज्वल-गुण-५।५१. निपद:-अणंतविण्णाणसुकारणस्स, अणंतसंसारविदारणस्स ।
अणंतकम्मावलिधंसणस्स; णमो णमो णिम्मलदंसणस्स ॥९॥ (उपेन्द्रवज्रा.) ____ॐ ह्रीँ नमो दंसणस्स' ए मंत्रथी दर्शनपदनुं पूजन करवू. वर्ण-उज्ज्वल-गुण-६७. १०-विनयपद:-आणंदियासेसजगज्जणस्स, कुंदिदुपादामलताचणस्स ।
सुधम्मजुत्तस्स दयासयस्स; णमो णमो श्रीविणयालयस्स ॥१०॥ (उपजाति.) 'ॐहीँ नमो विणयस्स' ए मंत्रथी विनयपदनुं पूजन कर. वर्ण-उज्ज्वल-गुण-५२. ११-चारित्रपद:-कम्मोधकतारदवाणलस्स; महोदयाणंदलया जलस्स ।
विण्णाणपंकेरुहकारणस्स; णमो चरित्तस्स गुणायरस्स ॥ ११ ॥ (उपजाति.) 'ॐ ही नमो चरित्तस्स' ए मंत्रथी चारित्रपदनुं पूजन करवू. वर्ण-उज्ज्वल-गुण-१७१७० १२-ब्रह्मचर्यपद:-सग्गापवग्गग्गमुहप्पयस्सः सुणिम्मलाणनगुणालयस्स ।
__ सबब्बयाभूसणभूसणस्स; णमो हि सीलस्स अदूसणस्स ॥१२॥ (उपजाति.)
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॥१९
॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥१९१॥
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'ॐ ह्रीँ नमो भवयधारीणं' ए मंत्रथी ब्रह्मचर्यपदनुं पूजन करवुं वर्ण- उज्ज्वल - गुण - १८. १३- क्रियापदः - विसुद्धसद्धाण विभूषणस्सः सुलद्धिसंपत्ति सुपोसणस्स ।
णमो सदगुण पदस्स णमो णमो सुद्धकियापदस्स ॥ १३ ॥ ( उपेन्द्रवज्रा . ) 'ॐ ह्रीँ नमो किरियाणं' ए मंत्रथी क्रियापदनुं पूजन कर. वर्ण- उज्ज्वल - गुण - २५. १४- तपपदः - लद्धिसरोजावलितावणस्सः मुरुवसंलग्गसुपावणस्स ।
अमंगलाणो कुहकुदवस्स; णमो णमो तिव्वतवोभरस्स || १४ || ( उपजाति.) 'ॐ ह्रीँ नमो तवस्स' ए मंत्रथी तपपदनुं पूजन करवुं. वर्ण- उज्ज्वल - गुण - १२. १५- गौतमपदः - अनंत विष्णाणविभायरस्सः दुवाल संगीकमलाकरस्स ।
सुबुद्धिवासा जय गोयमस्स, णमो गणाधीसरगोयमस्स || १ || ( उपेन्द्रवज्रा ) 'ॐ ह्रीँ नमो गोयमस्स' ए मंत्रथी गौतमपदनुं पूजन कर. वर्ण- पीलो-गुण- ११. १६- वैयावृत्य पदः - मणुण्ण सव्वा तिसयासयाणं, सुरासुराधीसर-वंदियाणं ।
रवींदु विचामलसगुणा, दयाधणाणं हि णमो जिणाणं ॥ १६ ॥ ( उपेन्द्रवज्रा ) 'ॐ ह्रीँ नमो जिणाणं' ए मंत्रथी वैयावृत्यपदनुं पूजन कर. वर्ण- उज्ज्वल - गुण - २०.
॥१९१॥
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अञ्जन
संयमपदः-सबिदियापारविकारदारी; अकारणासेसजणोवगारी । प्र. कल्प
महाभवातंकरणापहारी; जया सहा मुद्धचरित्तधारी ॥१७॥ (उपजाति) __ॐ ह्रीँ नमो चरित्तधरस्स' ए मायी संघमपदनु पूजन करवू. वर्ण-उज्ज्वल. गुण. १७. ॥१९२॥ 15१८-अभिनवज्ञानपदः-सुद्धकियामंडलमंडगा; संदेहसंदोहविखंडणस्स ।।
मुत्तीउपादानमुकारणस्सः पामो हि माणस्स जसोधणस्स ||१८।। (उपजाति) ॐ हौँ नमो नाणधरस्स' ए मंत्रयी अभिनवज्ञानपद पूजन करवू. वर्ण-उज्ज्वल. गुण. ५/५१. का १९-श्रुतज्ञानपद:-अण्णाणवल्लीदर-धारणा सुबोहिबीजंकुरकारणस्स।
अणंतसंसुद्धगुणालयस्ता गमो दयामंदिरसत्थयस्स ॥१९॥ (उपजाति) 'ॐ ह्रीं नमो सुयधरस्स' ए मंत्रथी श्रुतज्ञानपदनु पूजन करवू. वर्ण-उज्ज्वल. गुण. २०. २८-तीर्थपद:-महामहानन्दपदप्रदाय; जगत्त्रयाधीचर-चन्दिताय ।
जिनश्रुतज्ञानपयोनदाय नमोऽस्न तीर्थाय शुभंददाय ॥२०॥ (उपेन्द्रवज्रा) 'ॐ हीं नमो तित्थस्म' ए मंत्री तीर्थपदनु पूजन कर. वर्ण-उज्ज्वल. गुण. ३८. ___ आ रीते वीशे पदोना पूजन कर्या पाद श्रीआदिजिनकलश कही आरती-मंगलदीवो उतारी __ आठ थोयन देववंदन कर.
॥ इति विशतिस्थानकपदश्लोकाः॥ परि. १ ऊ॥
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॥१९२।
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परिशिष्ट नं. १ अञ्जन प्र.कल्प
इन्द्र-इन्द्राणीने यज्ञोपवीतादिक धारण करावता बोलवाना विशिष्ट मंत्रोः-(पाना नं. ६८नी टिप्पण)
च्यवनकल्याणकसमये इन्द्र-इन्द्राणीनी स्थापना करता पहेला यज्ञोपवीतादि आभूषणो ते ते श्लोकोथी मंत्रित करी ॥१९३॥
पहेरावाय छे. ते आभूषणो पहेरावता श्लोकोनी साथे नीचेना विशिष्ट मंत्रो बोली शकाय छे. १-'यज्ञोपवीत' (सोनानो सांकली) इन्द्रने धारण करावता-श्लोक बोल्या बाद बोलवानो मंत्र:__ ॐ ही इन्द्राय यज्ञोपवीतं परिधापयामीति स्वाहा ॥१॥ २-'मुकट' अने 'तिलक' इन्द्रने धारण करावता-श्लोक बोल्या बाद बोलवानो मंत्र:
ॐ ही इन्द्राय मुकुट परिधापयामीति स्वाहा ॐ ह्रीँ इन्द्राय तिलकं परिकल्पयामीति स्वाहा ।।२।। ३ 'कङ्कण' इन्द्रने धारण करावता-श्लोक बोल्या बाद बोलवानो मंत्र:
ॐ ह्रीँ इन्द्राय कङ्कणं परिधापयामीति स्वाहा ॥३॥ 18| ४ 'मुद्रिका' (वीटी) इन्द्रने धारण करावता-श्लोक बोल्या वाद बोलवानो मंत्र:
ॐ ह्रीँ इन्द्राय मुद्रिकां परिधापयामीति स्वाहा ॥४॥ | ५ 'षोडशाभूषण' इन्द्रने धारण करावना-लोक बोल्या बाद बोलवानो मंत्र:__ ॐ ह्रीँ इन्द्राय केयूरहारादिषोडशाभूषणानि परिधापयामीति स्वाहा ॥५॥
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| ॥१९३॥
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प्र. कल्प
॥ १९४॥
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saritat ericaran मंत्र प्र तेष्ठाकल्पमां आवे छे. परंतु स्थापना पहला इन्द्राणीने कङ्कणादि आभूषणो पहेरावता बोलवानो मंत्र आवतो नथी. तो कङ्कणादि आभूषणो वासक्षेपथी मंत्रित करी नीचेना मंत्रथी पहेराववा: - ( पाना नं. ७०नी टिप्पण)
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ॐ ह्रीँ इन्द्राण्यै कङ्कणादिकषोडशाभूषणानि परिधापयामीति स्वाहा ॥
॥ इन्द्र-इन्द्राणीने यज्ञोपवीतादिक धारण करावता - बोलवाना विशिष्ट मंत्रो । परि. १ ऋ ॥
॥ परिशिष्ट नं. १ ऋ
मात-पितानी स्थापनानी विशिष्ट विधिः - (पाना नं. ७०नी टिप्पण)
मात पितानी स्थापनानी विधि प्रतिष्ठाकल्पमां आवती नथी परंतु ते विधि प्रचलित छे. तो आ रीते करावी शकाय.
प्रथम मात-पिताने धारण करवाना मींडलादि आभूषणो वासक्षेपथी मंत्रित करी नीचेना मंत्रथी पहेराववा:
ॐ ह्रीं भगवतः पित्रे मुकुटादिकं परिधापयामीति स्वाहा ।
ॐ ह्रीं भगवतो मात्रे कङ्कणादिकं परिधापयामीति स्वाहा ।
त्यार बाद बन्नेना मस्तके सूरिमंत्री वासक्षेप करी नीचेना मंत्रथी मात-पिता तरीके स्थापना करवी:ॐ ह्रीं भगवतो माता- पितरौ परिकल्पयामीति स्वाहा ॥
॥ इति मात-पितानी स्थापनानी विशिष्ट विधिः । परि. १ ऋ ।
॥१९४॥
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प्र. कल्प
॥ १९५॥
परिशिष्ट नं. १ल
च्यवन कल्याणक चैत्य वन्दन तथा स्तवन- ( पाना नं. ७८नी टिप्पण) च्यवन कल्याणक चैत्य वन्दनम्: - च्यवनकल्याणकनी विधि थया बाद देववंदन करती वखते च्यवनकल्याणकनुं चैत्यवंदन तथा स्तवन केटलाक प्रतिष्ठाकल्पमा मले छे. ते बोली शकाय छे.
तुज्झ नमो जिण निहयाऽरिवग्ग भयवंत वाह ! आइगर ! तित्थयर सयंचिय, जायबोह पुरिसोत्तम पसिद्ध ॥ १ ॥ भवभीम महावि पडिय - पाणिगण सत्यवाह गयवाह । सिवमय लमणंतसुह-संपाविय-गयकाम || २ || परमेसर तत्थ ओsa, ताव अक्खलिय-नाणनयणेण । एत्थ गयंपि हु पणयं मं पेच्छ किंकरसरिच्छं || ३ || चतुर्दशस्वप्नस्तवनम् - (राग - जागने जादवां) करड-तड-गलिय-मय-सलिल-गंधुधुरं, गुलगुलंतं सुदंतं महासिंधुरं ।
गन्भ अणुभावओ पच्छिमरयणीए, देवीवयणम्मि पविसंतयं पेच्छए ॥ १ ॥ (१-गय) वसहमुल्लासि सुइलंब पुच्छच्छटं, चारुसिंगं सुतुंगं रवेणुब्भडं ॥ २ ॥ गम्भ ( २ वृषभ) घुसण-रस-राग- केसर-सडाऽऽडंबरं, केसरिं कंठरव- भरियगयणंतरं || ३ || गव्भ. (३ सिंह) कुंभि-कर-कलिय-कलसेहि कयमज्जणं, लच्छिमुद्दाम-कामस्थि-थय-सासणं ॥ ४ ॥ गम्भ. (४ लक्ष्मी) मालई मल्लिया कमलरेतयं, माल-ममिलाण-मलि-वलय-लीढंतयं ॥ ५ ॥ गम्भ. (५ माला)
॥ १९५॥
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प्र. कल्प
॥१९६॥
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किरणजालं सुतं ससि सुंदर, निहय-तम-पसर-महरुग्गयं दिणयरं ॥ ६ ॥ गम्भ (६ चंद्र ७ सूर्य) फलिह-डंडग्ग-लोलंत - सिय-धयवर्ड, पुन्नकलसं च सुहकमल-गंधुग्भडं || ७ || गव्भ. (८ ध्वजा ९ कुंभ) कुमुयकतहार-रम्मं महंतं सरं, बहुल-कल्लोल-मालाउरं सारं ॥ ८ ॥ गम्भ. (१० पद्मसरोवर ११ सागर ) विवि-मणि-भ-सालं विमाणं वरं, कंति कन्चुरिय-गयणं च रयणुक्करं ।। ९ ।। गम. (१२ विमान, १३ रत्नराशि ) धूमरहियं तदा हुयवहं सुमिणए, देवी वयणम्त्रि पविसंतयं पेन् ॥ १० ॥ गम्भ (१४ निर्धूम अग्नि) ।। इति च्यवनकल्याणक चैत्यवन्दन तथा स्तवन । परि. १ लृ ॥ परिशिष्ट नं. १
बृहत्स्नानविधिः - ( पाना नं. ९०नी टिप्पण)
मेरु पर्वत उपर प्रभुजीने लई गया बाद आचारदिनकर - अर्हत्पूजनादिकमां आवती " बृहत्स्नात्रविधि " प्रमाणे समयानुसार संपूर्ण श्रीजिनजन्माभिषेक महोत्सव करावी शकाय २५० अभिषेक सुधी विधि करावी अष्टप्रकारी पूजा arat aste अथवा केवल ' पूर्व जन्मनि विश्वभर्तुरधिकं ' आदि १९ श्लोको बोलीने पण २५० अभिषेक करावी rgप्रकारी पूजादिक करावी शकाय ।
सौ प्रथम कुसुमांजलि हाथमां लइ नीचेनो श्लोक बोली कुसुमांजलि करवीः- नमोऽर्हत्
पूर्व जन्मनि मेरुशिखरे, सर्वैः सुराधीश्वरै - राज्योद्भूतिमहे महर्द्धिसहितैः पूर्वेऽभिषिक्ता जिनाः ।
।। १९६ ॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥१९
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तामेवानुकृति विधाय हृदये, भक्तिप्रकर्षान्विताः; कुर्मः स्वस्वगुणानुसारवशतो, बिम्बाभिषेकोत्सवम् बीजीवार कुसुमांजलि:-नमोऽहत
मृत्कुम्भाः कलयन्तु रत्नघटितां, पीठं पुनर्मेरुता-मानीतानि जलानि सप्तजलधि-क्षीराज्यदध्यात्मताम् ।
बिम्बं पारगतत्वमत्र सकलः, सङ्गः सुराधीशतां, येन स्यादयमुत्तमः सुविहितः, स्नात्राभिषेकोत्सवः । त्रीजीवार कुसुमांजलि:-नमोऽहंत
आत्मशक्तिसमानीतः, सत्यं चामृतवस्तुभिः। तदवादिकल्पनां कृत्वा, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥३॥ (अनु.) पछी दूधनो कळश लइ नीचेनो श्लोक बोली अभिषेक करवोः
भगवन्मनोगुणयशोऽनुकारि-दुग्धाब्धितः समानीतम् । दुग्ध विदग्धहृदयं, पुनातु दत्तं जिनस्नात्रे ॥ १॥ (आर्या) पछी दहीनो कळश लइ नीचेनो श्लोक बोली अभिषेक करवोः
दधिमुखमहीध्रवर्ण, दधिसागरत: समाहृतं भक्त्या । दधि विदधातु शुभविधि, दधिसार पुरस्कृतं जिनस्नात्रे ॥२॥ (आयर्या) पछी घीनो कलश लइ नीचेनो श्लोक बोली अभिषेक करवोः
स्निग्धं मृदु पुष्टि करं, जीवनमतिशीतलं सदाभिख्यम् । जिनमतवद् घृतमेतत्, पुनातु लग्नं जिनस्नात्रे ॥३॥ (आर्या) R पछी शेरडीना रसनो कळश लइ नीचेनो श्लोक बोली अभिषेक करवोः
मधुरिममधुरीणविधुरित-सुधाऽधराऽऽधार आत्मगुणवृत्त्या । शिक्षयतादिक्षुरसो विचक्षणोघं जिनस्नाः ॥ ४॥ (आर्या)
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॥१९७॥
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प्र. कल्प
॥। १९८||
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पछी शुद्ध पाणीनो कलह नीचेनो श्लोक बोली अभिषेक करat:
जीवनममृतं प्राणद-मकलुषितमदोषमस्तसर्वरुजम् । जलममलमस्तु तीर्था-धिनाथविम्बानुगे स्नात्रे ॥ ५ ॥ (आर्या ) पछी सहस्रमूलमिश्र पाणीनो कलश लइ नीचेनो श्लोक बोली अभिषेक करवो:
विघ्नसहस्रो पशमं सहस्रनेत्र प्रभाव सद्भावम् । दलयतु सहस्रमूलं, शत्रुसहस्रं जिनस्नात्रे || ६ || (आर्या ) पछी शतमूलमिश्र पाणीनो कळश लइ नीचेनो श्लोक बोली अभिषेक करवोः -
शतमर्त्यसमानीतं, शतमूलं शतगुणं शताख्यं च । शतसंख्यं वाञ्छितमिह, जिनाभिषेके सपदि कुरुतात् || ७ || (आर्या) पछी सर्वोपधिमिश्र पाणीनो कळश लड् नीचेनो श्लोक बोली अभिषेक करवो:
सर्वत्रं सर्वसमीहितकरं विजितसर्वम् । सर्वोषधिमण्डलमिह, जिनाभिषेके शुभं ददताम् || ८ || (आर्या ) पछी धूप लड़ नीचे लोक बोली धूप करवो:--
ऊधो भूमिवासि - त्रिदशसुत माशां घ्राणहर्ष -- प्रौढिप्राप्तप्रकर्षः क्षितिरुहरसजः क्षीणपापावगाहः । धूपोऽकूपारकल्प-प्रभवमृतिजरा-कष्ट विस्पष्टदुष्ट- स्फूर्जत्संसारपारा-धिगममतिधियां विश्वभर्तुः करोतु || || (सम्रा) पछी "नमुत्थुणं " कही स्वस्तिकादिथी तैयार करेल, चंदन- पुष्पादिवासित पाणीथी भरेल कळशो नवकार गणी arrai लड़ नीचेना १९ जिनामिषेक श्लोको बोली अभिषेक करवो:--
॥ १९८ ॥
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अञ्जन | प्र.कल्प
॥१९९॥
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नमो अरिहंताणं; नमोऽर्हत--
पूर्व जन्मनि विश्वभर्तुरधिकं, सम्यक्त्यभक्तिस्पृशः। सूतेः कर्मसमीरवारिदमुखं, काष्ठाकुमार्यों व्यधुः। तत्कालं तविषेश्वरस्य निविडं, सिंहासनं प्रोन्नतं; वातो(तसमुधुरध्वजपट-प्रख्यां स्थिति व्यानशे ॥ १ ॥ (शार्दल) क्षोभात्तत्र सुरेश्वरः प्रसमर-क्रोधक्रमाक्रान्तधीः, कृत्वाऽल तकसिक्तकूर्मसदृशं, चक्षुःसहस्रं दधौ ।। वनं च स्मरणागतं करगतं, कुधन प्रयुक्तावधि-ज्ञानात्तीर्थकरस्य जन्म भुवने, भद्रंकरं ज्ञातवान् ॥२॥ (शादेल) नम नम इति शब्दं, ख्यापयंस्तीर्थनार्थः स झटिति नमति स्म, प्रौढसम्यक्त्वभक्तिः। तदनु दिवि विमाने, सा सुघोषाख्यघण्टा । सुररिपुमदमोधा-घातिशब्दं चकार ।। ३ ।। (मालिनी) द्वात्रिंशल्लक्षविमान-मण्डले तत्समा महाघण्टाः । नेदुः सुदुःअधर्माः, हर्पोत्कर्ष वितन्वन्त्यः॥४॥ (आर्या) तस्मान्निश्चित्य विश्वा-धिपतिजनुरथो, निजरेन्द्रः स्वकल्पान् ।
