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________________ अञ्जन प्र. कल्प ॥२१॥ UCATLA%AE% श्रीजिनेश्वर भगवंत संबंधी ज कोइक ग्रंथ प्रथम तैयार थाय अने ते ग्रंथ पण कोइ एक संघ के ट्रस्ट द्वारा ज संपूर्ण प्रकाशित थाय. तदनुसार आ प्रत तैयार थता तेना प्रकाशन संबंधो सघळी आर्थिक जबाबदारी शेठश्री नेमचंद मेलापचंद झवेरी जैन वाडी उपाश्रय ट्रस्ट-सुरतना ट्रस्टीओए सुरतमा थयेल सामुदायिक ४०० सिद्धितपनी स्मृतिमा स्वीकारी लेता ते ट्रस्टना ज्ञान द्रव्यमाथी आ प्रत प्रकाशित थइ छे. मुद्रण संबंधी संपूर्ण व्यवस्था जीगी प्रीन्टसवाला श्री जीतुभाई बी. शाहे खूब ज काळजीपूर्वक करी छे. अफ संशोधन-परिशिष्ट तेमज शुद्धिपत्रक तैयार करवामां सहवर्ती मुनिभगवंतनो सहयोग मददरूप बन्यो छे. प्रांते प्रतिष्ठा कल्पनी प्रतना प्रकाशन द्वारा कंइक श्रुतभक्ति करवानो जीवननो आ प्रथम ज प्रसंग छे. तेथी छद्मस्थसुलभ प्रमाद के अल्पानुभवने कारणे भूल तो रहेवानी ज, छतां य सुज्ञ पुरुषो ते क्षम्य गणी अंजनशलाकाना विधि-विधान प्रसंगे आ प्रत सविशेष उपयोगमा लइ अमारा आ प्रयासने सार्थक करशो तेवी मनोकामना... प्रत संबंधो लखाणमां जिनाज्ञाविरुद्ध कंइ पण उखायुं होय तो 'मिच्छामि दुक्कडम्.' मा. श्री विजय अशोकचंद्रसूरि पादरेणु सोमचंद्र वि. ACKERACE ॥२१॥ Pwww.jainelibrary.org Jain Educati o For Private & Personal Use Only nal
SR No.600016
Book TitlePratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Original Sutra AuthorSakalchandra Gani
AuthorSomchandravijay
PublisherNemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
Publication Year
Total Pages340
LanguageDevnagri, Gujarati
ClassificationManuscript, Ritual_text, Vidhi, Devdravya, & Ritual
File Size18 MB
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