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अञ्जन प्र.कल्प
॥१०६॥
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अटले विबोने (चंद्र-सूर्य, स्वप्न के ) आरीसो देखाडयो, पछी छठे दिवसे धर्मजागरण अटले धर्म स्तुति करवी पछी दसुठण करवु.]
:- सोळमुं (तीर्थोदक ) स्नात्र :अहिं एकसोआठ तीर्थोनां पाणी कळशोमां भरी नीचेना श्लोक तण मंत्र बोली अभिषेक करयो :जलधिनदीद्रहकुण्डेषु, यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि ।
तैर्मन्त्रसंस्कृतैरिह, बिम्बं स्नपयामि सिद्धयर्थम् ॥ १ ॥ (आर्या) नाकिनदीनदविहितैः, पयोभिरम्भोजरेणुभिः सुभगैः ।
श्रीमज्जिनेन्द्रपादौ, समर्चयेत् सर्वशान्त्यर्थम् ॥ २ ॥ (आर्या) ॐ हाँ हाँ हूँ हैं हौ हः परमाईते परमेश्वराय गन्धपुप्पादिसंमिश्रतीर्थोदकेन स्नापयामीति स्वाहा ॥
॥ इति षोडशस्नात्रम् ॥
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१. चंद्र-सूर्यदर्शनना मंत्रो प्रतिष्टाकल्पमा आवतां नथी एण अष्टादशअभिषेक बृहदविधिमां आवे छे अने हाल अढार अभिषेक
समये बोलाय छे ते परिशिष्ट न. १-ओ मां आपेल छे.
॥१०६॥
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