कल्पेन्द्रान् व्यनरेन्द्रा-नधि भवनपतीं-स्तारकेन्द्रान् समस्तान् । अाहाय्याऽऽहाय्य तेषां, समुखभवगिरा-ख्याय सर्व स्वरूप
श्रीमत्कार्तस्वराद्रेः, शिरसि परिकरा-लङ्कृतान् प्राहिणोच ॥ ५॥ (स्रग्धरा) ततः स्वयं शक्रसुराधिनाथः, प्रविश्य तीर्थकर जन्मगेहम् ।।
परिच्छदैः सामथो जिनाम्बा, प्रसापयामास वरिष्ठविद्यः॥६॥ (उपेन्द्रवत्रा)
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॥१९९॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२०॥
| कृत्वा पञ्चवपूंषि विष्टपपतिः, संधारणं हस्तयो-इछत्रस्योद्वहनं च चामरयुग-प्रोद्भासनाचालनम् । वज्रेणापि धृतेन नर्तनविधि, निर्वाण दातुः पुरो, रूपैः पञ्चभिरेवमुत्सुकमनाः, प्राचीनबर्हियधात् ॥ ७॥ (शार्दूल)
सामानिकारक्ष-रेवं परिवारितः सुराधीशः। विभ्रत त्रिभुवननाथं, प्राप सुरादि सुरगणाढ्यम् ।। ८ । (आर्या)। तन्द्रास्त्रिदशाप्सरःपरिवृता विश्वेशितुः संमुखं, मझ्वागत्य नमस्कृति व्यधुरलं, स्वालङ्कृतिभ्राजिताः। आनन्दान्न नृतस्तथा सुरगिरि स्त्रट्यद्भिराभास्वरैः, शृङ्गैः काञ्चनदानकर्मनिरतो, भाति स्म भक्त्या यथा ॥ ९॥ (शार्दूल) अतिपाण्डुकम्बलाया, महाशिलायाः शशाङ्कधालायाः । पृष्ठे शशिमणिरचितं, पीठमधुर्देवगणवृषभाः॥१०॥ (आर्या) तत्राधायोत्सङ्गे, ईशानसुरेश्वरो जिनाधीशम् । पद्मासनोपविष्टो, निबिडां भक्तिं दधौ मनसि ॥ ११ ॥ (आर्या) इन्द्रादिष्टास्तत,आभियोगिकाः कलशगणमथानिन्युः । वेदर सखर्वसुसंख्यं, मणिरजतसुवर्णमृद्रचितम् ॥ १२ ॥ (आर्या) कुम्भाच ते योजनमात्रवक्त्रा, आयाम औन्नत्यमथैषु चैवम् ।।
दशाष्टवाहत्करयोजनानि, द्विश्येकधातुप्रतिपङ्गगर्भाः ॥ १३ ॥ (उपेन्द्रवज्रा) नीर: सर्वसरितडागजलधि-प्रख्यान्यनीराशयाऽऽ-नीतैः सुन्दरगन्धगर्भिततरैः स्वच्छैरलं शीतलैः ।। भृत्यैर्देवपतेर्मणीमयमहा-पीठस्थिताः पूरिताः; कुम्भास्ते कुसुमस्रनां समुदयैः कण्ठेषु संभाविताः ॥ १४ ॥ (शार्दूल) पूर्वमच्युत-पतिर्जिनेशितुः, स्नातकर्म विधिवद् व्यधान्महत् ।
तैर्महाकलशवारिभिधनैः, प्रोल्लसन्मलयगन्धधारिभिः ॥१५॥ (रथोद्धता ५-६)
॥२०॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२०१॥
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चतुर्षुपभगृङ्गोत्थ-धाराष्टकमुदञ्चयन् । सौधर्माधिपतिः स्नात्रं, विश्वभर्तुरपूरयत् ॥ १६ ॥ (अनु.) शेषं क्रमेण तदनन्तरमिन्द्रवृन्दं, कल्पासुरर्क्ष-वननाथमुखं व्यधत्त । स्नात्रं जिनस्य कलशैः कलितप्रमोद, ग्रावारवेद विनिवारितसर्वपापम् ॥ १७ ॥ ( वसन्त ) तस्मिन् क्षणे बहुलवादितगीतनृत्य-गर्भ महं च सुमनोऽप्सरसो व्यधुस्तम् ।
नादधे स्फुसदाविनिविष्टयोग - स्तीर्थङ्करोऽपि हृदये परमाणु चित्तम् || १८ || (वसन्त . ) मेरुशङ्गे च यत्स्नात्रं, नगद्भर्तुः सुरैः कृतम् । बभूव तदिहास्त्वेत - दस्मत्करनिषेकतः ॥ १९॥ (अनु.) आ ज "मेरुशृङ्गे" "लोक बोली दरेके अभिषेक करवा त्यार बाद कोमल हाथे अंगलूणादिक करी सौ प्रथम कस्तूरी चंदनादितुं विलेपन नीचेना वे श्लोक बोली करवुं :
कस्तूरिकाकुङ्कुमरोहणद्रुः कर्पूरकल्लोलविशिष्टगन्धम् ।
विलेपनं तीर्थपतेः शरीरे, करोतु सङ्घस्य सदा विवृद्धिम् ||१|| ( उपेन्द्रवज्रा ) तुरापाद स्नात्रपर्यन्ते विदधे यद्विलेपनन् । जिनेश्वरस्य तद्भूयादत्र विम्वेऽस्मदाद्यतम् ||२|| (अनु.) पछी नीचेना वे श्लोक बोली फूलनी माला चढावधी :
॥२०१॥
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अंजन प्र.कल्प
||२०२॥
मालती-विचकिलोज्ज्वलमल्ली-कुन्द पाटलमुवर्णसुमैश्च ।
केतकैविरचिता जिनपूजा, मङ्गलानि सकलानि विदध्यात् ॥१॥ (स्वागता ३-८) स्नात्रं कृत्वा सुराधीशै-जिनाधीशस्य वर्मणि । यत्पुष्पारोपणं चक्रे, तदस्त्वस्मत्करैरिह ॥२॥ (अनु.) पछी नीचेना वे श्लोक बोली मुगट-कुंडल-हारादि आभूषणो पहेराबवा :केयूरहारकटकैः पटुभिः किरीटैः, सत्कुण्डलैर्मणिमयी भिरथोर्मिकाभिः ।।
बिम्ब जगत्त्रयपतेरिह भूषयित्वा, पापोच्चयं सकलमेव निकृन्तयामः ॥१॥ (वसन्त.) या भूषा त्रिदशाधीशैः, स्नात्रान्ते मेरुमस्तके । कृता जिनस्य सा ऽत्राऽस्तु, भविभूषणार्जिता ॥२॥ (अनु.) पछी नीचेना बे श्लोक बोली फळपूजा करवी :--- सम्मालिकेर-फलपूर-रसाल-जम्बु-द्राक्षा-परूपक-सुदाडिम-नागरिगैः ।
वाताम-पूग-कदलीफल-जम्भमुख्यैः, श्रेष्ठैः फलैजिनपतिं परिपूजयामः॥१॥ (वसन्त.) . यत्कृतं स्नात्रपर्यन्ते, सुरेन्द्रैः फलढौकनम् । तदिहास्मत करादस्तु, यथासम्पत्तिनिर्मितम् ॥२॥ (अनु.) पछी नीचेनो श्लोक बोली अक्षतपूजा करवी:अखण्डिताक्षतैः पूजा, या कृता हरिणाऽर्हतः । साऽस्तु भव्यकराम्भोज-रत्र बिम्बे विनिर्मिता ॥१॥ (अनु.)
C२०२॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२०३॥
पछी नीचेना वे श्लोक बोली बिंव आगळ पाणीनो कलश मूकवो :
निर्झरनदीपयोनिधि-वापीकूपादितः समानीतम् । सलिलं जिनपूजाया - महाय निहन्तु भवदाहम् ||१|| (आर्या ) मेरुशृङ्गे जगद्भर्तुः, सुरेन्द्रैयैज्जलार्चनम् । विहितं तदिह प्रौढि - मातनोस्त्रस्मदाद्यतम् ||२|| (अनु.) पछी नीचेना वे श्लोक बोली धूपपूजा करवी :
कर्पूरागरुचन्दनादिभिरलं, कस्तूरिकामिश्रितैः; सिल्हाद्यैः सुसुगन्धिभिर्वहुतरै - धूपैः कृशान्द्गतैः । पातालक्षितिगोनिवासिमरुतां, संप्रीण कैरुनमै - धूमाक्रान्तनभस्तलैर्जिनपतिं संपूजयामोऽधुना ॥ | १ || ( शार्दूल . ) या धूपपूजा देवेन्द्रः स्नात्रानन्तरमादधे । जिनेन्द्रस्यास्मदुत्कर्षा दस्तु साऽत्र महोत्सवे ||२|| (अनु.) पछी नीचेना वे श्लोक बोली दीप करवो :
अन्तर्ज्योति - द्यतितो यस्य कायोः यत्संस्मृत्या, ज्योतिरुत्कर्षमेति ।
तस्याभ्याशे, निर्मितं दीपदानं लोकाचार - ख्यापनाय प्रभाति ।। १ ।। (शालिनी) या दीपमाला देवेन्द्रैः, सुमेरौ स्वामिनः कृता । साऽत्रान्तर्गतमस्माकं विनिहन्तु तमोभरम् || २ || (अनु.) पछी नीचेनो श्लोक बोली नैवेद्यपूजा करवी :
ओदनैर्विविधैः शाकैः, पक्वान्नैः षड्रसान्वितैः । नैवेद्यैः सर्वसिद्धयर्थं जायतां जिनपूजनम् ॥ पछी नीचे श्लोक बोली सर्वधान्य सूकवा :
१ ॥ (अनु.)
॥२०३॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२०४॥
गोधूम-तन्दुल-तिलेहरिमन्थ श्वः मुद्गा-ऽऽढकी-यव-कलाय-मकुष्ठकैश्च
कुल्माप-बल्ल-घरचीनक-देवधान्यैर्मत्यैः कृता निनपुरः फलदोपदाऽस्तु ॥ १ ॥ (वसन्त.) पछी नीचेनो श्लोक बोली सर्व वेपवार नका :
शुंठी-कणा-मरीच-रामठ-जीर-धान्य-श्यामा-सुराप्रभृतिभिः पटुवेसवारैः।
संढीकनं जिनपुरो मन जैविधीय-मानं मनांसि यशसा विमलीकरोतु ॥१॥ (वसन्त.) पछी नीचेनो श्लोक बोली सौषधि नकवी :
उशीर-बटिका-शिरो-ज्ज्वलनचव्यधात्रीफल-बलासलिलवत्सकै-र्धनविभावरीवासकैः। बचावर-विदारिका-मिशि-शताहायाचन्दनैः; प्रियगुतगरैजिने-श्वरपुरोऽस्तु नो ढौकनम् ॥ १॥ (पृथ्वी.८.९) पछी नीचेनो श्लोक बोली तंबोळ मुकवा :
भुजङ्गबल्लीछदनैः सिताभ्र-कस्तूरिकेला सुरपुष्पमित्रैः ।
सजातिकोशैः सममेव चूर्णे-स्ताम्बूलमेवं तु कृतं जिनाग्रे ॥ १ ॥ (उपेन्द्रवज्रा) पछी नीचेना बे श्लोक बोली वस्त्रपूजा करवी.
सुमेरुशृङ्गे सुरलोकनाथः, स्नात्रावसाने प्रविलिप्य गन्धैः ।
जिनेश्वरं वखचौर ने कै-राच्छादयामास निषक्तभक्तिः ॥ १॥ (उपेन्द्रवज्रा)
GALICHOCHOROBACIAS
॥२०४॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२०५॥
પર
ततस्तदनुकारेण, साम्प्रतं श्राद्धपुङ्गवाः । कुर्वन्ति वसनैः पूजां त्रैलोक्यस्वामिनोऽग्रतः || २ || (अनु.) पछी नीचेनो श्लोक बोली सुवर्णमुद्रादिथी बिंबनी पूजा करवी :सुवर्णमुद्रामणिभिः कृतास्तु, पूजा जिनस्य स्नपनाऽवसाने ।
अनुष्ठिता पूर्वसुराधिनाथैः, सुमेरुशृङ्गे धृतशुद्धभावः ॥ १ ॥ ( उपेन्द्रवज्रा ) त्यार बाद अष्टमंगलनुं आलेखन कर.
॥ इति बृहत्स्नाविधिः ||
॥ परि० ९ ॥
परिशिष्ट - नं. १-ए
श्री जिनजन्माभिषेकस्तवनम् :- ( प्रतिष्ठा - कल्प-पृष्ठ- ) ( पाना नं. ९२ नी टिप्पण. ) मेरुपर्वत उपर २५० अभिषेकादिविधि या बाद देववंदन करती वखते प्रतिकल्पमां जिनजन्माभिषेकस्तवन आवे छे ते बोली शकाय छे. ते स्तवन नीचे प्रमाणे छे :
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जयवत्यवंद !, लीलाचलणग्गचालियगिरिंद ! | भवकूवमज्झनिवडंत-जंतु नित्थारणसमत्य ! || १ || परमेसर ! सरणागय-परूढदृढवजपंजर जिणिंद ! । वम्मह कुरंग केसरि-मच्छर तमपसरदिवसयर ! ॥ २ ॥ सच्चं चिय सिद्धत्थो; कहं न सामिय जहत्थनामत्थो । चिंतामणिसरिच्छो; जस्स सुउत्तो विसालच्छो || ३ ||
॥२०५॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२०६ ॥
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अच्चतमविरइपरायणो वि; अइपुन्नर्वतमप्पाणं । मन्नेमो जिण ! जं तुझ; मज्जणे एवमुवरिया || ४ || भदं भारहखेत्तस्स; नाह ! तं जत्थ पाविओ जम्मं । धरणी वि वंदणिज्जा; जा बहिही तुज्झ करकमलं ॥ ५ ॥ जर तुह पयसेवाए; जिणिंद ! फलमत्थि ता सया कालं । एवंविह परममहं अम्हे पेच्छया होमो || ६ ॥ ॥ इति जिनजन्माभिषेकस्तवनम् ॥ परि. १ ए ॥ परिशिष्ट नं. १-ऐ
श्री जिनाद्दानबृहद्विधि :- ( पाना नं. १०० नी टिप्पण. )
अहार अभिषेकम आठ अभिषेक थया बाद जिनाहान करवामां आवे छे. ते विधान विवप्रवेशादिविधिमां आवती बृहद्विधि प्रमाणे पण थइ शके छे ते विधि नीचे प्रमाणे छे :
सौ प्रथम नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली कुसुमांजलि करवी
सर्वस्थिताय विबुधाऽसुरसेविताय, सर्वात्मकाय चिदुदीरितविष्टपाय ।
विम्वाय लोकनयनप्रमदप्रदायः पुष्पाञ्जलिर्भवतु सर्वसमृद्धिहेतुः ।। १ ।। (वसंततिलका.)
ॐ ह्रीँ ह्रीँ हूँ हैं हो हः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ||
त्यार बाद सूरि भगवंत ऊभा थई १. परमेष्टिमुद्रा; २ गरुडमुद्रा; ३ मुक्ताशुक्ति- एमत्रण मुद्राथी जिनेश्वरनुं आदान नीचेना मंत्रथी करे :
॥ २०६ ॥
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असन प्र.कल्प
॥२०७॥
RABARRRRRRRRROR
___ॐ नमोऽहत्परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने त्रैलोक्यनताय अष्टदिग्भाग-कुमारीपरिपूजिताय देवेन्द्रमहिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय भगवन्तोऽहन्तः श्रीऋषभदेवादिस्वामिनः अत्र आगच्छन्तु आगच्छन्तु स्वाहा ।।।
॥ इति जिनाहानबृद्विधिः ॥ परि० १-ऐ॥
परिशिष्ट नं. १-ओ
चंद्र-सूर्यदर्शनमन्त्रः-(पाना नं. १०६ नी टिप्पण) अढार अभिषेकमां १५ अभिषेक थया वाद चंद्र-सूर्यना दर्शननी विधि कराववामां आवे छे. अष्टादशअभिषेकबृहद्| विधिमां तेना मंत्रो आवे छे ते अहीं बोली शकाय छे. प्रथम चंद्रदर्शन कराव_. चंद्रदर्शनमन्त्रः -
ॐ अहं चन्द्रोऽसि, निशाकरोऽसि, सुधाकरोऽसि, चन्द्रमा असि, ग्रहपतिरसि, नक्षत्रपतिरसि, | कौमुदीपतिरसि, निशापतिरसि, मदनमित्रमसि, जगजीवनमसि, जैवात कोऽसि, क्षीरसागरोद्भवोऽसि,
श्वेतवाहनोऽसि, राजाऽसि, राजराजोऽसि, औषधीगर्भोऽसि, वन्द्योऽसि, पूज्योऽसि, नमस्ते भगवन् ! | अस्य कुलस्य ऋद्धिं कुरु २; वृद्धिं कुरु २; तुष्टिं कुरु २; पुष्टिं कुरु २; जयं कुरु २; विजयं कुरु २, भद्रं कुरु २; प्रमोदं कुरु २ श्री शशाङ्काय नमः ।।
CRORECAUCRECRECR
॥२०७॥
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प्र.कल्प
SCHOSRS
॥२०८॥
BREARREARRORROR
ॐ अहं-सौंपधिमिश्रमरीचिजालः, सर्वाऽऽपदां संहरणप्रवीणः ।
करोतु वृद्धिं सकलेऽपि वंशे, युष्माकमिन्दुः सततं प्रसन्नः ॥१॥ (उपजाति) पछी सूर्यदर्शन करावq. सूर्यदर्शनमंत्रः
ॐ अहं सूर्योऽसि, दिनकरोऽसि, सहस्रकिरणोऽसि, विभावसुरसि, तमोऽपहोऽसि, प्रियङ्करोऽसि, | शिवङ्करोऽसि, जगच्चक्षुरसि, सुरवेष्टितोऽसि मुनिवेष्टितोऽसि, विततविमानोऽसि, तेजोमयोऽसि, अरुण
सारथिरसि, मार्तण्डोऽसि, द्वादशात्माऽसि; चक्रयान्धवोऽसि नमस्ते भगवन् ! प्रसीदाऽस्य कुलस्य तुष्टिं - पुष्टिं प्रमोदं कुरु २ सन्निहितो भव ॥ ____ॐ अर्ह-सर्वसुराऽसुरवन्धः, कारयिता सर्वधर्मकार्याणाम् । भूयात् त्रिजगच्चक्षु-मङ्गलदस्ते सपुत्रायाः ॥२॥ (आर्या)
॥ इति चन्द्र-सूर्यदर्शनमन्त्रः ॥ परि० १-ओ ।।
परिशिष्ट नं. १-औ अष्टादशअभिषेक बृहदविधिमा आवता छेल्ला पांच अभिषेकनी विधिः-(पाना नं. १०८ नी टिप्पण) 13 प्रतिष्ठाकल्पनी विधि प्रमाणे अहार अभिषेक थया बाद बृहद्विधिमा आवता घी, दूध, दही, शेरडीनो रस तेमन सौंषधिमिश्रित पंचामृतथी पांच अभिषेक करवा होय तो नीचेनी विधि प्रमाणे करावी शकाय छे. छेवटे शुद्धजलनो अभिषेक तो अवश्य करवो.
