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________________ अञ्जन प्र.कल्प ॥१९ ॥ तामेवानुकृति विधाय हृदये, भक्तिप्रकर्षान्विताः; कुर्मः स्वस्वगुणानुसारवशतो, बिम्बाभिषेकोत्सवम् बीजीवार कुसुमांजलि:-नमोऽहत मृत्कुम्भाः कलयन्तु रत्नघटितां, पीठं पुनर्मेरुता-मानीतानि जलानि सप्तजलधि-क्षीराज्यदध्यात्मताम् । बिम्बं पारगतत्वमत्र सकलः, सङ्गः सुराधीशतां, येन स्यादयमुत्तमः सुविहितः, स्नात्राभिषेकोत्सवः । त्रीजीवार कुसुमांजलि:-नमोऽहंत आत्मशक्तिसमानीतः, सत्यं चामृतवस्तुभिः। तदवादिकल्पनां कृत्वा, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥३॥ (अनु.) पछी दूधनो कळश लइ नीचेनो श्लोक बोली अभिषेक करवोः भगवन्मनोगुणयशोऽनुकारि-दुग्धाब्धितः समानीतम् । दुग्ध विदग्धहृदयं, पुनातु दत्तं जिनस्नात्रे ॥ १॥ (आर्या) पछी दहीनो कळश लइ नीचेनो श्लोक बोली अभिषेक करवोः दधिमुखमहीध्रवर्ण, दधिसागरत: समाहृतं भक्त्या । दधि विदधातु शुभविधि, दधिसार पुरस्कृतं जिनस्नात्रे ॥२॥ (आयर्या) पछी घीनो कलश लइ नीचेनो श्लोक बोली अभिषेक करवोः स्निग्धं मृदु पुष्टि करं, जीवनमतिशीतलं सदाभिख्यम् । जिनमतवद् घृतमेतत्, पुनातु लग्नं जिनस्नात्रे ॥३॥ (आर्या) R पछी शेरडीना रसनो कळश लइ नीचेनो श्लोक बोली अभिषेक करवोः मधुरिममधुरीणविधुरित-सुधाऽधराऽऽधार आत्मगुणवृत्त्या । शिक्षयतादिक्षुरसो विचक्षणोघं जिनस्नाः ॥ ४॥ (आर्या) HARER ॥१९७॥ ५० Jain Education International For Private & Personal Use Only Mainelibrary.org
SR No.600016
Book TitlePratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Original Sutra AuthorSakalchandra Gani
AuthorSomchandravijay
PublisherNemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat
Publication Year
Total Pages340
LanguageDevnagri, Gujarati
ClassificationManuscript, Ritual_text, Vidhi, Devdravya, & Ritual
File Size18 MB
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