________________
अञ्जन
प्र. कल्प
॥२०॥
प. पू. आ. श्री विजय हेमचंद्रसूरीश्वरजी महाराजनुं जरूरी मार्गदर्शन, पू. गुरुदेव आ. श्री विजय अशोकचंद्रसूरीश्वरजी महाराजनी अंतरनी मनोकामना, विविध विषयक तलस्पर्शी ज्ञान–अनुभव संप्राप्त करेल छतां विनयादिगुणगणालंकृत, सौजन्यशील विर्य पू. पंन्यासजी श्री शीलचंद्रविजयजी गणी महाराजे आ प्रत संबंधी संपूर्णमेटनुं सूक्ष्मावलोकन करी नानी मोटी दरे बबतोमा सौहार्दभावे लागण पूर्वक यथार्थ रीते आपे सलाह - सूचन; विद्वन्मतल्लिका माननीय पंडितवर्य श्री चंद्रशेखरजी झानुं पाठांतरोमां स्पष्ट अर्थघटन यह शके तेवुं निरीक्षण विधि संबंधी नानामां नानी हकीक्त पण कदो न वीसरी जता पू. शासना आदि ज्ञानी गुरुभगवंतोनी निश्रामां तैयार थयेल श्री केशुभाई भोजकनुं अनुभव वैशिष्ट्य आ सर्व सहायक चळना आधारे ज प्रतनुं संपादन शाच बन्युं छे.
पाठान्तरोना निरीक्षण माटे श्री जैन नंद पुस्तकालय, श्री मोहनलालजी ज्ञानभंडार, श्री नेमि - विज्ञान - कस्तूरवरि ज्ञान मंदिर, श्री देववर - आसुर गच्छ तथा श्री हुकममुनिजी ज्ञानभंडार आदि सुरतना ग्रंथागारोना व्यवस्थापकोए हस्तलिखित प्रतt aarat सहृदयता बनावी तेओने पण धन्यवाद घटे छे.
प. पू. आचार्यदेव श्री विजय चंद्रोदयसूरीश्वरजी महाराजे 'आशीर्वचन' मोकली तेमज पू. पंन्यासजी श्री शीलचंद्र विजयजी गणी महाराजे पंडे। श्रीरंगविजयजी वेरचित श्रीपार्श्वनाथपंचकल्याणकगर्भित - अंजनशलाकाना दशे दिवसना विधानने वर्णत्र - 'श्री प्रतिष्ठाकल्पस्तवन' तथा 'आवकार' नुं लखाण मोकली उत्साह द्विगुणित करी उपकृत करेल छे.
अमारा पूज्य गुरुदेव आचार्यदेव श्री विजय अशोकचंद्र सूरीश्वरजी महाराजनी एवी प्रचळ भावना सरी के मारा हस्तक
For Private & Personal Use Only
Jain Educatio ational
॥२०॥
ww.jainelibrary.org