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॥२०८॥
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(१) घीनो अभिषेकः-घृतमायुर्वृद्धिकरं, भवति परं जैनदृष्टिसंपर्कात् । अञ्जन प्र.कल्प
तदभगवतोऽभिषेके, पातु घृतं घृतसमुद्रस्य ॥१॥ (आर्या) ___ ॐ हाँ ह्रीं परमाहते परमेश्वराय, दुग्धप्रधानपञ्चामृतेन स्नापयामीति स्वाहा ।। ॥२०९॥ ||3|| (२) दूधनो अभिषेकः-दुग्धं दुग्धाम्भोधे-रुपाहृतं यत् पुरा सुरवरेन्द्रः।
तद्बलपुष्टि नेमित्तं, भवतु सतां भगवदभिषेकात् ॥ २॥ (आर्या) ॐ हाँ हाँ परमाहते परमेश्वराय घृतप्रधानपञ्चामृतेन स्नापयामीति स्वाहा ।। दहीनो अभिषेक:-दधि मङ्गलाय सततः जिनाभिषेकोपयोगतोऽप्यधिकम् ।
भवतु भविनां शिवाऽध्वनि, दधिजलधेराहृतं त्रिदशः॥३॥ (आर्या) ॐ हां ही परमाईते परमेश्वराय दधिप्रधानपञ्चामृतेन स्नापयामीति स्वाहा ॥ PI (४) शेरडीना रसगो अभिषेकः-इक्षुरसोदादुपहृत, इक्षुरसः मुखरैस्त्वदभिषेके ।
___भवदवदवथोर्भविनां, जनयतु नित्यं सदानन्दम् ॥ ४ ॥ (आर्या) ॐ हाँ हाँ परमाहते परमेश्वराय इक्षरसप्रधानपञ्चामृतेन स्नापयामीति स्वाहा ।। | (५) सौंषधिमिश्रजलाभिषेक:-सौषधीषु निवसे-दमृतमिह सत्यमर्हदभिषेके।
तत् सौषधिसहितं, पञ्चामृतमस्तु वः सिद्धथै ॥५॥ (आर्या)
BERGHEASACHACHE CRESC
॥२०९॥
૫૩
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२१०॥
ॐ हाँ हाँ परमाईते परमेश्वराय सौषधिमिश्रितपञ्चामृतेन स्नापयामीति स्वाहा ॥ (६) शुद्धजलनो अभिषेकः-आ पांच अभिषेक थया बाद नीचेनो श्लोक बोली शुद्धजलनो अभिषेक करवोःवृन्द्रबृन्दारकाणां सुरगिरिशिखरे बद्धसङ्गीतरङ्ग
_श्चक्रे क्षीराब्धिनीरैः स्नपनमहविधि-जन्मकाले जिनानाम् । सम्यग्र भावेन तस्या-ऽनुकृतिमहमपि प्रीतितः कर्तुकामो;
विम्ब तीर्थेश्वरस्या-ऽमल जलकलशैः सम्प्रति स्नापयामि ॥१॥ (स्रग्धरा) ॐ हाँ हाँ परमाईते परमेश्वराय शुद्धजलेन स्नापयामीति स्वाहा ।।
॥ इति पञ्चाभिषेकविधिः॥ परि.१ल॥
परिशिष्ट नं. १ अं
नामस्थापनविधिः-(पाना नं. ११२ नी टिप्पण) प्रभुन नामस्थापन करतां करवानी विशिष्टविधि केटलीक हस्तलिखित प्रतिष्ठा कल्पमा मले छे. ते विधि अहीं पण करी शकाय हे. ने विधिः
पित्रादयो गृहस्थगरुं प्रणामपूर्वकं प्रार्थयति "भगवन् ! नामकरणं क्रियताम्"। लग्नं ग्रहांश्च मुद्रा-फल
de
SECRECRRRRESTOSTEOS
SEORUS
॥२१॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२११॥
नैवेद्यादिभिः पूजयित्वा कुलवृद्धा (पितृष्वसा - फईवा) कर्णे परमेष्ठिमंत्र भणनपूर्वकं नाम स्थापयेत् । कुलवृद्वा च जनसमक्षं नाम वर्णयति । पुत्रोत्सङ्गा माता सङ्घच जिनं मुद्रा-फल- नैवेद्यादिभिः पूजयित्वा चैत्यवन्दनं करोति इति ॥
॥ इति नामस्थापनविधिः ॥ परि. १ अं ॥ परिशिष्ट नं. १ अ
नवलोकान्तिकदेवोनी विनंतिः - ( पाना नं. ११९ नी टिप्पण)
लोकान्तिदेवी विनंतिनुं विधान प्रतिष्ठाकल्पमां आवतुं नथी. परंतु हाल पट्टस्थापनविधि वाद करावाय छे. तो नीचे प्रमाणे करावी शकायः
१ सारस्वत, २ आदित्यः ३ वह्नि ४ वरुणः ५ गर्दतोय; ६ तुषितः ७ अव्याबाधः ८ आग्नेयः ९ अरिष्ट - आ नत्र लोकान्तिदेव प्रभु पासे आवी आ प्रमाणे विनंति करे:
64
जय जय नन्दा, जय जय भद्दा, भदं ते भयवं, सयलजगज्जीवहियं धम्मतित्थं पवत्तेह " ॥ ॥ इति नवलोकान्तिकदेवोनी विनंति ॥ परि० ९ अः ॥
॥२११॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२१२ ॥
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परिशिष्ट नं. १ क
कुल महत्तराहितोपदेशः - ( पाना नं. ११९ नी टिप्पण) दीक्षा प्रसंगे कुलमहत्तरा (घावमाता) भगवंतने हितोपदेशगर्भित आशीर्वचन जणावे छे ते अहीं दीक्षाकल्याणक प्रसंगे कही शकाय छे:
इक्खाकुलसमुपपन्नेऽसि णं तुमं जाया !; कासवगुत्तेऽसि णं तुमं जाया !; उदितोदित नायकुलनहलमिअंक !; सिद्धस्थजच्चखत्तअसुएऽसि णं तुमं जाया !; जच्च खत्तिआणी तिसलाए सुएऽसि णं तुमं जाया !; देविंद रिंद पहिअकित्तीऽसि णं तुमं जाया !; एत्थ सिग्धं चंकमिअत्रं; गुरुअं आलंबेअव्वं, असिधार महवयं चरिअव्वं जाया !; परक्कमियव्वं जाया !; अरिंस चणं अट्ठे नो पमाइअव्वं ॥
॥ इति कुलमहत्तराहितोपदेशः ॥ परि०१ - क ।। परिशिष्ट नं. १ ख अलङ्कारावतरणश्लोकः - ( पाना नं. ११९ नी टिप्पण )
दीक्षा कल्याणकमां दीक्षासमये प्रभुजीना अलंकार कल्पसूत्रसुवोधिकामां आवतो नीचेनो श्लोक बोली उतारी शकाय छे :
॥२१२ ॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२१३॥
२-%AGARIKRAMERA
अङ्गुलिभ्यश्च मुद्रावलिं पाणितो, वीरवलयं भुजाभ्यां झटित्यङ्गदे । हारमथ कण्ठतः कर्णतः कुण्डले, मस्तकान्मुकुटमुन्मुश्चति श्रीजिनः ॥ ॥ इति अलङ्कारावतारण श्लोकः॥ परि० १-ख॥
परिशिष्ट नं. १ ग
सर्वविरतिस्वीकारसूत्रम् :-(पाना नं. ११९ नी टिप्पण) दीक्षाकल्याणकमां प्रभुजीने सर्वविरतिना स्वीकारनी विधि "करेमि सामाइयं" सूत्र बोली करावी शकाय छे:
करेमि सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चवामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि, न कारवेमि, करंतंपि अन्नं न समणुजाणामि तस्स पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि॥
॥ इति सर्वविरतिस्वीकारसूत्रम् ॥ परि० १-ग ॥
*SHASSASSAGउन
॥२१३॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥२१४॥
परिशिष्ट नं. १ घ श्रीदीक्षाकल्याणकचैत्यवन्दनम् :--(पाना नं. १२० नी टिप्पण) दीक्षाकल्याणकनी विधि थया बाद देववंदन करतां प्रतिष्ठा-कल्पमां दीक्षाकल्याणक- चैत्यवंदन आवे छे ते बोली शकाय छे. ते चैत्यवंदन नीचे प्रमाणे छे:
राज्यं प्राज्यमुखं विमुच्य भगवान् , निःसङ्गतां योऽग्रहीद; धन्यरेष जनैरचिन्त्यमहिमा, विश्वप्रभुर्वीक्ष्यते। धर्मध्याननिबद्धबुद्धिरसुहृद्-भक्तेष्वभिन्नाशयो, जाग्रज्ज्ञानचतुष्टयस्तृणमणि-स्वर्णोपलादौ सदृक् ॥१॥ (शादूर्ल. निसङ्गं विहरन्निदानरहितं, कुर्वन् विचित्रं तपः; सत्पुण्यैरवलोक्यते त्रिजगती-नाथः प्रशान्ताऽऽकृतिः। विस्फूर्जन्मदवारिवारणघटं, रङ्गत्तुरङ्गोद्भट; हर्षोल्लासिविलासिनीव्यतिकरः, निःसीमसम्पद्भरम् ॥२॥ (शार्दूल०) जय त्रिजगतीपते ! देहिनां श्रीजिन ! ; प्रसादवशतस्तव, स्फुरतु मे विवेकः परः। भवेद् भवविरागिता, भवतु संयमे निवृतिः; परार्थकरणोद्यमः, सह गुणार्जनैर्जायताम् ॥ ३॥ (पृथ्वी ८-९) माद्यद्दन्ति-समीर-जित्वरहय-प्रोद्यन्मणी काञ्चन-स्वारीसमरूपभूखिनिताः, प्रोल्लासिचक्रिश्रियम् । यस्त्यक्त्वा तणबल्ललो व्रतरमां, तीथङ्करः षोडशः स श्रीशान्तिजिनस्तनोतु भविनां, शान्ति नताखण्डलः ॥४॥ (शार्दूल.
॥ इति श्रीदीक्षाकल्याणकचैत्यवन्दनम् पृ. ॥ परि. १-५॥
ARREARSAGAR
॥२१४॥
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अञ्जन प्र.कल्प
परिशिष्ट नं. २-अ-दिक्पालोनी रचना :
दिक्पालो भगवानने डावे पडखे स्थापवा
परिशिष्ट-नं. २-ब-ग्रहोनी रचना:
भगवानने जमणे पडखे स्थापवा | ॐ नमो बुधाय ॐनमः शुक्राय ॐ नमः सोमाय
॥२१५॥
ॐ ईशानाय नमः | ॐ इन्द्राय नमः । ॐ आग्नेयाय नमः
ईशानकूणे
ॐ नमो गुरवे ॐ नमः सूर्याय ॐ नमो भौमाय
पूर्वे
अग्निकणे
| ॐ ब्रह्मणे नमः
ॐ नमः केतवे ॐनमःशनैश्चराय ॐ नमो राहवे
ॐ कुबेराय नमः
ॐ यमाय नमः
उत्तरदिशि
ॐ नागाय नमः अधः १०
दक्षिणदिशि
परिशिष्ट-नं. २-क अष्टमंगलनी रचना:
भगवाननी सन्मुख आलेखवां । स्वस्तिक | श्रीवत्स | कुम्भ भद्रासन
ॐ वायवेयाय नमः | ॐ वरुणाय नमः | ॐ नैर्ऋतये नमः वायुकूणे
पश्चिमे नैर्ऋतकूणे
| नंद्यावर्त वर्धमान | दर्पण मत्स्ययुग्म
२१५॥
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Donal
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२१६॥
Jain Education
नाम
आलेखन
१ इन्द्र गोरुचंदन
२ अग्नि
३ यम
४ नैर्ऋत
५ वरुण
६ वायु
७ कुबेर
८
ईशान
९ त्रह्म
१० नाग
रतांजली
कस्तुरी, चुओ
कस्तुरी
कस्तुरी, चुओ सुखड, केसर
कस्तुरी
सुखड, वरास सुखड
सुखड, कर्पूर
सुखड, दूध
पूजन
केसर
39 ""
कस्तुरी }
वासुचुओ
"
कंकु
चुओ, सुखड
परिशिष्टं नं. २-ड - दिक्पालोनां उपकरण -
फल
}
सुखड, वरास
सुखड
"
17
फुल
चंपो
जासुद
मरवी
मालती
बोलसीरी
बोलसीरी
दमणो
दमणो, चंपक
जुइ, संयंत्रा
कुमुद
सेवंत्रा मोगरो
जामफल
राती सोपारी
काळी सोपारी
दाङम
} दाङम
नारंगी, केळां
बीजो
सेलडी
बीजो उजळी बदाम
चत्र
पीलुं
रातुं
काळु
उर्दु
आसमानी मगनो
नीलुं
मगनो
श्वेत
धेवर
===
नैवेद्य
द्रव्यादि मोतीचूर अक्षत, पात
चूरमानो
सोपारी
अडदनो
तांबा तां
तलनो
39
सौंदळ
वेबर
पेंडा
"
22
""
""
"
"
17
6
॥२१६॥
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न
प्र. कल्प
॥२१७॥
પ
नंबर ग्रहनाम
१ सूर्य
२ चंद्र
३ मंगल
४ बुध
५ गुरु
६ शुक्र
७ शनि
८ राहु
९ केतु
आकार
मंडलाकार
चोरस
त्रिकोण
बाणाकार
परिशिष्ट नं. २- इ
ग्रहोनी स्थापनानो आकार तथा उपकरणः-गोठवण
दिशा
कापड पूर्वसन्मुख मध्यमां लाल पश्चिमसन्मुख अग्निकुणे धोळं
धनुषाकार
सूर्पाकार
ध्वजाकार
आलेख
रतांजली
सुखड
रतांजली
सुखड, केसर
पाटीनाआकारे गोरुचंदन
पंचखुण
सुखड कस्तुरी, चुवो कस्तुरी, चुत्रो यक्ष कदम
उत्तरसम्मुख दक्षिण दिशामां लाल दक्षिणसन्मुख ईशानकूणे
लीळु
उत्तर दिशामां पूर्वदिशामां
उत्तरसन्मुख
पश्चिम दिशामां
पूर्वसन्मुख पश्चिमसन्मुख दक्षिणसन्मुख नैर्ऋत्यकृणे दक्षिणसन्मुख वायव्यकूणे
पीलुं
सफेद
कां
लाडु
घनादळनो ममरानो
छींट
फुल
लाल कणेर
चंद्रविकाशी
कुमुद वा मोगरो
गोळवाणीनो मगनो
चणानी दालनो
पीसेला चोखानो
गलीरंगजेवुं अडदमगनो साथै
अडदनो
जासुद
जुइ वा चमेली
अडद-मग चणाममरानो साथ
सूचना :- नवे य ग्रहो माटे-अधेलां, सोपारी, अक्षत, चंदन, धूप अने दक्षिणा ए नव नव लेवां.
चंपी
सेयंत्रानों
बावळनां
मचकुंद
पंचरंगी
॥२१७॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२१८॥
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परिशिष्ट नं. ३ मंडप - वेदिकानुं माप:
अञ्जनशलाका - प्रतिष्ठा महोत्सवमा प्रतिष्ठामंडप के अधिवासनामंडप पण एक आवश्यक अंग छे. पूर्वकालमा प्रतिष्ठामंडप के वेदिका समचौरस, चतुर्मुख थता अने लंबाई-पहोलाईनुं माप प्रतिष्ठाप्य प्रतिमाना प्रमाणने अनुसारे न्हाना-मोटां बनता. पूज्य श्रीपादलिप्तसूरिकृतनिर्वाणकलिकामां जणान्युं छे के
" स च षष्ठाष्टमादितपोविशेषं विधाय कारापकानुकूले लग्ने हस्तादारभ्य नवहस्तान्तानां प्रतिमानामाद्यासु तिसृषु अष्टनव - दशहस्तमितरासु चतुर्हस्तादिप्रतिमासु हस्तद्वयवृद्धया, यद्वा एकहस्तादिक्रमेणैव द्वादशद्विहस्तवृद्धया प्रागेव मण्डपं प्रासादस्याग्रतः कारयित्वा तस्य च प्राच्यामीशान्यां वा स्नानमण्डपमधिवासनामण्डपार्थेन निवेश्य लघुप्रतिमासु पञ्च- पट् - सप्तहस्तानि तोरणानि, इतरामु च वसुवेदाङ्गुलाग्राणि न्यग्रोधोदुम्बराश्वत्थ प्लक्षद् मसमुद्भवानि पूर्वादारभ्य शान्ति-भूति - बलारोग्यसंज्ञकानि तोरणान्यस्रशुद्धानि वर्मावगुण्ठितानि प्रणवेन विन्यस्य हृन्मन्त्रैः स्वनामभिरभ्यर्च्य तच्छाखयोर्मेघमहामेघौ कालनीलौ जलाजलौ अचलभूलितौ प्रणवादिस्वाहान्तैः स्वनामभिः संपूज्य, ततो द्वारेषु कमलवेत इन्द्रप्रायरक्त-कृष्णनीलमेघ - पीतपद्मवर्णाः पताकाश्च दत्त्वा मध्ये श्वेतचित्रे वा ध्वजे सम्पूज्य पाचात्यद्वारेण प्रविशेत् । "
आचार्य भगवंत अहमादिक तपविशेष करी प्रतिष्ठाकारकने चन्द्रवल पहोचतुं होय तेवा अनुकूल शुभमुहूर्त अने शुभलग्ने प्रतिष्ठामंडप बनाववानो कार्यारंभ करवो. तेमां जो प्रतिष्ठाप्य प्रतिमानी ऊंचाई जो १-२ के ३
॥२१८॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२१९॥
EGERESS
हाथनी होय तो तेने योग्य प्रतिष्ठामंडप अनुक्रमे ८-९-१० हाथ लांबो-पहोलो होवो जोइये. ४-५-६-७-८-९ हाथनी प्रतिमा होय तो मंडप बे हाथनी वृद्धिथी एटले अनुक्रमे १२-१४-१६-१८-१९-२०-२२ हाथ लांबो पहोलो होवो जोइये अथवा १ थी ९ हाथ सुधी प्रतिमाने योग्य मंडप १२ हाथथी लइने बे वे हाथ वधारता २८ हाथ सुधीनो मंडप जिनालयनी आगल करवो. (९ हाथथी मोटी प्रतिमा होती नथी.) अने त्यार बाद प्रतिष्ठामंडपनी पूर्व के ईशान दिशामां स्नानमण्डप अधिवासनामंडपनी लंबाई-पहोलाईथी अडधा मापनो करवो. तोरणोनी ऊंचाई मंडपमा स्थापित थनार प्रतिमा जो १-२-३ हाथनी होय अने मंडप तेने अनुरूप बनावेल होय तो तोरगो अनुक्रमे ५-६-७ हाथ ऊंचा होवा जोइये-प्रतिमा जो तेथो मोटा होय तो ७ हाथ उपर ८ अंगुल, १२ अंगुल विशेष ए रोते लेवा. पूर्वादि दिशाना तोरणो वड, उंबर, पारस-पीपल अने पीपलमाथी बनावेला अने शांति-भूति-बल-आरोग्य नामना होय छे. तेमनी ते ते नामयुक्त मंत्रोथी पूजा करी, तेनी बे वे शाखाओ अनुक्रमे मेघ-महामेघ, काल-नील; जल-अजल, अचल-भूलित नामनी राखी नामयुक्तमंत्रोथी पूजी-चारे द्वारो उपर श्वेत, रक्त, नील, पीतवर्णनी ध्वजाओ रची पूजी सन्मुखदरवाजेथी प्रवेश करवो.
आरीते मंडप-वेदिकानुं विशिष्ट वर्णन विविधप्रतिष्ठाकल्पोमां आवे छे, किंतु वर्तमानकाळमां तो स्थाननी अनुकूलता, नूतनबिंबोनी संख्या अने गुरुभगवंत तथा विधिकारकनी सूचनानुसार मंडप-वेदिकानी रचना थाय छे. लंबाईपहोलाई बने विषम (एकी) संख्यामां लेवी. शुभदिवसे तथा शुभसमये बनाक्वानो प्रारंभ करी महोत्सवना प्रारंभमां मंगलमुहूर्ते तेना उपर प्रभुजी पधराववामां आवे छे.
