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अञ्जन प्र.कल्प
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5 चैत्यवंदन कही जंकिंचि०, नमुत्थुणं०, अरिहंतचेइयाणं०, अन्नत्थ०, एक नवकारनो काउ० करी 'नमोऽर्हत् ' कही | नीचेनी स्तुति कहेवी :
अर्हस्तनोतु स श्रेयः-श्रियं यद्ध्यानतो नरैः ।
___अप्यैन्द्री सकलाऽत्रैहि, रंहसा सह सौच्यत ॥ १ ॥ (अनु.) पछी लोगस्स०, सव्वलोए अरि०, अन्नत्थ०, १ नव० नो काउ० करी स्तुति कहेवी :
अमितिमन्ता यच्छा-सनस्य नन्ता सदा यदहोश्च ।
आश्रीयते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु ॥ २ ॥ (आर्या) पछी पुक्खर०, सुअस्स भगवओ०, बंदण०, अन्नत्थ०, १ नव० नो काउ० करी स्तुति कहेवी :
नवतत्त्वयुता त्रिपदी, श्रिता रुचि-ज्ञान-पुण्य-शक्तिमता ।
वरधर्मकीर्ति-विद्या-ऽऽनन्दाऽऽस्या जैनगीर्जीयात् ॥ ३ ॥ (आर्या) ___ पछी 'श्रीशान्तिनाथआराधनाथ' करेमि०, का. वंदण०, अन्नत्थ०, १ लोगस्स सागरवरगंभीरा० काउ० करी 'नमो०' स्तुतिः
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