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अञ्जन प्र.कल्प
॥१०७।।
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- सत्तर# ( कर्पूर ) स्नात्रःकपूर पाणीमा नांखी कळशो भरी नीचेना श्लोक अने मंत्र बोली अभिषेक करयो :
शशिकरतुषारधवला, उज्ज्वलगन्धा सुतीर्थजलमिश्रा।
____ कर्पूरोदकधारा, सुमन्त्रपूता पततु बिम्बे ॥ १ ॥ (आर्या) कनककरकनाली मुक्तधाराभिरभि-र्मिलितनिखिलगन्धैः, केलिकपूरभाभिः । अखिलभुवनशान्त्यै, शान्तिधारा जिनेन्द्र-ऋमसरसिजपीठे, स्नापयेद वीतगगान् ॥२॥ (मालिनी) ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हूँ हाँ हूः परमाईते परमेश्वराय गन्धपुष्पादिसंमिश्रकर्पूरसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा ।।
॥ इति सप्तदशस्नानम् ॥
___-: अढारमु ( केशर-चंदन-पुष्प ) स्मात्रःकेशर-कस्तूरी-चंदनमिश्रितपाणीना कळशा भरी नीचेना श्लोक तथा मंत्र बोली अभिषेक करवो :सौरभ्यं घनसारपङ्कजरजो-भिः प्रीणितैः पुष्करैः;
शीतैः शीतकरावदातरुचिभिः, काश्मीरसम्मिश्रितैः ।
॥१०७॥
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