EERDES
२१९॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥ २२० ॥
Jain Education I
परिशिष्ट नं. ४ - विविध २५ मुद्राओनुं स्वरूपः
अंजनशलाका-प्रतिष्ठा, अहार अभिषेक, ध्वजदंड प्रतिष्ठाः परिकरप्रतिष्ठा वासक्षेपमंत्रया वगेरे विधिओमां मुद्राओनो खास उपयोग थाय छे. ते गुरुगमथी योग्य अधिकारीओए जाणवी. तेनुं सामान्य सरूप आ परिशिष्ट नं. ४मां बतावेल छे ।
१ जिनमुद्रा
चत्तारि अंगुलाई पुरओ उणाई जत्थपच्छिमओ । पायाणं उस्सग्गो, एसा पुण होइ जिणमुद्दा ||
चार आंगल (जेटलं अंतर - वे पगना) आगलना भागमाः तेथी ओछा आंगल (जेटलं अंतर) पाछलना भागमां राखी वे पगथी काउसग्ग करो (बने पगे सीधा ऊभा रहें. ) ए रीते जिनमुद्रा थाय छे. ॥ १ ॥
॥२२०॥
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२ परमेष्ठिमुद्रा:
६ गरुडमुद्रा:
४ मुक्ताशुक्तिमुद्रा:
अञ्जन
प्र.कल्प
॥२२१॥
SA
NASAMACHAR
१२ उत्तानहस्तद्वयेन वेणीवन्धं विधायाऽङ्गुष्ठाभ्यां कनिष्ठे, तर्जनीभ्यां मध्यमे संगृह्य अनामिके समीकुर्यादिति परमेष्ठिमुद्रा।।
बे हाथ अबला राखी आंगलीओनो वेणीबंध करी बे अंगुठा वडे बे कनिष्ठाने अने बे तर्जनी वडे बे मध्यमाने जोडी
बे अनामिकाने उभी करवी ते परमेष्ठिमुद्रा ॥२॥ ३ आत्मनोऽभिमुखदक्षिणहस्तकनिष्ठिकया वामकनिष्ठिकां संगृह्य अधः परावर्तितास्ताभ्यां गरुडमुद्रा ।
बे हाथ अबला भेगा करी जमणा हाथनी कनिष्ठा बडे डाबा हाथनी कनिष्ठाने पकडी बाकीनी छ आंगलीओ छूटी
राखी हाथ उँधो करवो ते गरुडमुद्रा ॥३॥ ४ मुत्तासुत्तिमुद्दा जत्य समा दोवि गम्भिया हत्था। ते पुण निलाडदेसे, लग्गा अन्ने अलग्गत्ति ॥ सबला बे हाथ भेगा करी मोतीनी छीप जेवो देखाव करी ललाटमां लगाडवा अथवा नही लगाडवा ते मुक्ताशुक्तिमुद्रा ॥४॥
॥२२॥
-BA
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अञ्जन प्र. कल्प
॥२२२॥
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५ धेनुमुद्रा:
116
६ पद्ममुद्रा:
Jos
७ अंजलिमुद्रा:
५] अन्योन्यथिताङ्गुलीषु कनिष्ठानामिकयो: मध्यमातर्जन्यो व संयोजनेन गोस्तनाकारो धेनुमुद्रा (सुरभिमुद्रा) ।। परस्पर jeet aratमां कनिष्ठा अने अनामिकामां मध्यमा अने तर्जनीने जोडवाथी गायना स्तनना जेवा आकारवाली धेनुमुद्रा ||५||
६ का करी त्या मध्येऽङ्गुष्ठौ कर्णिकाकारौ विन्यसेदिति पद्ममुद्रा ॥
काथनी आंगलीओ राखी वचमां वे अंगुठा भेगा करी कर्णिकाकारे राख्या ते पद्ममुद्रा ||६|| ७ उत्तानी किञ्चिदञ्चितकरशाखी पाणी विधाय धारयेदिति अंजलिमुद्रा ||
लांबा करेला परंतु हानी आंगलीओने कंडक बांकी वालीने वे हाथ राखवा ते अंजलिमुद्रा ||७||
॥२२२॥
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८चक्रमुद्रा:
९ आसनमुद्रा:
१० सौभाग्यमुद्रा:
अञ्जन प्र.कल्प
॥२२३॥
ALS
८ वामहस्ताले दक्षिणहस्तमूलं निवेश्य करशाखां विरलीकृत्य प्रसारयेदिति चक्रमुद्रा॥
डाबा हाथना तलिये जमणा हाथना मूलने मूकी आंगलीओने अलग करी फेलाववी ते चक्रमुद्रा ॥८॥ ९ हस्तेलिकोपरि हस्तेलिका कार्या इति आसनमुद्रा । हथेली उपर हथेली राखवी ते आसनमुद्रा ।।९।। १० परस्पराभिमुखौ ग्रथिताङ्गुलिको करी कृत्वा तर्जनीभ्याम् अनामिके गृहीत्वा मध्यमे प्रसार्य तन्मध्यागुष्टद्वयं निक्षिपे
दिति सौभाग्यमुद्रा॥ सबला बे हाथ भेगा करी आंगलीओ गुंथी तर्जनी वडे अनामिकाने प्रहण करी मध्यमाने पहोली करी तेना मूलमां अंगुठा राखवा ते सौभाग्यमुद्रा ॥१०॥
॥२२३॥
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अञ्जन प्र. कल्प
११ मुदगरमुद्रा:
१२ वज्रमुद्रा:
१३ प्रवचनमुद्रा:
॥२२४॥
-८-
CAT
(COL
११ निर्यकृतवामहस्तोपरि ऊर्थीकृतदक्षिणकर: मुद्गरमुद्रा ॥११॥
तिरछो राखेल डाबाहाथनी हथेली पर जमणो हाथ ऊभी करवो ते मुद्गरमुद्रा। १२ वामहस्तस्योपरि दक्षिणकरं कृत्वा कनिष्ठिकाङ्गुष्ठाभ्यां मणिबन्धं वेष्टयित्वा शेषाङ्गुलीनां विस्फारितप्रसारणेन वज्रमुद्रा
डाबा हाथ ऊपर जमणो हाथ मूकी कनिष्ठा अने अंगुठा वडे मणिबंध वींटी बाकीनी आंगलीओ विस्फारित
करवी ते वज्रमुद्रा ॥१२॥ १३ अङ्गुलीत्रिकं सरलीकृत्य तर्जन्यष्टौ मेलयित्वा हृदयाग्रे धारयेदिति प्रवचनमुद्रा।
बन्ने हाथनी त्रण त्रण आंगलीओ सीधी करी तर्जनी अने अंगुठाने जोडी हृदय आगल धारण कर ते प्रवचनमुद्रा।
||२२
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१४ गणधरमुद्रा:
१५ अंकुशमुद्राः
१६ मीनमुद्राः
अञ्जन प्र. कल्प
ARREARSA
||२२५॥
25AR
N
R MER
१४ यत्र दक्षिणहस्तो हृदयसन्निहितो मालान्वितः, वामभुजश्च तिरश्चीनः-सा गणधरमुद्रा॥ ____ मालाथी युक्त जमणो हाथ हृदय सन्मुख राखी डाबो हाथ तीछौँ (पलांठीमा) राखवो ते गणधरमुद्रा ॥१४॥ १५ दक्षिणहस्तस्य तर्जनी प्रसार्य मध्यमाया इपद्वक्रकरणे अङ्कुशमुद्रा॥
जमणा हाथनी तर्जनी आंगलीने लांबी करी मध्यमाने थोडी आंकडानी जेम वालवी ते अंकुशमुद्रा ॥१५॥ १६ वामहस्तपृष्ठोपरि दक्षिणहस्ततलं निवेश्याङ्गुष्टद्वयचालनेन मीनमुद्रा॥
डावा हाथनी पीठ पर जमणा हाथर्नु तलीयुं स्थापन करी बन्ने अंगुठा फरकाववा ते मीन (मत्स्य) मुद्रा ॥१६॥
॥२२५॥
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अञ्जन प्र. कल्प
१७ कर्ममुद्राः
१८ तर्जनीमुद्राः
१९ असमुद्रा:
।।२२६॥
PROGRACTRESSES
१७ वामहस्वस्थ मध्यमव्यङ्गुल्युपरि दक्षिणहस्तस्य मध्यमव्यङ्गुलीस्थापनेन द्वयोहस्तयोश्चाङ्गुष्ठकनिष्ठिकाथालनीया इति
कूर्ममुद्रा। डाबा धथनी वचली त्रण आंगलीओ पर जमणा हाथनी वचली त्रण आंगलीओ स्थापी बन्ने
हाथनी कनिष्ठिका अने अंगुठाने फरकाययो-ते कर्ममुद्रा ॥१७॥ . १८ वामकरः संहताङ्गुलिहृदयाग्रे निवेश्योपरि दक्षिणकरेण मुष्टिं बद्धवा तर्जनीमु/कुर्यादिति-तर्जनीमुद्रा ।। ___ संकोचेली आंगलीओवाला डाया हाथने हृदयनी आगल धारण करी तेना उपर जमणा हाथनी मूठी वाली तर्जनी
आंगली सामे राखी बतावी ते तर्जनीमुद्रा॥१८॥ १९ दक्षिणमुष्टिं बवा तर्जनीमध्यमे प्रसारयेदिति असमुद्रा॥
जमणा हाधनी मूठी वाली तर्जनी अने मध्यमाने लांबी करवी ते असमुद्रा॥१९॥
तावकी तथा हायने हृदयकरण मुष्टिं बद्धता
॥२२६॥
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...
.
अञ्जन
18 २० पर्वतमुद्रा:प्र.कल्प
बन्ने हाथनी अनामिका अने मध्यमा परस्पर विपरीतमुखी करी ऊंची करीने जोडवी अने बाकीनी आंगलीओने
नीचेनी बाजुए राखवी ते पर्वतमुद्रा ॥२०॥ PI २१ आह्वानमुद्रा:६ वे हाथ वडे अंजलि करीने अनामिकाना मूलना पर्व साथे अंगुठाने जोडयो ते आह्वानमुद्रा ॥२१॥ २२ स्थापनमुद्रा:
आह्वानमुद्राने नीचा मुखवाली करतां स्थापनमुद्रा बने छे ॥२२॥ का २३ सन्निधापनमुद्रा :
| वने हाधनी मूठी वाली भेगी करी अंगुठाने उंचा करवा ते सन्निधापनमुद्रा ॥२३॥ त २४ सन्निरोधनमुद्राः४. बने हाथनी मूठी वाली अंगुठाने अंदर राखयो ते सन्निरोधनमुद्रा ॥२४॥ २५ अवगुण्ठनमुद्रा:
वंने हाथनी मूठी वाली फेलावेली तर्जनी अने मध्यमाना उपर अंगुठा मूकवा ते अवगुण्ठनमुद्रा ॥२५॥ ॥२२७॥
॥ इति २५ मुद्राओनुं स्वरूप ॥ परिशिष्ट नं. ४ ॥
ARKARKARGAOGRABA
||२२७॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२२८||
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पाटला नंग ५
कळश नंग ४ दूध तथा दहीं
केशरनी वाडकी
गळं
खाली वाडकी
दोरी लोटो
बेडीयां नंग ४
घंटडी चामर
अंग लूणां २ दर्पण धूपधा छुटां फूल तथा हार
हाथ फानस
परिशिष्ट नं. ५
जळ यात्राना सामाननी यादी
धूप अधोळ
अगरबत्ती चोखा शेर एक
घी शेर एक पेंडा नंग १३
बरफी नंग १३ खाजु १
लाइ नंग १५
संतरां नंग ११
दाडम नंग ११
केळां नंग १५ श्रीफळ नंग १२ लूण ने माटी
लीला का नंग ४ गजीयाणीना पाणीनो देगडो
कपूर
पाट लूणां नंग २
आरती मंगलदीat वासक्षेप
वरख
पंच रत्ननी पो. नं. ४ सोपारी नंग ६०
पान नंग ७० पतासां नंग ५० बाकळा शेर ३
पाटला पूजनना ३
बाजठ ३ साकर
नाडानो दडो ऋण तारनो
सिंहासन
प्रतिमाजी
रकाबी ४
छुटा पैसा ६४
परचुरण रु. त्रणनुं
रु. २१ रोकडा थाळी वेलण अत्तरनी शीशी दिवासळीनी पेटी
॥२२८
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२२९॥
૫૮
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परिशिष्ट नं. ६ कुंभस्थापनादि अंजनशलाकानी विधिओनी सामग्रीनुं लिष्ट :- (पाना नं. १८ नी टिप्पण)
कुंभस्थापनना सामाननी यादी
कुंभ रातो
मुखड घसेली
केशर घसेलुं
सोपारी नंग ५० पान नंग १५
लीली धरो
फुलनी माळा तथा छूटा फूल कंकु वाटकी
पट
कळश १०८नाळचानो
श्रीफल नंग २
डांगर शेर ३
डांगरना छाला शेर ३
पतासां
पैसा ६०
पान
छाणानो भूको मण ० ॥ माटीनो भूको मण ० ॥ नाडानी दडो ऋण तारनो
वांसना जवार नंग ४
तांबा कोडियं नंग १ फानस नंग २. १ मोडुं १ नानुं वाढी नंग १
गायनुं घी शेर ५ वासक्षेप
सरावळा नंग ४
नंद्यावर्तपूजनना सामाननी यादी
सोपारी
बदाम
नैवेद्य
वासक्षेप
श्रीफल
केसर
घी
पंच रत्ननी पोटली ३ रोकडा रुपया १३ छुटा पैसा ७० मढळ मरासींग ५ to साथ बांधेला
तास्तु लीलं गज ० ॥ खाली वाडकी नंग ५
दूध
वरघडा नंग ४
॥२२९॥
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अञ्जन प्र. कल्प
चोखा शेर ५। रुपिया २१ सोपारी
PROCROREOGR
खीर
॥२३०॥
PUNEARCARRRRECTOR
रतांजली
अंबर
बे लीळा ककडा पुरी नंग ७
बांट बे पीला ककडा
कंसार चुरमाना लाडु ७ करंबो
भात नवग्रह - दशदिक्पाल-अष्टमंगलपूजनना सामाननी यादी मरचकंकोल
मोगरो मरवो वस्त्र लीलां ३ गोळ धाणी लाडु नंग ५ जायसेवंती
वस्त्र सफेद १४ ममराना लाडु नंग ५ वासक्षेप राती करण पंच पटो
मगनी दाळना लाडु नंग ५ कंकु
पीळी करण वस्त्र वादळी चणानी दालना लाडु नंग ५ गायनुं दूध जुइ, गुलाब पीळी साडी कळीना लाडु नंग सोनाना वरख मचकुंद
सफेद साडी खाजां ३, घेबर ३ चंपाना फूल वस्त्र पीळा २ धूप शेर ०॥ अडदनी दाळना लाडु नंग३] जासूद
वस्त्र रातां ३ हाथ फानस २ काळा तलना लाडु नंग ५ डमरो वस्त्र काळां ३ वाकळा शेर ३ पेंडा ७
केशर
बरास कस्तूरी गोरुचंदन चुवो
A MRORNO
अगर
हिंगळोक
॥२३०॥
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anal
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२३१॥
पान ५०
सोपारीना ककडा
खारेकना ककडा
कोपराना ककडा
साकर
सोपारी ६० बदाम ४०
अखरोट ३५
आलु ३५
अंजीर ३५
कमर काकडी
केळां १०
जायफळ ३५
पतासां ३५
दहीं गायनुं शेर
साकरना ककड़ा नंग १०
चोखा शेर ३
केशर, बरास
शेरडीना ककडा राती सोपारी १५
काळी सोपारी ५
नारंगी ५
सीताफळ ५
बीजोरा ३
जामफळ ५
श्रीफळ ७
दाडम ५, रु.२७
कमरक, पैसा ६०
जायंत्री दोह
धूप, लीलां फळ
श्रीफळ नंग २
कपूरनी गोटीओ
पेंडा नंग ५
रुपियाभार
तज दोढ रुपियाभार
लविंग १ आनी
स्नाना सामाननी यादी
घंटडी
लूण माटी आरती, मंगळदीवो
थाळी, वेलण
चामर, दर्पण
वरख, अत्तर
कळश नंग ४ पंखा नंग २
एलची १ रुपियाभार पीस्तां चारोळी चोखा शेर ३ पाटला नंग २०
रकावी २०
वाडकी २०
रु. ३ रोकडा
छुटा पैसा ४०
नाई
खाली, वाडकी
॥२३१॥
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________________
अञ्जन
प्र. कल्प
॥२३२॥
Jain Education
नाळीएर गोटा नंग १०
पान नंग १०
फळ नंग १०
नैवेद्य नंग १०
नाळीएरना गोटा नंग २१
पान नंग २१
फल नंग २१
नैवेद्य नंग २१
सिद्धचक्रपूजनना सामाननी यादी.
चोखा शेर २ || वासक्षेप
रुपिया २५ पैसा ६४
वीशस्थानक पूजनना सामाननी यादी
छुटां फुल
केसर
छुटां फुल
केशर, वरास
धूप, वरख
दूध शेर १।
वरास
धूप
चरख
दूध
चोखा शेर २ || वासक्षेप
शेर २॥
सिद्धचक्रजीना मांडला माटे चोखा वि० धान्य
तथा रंगो.
रुपिया ३५ पैसा ६४ वोशस्थानकना मांडला
माटे चोखा तथा रंगो
च्यवनकल्याणकना सामाननी यादी
पाणी भरवानो नको नंग १, दूध मग ०॥ वासक्षेप, इन्द्र इन्द्राणी माटे मुगट तथा आभरण, गुरुपूजा माटे वस्त्र (काम), धर्माचार्य माटे पूजननी जोड (रेशमी), चौद स्वप्न.
॥२३२॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२३३॥
૫૯
चामर ८
दर्पण ८
पंखा ८
कळश ८
झारी ८
पुंजणी ८
फानस ८
शण
स्लेट पेन खडीया
घसेली सुखड मोटो वाडको
जन्मकल्याणकना सामाननी यादी
फुलना हार १००
वेणी
१०० १००
कळथी
राई
जय
सरसव
कांग
अडद
वृषभ कळश २
दूध मण १
कागळ
हॉल्डर
गजरा
केळां घर ३
बाजोठ
सुखडनां लाकडां
अरणी लाकडे केसर
लेखशाळाना सामाननी यावी
फाउन्टन पेम नोटबुक
मरडासींग बांधेलां मींढळ
विवाहना सामाननी यादी
मेवो
धूप, रु.५१
बरास, पैसा १०८
सुग्वडनुं तेल
अंगलुछणां
रक्षा पोटली
रूपाना चोखा अरीठानी माळा जवनी माळा
पुस्तको विगेरे गोळ धाणा, रु. २१
चोरी मंडप
॥२३३॥
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अञ्जन प्र. कल्प
केसर
चोखंडो दीवडो लालकपडं (कमुंशो)
वासक्षेप
॥२३४॥
भेट रु. ५१
25AHARSHASHASTRASAR
फुल.
नवग्रहनु नैवेद्य
जवारासहित वरघडा " नां फळ पोखणां, रु. ५१
बरास श्रीफळ
बाजोठ, पैसा ५१
राज्याभिषेकना सामाननी यादी छडी चामर
छत्र तिलक करनार कुमारिका
दीक्षाकल्याणकना सामाननी यादी रेशमी वस्त्र सुखड
केसर जलनो कलश
केवल तथा मोक्षकल्याणकना सामाननी यादी पर, रु. ५१ दहींनुं पात्र सोनानी वाडकी ) अञ्जन माटे धूप, सोनामहोर दूध
सोनानी सळी । मुखड
नवांगी सुवर्ण पूजन सुरमो वासक्षेप
बली बाकुला, नैवेद्य वरास
चोखा शेर ११॥ कस्तूरी घीनु पात्र
(गाथा भणी उछाळवा) मोती
घी
प्रवाल मध (साकरनी चासणी) ३६० करियाणानो पडो पोखणां
| ॥२३४॥
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anal
R
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२३५||
प्रतिष्ठाने लगता सामाननी यादी न्हवणयोग्य नाना कळश ८ अर्ध्ययोग्य सोनानी रकाबी १ मीढळ पाणी राखवाना घडा ९ सोनानां कंकण
मरडासींग सोनानी वीटी
जवनी माळा नंद्यावतयोग्य वरघडा ४ रूपानी वाटकी
अरीठानी माळा पोखणाने लगता घडा ४ सोना- कचोर्छ
[ धोळा सरसव शरावलां ३२ सोनानी सळी
| लोखंड अछेदित सातधान्यना वलययोग्य कुंडा ८ राता रंगनो सुरमो, साकर, बरास, रक्षा पोटली नंद्यावर्तयोग्य सेवनना पाटला २ कस्तूरी, मोती, मुंगीयो, चूनी, सोनु, दहीं दशीवाळा वख कोरा अखंड ४ रू' अने घी मेळवी अञ्जन बनावg. अक्षत [[ नंद्यावर्त्तयोग्य, २ विवप्रतिष्ठायोग्य, प्रियंगु, कपूर, गोरुचंद-हथेलीमा मूकवां घी
३ गुरुयोग्य, ४ नंद्यावर्त लेखकन] पंचरत्ननी पोटलीओ-बिंबनी आंग- डाभ | कळश सोनानो १ लीए बांधवा-बिंब होय तेटली. अर्ध्य राखवार्नु , रूपाना
आरीसो १
वासण थाळ सोनानो माइसाडी-कुसुंबी वस्त्र १
नाडाछडी
ए दरेक वस्तु दरेक जिनबिम्ब माटे जुदी जुदी जोइए
एटले जेटला जिनबिम्ब # तेटली वस्तुओ लेवी.
MARCARRORS
पुंखणां:-त्राक
धोंसहं
मुसल
रवैयो
तीर इंडापीडी शरावसंपुट
४॥२३५॥
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अञ्जन प्र.कल्प
सुंबाळी
A
॥२३६।।
मांडा
खीर
पोखनार स्त्री तथा मोड समुद्रफीण
चामर ८ धोळो वासक्षेप दशांग धूप शेर ०॥ कुभा नदी सरोवर) आरीसा ८ पीळो ,
लाडु गंगानुं पाणी, दरेक जातनां फुल वाव वि. १०८ कींझणा ८ केसर, कपूर, कस्तूरी समूल डाभ, अखंड चोखाना थाळ २ जलाशयोनां पाणी कळश ८ लगाडेलां चोरीनां | गंगानी रेती, घंट २ ३६०करीयाणानो पडो१ दीवी ४ वासण ३२
लापसी |, माटी, छत्र३ लोटा २
वाणित्र सुखड घसेली जाडी |पहेलो बलि--लाडु मगना ५, लाडु तलना ५, लाडु चणाना ५, लाडु थुलीना ५, लाडु गोलधाणीना ५ (एम लाडु २५),
कूर, दही, करंबो, पुरी, पुडला, खीर, वडा, लाडवा. बीजा बलिदान माटे-शणनां बीज, कळथी, मसुर, जब, कांग, अडद, सरसव. | बीजा बलि माटे सातधान-शाली, जव, घउं, मग, वाल, चणा, चोळा. | त्रीजा बलि माटे फळ-नाळीएर, सोपारी, खारेक, द्राक्ष, बदाम, अखरोट, पिस्तां, साकर,
फलोरी, दाडम, जामफल, बीजोरां, केरी, केळां, रायण, नारंगी.
