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अञ्जन
प्र. कल्प
॥१०८॥
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श्रीखण्डप्रसवाचलेच मधुरै - नित्यं लघिष्टवरैः;
सौरभ्योदकसख्य सार्व्वचरण - इन्द्रं यजे भावतः || १ || ( शार्दूल० )
'ॐ ह्रीँ ह्रीँ हूँ हैँ ह्रीँ हूः परमार्हते परमेश्वराय गन्ध - पुष्पादिसंमिश्र कश्मीरज चन्दनादिसंयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा' ॥
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॥ इति अष्टादशस्नात्रम् ॥ १८ ॥
'त्यार बाद नीचेनो श्लोक तथा मंत्र बोली कुसुमांजलि करवी :नानासुगन्धिपुष्पोघ - रञ्जिता चञ्चरीककृतनादा |
धूपाऽमोदविमिश्रा, पततात्पुष्पाञ्जलिर्बम्बे || १ || (आर्या) 'ॐ ह्रां ह्रीँ हूँ हूँ ह्रीँ हू: परमाईते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ पछी श्री संघसहित अधिकृत जिननी स्तुति आदिकथी देववंदन कर | देववंदनविधि:- खमा०, इरियावहिया • करी सकलकुशल, अधिकृतजिनतुं के 'ॐ नमः पार्श्वनाथाय
१. अहीं पुष्पांजलि कर्याबाद - घी-दूध आदि पंचामृत, तथा शुद्धजलनो अभिषेक अष्टादश अभिषेक वृहद् विधि प्रमाणे करी शकाय छे. तेनी विधि परिशिष्ट नं.-१ ऐ मां आपेल छे.
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