ए रीते त्रण प्रकारना बली बाकुला प्रतिष्ठा वखते राखवा. टोपरां सर्वजातनी मुखडी
घीनो वाटको दहींनो वाटको दूधनो बाटको
॥२३६॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥२३७||
अंदर श्रीफळ नाखेलो शेर ५नो लाडु धूप माटे अगर, अगरबत्ती
मोटा ध्वज २ सोनानां फुल १०८, रूपानां फुल १०८ नानी ध्वजा २४
पंचवर्णी इन्द्रध्वज १ परिशिष्ट नं. ७ -: अढार अभिषेकमा आवती खासखास ओषधिोनी यादी :-(पाना नं. ९४ नी टिप्पण)
३) कषायचूर्णः-(१) पीपर, २ पीपली; ३ शिरीष ४ उंबर; ५ वड; ६ चंपक; ७ अशोक; ८ आम्र; ९ जंबु, | १० बकुल, ११ अर्जुन, १२ पाटल, १३ बीली, १४ दाडम, १५ केवडा, १६ नारिंग..
(४) मंगलमृत्तिकाः-१ हाथीना दांतनी, २ बळदना शिंगडानी, ३ पर्वतनी, ४ उदेहीनी, ५ नदीना कांठानी, ६ नदीओना संगमनी, ७ सरोवरनी, ८ तीर्थनी.
(५) सदौषधिः-१ सहदेवी, २ सतावरी, ३ कुंआर, ४ बालो, ५ मोटी नानी रिंगणी, ६ मोरशिखा, ७ अंकोल, | ८ शंखावली, ९ लक्ष्मणा, १० आजोकाजो, ११ थोर, १२ तुलसी, १३ मरवो, १४ कुंभी, १५ गली, १६ सरपंखो, १७ राजहंसी, १८ पीठवणी, १९ शालवणी, २० गंधनोली, २१ महानीली.
(६) अष्टवर्ग १ लोः-१ उपगोर, २ प न, ३ लोई, ४ होरपणीनां मूल, ५ देादार, ६ जेठीमध, ७ दुर्वा, ८ ऋद्धिवृद्धि
(७) अष्टवर्ग २ जोः-१ पतंजारी, २ विदारिकंद, ३ कचूरो, ४ कपूरकाचली, ५ नखला, ७६ ककोडी, ७ खीरकंद, ८ मुसली-काळी (धोळी).
॥२३७॥
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c hal
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२३८॥
MORRECORRESCRECRR
(८) सौषधिः-१ प्रियंगु, २ हलदर, ३ वज्र, ४ सूचा, ५ बालो, ६ मोथ, ७ अतिकली, ८ मुरमांसी, ९ जटमांसी, १० उपलोट, ११ एलची, १२ लवंग, १३ तन, १४ तमालपत्र, १५ नागकेसर, १६ जायफल, १७ जावंत्री, १८ कंकोल, १९ सेलारस, २० चंदन, २१ अगर, २२ पत्रज, २३ छड, २४ निखला, २५ घडेला, २६ कचुरो, २७ विरहाली, २८ छडोली, २९ मरचकंकोल, ३० वरधारो, ३१ आसंधि, ३२ वडीऔषधि, ३३ सहस्रमूली.
(१०) सुगंधौषधिः-१ अम्बर, २ बालो, ३ उपलोट, ४ कष्ट, ५ देवदारू, ६ मुरमांसी, ७ वास, ८ चन्दन, | ९ अगर, १० कस्तूरी, ११ कपूर, १२ एलची, १३ लाङ्ग, १४ जायफल, १५ जावंत्री, १६ गोरोचन, १७ केसर.
परिशिष्ट नं. ८ -३६० करीयाणानी यादी - (पाना नं. १३७ नी टिप्पण) मदनादिगणःमहानिम्ब कुटज
कोशातकी मदनफल
विम्बी इन्द्रयव निचुल
राजकोशातकी मधुयप्टी इन्द्रवारुणी
चित्रक
करञ्ज स्थ लेन्द्रवारुणी देवदाली दन्ती
चिरबिल्ल निम्ब
कर्कटी विडङ्गफल
पिप्पली
वेतस
मूळ
तुम्बी
OR
उन्दरकर्णी
||२३८॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२३९॥
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पिप्पलीमूल सैन्धव
सौवर्चल
कृष्णसौवर्चल
विडलवण
पाक्यलवण
समुद्रलवण
यवक्षार
रोमक स्वर्जिका
वचा
एला
क्षुद्रेला
बृहदेल
त्रुटि महात्रुटि
सर्पप
आसुरी
कृष्ण सप कुम्भादिगण:
त्रिवीज
मालविनी
त्रिफला
स्नुही
शङ्खपुष्पी
नीलिनी
रोध
बृहद्रोध
कृतमाल कम्पिल्लक
स्वर्णक्षी
कुष्ठादिगण:
कुष्ठ
बिल्व
काश्मरी
अरणी
अरणिका
पाटला
कुबेराक्षी
सेनाक
कण्टकारिका
क्षुद्रकण्टकारिका
शालीपर्णी अपामर्ग त्रिकटु
पृश्निपर्णी
गोक्षारु
नागकेशर
देवदारु
रास्ना
यत्र
शतपुष्पी
कुलत्थ
माक्षिक
पौक्षिक
क्षौद्र
सित्थुक
शर्करा
त्वक्
पत्र
हरिद्रा
राल
दारुहरिद्रा
श्रीखण्ड
शोभाञ्जन
रक्तशोभाञ्जन
मधुशोभाञ्जन
मधूक
वेल्लादिगण:- रसाञ्जन
॥२३९॥
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अञ्जन प्र. कल्प
हिगुपत्री भद्रदादिगणः
पुनर्नवा श्वेतपुनर्नवा नागबला गांगेरुकी
पद्मकादिगण:पद्मक पुण्डरीक
॥२४॥
तगर
श्वेतगुञ्जा
वृद्धि
बला अतिबला दूर्वादिगणः
सहदेवी
तुकाक्षीरी सिद्धि कर्कटाशृङ्गी
दूर्वा
शतावरी क्षीरकाकोली गुञ्जा
महामेद प्रियङ्गु मुद्गपर्णी पद्म
माषपर्णी
ऋपभक नीलोत्पल जीवक सौगन्धिक मधुयष्टो कुमुद
विदार्यादिगणःशालूक
विदारी वितुम्नक
क्षीरविदारी जीवन्त्यादिगण:- एरण्ड जीवन्ती रक्तैरण्ड
वृश्चिकाली
SARESSNORESCRESSURESS
गुडूची
श्वेतदूर्वा गण्डदुर्वा जवासक दुरालभा वासा कपिकच्छू क्षुद्रा
कृष्णसारिका हंसपदी दाादिगण:उशीर लामञ्जक चन्दन रक्तचन्दन कालेयक परूपक
परूषादिगण:द्राक्षा कटुफल कतक राजादन दाडिम
काकोली
॥२४॥
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नल
अञ्जन प्र.कल्प
शितबार
॥२४१॥
अगर
मर्क
शाक अंजनादिगण:
अञ्जन सौवीर मांसी
गन्धमांसी पटोल्यादिगण:
कडका
पाठा गच्यादिगण:
धान्यक आरग्वधादिगण:
किराततिक्त शैलेय सहचर सप्तपर्ण कारवेल्ली बदरी अशनादिगण:-- बीजक तिनस भूज अर्जुन खदिर कदर मेषशृंगी
धव
रूषकादिगणःसिसिपा रूपक ताल
तुत्थ
हिंगु पलाश
कासीस शाल
पुष्पकासीस क्रमुक शिलाजतु অলঙ্কণ वेल्लंतरादिगण:-- अश्वकर्ण वेल्लंतर वरुणादिगण:- बृकस्थल वरुण
पाषाणभेद मोराट इक्कटा अजशृङ्गी कास अरुष्कर
पिप्पली सुवर्चला इन्दीवर रोधादिगण:-- जिगिणी सरल
कदली अशोक
काकमाची
एलवालुक सल्लकी
ग्रन्थिल
इक्षु
॥२४॥
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अञ्जन
अर्कादिगण:--
प्र.कल्प
आम्र पियाल
महवक अजकर्णी
॥२४२॥
अलर्क
तिंदुक
क्षुवक
विशल्या भारंगी ज्योतिष्मती
अजमो
कटभी
कपित्थपत्री नदीकान्त काकमाची
आवसु केशमुष्टि
अतिविषा मुस्तादिगण:-- जीरक अंबष्ठा उपकुंचिका
नंदी कृष्णजीरक कच्छुरा
अंबष्ठादिगण अजमोद
भल्लातक चव्य
न्यग्रोधादिगण:प्रियंग्वादिगणः- वट पुष्करपत्री पिप्पल मञ्जिष्ठा उदुम्बर शाल्मकि मोचरस राजजम्बू मुनन्दा
काकजम्बू धातकी कपीतन
एलादिगण:-- तुरष्क वालक नेत्रवालक अधःपुष्पी क्षेमक त्वचा तमालपत्र
श्वेतकटभी
इंगुदी सुरसादिगणः--
सुरसा श्वेतसुरसा फणिञ्जक कृष्णकुबेर
GEOGRESERECORRECRA
जम्बू
निर्गुण्डी मुष्ककादिगण:
थोयेयक
मुष्कक
वत्सकादिगण:--
नख श्रीवेष्ट
||॥२४२॥
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अन्नन प्र.कल्प
कुंकुम
मिश्रेया गंडरीक काकसी वरुणा
गुग्गुल
॥२४३॥
हपुषा काकनाशा काकजंघा पपटक विषचारी राजहंस पुष्करमूल अश्मन्तक कोविदार रोहितक वंश
श्यामादिगण:
सातला वृषगंधा पीलु त्रायमाण खटी सोमराजी श्रावणी महाश्रावणी
फल्गु श्लेष्मातक तितिडीक अम्लवेतस कपित्थ केशाम्र नालिकेर सचलिंद खजूर
पालेवत मदनफल आरुक वीर कुरंटक अक्षोट चांगीरी अम्लिका करीर काकंडी वास्तुक कुमुंभ लाक्षा लांगली
मूलक तंदुलीयक द्रोणपुष्पी
तामलकी
ब्राह्मी
RECARREARRECAPANES
बीजपूर
वेणु
नारिंग जंभीर नींबुक आम्रातक
ब्रह्मजीरी अरिष्ट पुत्रजीव सहदेवी कूष्मांडक
शमी
मंडूकपत्री
अंकोल्ल कौंडिय
॥२४३॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२४४॥
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महाबी
चिर्भटी
कटुचिर्भी
शुनिर्ण
अहिमार
विष्णुक्रान्ता
क्षीरिणी
सर्पाक्षी
नकुली
गृद्धनखी
अहिंस्री
कर्दमपुष्पी
करवीर
रक्तकरवीर
धत्तूरक
यवानी
शतपुष्पा
लशुन
पांडु
वाराही
मांसरोहिणी
कुलत्थका
जतुका
पुष्पांजन
वृद्धदारु
बालमुट
बंध्याकर्कोटकी
त्रिपत्रिका
शंखपुष्पी
अश्वखुर
बंधन
पिंडीतक
स्वर्णक्षीरी
सिंदुवार
अश्वगंधा
मदयंती
भृंगराज
शिरीप
अगस्ति
नली
मन्दारक
हिंताली
मोहिनी
गोधापदी
महाश्यामा
देवगंधा
विटिका
दुर्गा
आघाटक
स्वर्णपुष्पी
लक्ष्मणा
वज्रशूल
पलंकषा
दधिपुष्पी
क्रूर्कुटपाद
गोजिहा
तुनहिका कस्तूरी
कपूर
जातिपत्री
जातिफल
ककोलक
लवंग
नटी
दमनक
मुरा
कर्चूर
तुंबरू
मालती
मल्लिका
॥२४४॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२४५॥
ર
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यूथिका वर्णका
वासंती
चंपक
बकुल
तिलक
कंद
अट्टहास
अतसी
कोरंटक
अतिमुक्तक
कुमारी तरणी
गैरिक
सुबंधा
हरिताल
हिंगुल
मनःशिला
गंधक
खटिका
पारद
सौराष्ट्री
गोरोचन
तुवरी
विटमाक्षिक
अभ्रक
वाताम
परिशिष्ट - नं. ९
पंडित श्रीरंगविजयजी विरचितं श्रीप्रतिष्ठाकल्पस्तवनम् ॥
सं. १८७९मां चामे सवाईचंद खुशालचंदे श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवंतना प्रतिमाजीनी अंजनशलाका करावी ते प्रसंगे दसे दिवसनी विधि प्रतिदिन जे रीते थई तेनुं विवरण करतुं १९ ढानुं पंडित श्री रंगविजयजी विरचित श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ पंचककल्याणकगर्भित 'प्रतिष्ठा कल्प 'तुं प्राचीन हस्तप्रतमांथी मळेलुं स्तवन आपेल छे.
दांति कारवेल
कौशी
मुंडी
महामुंडी
पुपुनाड
बोल
रोध
शृंगाटक
सिंधुर
शंखप्रस्तरी
कांपिल्ल
हंसपदी
करमंद
छुनीरा
घुनीरा
सेसकी
चोभ
॥२४५॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥२४६॥
श्रीमदयादवसैन(नि) कस्य नितरां दुःखानि हर्ने क्षमो,
मह्यां त्वत्सहसं (शः) प्रभुन च मम (मया) दृष्टो न चा (वा) मे श्रुतः। | ए (ई) द्रत्वं फणिनं चकार सहसोद्-धृत्वा कृशानो-र्भयात् ,
श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथ भगवन् ! रङ्गेण तुभ्यं नमः ॥१॥ (शार्दल ) प्रणम्य भक्त्या गुरुपादपदम, प्रपन्नसच्छिष्यविवोधकत्वम् ।
जनप्रबोधाय हि लोकवाग्भि-जैनप्रतिष्ठाविधिमातनोमि ॥२॥ (उपजाति)
स्वस्ति श्रीदायक विभु जगनायक जिनचंद । मोहतिमिरने चूरवा प्रगट्यो परमदिनेद ॥१॥ श्रीशंखेसर पासना प्रणमी पद-अरविंद । जैन प्रतिष्ठाविधितणुं तवन करूं मुखकंद ॥२॥ ए सम वीजें को नहीं जैन मांहे मंडाण । जिम सवि पदगज-चरणमें तिम ए मुख्य प्रमाण ॥३॥ संप्रति शासनमां हुआ संप्रति-कुमर नरेंद्र । जिन विहार-जिनश्विनां कीधा कृत्य अमंद ॥४॥ भरुअचमा उक्केस लघु लालासा महवंत । तास तनय प्रेमचंद बलि मुलचंद मतिवंत ॥५॥ प्रेमचंदना दो तनुज खुमालचंद-देवचंद । मुलचंदने गुणनिलय अंगज ताराचंद ॥६॥ खुसालचंदने कुलतिलय पुत्र सवाइचंद । एक दिन गुरुमुखथी सुण्या शंखेश्वर-गुणवृंद ॥७॥
॥२४६॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥२४७॥
पिता-पुत्र उद्यम करी, खरची द्रव्य उदार । मूर्ति शंखेश्वरपार्श्वनी, प्रगट करी मनोहार ॥ ८॥ तास प्रतिष्ठाकारणें, सामग्री सहु जोड । विधिपूर्वक ओच्छव करें, दस दिन मननें कोडि ॥ ९॥
ढाल १
चतुर सनेही मोहना ए देशी जैन प्रतिष्ठामा हवे, शुभलगने शुभ योगे रे, भूमीशोधन पेहेलुं करी, सदगुरुने संयोगे रे
इम वेदी-रचना करो १ गंगोदक जलें शुची की, शुद्ध छटा देवरावो रे, फुलवृष्टि स्वस्तिक करी, धूप प्रदीप करावो रे २ पूरव-सनमुख वेदिका, रचि पूरी विविध प्रकारे रे, डोढ हाथ उन्नतपणे, समचतुरंस विचारो रे ३ ते मध्ये श्रीफल ठवो, स्वस्तिक-पंचने विरची रे, पंचरत्न-ग्रंथी ठवी, धूप दशांगे चरची रे ४ बार अंगुल, ग्रंथी नही, एहवा वंस अणायो रे, चउ विदिसे चउ वंसथी, शुभ मंडपने बनायो रे ५ तोरण चिहुं दिशे बांधीने, जुधारा बवरावो रे, वंस-पात्रं सात सातनें उसे इम बाबो रे ६ देवच्छंदो युगते रच्यु, समवसरणन मंडाण रे, उससितभावे जिम रचे, चोखठ सुर-महीराण रे ७ शुभसमये वेदी विचें, विंच नवा पधरावो रे, सोहर स्त्री टोले मली, पीठ थापन विधि गावो रे ८
SUOCASSO GROOVESCRIERES
१ रुघवा
॥२४७॥
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tonal
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२४८॥
SABOROSSASSUOSTAS
ए दिनथी दस दिन लगे, अमारपडह वजडावो रे, हरखें सांझी प्रभातियां, आदर देइ गवरावो रे ९ मोटा मंडप मांडीने, चंद्रोदय बंधावो रे, पंचशब्द वाजींत्र स्युं, दुंदुभिनाद बजावो रे १० खुसालसाये निज पुत्रने, सवाइचंदने अनुमती दीधी रे, अतिहरषे तेणे रंग स्युं, करी करणी ए सुप्रसिधी रे ११
(ढाल २)
( भरतनृप भावसु ए-ए देशी ॥ ) हवे जलयात्रा कारणे ए मेली संघ समाज तो जलजात्रा भणी ए
हय गय रथ पालखी ए हेम रजत रचि साज तो, जल० १ सुरज पांन (?) वदें घणांए रवितेजे झलकत तो,
लघुपताकः-किंकणी-वें ए इंद्रध्वज लहकत तो भेरी भुंगल सरणाइयो ए बाजे विविध संगीत तो,
सोहर टोले मली भली ए गाये मंगल गीत तो इम मोटे आडंबरे ए घुरे धुहिर निसांन तो,
पवित्र जलाशय पुर बहि ए आवी करीये सनान तो ..
SARANASANCHAR
॥२४८॥
१ गंभीर
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,,
अञ्जन प्र.कल्प
॥२४९॥
, , ,
-SUOSITORIO AfterSESS
पंचतीर्थ तरुतले ठवी ए, विधियुत करीये सनात्त तो,
पूजीये बलि नैवेद्यथी ए, ग्रह दिगपाल संघात तो देववंदन विधि साचवी ए, कुंभ ग्रही शुभ च्यार तो,
___ कंठ (लगे) जइ कूपमा ए, श्रीफल श्रीसुखनार तो अंकुश, कूर्म ने मत्स्यनी ए, मुद्रा त्रण्य करेय तो,
वस्त्रपूत जलने करी ए, पूरण कुंभ भरेय तो कूप-कंठे नैवेद्य ठवो र, पूरी मौदिक खास तो,
जल देवी सुप्रसन्न करी ए, मंत्र विसजि तेह तो सिणगारे करी सोमती ए, सधवा मली चउ नार तो,
सजल कलस शिर पर ठवी ए, आवे प्रभु-दरवार तो त्रण प्रदक्षणा देइ ठवे ए, बिबने जमणे पास तो,
धवल मंगल दिये सुंदरी ए, निज मन अधिक उल्लास तो जलयात्रा करी रंगखें ए, सवाइचंद हरखंत तो,
खुसालसाहने वीनती ए, कुंभथापननी करंत तो
HALEGRAHARACTER
,,
,
॥२४९॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥२५॥
(ढाल ३॥)
(वीण म चासो रे-ए देशी॥) इणविध कीजे रे ठवणा पूर्ण कलसनी, जिम क्रिया सीझे रे निरविधने दिन दसनी.... नि छन घट राते वणे पृथु सुघाटे लीजे, तेहनी उपर आठे मंगल फरतां चित्र लिखीजें इण. १ तेहनी कंठे डाभ समूलो ऋद्धि वृद्धि संघाथें, गेवासूत्रे बांधे ( हेते ) विधिकार विधि साथें इण० २ मंत्र सहित स्वस्तिक कुंकुमनो तेहनी मध्ये कीजे, पंचरतन पुंगी वली रूपक समचतुरंस ठवीजे इण० ३ अट्ठोत्तर शत-कूपक जलस्यु मोहोत्सवनुं जल भेलो, वर्द्धमान सूरीसर भाषे तीरथ जल बहु मेलों इण. ४ ते जल लेइ सोहव सुतवंती नवपद मंत्र संभारे, थिर-सासे कुंभक करी जलने पूरे अक्षयधारे इण. ५ पीतांशुक बहुमूलं ढांकी फुलमाल पेहेराई, तेहनी ऊपर श्रीफल थापो मंगलगीत गवाई इण० ६ मुंदर साल (लि)नो साथियो पुरी, थापो घट शुभ दिवसे, च्यार सराव जुवारा केरा, ठवो स्वस्तिक चिहुं विदिसे इण०७ जिनपडिमाने जमणे पासे दीपकयुत घट धरीये, कुंभचक्र नक्षत्र मले जो, तो सवि अशुभने वारे इण० ८ स्नात्र अट्ठोत्तरी, बिंव प्रवेशे, विवप्रतिष्ठा होवे. ए करणीमां मंगलरूपी, कुंभथापन धुरे जोवे इण. ९ दीप अखंड ने धूपत्रिकाले, साते समरण गणीये, हिंसक जीव ने खी ऋतुवंती, तस दृष्टी अवगुणीये इण० १० मल्लि-वीर-नेमीसर-राजुल, तास तवन नवि भणीये, उपसर्गादिक भावना टाली, मंगल गीतने थुणीय इण० ११
॥२५०॥
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अञ्जन प्र.कल्प
PEGENERGRE5%2ॐॐॐ
नरनारीने उलसत भावे तंबोलादिक दीजे, ते दिनथी मांडीने निस दिन, लघुसनात नित कीजे इण १२ खसालचंदे हरखे कीधी, पेहेले दिन ए करणी करीये, विधियोगे जिम वरीये, रंगे जिम सिवघरणी इण० १३
(ढाल ४॥)
(आदि जिनेसर विनति हमारी-ए देशी ॥) नंदावर्तनी बीजे दिवसे किरिया कीजे उदार रे, सोवनपट्टे याकर्दमना सात लेप करी सार रे नंदावर्त नमो नित भावे १ मध्यभाग समसूत्रे करीने आठ वलय तस कीजे रे, कपरादिक अष्टगंधस्यं हेमसिलाके लिखीजे रे २ धुर वृत्ते नंदावर्त लिखिये मध्ये बिंब ठवीजे रे, दक्षिण सोहम, उत्तर भागे इशान इंद्र ठवीजे रे ३ बीजे वलये आठ दिशाये अरिहंत सिद्ध सूरीश रे, पाठक मुनिवर ज्ञान ने दर्शन चरण ए आठ नमीश रे ४ त्रीजे वलये चोवीस कोठे जिनमाताने धारी रे, पणवाक्षरयुत नामने लिखिये हवे चोथे संभारो रे ५ कोठा सोल करीने तेहमां माहाविद्याने राखो रे, पांचमे चोवीस घर आलेखी लोकांतिकने भाखो रे ६ छट्टे वलये आठ दिशाये च्यार निकायना इंद रे, तस देवी हवे सातमे वलये लिखिये आठ दिगेंद रे ७ आठ दिसाये आठमे वलये लिखिये ग्रह-अभिधान रे, आठ वलय पाछल त्रिगडानी रचना करीये समान रे ८ बारे पर्पदा पेहेला गढमां तीर्यच बीजे वखाणो रे, त्रीजा गढमां सुर-नर-चाहन, लिखिये तास प्रमाणो रे ९ १ सेवनपट्टे
45454595%25A RSA
॥२५॥
॥२५॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥२५२॥
SANGRESEARCARRRRRRESPEC
मंत्राक्षर लिखि आठ दिसाये, पुष्करणी चउ बार रे, पूर्णकलस थापी चिहुं विदिसि, वायु भुवन तिम च्यार रे १० थापी नंदावर्त लिख्या जे मल तास सविधांने रे, पूजो वासक्षेपादिक द्रव्ये गुरुसन्निधि बहुमाने रे ११ दीप अखंडस्युं नैवेद्य ढोइ बलि देइ देव वांदिजे रे, नंदावर्त-लेखकने पेहेलां शुभवस्त्रादिक दीजे रे १२ बीजे दिन ए किरिया निरखी रंगे रली सह थाये रे, खसालसाने मनोरथमाला दिन दिन वधती जाये रे १३
(ढाल ५॥ (तुमे पीतांबर पेहरौ जि-ए देशी ।।) करो किरिया त्रीजे दिवसे जी, विधिकारक स्वामी,
तुम समकितगुण जिम फरस्ये जी, पुन्य दिशा पामी करो एकभुगत समताये जी वि., ब्रह्मचारी दस दिन ताये जी पू. अडजातिना भैरव कहीई जी वि., तेहमां क्षेत्रपालने लहीई जी पु. तपगच्छतणो रखवालो जी वि., दुख-संततिहरण दुकालो जी पु. २ आह्वान करो तस मंत्र जी वि., जे भाख्या छे पट यंत्रे जी पु. ते प्रसन्न करी क्षेत्रपालो जी वि., करीये तस भक्ति विशालो जी पु.
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प्र. कल्प
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मातरनुं नैवेद्य ढोइ जी वि., चलि आसनमंत्रने जपि जी वि.,
वे सेवनपट्टे फीरीने जी वि., थापो दिगपाल विधाने जी वि., वली ध्वज रोपि आगे जी वि., वली थापी सेवन पाटे जी वि., दिस विदिसीये ग्रह थापो जी वि., गृह नवने नव ग्रह भावो जी वि., दिगपाल नवग्रह ठाय जी वि.. सनमुख वो मंगल आठ जी वि., खुशालचंदे उच्छव कीधो जी वि., ए कीरति रंग वखाणे जी वि.,
तस शेष लिये सह कोड़ जी पु. इम क्षेत्रपालने थापी जी पु. यक्षकर्दम- लेप करीने जी पु. अभिधान लेइ सनमान जी पु. पूजो महादेवी रागे जी पु. ग्रह - मंडल निज निज घाटे जी पु. पूजी निज मंत्रे ने जावो जी पु. पछे सांति कलसने भणावो जो पु. जिम जमणी - वाय- दिसाय जी पु. ए आचारदिनकर - पाठ जी पु. बीजे दिन लाहो लीधो जी पु. जे वधति समकित ठाणे जी पु.
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॥२५३॥
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( ढाल ६ || )
१
( बात करो वेगला रही मारा वाल्हा रे, पेहला देखे दुरिजन लोक ए स्यां चाला रे - ए देशी ॥) चोथे दिन सासनसुरी, हुं वारी रे, चकेसरी प्रमुख चोविस, हुं बलिहारी रे अभिधाने शुभ द्रव्यथी हुं०, पूजीने पूरी जगीस हुं० वली चोसह सुरराजने हुं०, तस मंत्रे करी आहान हुं० जल चंदन आदे देई हु०, तिहां अरचे थइ सावधान हुं० भूतबलि अभिमंत्री ने हुं०, लेइ निज घर बाहिर तेह दस दिसिये उछालिये हुं०, उपजोग थकी घरी नेह हुँ० उत्तमांगथी थापीये हुं०, सिद्धादिक मंत्र विचार हुं० इम न्यास करी कर्ता हवे हुं०, सिद्धचक्र मनेोहार हुँ० अष्ट-कमल-दल थापीने हुं०, मध्ये श्री अरिहंत हुं० पूरवदलमां सिद्धजी हु०, दक्षिण-दले सूरि पाठीक द्वादस अंगना हुं०, पाठकजी उत्तर दलमां जाणीये हुं०, मुनिराजतं
करे
तस
महंत हुं०
पश्चिम
जाण हुं० अहिठाण हुँ०
२
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प्र. कल्प
॥२५५॥
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इसाने दर्शन चारित्रपद नैरत
भजो हुँ, वले हुं०,
एहवा
श्री सिद्धचक्रने हु०,
स्नात्र करो बहु भक्तिथी हुँ, ए किरिया चोथे दिने हुं० जे महापूजा करे रंगथी हुं०,
अग्निकुणे ज्ञान वायु वले तप
पूजीजे
सुरभी
पछे देववंदनविधि
करे
ते
प्रधान हुं० मान हु०
खुसालसा उजमाल
पामे मंगळमाल
( ढाल ७ ॥ )
(वे वे मुनिवर वरण पांगर्याजी - ए देशी ॥ ) पांच दिन एकिरिया कीजीये जी, श्रीगुरुवयणतणें अनुसार रे, भैरव आदे सासनदेवता जी, पेहेलां एनमीयें नाम संभार रे
द्रव्य हुं०
भव्य हुं०
८
समकीतदाय महापूजा करो जी....
तदनंतर करीयें शांति घोषणाजी, अरिहंत आदे मंगल चार रे, विधिकारक ते वज्रपंजर भणे जी, कीजे थानकपद सेवा धार रे
सम०
१
२
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॥२५६॥
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सेवनपट्टे कुंकुमचंद जी, सोनानी लेखणथी श्रीकार रे,
areeranat रचना कीजीये जी, स्वर पद वर्ण उच्चार रे प्रथम दले अरिहंतने थापीये जी, बीजे सिद्ध नमो सुविहाण रे,
पवयण चीजे चोथे वखाणिये जी, आचारज गुणखाण रे पांच थी (वि) र नमो भावे करीजी, छट्टो प्रणमीजे उपझाय रे,
सातमे मुनिपद ज्ञान ने आठमे जी, नवमे दर्शनपद सुखदाय रे विनय नमो दसमे पदेजी, एकादसमे चरण पवित्त रे, वारमे ब्रह्मचरज प्रणमो सदाजी, जेहथी लहिये सित्रपद नित्त रे तेरमे किरिया चौदमे वंदिये जी, तपपद विविध प्रकार रे,
गौतम गणधर पन्नरमें नमो जी सोलमे श्रीजिनपद सुखकार रे चारित्रधर सत्तरमे पूजिये जी, नाणधारक अदसमे बंद रे,
श्रुतर पद नमिये ओगणीसमे जी, बीसमे तीरथपद सुखकंद रे इणीपरे वीसथानिक रचना रवीजी, अरचीजे आठे द्रव्य उदार रे,
स्नात्र भणावी आदि आणंदनो जी, कलस भणावो भवि-हितकार रे
सम०
सम०
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३
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॥२५७॥
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देव वांदीने थानिकपद तणी जी, नवकारवालि गुणीयें वीस रे,
विविध पकवान ने नैवेद ढोकीये जी, घारी अणहारी पद जगदीस रे पांचमा दिननी किरिया ए कहीजी, सकलगुरु ने वयण-प्रसंग रे,
हरषे खुशालचंद द्रव्यने जी, खरचे दिन दिन वधते रंग रे ( ढाल ८ || )
( मइ हो रे समरा रे जांवर जीया हुं वारी । दोसीडांरी गलीये थे मत जाओ, साहिब छोगो विराजें पंचरंग पागमां- मारुजी- ए देशी ॥ ) छडे दिवसे रेकिरिया मांडीये हुं बारी, क्षेत्रपालादिक जे अभिराम, गुण सनेहा सांभलीये सारी वातने हुं० कष्टना हुं०, गृहपतिने थापो इंद्रपदे इहां हु०, तिलक जनोइ मुकुट धरावीने हु०, हवे ते इंद्राणी वेदी उपरे हुं०, पाछलथी गाये गोरी छंदसुं हुं०,
प्रहरणधारक वारक
ते भणी करीये धुर प्रणाम गुरु मंत्री वास करे हितकार इंद्राणी करीये तस घरनार विरचे बहुमानें स्वस्तिक पंच मानुं ए मलीयो अछर-संच
सम० १०
सम० ११
सुगुण १
सु०
सु० २
सु०
सु० ३
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अञ्जन प्र. कल्प
॥२५८॥
ARRARO
नास (न्यास) करीने गुरुपूजन करो हुँ०, तदनंतर नूतन विने हुँ०, पयमिश्रित वासे नूतन विवर्नु हुँ०, दूधे भरी कलसमां जिनने थापिये हुं०, हवे भवि सुणज्यो च्यवनतणी विधी हुँ०,
आनंद नामे नृप संयम लेइ हु०, तिहांथी तित्थंकरगोत्र उपारजी हुं०, बीस सागरनुं जीवीत भोगवी हुं०, निरुपम नयरी वणारसीनो धणी हुं०, राणी वामादे कुखे अवतर्या हुँ०, निद्रावसे पोढयां सेजे मातजी हुं०, निज निज भाव कहे सहु रंग थी हुँ,
पूजी आचारज पूजो पीठ मु. गुरु मंत्रे खेपे वास विसिट सु. ४ सर्वांगे विलेपन करीये सार सु० इहा सूचव्यो च्यवनतणो प्रतिकार (प्रकार) मु. ५ त्रीजे भव पासप्रभुनो जीव सु० आराधि थानकपदने अतीव सु०६ उपजे जइ प्राणत स्वर्ग मझार मु० । देवना भवनो करी परिहार मु० ७ अवनीपति अश्वसेन नृप तात सु० । चैतर वदि चोथे गर्भावास सु. ८ लहे सुमिणां चउदस मंगलकार सु० वर्णवीये कांई तस अधीकार सु० ९
||२५८॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥२५९।।
सापECEREMCHA
(ढाल ९॥) ( मारुजी निंद नयणां बिचे घुल रही, घुल रही नयणां बिच ।
नणदीरा वीरा, मारुजी, निंद नयणां विच घुल रही-ए देशी) माने प्रथम सुपनमा विनवे, एरावण गज आय हो वामाद माता, माजी ! मुझ स्वामी तुझ पुतना, आवी नमस्ये पाये हो०,
माजी ! सुपन भाव सवि सदहे, आवीजे जे कंत हो । जननी ! बहेस्ये तुझ सुतने, मुझ परे पंच महावत भार हो,
माने बीजे सुपन धोरी कहे, नयणानंदनकार हो० माजी. २ तेहवें त्रीजे कहे केसरी, तुझ नंदन नरसीह हो०,
माजी ! भेदक मान गजेन्द्रनो, मुझ परे थास्यें अबीह हो० मा० ३ माजी ! मझ दर्शन दीठे थके, भोगवशे तुझ वत्स हो,
माजी ! चोथे ९ लखमी कहं, तीर्थकरनी लछ हो। मा० ४ पांचमे दाम युगल कहे, मुझ परे तुं मन जाण हो,
माजी ! त्रिभुवनजन शिर धारस्ये, तुझ नंदननी आण हो० मा० ५
RSCHE RESCARRERESSAGE EXTENS
॥२५९॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२६०॥
SARSASEASEA
माजी ! मुझ मंडलसम होयस्य, तुझ सुत बदन अनूप हो०,
माजी ! जन ने छठे जो तुं मुझ प्रते, कहे हम रजनीभूप हो० मा० ६ माजी ! तम-अज्ञानने भेदस्य, मोहनिशा करी दूर हो,
माजी ! धरस्ये भामंडल सातमे, तुझ सुत इम कहे सूर हो. मा० माजी ! धर्मध्वज भूषित थस्ये, मुझ दर्शने तुझ नंद हो०,
माजी ! आठमे ध्वज इम वीनवे, धरतो विनय अमंद हो. मा० ८ माजी ! ज्ञानादिक-यणे भर्यो, तुझ सुत छे मुझ मित्र हो०,
माजी ! नवमे निरखो मुझ तुमे, कहे इम कुंभ पवित्र हो० मा० माजी ! माने पदमसरोवर आवीने, दसमे कहे सुणो मात हो,
माजी ! सुर चालितकजे उपरे, ठवस्ये पद तुझ जात हो० मा० १० माजी ! तुझ सुत गुणरयणे करी, मुझ परे महागंभीर हो,
माजी ! एकादशमे जाणजे, सुभगे सायर-खीर हो. मा० ११
छ
|॥२६॥
१ कज-कमल
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अञ्जन प्र. कल्प
॥२६॥
REARNAGARIKAARA
माजो ! चउविह सुर तुझ पुत्तने, नमस्य करी सनमान हो,
माजी ! देखे सुपन बारमे, वदतुं इम विमान हो० मा० १२ माजी ! मुझ परि तुझ अंगज थस्ये, गुणह अनंत निवास हो०,
माजी ! रयणना गढमां राजस्ये, इम कहे रयणनो रास हो० मा० १३ माजी ! भविक-कनक-शुद्धि तणो, थास्य सुत करनार हो०,
माजी ! माने निरधूम अगनी चऊदमे, सुपने जो सुविचार हो० मा० १४ माजी ! तुरत जागी नृपने कही, सुपन तणो ग्रही भाव हो,
माजी ! चोसठ हरि करि च्यवननो, मोहोत्सव गर्भप्रभाव हो० १५ भविका प्राणथापन करी विचने, वास ठवे गुरु श्वास हो० ससनेही प्यारा-भविका,
मंत्राक्षर लिखी विंबने हो, सिर पर थापे पास हो० सस० १६ मंगल चऊद स्वपनतणो निरखावे सुविलास हो० सस० भ०
करीये उपदेश कानमां, भणीये आसीस तास हो० स० भ० १७ माहापूजा इम कीजीये, लिजीये जिम शिवराज हो स० भ० (आंकणी)
चैत्यवंदन करीने हवे, करीये स्नात पवित्त हो० स० भ०
LUARGACHICHICHIROPRACHICHIRISH
॥२६१॥
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प्र. कल्प
॥२६२॥
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कलस भणावी पासनो, देववंदन करो नित्त हो० स० भ० १८ इस रंगे च्यवनने थुण्या, पासप्रभु जिनचंद हो० स० भ०
धन खरचीने खुसालस्या, पासप्रभु जिनचंद हो० स० भ० १९ (ढाल १० ॥ ) (आदे आदिजिनेस (रु) नाभीनरिंद मल्हार रे - ए देशी ॥1) न्यास करी शुचि थइयें गुरु विधी करता समान रे, Faraarth नव ने कुसुमांजलि दीये तेम रे १ श्रावक वास करे करी जल, लेइ छांटे उल्लास रे, दृष्टिदोष निवावा, मंत्रे कवच भणावे रे २ दिगबंधन मंत्रे करी कुलदेवीने विलेपे रे, ते अधिकारने गाइये इहां हवे थिर करी चित्त रे ३ ज्ञान प्रयुंजी आवे रे दिसिकुमरीना ए वृंद रे, जोजनमां अवकर भण ककरने
वारे रे ४
सात दिन हवे हरवस्युं किरिया कीजे प्रधान रे,
(a) कलीकरण मंत्रे करी बलि दीजे धरी प्रेम रे, गुरु हवे तरजनीमुद्राये रौद्रदृष्टि दिये ताल रे, वज्र, गरुड ने मुद्गर मुद्रा, गुरु करी बतावे रे, सात धाननी त्रण त्रण मुठी विने खेपे रे, जनममंत्र जपिने पछे कीजे जन्म पवित्त रे, पोतदसमनी राते जन्म्या श्रीपासजिणंद रे, पेrat astotrarataी भूमिने पवन प्रचारे रे,
१ कचरो
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॥२६३॥
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आठ उदवंथी आवीने स्वामीना जन्म-आगारे रे, जिनगुण हर्ष सु धरती रे उलट अंग न मावे रे, दक्षिण रुचकनी नमी आठ कलस ग्रही हाथे रे, आठ ए पश्चिम रुचकनी वायुर्विजण लेइ आवे रे, चंचल चामर विंजती उत्तर रुचकनी अमरी रे, चार विदिसथी आवी ए दीपक करे धरी चार रे, मध्य रुचकनी चउ मली नाल वधरे ते देवी रे. उपर पीठ रयणमय बांधीने अति अलिराम रे, ते घरमां जिन ने जिनमाताने लेइ नवरावे रे, चंदन होम करीने रक्षा पोटली बांधे रे, लिग श्रावक रत्नग्रंथीने रक्षापोटली बेहोरे, यव ने अरीठानी माला विबने कंठे ठगीजे रे, ते जल लेइ बिंधने जलदरसनने करावो रे, इंद्राणी अग्रमहिपीनो ओछय विधिसुं वंदिजे रे,
मनमोहन माहाराजने नीरखवा दरपण धारे रे, इणीपरे सुरकन्या मली (म) ली मंडलमा दर्पण लावी रे ५ परिकरयुत माताने प्रणमी दोये सनाथ रे, जगदीश्वर जननीने प्रणमी जिनगुण गावीरे (वे) रे ६ आठ नमे जिन-मातने जिनगुण हियडले समरी रे, जगदंबे प्रणमी करी धन्य गणे अवतार रे ७ खातोदरमा थापीने वनरयण संपुरेवी रे, पश्चिम दिसि वरजी करे, केलतणा त्रण धाम रे ८ पेहरावी अलंकारने चरची गीत गावे रे, नृत्य करी जिन-जननीने घर ठवी निजपद वाधे रे ९ मंत्री बांधे विबने जमणले करि धरी ने हो रे, जलजा--जलमां फूल-चंदन-वास भेलीजे रे १० धूप दीप करीने पछे नाटिक-गीतने भणावो रे, केसरथी नव विवने भाले तिलक करीजे रे ११
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आसन नचवी सुधोसाये देव सयलने मेलीजे रे, आवी नमे जिन माताने पंचधा रूप बनावी रे १२ आवे ते मेरुचूलाये चोसठ इंद्र संघात रे, अभियोगिक सुर वासे औषधी जलने अणावे रे १३ करी अदि अभिषेकने पामे परम आणंदा रे, मंगल आठ ठवी करे मंगलदीप विवेक रे १४ इंद्र महोत्सव इम करो पछे तिहां देव वंदावे कीधो जन्म महोछव रंगथी शुभ उत्कर्षे रे १५ ( ढाल ११ ॥ )
गीतगान करीने पछे इंद्रनो ओछव कीजे रे, पालकयानमां बेसीने नंदीसर हरि आवे रे, देइ निद्रा प्रतिबिंबने मूकी लीये जगतात रे, सोहम - इंद आनंदस्युं उछंगे जिन लेइ ठावे रे, अच्युत इंद्र - आदेशथी स्नात्र करी सवि इंदा रे, वृषभरूप करी सोहम इंद्र करे अभिषेक रे, जिनमंदिर जिन मूकीने हरि निजयांनके जावे रे, खुसालसा धन खरचीने सात दिन घणुं हरखे रे,
(देव नाह्नां छोकरां थाये, जन साथै रमवाने जाये - ए देशी) आठ दिन सुणिये भाई, दासी दिये पुत्र वधाई,
अश्वसेन भूपति अति रखी, दासी फेडी करी सखी सरखी चाकरनां कष्ट निवारे, मान- उनमान-माप वधारे, जल फूले जयरी सिंचावे, कृष्णा गुरु धूप रचावे
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घर घर तोरण बंधावे, कुंकुम-हाथा देवरावे,
पुरजनने हरप न मावे, नारी धवल मंगल ने गावे तालाचर भांड नाटकिया, अतिखेल करे तिहां मलिया,
नृप निरखी हरष अमांने, बहु दान दिये सनमाने घण छंदे वाजिंत्र वाजे, तिणे नादे अंबर गाजे,
इम मोहोछबनुं मंडाण, दिन बार करे महिराण कुलस्थिति करे पेहेले दिवसे, अढार स्नात्र करी हरसे,
जलपात्रमा ठविये उल्लास, चंदन पुष्पादिक बास स्नात्र सु (च) रण खेपीये सार, पछे कलस करीने च्यार,
जिनमुद्राये काव्य उच्चारा, अभिषेक करे मुविचार हेमचुरणे पेहेलु सनात, बीजुं पंचरत्ननुं विख्यात,
___ तरुछालनु त्रीजु कहीये, चोथु मंगलमाटीनुं लहीये पांचमु सद औषधी केलं, अष्टवगर्नु छटुं भलेरु,
सातमु बली तेही ज नामे, आठमुं सर्व औषधी कामे
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परमेष्टी गुरुड मुत्तामुत्ती, मुद्रा करी मंत्र पवीत्ती,
जिन आह्वान करे गुरु रागे. बली स्नात्र भणावो आगे पंचगव्यनुं नवमुं गणीये, सौगंधिक दसमु भणीये,
शुभ फूलनु एकादम, गंधस्नात्र करो द्वादसमें स्नात्र तेरमुं वासर्नु मुणीये, दूध चंदन चौदमे थुणीये,
पन्नरमुं स्नात्र ते होय, केसर साकरतुं सोय दिन त्रीजे अरीसो देखावो, रवि ससिनुं दरसन करावो,
छद्रे दिन धर्मजागरणं, दिन दसमे दमुठणकरणं तीर्थोदक सोलमे विरचो, सतर# बरासे चरचो,
केसर चंदन लेइ फूल, तस स्नात्र भणाबो अमृल ए विधिये स्नात्र अढार, करे मोहोछव सु विधिकार,
बिंबे वास तिलक धूप कीजे, विधिये बली देव बांदीजे दिन बारमे नृप परिवार, भोजन मुंजावि उदार,
संतोपि करे सतकार, ठवे नाम श्रीपासकुमार
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॥२६७॥
ACCHAPA
तिम नाम थापन इहां जाण', विधि विवि मन आणो,
आभरणे देह सोहावो, प्रभु नीरखी भावना भावो १७ पछे अन्नबोटण-विधि करीये, जिन आगे नैवेद्य धरीये,
बलि दीजे हरख अमोले, गुरु सकल चंद इम बोले इम अडदस स्नात्र करीजे, जिम अब्रह्म दोष हरीजे, आठमे दिन खुसालसाहे, कीधो उछरंग उच्छाहे
(ढाल १२ ॥) (कार्तिकमासे कंत मेहली चाल्या रे -ए देशी ॥) नवमे दिन गुरुराज, करीने साखी रे, करो विधिकारक हवे काज, मन थिर राखी रे, सहेजातिसय च्यार प्रभुने जनमथी रे, अति अदभुत रूप अपार लवसत्तमथी रे १ भवभासन ऋण ज्ञान धारक स्वामी रे, अंगूठे अमृतपान करे शिवगामी रे, कल्पतरु परे पास-प्रभुजी वाधे रे, लक्षण गुण महिमा जास पार न लाधे रे २ बालक थइने देव आवी रमाडे रे, थइ हंस मोर ततखेव प्रभुने हसाडे रे, इम करतां भणवा योग थइ ते जाणी रे, करे मावित्र शुभसंयोग लगन प्रमाणी रे ३
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भुंजावि सयण सुरंग पेहेरामणी साथे रे, निज सेना सनी चतुरंग वणारसीनाथे रे, धाणी चणा पकवान बहु फल मेवा रे, हेम-खडिया लेखण मान छात्रने देवा रे ४ वररूपे पास कुमार चडया वरघोडे रे, गाये अपछर सरखी नार मनने कोडे रे, वाजते वाजीत्र जनमालाये रे, आव्या अयि मोह विचित्र लेखकसालाये रे ५ वित्र मनोगत भर्म इंद्रवयणथी रे, कही प्रभुये पमाडयो धर्म अवधिनयणथी रे, अयाचि कों नस पात्र (1) लहि द्विज भावे रे, छात्रोनां पोपी गात्र छुटे अपावी (वे) रे ६ देखी कहे बाल गोपाल मावित्र हरखे रे, अहो बालपणे ए अबाल मनोगत परखे रे, इम लेखसालाये ज्ञान प्रगट करी आव्या रे, पछे अनुकरमे भगवान जोवन पाया रे ७ हवे गृहपति सर्वाग विंधने अरचे रे, वली धृपफूल उछरंग वासे अरचे रे, सुरभी, पद्म ने अंजलि मुद्रा भावे रे, जिन पडिमाने गुरुनाथ करीने देखावे रे ८ अधिवासन मंत्रे गुरु करे अवतारो रे, मीढल कंकण सहु विवने हाथे धारो रे, मुत्तात्ती चक्रमुद्रा करी हरसे रे, विधिकारक पांचे अंग प्रभुना फरसे रे ९ अंगें धूप उखेवी जिन आह्वान रे, जिन मुद्रायें त्रण वार करे सविधान रे, आसनमुद्रा सार पछे निरखावि रे, गुरु पूजी वास बरास प्रभु दिल लावी रे १०
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SEXTAREAGERERATEGISCHE SUA
श्रावक चंदनफूले पूजी आहादे रे, सवि बिंबने वस्त्र अमूले करी आछादे रे, ते उपर नव रंगें श्रीफल ठावो रे, नैवेद्य धरीने खास फुलेके चढायो रे ११ ।
( ढाल १३ ॥) (जोरे घोडी तेती हाथी डग भरे, जोडी पाछल चमर विजाय । जादवरायनी घोडली-ए देशी ॥)
जीरे योवनवय जिन निरखीने, धणुं मावित्र हरखी ताम, सुंदरवर पासने जीरे जोग्य प्रसेनजित रायने, परपुत्री प्रभावती नाम मुं० १ जीरे जोडी सगाइ तेहस्युं, निज-अंगजनी लेइ आण मुं०, जीरे सोभाग्य थिति जाणी करी, कीधुं ते वचन प्रमाण मुं० २ जीरे प्रोदित शुद्धलगन दिये, परजीने दोस अढार मुं०, जीरे इंद्र इंद्राणी मी करी, करे विवाहनो व्यवहार मुं० ३ जीरे पीठी करी मजन करी, धरी अंगे श्रृंगार अमान मुं०,,
जीरे पासजी घोडे चडथा, करे धरी श्रीफल-पान सुं० ४ १ पुरोहित
ARRRRRRRA
॥२६९॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२७०॥
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जीरे हय गय आगल मालता, बहु वाजे वाजीत्र संगीत सुं०, जीरे सुरनरना साजन मल्या, जांनरणी गाये गीत सुं० ५ जीरे पुरजन थाट मली जुये, दोडीने चोक बाजार मुं०, जीरे प्रभु आवी ऊभा रह्या, इम मंडप तोरण- बार सुं० ६ जीरे पोहकण विधि पोहकीने, पछे आण्या चोरी मझार सुं०, जीरे पधरावी कन्या तिहां, करे नाद वेद उच्चार सुं० ७ जीरे सकल सुरासुर साखसुं, करे करमेलापक त्यांहि मुं०, जीरे बेहु पखे सुर सुंदरी मली, गाये गीत उच्छाहि मुं० जीरे पेहेलं मंगल वरतीने दिये लक्षप्रमित हयदान सुं०, जीरे बीजुं मंगल वरतीने, दीये हाथी हजारने मान सुं० ९ जीरे त्रीजुं मंगल वरतीने, कोड मूलना द्ये अलंकार सुं०, जीरे चोयुं मंगल वरतीने, पुत्रा पर तणी होये निरधार (2) मुं० ९ वाणानी विधि
८
१०
॥२७०॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२७१ ॥
जीरे सुरनिरमित कंसारने, आरोगी करे प्रीत अभंग सुं०, जीरे परणी निज घर आवीआ, माय तायने अधिक उछरंग सुं० ११ जीरे विधिकारक करणी करे, सुणज्यो हवे तेह स्वरूप, सुंदर नव वने (आंकणी-) जीरे च्यार नार पोहोॠण करे, वलि आरति-मंगलदीप मुं० १२ जीरे श्रावक पंचमंगल भणी, करे विवनो चर्चित हाथ सुं०, जीरे नव ग्रहने बलि देने, घरी नेवेद होय सनाथ मुं० १३ जीरे गेवासूत्रथी बांधी, तोरणयुत चोरी उदार सुं०, जीरे सिंहासन मंडल तले, थापी जिनपडिमा सार मुं० १४ जीरे हेमकलस चउ दीवडा, ठवे सोहब सुखडीथाल सुं०, जीरे लेती प्रभुनां उवारणां - जलधान ठवे ते बाल सुं० १५ जीरे चार गाइआ उपरे, थापे जुवाराना सराव सुंभ, जीरे चैत्यवंदन गुरु तिहां करी, रक्तांबरे विंव ढंकाव सुं० १६ जीरे अधिवासन मंत्रे करी, सूरिमंत्रे वास सुं०, जीरे वित्र करे पूगी ठवे, दीये
नाखे धवलमंगल उल्लास सुं० ९७
॥२७१ ॥
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२७२॥
जीरे होम करी टीको करे, अंबर आभरण धराव सुं०, जीरे ढोइ मोदक वो दीये, रंगे राज्याभिषेक कराव मुं० १८
(ढाल १४ ॥) (जीरे इसानइंद्र खोले लीये - ए देशी ॥) पासजिणंद तेवीसमो, त्रीस वरस गृहवास रे, कुमर पदे संसारनां भोगवी भोग विलास रे,
पासजिणंद दीक्षा वरे १ विरमी विषयदिशा थकी, तच्चदिशा निज भावे रे, जाणि ते पंचम स्वर्गथी, लोकांतिक सुर आवेरे २ जिन प्रणमीने विनवे, जय जय तं चिर नंदो रे, धर्मतीर्थ वर्तावीये, तुं जग-सुरतरु-कंदो रे ३ इम उपयोग कराविने, दीक्षा समय जगावे रे, वैश्रमणकुंडधारी सुरा, हाजर थइ धन लावे रे ४ एक कोडी आठ लाखनी, याचक दिन प्रते आवे रे, दान देइ संवत्सरी, सहुनां दरिद्र स(श) मावे रे ५ चोसठ इंद्र मली तिहां, तीरथजल शुभ आणी रे, स्नान करावे स्वामी ने, विधिपूर्वक हित जागी रे ६ स्वजन भणी अनुमन लेइ, भातपिता पडिवो हे रे, अंगराग भूषण धरी, सिविकामां आरोहे रे ७ धृपघटी वानींत्रमुं, दुंदुभीनाद बजावे रे, सुरनर कोडाकोडस्युं, पुर उपयन सोहावे रे ८ वृक्ष अशोकतरु-सरे, सहु सावध वोसरावी रे, पोस बहुल इग्यारसे, ल्ये प्रभु संयम ल्याची रे ९
A
२७२।।
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२७३॥
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१०
११
१२
१३
१४
सामा
उच्च तव मनःपर्यव पावे रे, सुरपति वाम खंभे घरे, देवांवर ते प्रस्तावे रे चरण - महोच्छव सुर करी नंदीसर मली आवे रे, अट्ठाइ महोछव करी, सुर निज निज थानिक जावे रे अनुमत सयण मावीत्री, मागे तब रोवंतां कहे ! मुखड़े कदा जोस्यां हरख भरंतां रे पावन करजो आंगणं, पारणेने मी से पुत्तो रे, अमने कदि न विसारज्यो, दर्शन देज्यो सुमीत्तो रे इम जोतां (पाछा) बल्या, प्रभु पण विचरे निरासी रे, घाती कर्म चउ जीवस्यें, वीतसे वासर चोरासी रे गुरु हवे चैत्यवंदन करी, वंदावे वली देवरे, रयणीसमे तिहां गुरु कहे, अधिवासन स्वयमेव रे खुसाल साये नवमे दिने, दीक्षा कल्याणक कीधुं रे, रंगे करीने उच्छाहथी, मनवंछित फल लीधुं रे (ढाल १५ ॥ ) (देशी हमारानी II)
१
हवे दशमे दिन कृत्य करे, आवक ने गुरुराय सुग्या (ज्ञानी केवलज्ञान ने मोक्षना, कल्याणक सुखदाय सु० महापूजा इम कीजीये चरणपर्याये पासजी, व निज गुगठाण सु०, कमठकृत उपसर्गने, जीत्यो उपशम आण सु० म० २ त्यासी दिवस इणि परे, विचरी आरज देस सु०, व्रत वनमां आवे विभु हवे सुणो विधि उद्देस सु० म० ३ कंकण मोढल वांधीये, स्नात्रकारकने हाथ सु०, ग्रह-दिगपालने पूजीये, बली दीजे विधि साथ सु० म० ४
१५
१६
॥ २७३॥
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अञ्जन प्र. कल्प
||२७४॥
HARE
नूतन बिंबने उपरे, वस्त्र कुसुंबी ढंकाव सु०, देववंदनविधि साचवे, गुरु श्रावक शुंभ भाव सु० म० ५ धूप देह अंबर लीये, श्रीगुरु लगनाभ्यर्ण सु०, कुंभक करी सवि बिंबने, अंगे थापे शुभवर्ण सु० म० ६ घृत भाजन मूकी पछे, मंत्रे जिन आहान मु०, परमेष्ठी मुद्रा थकी, श्रीगुरु करे सविधान सु० म० ७ शासनदेव-देवीतj, अवतारण करे ताम सु०, ठवणा थापनमंत्रथी, तिहां करे गुरु अभिराम सु० म०८ श्रीखंडादिक वस्तुने, जिनपडिमातले त्यांहि सु०, थापीने मेले हवे, अंजनद्रव्य उछांहे सु० म० ९ सौवीर-साकर-मृगमदे, घृतमिश्रित घनसार सु०, थापे अंजन हेमपात्रमां, पंच सोहव मजी नार सु० म० १० थिरलगने श्रीगुरु हवे, स्वरोदय मंत्र संभार मु०, हेमसिलाक ग्रही करी, करे अंजन-अवतार सु० म० ११ निरखावी दर्पण तिहां, प्रति वास करे शुभ गात्र सु०, चक्रमुद्राये बिंबने, फरसी नवे (ठवे) दधिपात्र सु० म० १२ दृष्टिदोष निवारवा, मुद्रा पंच करत सु०, वास धूप करी मंत्रने, पद्ममुद्राये कहंत मु० म० १३ त्रीगड कल्पी बिंबने, थापी त्रण नवकार मु०, कहीने वास करे तिहां, आचारज गणधार सु० म० १४ त्रणस्ये साठ औषधीपुडो, जिनकरमांहि ठवंत सु०, सोहब चउ पुंहुकण करे, दान दिये हरखंत सु० म० १५ इम केवल कल्याणके, करणी करिये रंग सु०, केहेसुं हवे केवलतणो, उछव अधिक उमंग मु० म० १६
--
२७४॥
१ लम समय पासे आवतां
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अञ्जन प्र.कल्प
॥२७५॥
(ढाल १६ ।।)
(ए तो गेहेलो छे गिरधारी-ए देशी ॥) चोरासीमे दिवस प्रभुजी, जन्म-पुरी छ ज्यांहि रे चोवी हारथी छट्टतप साथे, आवे व्रतवन मांहि
ए जिन सेबो ने, जे दोष भर्या जग मांहि ते त्यज देवो ने (आं०) १ धातकी वृक्षनी हेठळ स्वामी, क्षपकश्रेणि आरोहे रे,
___ करण अपूरय-अनिवृत्ति करीने, जीत्यो संजल लोह ए जिन० २ खीणमोह सयोगी फरसी, ध्यानबले अप्पाण रे,
चइतर वदीनी चौथे प्रभुजी, पाम्या केवलनाण अवधि जांणी चोसठ सुरपति, आइ सीस नमाइ रे,
करी त्रीगडानी अभिनव रचना, निज निज कृत्य बनाइ ते त्रीगडामां आप बिराजे, जगतारक जगदीश रे,
चोत्रीस अतिशय-संयुत दाखे, वाणी-गुण पांत्रीश
BiHICH CIRICARICHIRGHIGHEST
|॥२७५॥
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अञ्जन प्र. कल्प
||२७६॥
LETRARHREPPURSAIRAGHISOARA
श्री शुभ आरजशोष प्रमुख जिन, थापे दस गणधार रे, ___संघ चतुर्विध तीरथ थापे, विधिपुरवक व्यवहार केवलज्ञानकल्याणक उछव, करी इम रंगभरेण रे,
विधिकारक विधि आगे कीजे, गुरुसंगे हरखेण फूलवासनी वृष्टि करीने, करीये धूप प्रसस्त रे,
देववंदन करी पूछीये, पडिमाना अंग समस्त अट्ठोत्तरशत काव्य उच्चारी, विरची कलस विचित्त रे, .
एक सो आठ प्रमाणे विधिये, करीये स्नात्र पवित्त चैत्यवंदन करीने हवे गुरुजी, मंत्रित करे बलिदान रे,
ग्रह दिगपालने विधिस्युं दीजे, लेइ तेहनां अभिधान प्रभु सनमुख कुसुमांजली दीजे, मंत्रे करी त्रण वार रे,
___ चंदन केसर आदे नूतन, पूजा करे मुखकार बलि देइ बीजोरां मेयो, लाडु मुखडी सार रे,
मुखवासादिक थापिये, प्रभु आगल मनोहार
२७६॥
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प्र. कल्प
॥२७७॥
27
Go
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आरती मंगलदीप करीने, शिवकल्याणक धार रे केयुं तेह कल्याणक केरो, (ढाल
( कोने ब्राह्मण किहां थकी आव्या, श्रीपास प्रभु उपगारी, बहु तार्या नर ने नारी, प्रभु समतसिखरने पामी, मन-वयणना योग विरामी, सत्तागत पेहेले भागे, बहोत्तर प्रकृतिने त्यागे, अवगाहन लही पूर्वराते, मुनिराज तेत्रीस संघाते, प्रभु अजर अमर अविनाशी, थया पूर्णानंद विलासी, पछे श्रीगुरु संघनी साथे, देव वंदावि होय सनाथे, अक्षय - तंदूलन विसाल, गुरु आगल था से थाल, गुरु अक्षत अंजली लेइ, गाथानेा पाठ करेs, गुरु प्रवचनमुद्रा करीने, धर्मदेशना द्ये हित धरीने, पछे पडदो उघाडवा सारु, संघ थापे फलादिक चारु,
रगे करी अधिकार
१३
१७ ॥ )
arrator fariat रे लाव्या-ए देशी ||) देसे उणोसीत्तर वरस याय, भोगवी केवलपर्याय १ गुणठां अयोगी सोही, शैलेसीकरणने आरोही २ भागे बीजे प्रकृति तेर, तेहनो करो तुरत निवेर ३ श्रावण शुद्धि आठिम दिवसे, प्रभु शिवमंदिरमां निवसे ४ इम मोक्ष कल्याण भावी, करो किरिया आगल ठावी ५ स्तव धानके अजित शांति, भणीये अथवा वृद्ध शांति ६ श्रावक कुसुमांजली भरीने, ऊभो रहे विनय वरीने ७ अक्षत सवि विवने खेपे, श्रावक कुसुमांजली खेपे ८ करी अंतरपट for आगे, द्ये तंबोल संघने रागे चैत्यवंदन आदे कर, गृहपतिये नैवेद्य घरं १०
९
॥ २७७॥
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अञ्जन
प्र. कल्प
॥२७८॥
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अंजलीमुद्रा अनुसरोये, सवि देव विसर्जन करीये ११ तदनंतर कंकण छोडे, निज कर्मबंधनने विछोडे १२. नेत्रांजन देशना सार, गुरुना ए पट् अधिकार १३ गुरु अमृतविजय प्रसंगे, तिम भाखी सघली रंगे १४ ( ढाल १८ ॥ )
नंदावर्त्त विसर्जन कीजे, कल्प भाषित मंत्र भणजे, वृद्ध शांति धारा देवी, फूल चंदन धूप उखेवी, स्तुती - दानवली- मंत्रन्यास, आह्नान दिसाबंध भास, दसमा दिननी ए करणी, जिम कल्पमाहे विधि वरणी,
( झाझरी मुनिवर धन धन तुम अवतार - ए देशी ।। ) अथ चैत्यमां थापना विधिः -
बिंव प्रवेस जिम कीजीये जी, कहिये तेह विधान, शुभ दिवसे थिरलगन नवासें जी, जोइ शुभ ग्रह बलवान १ घरमा थापो जिन पडिमा सुविचार,
जिन
जे पीठे प्रभु थापियेजी, तिहां विधि करीये प्रसस्त जि०
व्रीहि सरसब दूर्वा ठवो जी, ते ऊपर घरी प्रेम,
२
वृषभ श्रृंगनी मृत्तिकाजी, गजदंत चक्रनी तेम जि० ३
॥२७८॥
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॥२७९॥
RSSAGAR
चोखंडो रूपक वली जी, जव ने दर्भ समूल,
थापी ते ऊपर ठवो जी, सेवन पट्ट अनुकूल जि. ४ यक्षकर्दमे स्वस्तिक रचोजी, दक्षिणावर्त आकार,
कूर्म मंत्र कुंभक करी जी, लिखीये वर्ण सुधार जि० ५ बलि बाकुल उच्छालिने जी, देव वंदी क्षेत्र देव,
सेवन पट्टे थापीये जी, मूल नायक जिन देव जि० ६ जिन गर्भ शाखा द्वारनी जी, कीजे तस अड भाग,
तिहां उपरे (रि) तन आठमा जी, अंसनो कीजे त्याग जि. ७ तदनंतर सप्तांसनो जी, लीजे सातमो भाग,
तेहमां जिन प्रतिमातणो जी, आणीई दृष्टिनो भाग जि. ८ पूजा अष्ट प्रकारनी जी, करीये धूप अट्टोपे,
आरात्रिक मंगल करी जी, कीजे वज-आरोप जि० ९
RRRRRRRRRRRछन
१ आटोप
॥२७९॥
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भञ्जन
प्र. कल्प
॥२८० ॥
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चैत्यवंदन - स्तवने करी जी, स्तवीये जिन अभिधान,
थाल भरीने ढोइये जी, नैवेद्य फल पकवान जि० १० थापन अंतरे जी, पवित्रपणे विधिकार,
दस
साते समरण शुद्धिथी जी, गणिई तिहां वर्णउच्चार जि० ११ अाइ महोत्सव पछे जी, करीये अतिहर खेण, स्नात्र अट्ठोत्तरी करी जी, विधियुत रंग भणंत जि ( ढाल १९ ।। )
( वीर जिनेशर भुवन दिनेसर गौतम गुणना दरिया जी - ए देशी ॥ ) इणि परे जैन प्रतिष्ठा कीजे, लीजे नरभव लाहो जी न्यायउपार्जित वित्त धर्ममां, खरचो घरी उछाहो जी संघ सयण ने कुटुंब संगाथे, वैर-विरोध नीवारी जी, समकित दायक निर्मल करणी करीये भवी-हित कारी जी १ जैन प्रतिष्ठामां जिनवरनां पंच कल्याणक करवा जी श्रीगुरु श्रावक बेहुं मलीने विधिजोगे अनुसवाजी, भूमिशयन ब्रह्म चरज एकासण दस दिन पेहला धारो जी
sarat विधिकारक इणि परे इहपरलोक सुधारो जी २
दिन
१२
॥२८० ॥
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R
अञ्जन प्र. कल्प
अञ्जन प्र.कल्प
-
॥२८१॥
| ॥२८१॥
CAREGARCAMPARAN
है| इम धारीने बिंब प्रतिष्ठा करवाने सुविशालो जी, खुशालचंद सवाईचंद बहु (बिह) पितापुत्र उजमालोजी,
खुशाल सवाइ पालिताणे श्री विमलाचल भेटी जी, गणधर विजय जिनेंद्र सरिने बंदी आपद मेटी जी ३ अति आग्रहथी विनति करीने भरुअच तेडी लाव्या जी, महोत्सवथी वांदीए श्री गुरु संघतणे मन भाव्या जी, जल जात्रा करी साडंबरथी थापी पूर्ण कुंभ जी, आगल किरिया श्रीगुरु श्रावक साथे थई थिर थंभ जी ४ श्रीशंखेश्वर पास प्रभुनी पडिमा आदें बहुली जी, आचारज अधिवास क्रियाये अवतारित करे सघली जी, फागुण शुदि पंचमी कविवारे लगन समय जब आवे जी, इंद्र थई गुरु कुंभ करीने, अंजनशिलाका फिरावे जी ५ पांच शब्द वाजिंत्र तिहां बाजे, गाजें, दुंदुभीनाद जी, केवलज्ञान तणो कल्याणक, गावे गोरी मधुरे सादें जी, श्रीसंघे प्रासाद निपायो, मानु अपर कैलास जी, पीठ मंडपने अदभुत देखि, उपजे मोद विलास जी ६ वृषभ लगनमा तेहिज दिवसे, पीठ उपर उल्लास जी, शुद्धि विधान करीने थाप्या श्रीशंखेश्वर पास जी, आचारज वाचक मुनिवरना उचित सह साचविया जी, सूत्रधार शिल्पी ने याचक दान थकी उल्लसीया जी ७ नव नव भक्ति करी साहमीनी, विविध थकी पकवाने जी, शालदाल शुरहां घृतसाकें भक्ति करी बहुमाने जी, | देई तंबोल तिलक करी छांटयां केशर राते वरणे जी, यथा जोग्य पेहेरामणी कीधी श्रीफल वस्त्राभरणे जी ८ द जिन शासन उन्नत-परशंसा, खट दर्शन में वाधी जी, इम सदव (व्य)य करी लषमी जेणे, सुर-शिव पदवी साधी जी,
तपगच्छ ठाकुर गुण मणी आगर श्री विजयदेव सुरेंदाजी, प्रतपो तब लगे नाम ए गुरुनु जब लगे मेरु गिरिंदा जी ९
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॥ २८२ ॥
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तास सीस श्री लब्धि विजय वर पंडित मांहे लोहो जी, रत्नविजय बुध विनयी तेहना वादी मतंगज सीहो जी, तास सीस श्रीमान विजयना विवेक विजय वड भागी जी तेहना बुध गीतारथ सारथ अमृत विजय सोभागी जी १० तस चरणांबुज मधुकर - सेवी रंगविजय कहे हेते जी, कयुं प्रतिष्ठा कल्प-तवन में लहि कारण संकेते जी, बीजं मंदमति तेहनें दश दिननुं विधान जी कीधूं तोहे सदगुरु संगे करज्यो थई सावधान जी विधिकारक विधि एह सुणीने मत कोई दूषण देज्यो जी, नाम मात्र ए रचना कीधी, सुकवि सुधारी लेज्यो जी, नर नारी उपयोगपणाथी, भणसे जे हिये हित आणी जी, मंगलमाला लच्छी विशाला लहेस्यें शिवसुख प्राणी जी १२
( कलश :- )
इम सयल सुखकर दुरित भय हर पास श्रीशंखेश्वरी, निधि अब्धिर्वसुसंसिमान वर्षे गाईयो अलवेश्रो । इह प्रतिष्ठाकल्पतवन सांभली जे सदहे, ते ऋद्धि वृद्धि सुख सिद्धि सघले सदा रंग विजय लहे ॥ इति श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ पंचकल्याणकगभित-प्रतिष्ठा कल्पस्तवनं संपूर्णम् ॥
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॥२८२ ॥
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Form
सेना
जिन नाम ऋषभदेव अजितनाथ संभवनाथ अभिनंदनस्वामी सुमतिनाथ पद्मप्रभस्वामी सुपाश्वनाथ चंद्रप्रभस्वामी सुविधिनाथ शीतलनाथ श्रेयांसनाथ वासुपूज्य स्वामी
-: जिन माता-पिता नामादि कोष्टक :लांछन मातार्नु नाम पितानुं नाम नगरीनुं नाम वृषभ मरुदेवी नाभि
विनीता हाथी विजया जितशत्रु
अयोध्या घोडो
जितारि
श्रावस्ती कपि सिद्धार्थ संवर
अयोध्या कोच मंगला मेष
कोशल
कौशांबी स्वस्तिक पृथ्वी
प्रतिष्ठ
वाराणसी लक्ष्मणा महसेन
चंद्रपूरी मगर रामा
काकन्दी नन्दा दृढरथ
भदिलपूर विष्णु विष्णु
सिंहपूर महिष जया
वसुपूज्य
यक्षतुं नाम गोमुख महायक्ष त्रिमुख यक्षेश तुंबुरु-के तुबरु कुसुम मातंग विजय अजित
पद्म
सुसीमा
धर
यक्षिणीनु नाम चक्रेश्वरी अजिता दुरितारी काली महाकाली अच्चुता शान्ता ज्वाला सुतारका अशोका श्रीवत्सा चंडा-के प्रवरा
चंद्र
१०० ० ०
सुग्रीव
श्रीवत्स
ब्रह्म
गेंडो
मनुजेश्वर
चंपा
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________________
लांछन
बराह सिंचाणो
यक्षतुं नाम
धण्मुख पाताल किनर गरुड
वज्र
-: जिन माता-पिता नामादि कोष्टक :मातार्नु नाम पितानुं नाम नगरीनुं नाम श्यामा
कृतवर्मा कांपिल्यपूर सुयशा सिंहसेन
अयोध्या भानु
रत्नपूर अचिरा विश्वसेन
हस्तिनापूर
गजपूर सुदर्शन
नागपूर प्रभावती कुंभ
मिथिला पद्मावती
राजगृह
यक्षिणीनु नाम विज्या अंकुशा प्रज्ञप्ति निर्वाणी अच्चुता धरणी
सुनता
जिन नाम विमलनाथ अनंतनाथ धर्मनाथ शांतिनाथ कुंथुनाथ अनाथ मल्लिनाथ मुनिसुन समी नभिनाथ नेमिनाथ पार्श्वनाथ महावीरस्वामी
हरण अज नंदावर्त
सूर
गंधर्व
देवी
१९
कैटश
वैरोट्या
काचबो
सुमित्र
यक्षेन्द्र कुबेर वरुण . भ्रुकुटि गोमेघ
२१
कमळ
वप्रा
विजय
मिथिला
२२
शंख
शिवा
२३
दत्ता गांधारी अंबा पद्मावती सिद्धायिका
समुद्र विजय अश्वसेन सिद्धार्थ
सौर्यपूर वाराणसी क्षत्रियकुंड
वामा त्रिशला
सिंह
मातंग
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क्रम जिन नाम पूर्वभव-स्वर्ग १ ऋषभदेव सर्वार्थसिद्ध २ अजितनाथ विजय ३ संभवनाथ ७ ग्रेवेक ४ अभिनंदनस्वामी जयंत ५ सुमतिनाथ ६ पद्मप्रभस्वामी ९ वेक ७ सुपाश्वनाथ ८ चंद्रप्रभस्वामी
जयन्त ९ सुविधिनाथ
शीतलनाथ प्राण ११ श्रेयांसनाथ अच्चुत १२ वासुपूज्य स्वामी प्राणत
-: जिन माता-पिता नामादि कोष्टक :पूर्वभवायु च्यवनमासादि जन्ममा सादि जन्मनक्षत्र दीक्षामासादि ३३ सागरोपम जेठ व. ४ फागण व.८ उत्तराषाढा फागण वद ८
वै. सु. १३ महा सु.८ रोहिण महा सु. ९
फा. सु. ८ मा. सु. १४ मृगशीर्ष मा. सु. १५ ३३
महा सु.२ पुनर्वसु महा सु. १२ ३३
श्रा.सु.२ . सु.८ मधा पो. व. ६ आ. व. १२ चित्रा आ. व. १३ श्रा. व.८ जेठ सु. १२
विशाखा
जेठ सु. १३ फा. व. ५ मा. व. १२ अनुराधा मा. व. १३ महा व. ९ का. व. ५
का. व. ६ चत्र बद६ पोष वद १२ पूर्वाषाढा पोष बद १२
महा वद १२ श्रवण महा बद १३ जेठ सुद ९ महा वद १४ शतभिषक् महा बद०))
केवलज्ञानमास निर्वाणमास महा वद ११ पोष वद १३ पोष सुद ११ चैत्र सुद ५ आ. वद ५ चैत्र सुद ५ पोष सु. १४ वै. सुद ८ चैत्र सु. ११ चैत्र सुद ९ । चैत्र सु. १५ का. व. ११ महा बद६ महा वेद ७ महा वद ७ श्रा. वद ७ का. सुद ३ भा. सुद ९ मा. वद १४ चैत्र वद २ पोष वद .)) अ. वद ३ महा सुद २ अ. सुद १४
आनत
वै. बद ६
७२
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क्रम
जिन नाम
१३ मिलनाथ
१४
१५ धर्मनाथ
१६
अनवनाथ
शांतिनाथ
१७
कुंथुनाथ
१८ अरनाथ
१९ मल्लिनाथ
२०
सुनिसुनतस्वामो
२१
नमिनाथ
२२ नेमिनाथ
२३ पार्श्वनाथ
२४
महावीरस्वामी
पूर्वभव-स्वर्ग
सहस्रार
१८
प्राणत
२०
विजय
३२
सर्वार्थ सद्ध ३३
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जयंत
अपराजित
प्राणत
अपराजित
प्राणत
प्राणत
पूर्वभवा
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२०
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-: जिन माता-पिता नामादि कोष्टक :
च्यवनमासादि
जन्मनक्षत्र
वै. सुद १२
अ. बद ७
वै. सुद ७
श्रा. बद ७
अ. वद ९
फा. सुद २
फ'. खुद ४
श्री. सुद १५
आ. सु. १५
आ. व. १२
फा. वद ४
अ. सुद ६
जन्ममासादि
महा सुद ३
चैत्र वद १३
मड़ा सुद ३
वै. बद १३
चैत्र वद १४
मा. सुद १०
मा. सुद ११ वै. वद ८
अ. वद. ८
श्री. सुद ५
मा. व. १०
चैत्र सु. १३
दीक्षामासादि
उत्तराभाद्रपद महा सुद ४ चैत्र वद १४
रेवती
पुष्य
भरणो
कृत्तिका
रेवती
अश्विनी
श्रवण
अश्विनी
चित्रा
विशाखा
महा सुद १३
वै. वद १४ चैत्र वद ५
मा. सुद ११
मा. सुद ११
फा. सुद १२
जेठ वद ९
श्रा. सुद ६ मा. वद ११
उत्तराफाल्गुनी का वद १०
केवलज्ञानमास पोष सुद ६
चैत्र वद १४
पोष सुद १५
पोष सुद ९ चैत्र सुद ३
का. सु. १२
मा. सुद ११ महा वद १२ मा. सुद ११
भा. वद ० ) )
फा. वद ४ वै. खुद १०
निर्वाणमास
जेठ वद ७
चैत्र सुद५
जेठ सुद ५
वैशाख वद १३
चैत्र वद १
मा. सुद १०
फागण सुद १२ वैशाख वद ९
चैत्र वद १०
अषाढ सुद ८
श्रावण सुद ८ आसो वद ० ) )
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अञ्जन प्र.कल्प
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॥२८७॥
शुद्धिपत्रक सूचना:-केटलाक टाईप तूटी गया छे, केटलाक झांखा आव्या छे ते तेमज रू ने स्थाने रु तथा ऋ स्था ने ऋ अने इ ने स्थाने ई क्यांक छपायेल छे ते आ शुद्धिपत्रकमां लीधा नथी. पा. नं. अशुद्धि शुद्धि पा. नं. अशुद्ध शुद्धि पा. नं. अशुद्धि शुद्धि ११ अड्गुष्ठा० अङ्गुष्ठा० | ३० प्रतिष्ठा
प्रतिष्ठा ४० वाहना
वाहनाः १२ अनमिका० अनामिका
( ४१ आह्मान
आद्यान १३ चन्दप्रभ० चन्द्रप्रभ० ३० तीक्ष्णदष्ट्र
०दंष्ट्र० ४४ विम्बाञ्जन
बिम्बा. १४ मृता भूता ३० अनुष्टम
अनुष्टुभ ५. स्वागता
रथोद्धता ३१ समुच्चयय
समुच्चय
| ५२ अहं २४ जिनाहयान जिनाहान ३२ आह्मान
आह्यान ५३ वासिन् ? वासिन् ! २८ तोरणेभ्य नमः तोरणेभ्यो.
५३ सपरिच्छदाः च्छदा. २८ पार्श्वनाथय पार्श्वनाथाय ३० यक्षाधिपतये ८धियतये
चंद्रः । ५५ ॐ ह्रीं
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॥२८७॥
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अञ्जन प्र. कल्प
॥२८८॥
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६९ शालिना ६९ हेरवी
७२ हंस
७७ ह्रा
८४ देष्यो
८४ वाल०
८६ मंत्रित
९१ स्त्रगधरा
९४ अभिषेकमां
९८ पाणना
९८ श्लाक
१०८ पुष्पं ध
१०८ परि. नं. १ ए | ११३ स्निग्धोभि० ११८ त्रैलोक्य०
शालिनी | १२५ बुद्धि पहेवी १२८ ०दायिनि
| १२९० देवया
१२९ सुहयाइ
हंसः
ह्रीँ
देव्यो
बाल०
मंत्रित
खग्धरा
अभिषेक
पाणीना
श्लोक
पुष्पौध
| १३४ है
१३५ हो १४८ प्रतिष्ठा
१५३ विम्बे० १५७ प्रोक्षणक
१५८ धारणापविश्य
१५८ जिना
१७० सौभाग्य वी०
०१ औ १७२ ०झञ् स्निग्धैरेभि० १७५ निर्वाणेभ्य त्रैलोक्य १८४ बसन्त
बुद्धि दायिनी • देवया
सुहयाए १९१ ॥१॥
प्रतिष्ठा
बिम्बे
प्रोक्षणकं धारणोप०
जिना:
०धी०
० झञ
निर्वाणेभ्यः
वसन्त
| १८५ १८८ वोहिया १८९ थिविग
२०१ वभूव
| २१० वृन्द्रैः
२१० १ ऌ
२११ १ अ
२१२ अवतरण
२१६ पात
२२२ उत्तानो
२४५ प्रतिष्टा २५६ आणंदनो
| २६३ जननीन
हयाणं
थिविर०
।।१५।।
बभूव
वृन्दैः
१ औ
१ अ
अवतारण०
पान
उत्तानो
प्रतिष्ठा
जिणंदनो
जननीने
॥२८८॥
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श्री १०८ जैन तीर्थ दर्शन भवन - श्री समवसरण मंदिर-पालीताणा
प्रतिष्टा: सं. २०४१मागशर सुद६
प्रेरक : पू. आ. श्री विजय कस्तूरसूरिश्वरजी म. सा. मार्गदर्शक : पू. आ. श्री विजय च द्रोश्यसरिश्वरजी म सा.
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________________ प्राप्तिस्थान श्री नेमचंद मेलापचंद झावेरी श्री नेमि-विज्ञान-कस्तूरसूरिज्ञान मंदिर, जैनवाडी उपाश्रय, गोपीपुरा मेइन रोड, गोपीपुरा, सुरत सूरत. -: मुद्रक :जीतेन्द्र बी. शाह * जीगी प्रिन्टर्स 305, महावीर दर्शन, कस्तुरबा क्रॉस रोड नं-५, बोरीवली (इस्ट), मुंबई-४०००६६.फोन: .317810. Education Intematonal For Private & Personal use only www jainelibrary